
प्रस्तावना
भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रीय गणराज्य है। लोकतंत्र, हमारे लिए 'हम भारत के लोग' की अवधारणा से निर्मित संविधान में स्थापित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सौहार्द के ताने-बाने में, रचा-बसा है। संविधान में परिकल्पित लोकतंत्र की अवधारणा में संसद और राज्य विधान सभाओं में निर्वाचन के माध्यम से लोगों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई है। उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि लोकतंत्र भारत के संविधान की एक अभिन्न मूल विशेषता है और यह इसकी मूल संरचना का भाग है। भारत के संविधान ने संसदीय शासन प्रणाली को अंगीकृत किया है। संसद में भारत के राष्ट्रपति एवं दो सदन - राज्य सभा और लोक सभा आते हैं। राज्यों का संघ होने के नाते, भारत के प्रत्येक राज्य में अलग-अलग राज्य विधायिकाएं होती हैं। राज्य विधायिकाओं में राज्यपाल और दो सदन - विधान परिषद एवं विधान सभा शामिल हैं। सात राज्यों नामत: आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में द्विसदनात्मक व्यवस्था है और शेष 22 राज्यों में राज्यपाल और राज्य विधान सभा की व्यवस्था विद्यमान है। उपर्युक्त के अलावा, सात संघ राज्य क्षेत्रों में से दो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों नामत: दिल्ली और पुदुचेरी की अपनी विधान सभाएं हैं।
निर्वाचन क्षेत्र एवं सीटों का आरक्षण
देश को 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा गया है जिसमें से प्रत्येक लोकसभा, संसद के निम्न सदन में एक संसद सदस्य भेजता है। भारत के संघात्मक लोकतांत्रिक गणतंत्र में 36 निर्वाचक इकाइयां हैं। सभी 29 राज्यों एवं सात संघ राज्य क्षेत्रों में से दो के पास अपनी सभाएं - विधान सभाएं हैं। 31 विधान सभाओं में 4120 निर्वाचन क्षेत्र हैं।
आंकड़ों पर एक नज़र
जनांकिकी
कुल जनसंख्या | 1.2 बिलियन |
कुल क्षेत्रफल | 3.3 मिलियन वर्ग कि.मी. |
निर्वाचकों की संख्या | 834,082,814 (1951-52 में 173,212,343 की तुलना में) |
पुरूष मतदाता |
437,035,372 |
महिला मतदाता | 397,018,915 |
थर्ड जेंडर | 28,527 |
युवा (18-19) | 13,430,193 |
मतदान केन्द्रों की कुल संख्या | 9,27,553 |
वर्तमान में विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों की कुल संख्या | 4,120 |
संसद
राज्य सभा | 250 सदस्यों से अधिक नहीं (वर्तमान में 243); राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 80 के अधीन 12 सदस्य नामित किए जाते हैं। |
लोक सभा | 543 सदस्यों के अलावा, राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 331 के अंतर्गत एंग्लो-इंडियन समुदाय के दो सदस्य नामित किए जाते हैं |
राजनैतिक दल
राजनैतिक दल | कुल | जिन्होंने 2014 के मतदानों में भाग लिया |
राष्ट्रीय दल | 6 | 6 |
राज्य के मान्यता प्राप्त दल | 47 | 39 |
पंजीकृत गैर-मान्यताप्राप्त दल | 1593 | 419 |
राजनैतिक दलों की कुल संख्या | 1646 | 464 |
अभ्यर्थियों की कुल संख्या | 8251 |
2014 लोकसभा निर्वाचन
मतदाताओं का अब तक का उच्चतम टर्नआउट | 66.44% (2009 में 58.19% की तुलना में) 55.41 करोड़ मतदाता |
प्रतिशत वृद्धि (2009 की तुलना में) |
32.71% |
कुल पुरूष टर्नआउट | 67.00% (डाक मतपत्र शामिल नहीं किए गए हैं) |
कुल महिला टर्नआउट | 65.54% (डाक मतपत्र शामिल नहीं किए गए हैं) |
लोकसभा, 2014 की झलक
निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या
निर्वाचन क्षेत्रों के प्रकार | सामान्य | अ.जा. | अ.ज.जा. | कुल |
निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या | 412 | 81 | 47 | 543 |
निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों की संख्या
निर्वाचन क्षेत्र में निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों की संख्या | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6-10 | 11-15 | 15 से ऊपर |
ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या | 0 | 1 | 3 | 3 | 3 | 103 | 241 | 189 |
निर्वाचन मैदान में कुल निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थी | 8251 |
प्रति निर्वाचन क्षेत्र में औसत निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थी | 15 |
किसी निर्वाचन क्षेत्र में न्यूनतम निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थी | 2 |
किसी निर्वाचन क्षेत्र में अधिकतम निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थी | 42 |
निर्वाचक
पुरूष | महिला | थर्ड जेंडर | कुल | |
निर्वाचकों की संख्या (सेवा निर्वाचकों सहित) | 437035372 | 397018915 | 28527 | 834082814 |
सामान्य निर्वाचकों की संख्या जिन्होंने मतदान केन्द्रों में भाग लिया | 292826408 | 260192272 | 1968 | 553020648 |
मतदान प्रतिशत | 67.00% | 65.54% | 7% | 66.30% |
सेवा निर्वाचकों की संख्या
पुरूष | 986384 |
महिला | 379241 |
समय से प्राप्त और गणना किए गए डाक मतपत्रों की संख्या | 1154607 |
मतदान % (डाक मत पत्र सहित) | 66.14 |
वैध मतों की संख्या
ईवीएम (इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर डाले गए वैध मत | 546879221 |
वैध डाक मत | 920783 |
कुल नोटा मत
ईवीएम (इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर नोटा मत | 5994418 |
डाक मत पत्र पर 'नोटा' मत | 8524 |
निरस्त मतों की संख्या
डाकमत | 225300 |
ईवीएम (इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर पुन: प्राप्त नहीं किए गए मत | 143573 |
अन्य कारणों से निरस्त किए गए मत (मतदान केन्द्र में) | 3436 |
निविदत्त मत | 4497 |
सेवा निर्वाचकों द्वारा परोक्षी मत | 173 |
मतदान केन्द्रों की संख्या | 927553 |
प्रति मतदान निर्वाचकों की औसत संख्या | 899 |
आयोजित किए गए पुनर्मतदानों की संख्या | At 301 Polling Stations |
निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों का निष्पादन
Male | Female | Others | Total | |
निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों की संख्या | 7577 | 668 | 6 | 8251 |
निर्वाचित | 481 | 62 | 0 | 543 |
जमानत जब्ती | 6469 | 525 | 6 | 7000 |
राष्ट्रीय दलों का निष्पादन
पार्टी का नाम |
अभ्यर्थी | पार्टी द्वारा प्राप्त किए गए मत | प्राप्त मतों का प्रतिशत | |||
निर्वाचन लड़ने वाले | जीते | हारे | कुल निर्वाचकों में से | डाले गऐ वैध मतों में से | ||
भारतीय जनता पार्टी |
428 | 282 | 62 | 171660230 | 20.58 |
31.34 |
बहुजन समाज पार्टी |
503 | 0 | 447 | 22946346 | 2.75 | 4.19 |
कम्युनिस्ट पार्टी आफ |
67 | 1 | 57 | 4327460 | 0.52 | 0.79 |
कम्युनिस्ट पार्टी आफ
|
93
464 |
9
44 |
50
178 |
17988955
106935942 |
2.16
12.82 |
3.28
19.52 |
नेशनलिस्ट काँग्रेस पार्टी |
36 | 6 | 13 | 8635558 | 1.04 | 1.58 |
कुल योग |
1591 | 342 | 807 | 332494491 | 39.86 |
60.70 |
देश में कुल निर्वाचक (सेवा-निर्वाचकों सहित) : 834082814
देश में डाले गए वैध मत (सेवा-मतदाताओं सहित) : 5478000
निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं कैसे निर्धारित की जाती हैं
संसदीय या विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करना परिसीमन है जो यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लोगों की संख्या यथा संभव करीब-करीब समान रहे। जनसंख्या में परिवर्तन को प्रदर्शित किए जाने के लिए दस वर्ष बाद किए जाने वाली जनगणना के पश्चात सीमाओं को पुन: व्यवस्थित किया जाना होता है, जिसके लिए संसद विधि द्वारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त और उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के दो सेवारत न्यायामूर्तियों या सेवा-निवृत्त न्यायमूर्तियों को मिलाकर एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग गठन करता है। तथापि, वर्ष 1976 के संविधान संशोधन के अंतर्गत, परिसमीन को वर्ष 2001 की जनगणना के बाद तक के लिए स्थगित रखा गया ताकि राज्य के परिवार नियोजन कार्यक्रम, लोकसभा और विधान सभाओं में उनके राजनैतिक प्रतिनिधित्व को प्रभावित न करें। इसकी वजह से निर्वाचन क्षेत्रों के आकार में कुछेक विसंगतियां आई। .
इस प्रकार के प्रतिरोध का आधारभूत औचित्य यह था कि कुछेक राज्य, जो जनसंख्या नियंत्रण उपायों का पूरे जोर-शोर से कार्यान्वयन कर रहे थे, ने यह महसूस किया कि वे ऐसे राज्य जो जनसंख्या नियंत्रण उपायों को इतने अधिक प्रभावी ढंग से कार्यान्वित नहीं कर रहे थे, के सापेक्ष वर्ष 1981 और 1991 के जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर लोकसभा एवं राज्य विधान सभाओं में कुछ प्रतिनिधि कम हो सकते थे। तथापि, समय बीतने के साथ-साथ उपर्युक्त प्रतिरोध से लगभग सभी संसदीय एवं विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के निर्वाचकों में व्यापक विसंगतियां आयीं, जिसने एक व्यक्ति, एक मत; एक मूल्य के सिद्धांत को प्रभावित किया। इसलिए, वर्ष 2001 में एक अन्य 84वें संविधान संशोधन से संसद को एक अन्य तरीका प्राप्त हो गया। यह उपबंध किया गया कि सभी संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की क्षेत्रीय सीमाएं 1991 की जनसंख्या के आधार पर फिर से समायोजित की जाएं, परंतु राज्यों को लोकसभा में सीटों का आबंटन और राज्य विधान सभाओं में सीटों की कुल संख्या वर्ष 2026 के बाद की जाने वाली पहली जनगणना तक अपरिवर्तित रखी जाएंगी ताकि जनसंख्या को अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रण कर रहे उपर्युक्त राज्यों के हितों की रक्षा की जा सके। वर्ष 2003 में संविधान में किए गए बाद के अन्य 87वें संशोधन द्वारा संसद ने यह निर्णय लिया कि संसदीय एवं विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों को वर्ष 1991 की जनगणना की बजाय वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किया जाए। उक्त सदनों में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जन जातियों के आरक्षण को भी 2001 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित करने का निर्णय लिया गया। उपर्युक्त संविधान संशोधनों के अनुसरण में परिसीमन अधिनियम, 2002 के उपबंधों के अंतर्गत जुलाई, 2002 में उच्चतम न्यायालय के सेवा-निवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय परिसीमन आयोग का गठन किया गया। मुख्य निर्वाचन आयुक्त या उनके द्वारा नामित एक निर्वाचन आयुक्त परिसीमन आयोग का एक सदस्य था। परिसीमन आयोग ने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र और सभी राज्यों में विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों (अरूणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैण्ड राज्यों को छोड़कर जहां वर्ष 2008 में परिसीमन अधिनियम के संशोधन द्वारा परिसीमन प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया था) की क्षेत्रीय सीमाओं को पुन: समायोजित किया गया। वर्ष 2008 में उक्त अधिनियम के उसी संशोधन द्वारा, परिसीमन आयोग द्वारा झारखंड राज्य के संबंध में बनाए गए परिसीमन आदेश को अप्रभावी कर दिया गया। (परिसीमन अधिनियम 2002 को जम्मू एवं कश्मीर राज्य के लिए लागू नहीं किया गया था और परिणामस्वरूप उस राज्य में वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन नहीं किया गया। परिसीमन आयोग द्वारा पारित सभी आदेश अनुच्छेद 82 और 170 के आदेश के तहत राष्ट्रपति द्वारा मेघालय एवं त्रिपुरा, जहां ये आदेश 20 मार्च, 2008 से लागू किए थे, को छोड़कर सभी राज्यों में, 19 फरवरी, 2008 से लागू किए गए थे। तद्नुसार, लोकसभा एवं राज्य विधान सभाओं के लिए 19 फरवरी, 2008 के बाद आयोजित किए गए सभी निर्वाचन, जिसमें वर्ष 2009 में लोकसभा का पिछला साधारण निर्वाचन भी शामिल है, परिसीमन आयोग द्वारा वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर यथा समायोजित संसदीय एवं विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर आयोजित किए गए हैं।
सीटों का आरक्षण
संविधन ने लोकसभा के लिए एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा नामित दो सदस्यों के अलावा 550 निर्वाचित सदस्यों की सीमा निर्धारित की है। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र, जहां केवल इन्हीं समुदायों के अभ्यर्थी निर्वाचन के लिए खड़े हो सकते हैं, के लिए भी प्रावधान किए गए हैं। महिला अभ्यर्थियों के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने के लिए वर्ष 1999 के आरंभ में लोकसभा में एक विधान पेश किया गया था। इससे पहले कि संसद द्वारा इस विधेयक पर विचार किया जाए और इसे पारित किया जाए, संसद का निम्न सदन भंग हो गया था।
निर्वाचन प्रणाली
लोकसभा और प्रत्येक विधान सभा के लिए निर्वाचन सबसे ज्यादा मत ग्रहण करने वाली प्रणाली का प्रयोग करके किए जाते हैं। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए, निर्वाचक एक अभ्यर्थी के लिए (अपनी पसंद के) मत डाल सकते हैं और सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाल अभ्यर्थी विजेता होता है। .
संसद
केन्द्रीय संसद में राष्ट्रपति, लोकसभा (हाउस ऑफ दि पीपल) और राज्य सभा (कांउसिल आफ दि स्टे्टस) आते हैं।
राज्य सभा – दि काउंसिल आफ दि स्टेट्स
राज्य सभा के सदस्य नागरिकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप की बजाय अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित किए जाते हैं। राज्य सभा के सदस्य प्रत्येक राज्य की विधान सभा द्वारा एकल संक्रमणीय मत प्रणाली का प्रयोग करके निर्वाचित किए जाते हैं। अधिकांश संघीय प्रणालियों से भिन्न, प्रत्येक राज्य द्वारा भेजे गए सदस्यों की संख्या मोटे तौर पर उनकी जनसंख्या के अनुपात में होती है। इस समय, विधान सभाओं द्वारा निर्वाचित 233 सदस्य हैं और साथ ही राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में से नामित किए गए 12 सदस्य हैं। राज्य सभा सदस्य छ: वर्षों के लिए कार्य कर सकते हैं और निर्वाचन निर्धारित अंतराल पर आयोजित किए जाते हैं, जिसमें प्रत्येक दो वर्ष बाद परिषद के एक - तिहाई सदस्य निर्वाचित किए जाते है।
लोक सभा – हाउस ऑफ दि पीपुल
राष्ट्रपति देश का प्रधान होता है। वह प्रधान मंत्री की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री द्वारा लोक सभा की राजनैतिक संरचना के अनुसार मंत्री परिषद का गठन किया जाता है, जो सरकार चलाता है। यद्यपि सरकार का नेतृत्व प्रधान मंत्री द्वारा किया जाता है, तब भी मंत्रिमंडल सरकार का निर्णय लेने वाला केन्द्रीय निकाय होता है। एक दल से अधिक सदस्य सरकार बना सकते हैं, यद्यपि शासकीय दल लोक सभा में अल्प मत का हो सकता है, तथापि वे तब तक सरकार चला सकते हैं, जब तक उन पर लोक सभा के अधिकांश सदस्यों का विश्वास बना रहता है। लोकसभा, राज्य सभा के साथ प्रमुख विधायी निकाय होती है। लोकसभा के सदस्य एकल सदस्यीय क्षेत्रीय संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों से सबसे अधिक मत ग्रहण करने वाली प्रणाली के अंतर्गत भारत के वयस्क नागरिकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित किए जाते हैं। इस समय लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा नामित दो सदस्यों के अलावा 543 प्रत्यक्ष निर्वाचित सदस्य हैं।
राज्य विधान मंडल
भारत एक संघात्मक देश है और संविधान राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों को अपनी स्वयं की सरकार के ऊपर महत्वपूर्ण नियंत्रण प्रदान करता है। विधान सभाएं प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित निकाय होती हैं जो भारत में 29 राज्यों में सरकार का प्रशासन चलाती हैं। कुछ राज्यों में, द्विसदनात्मक संगठन - उच्च सदन एवं निम्न सदन दोनों होते हैं। सात संघ राज्य क्षेत्रों में से दो में अर्थात् राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और पुदुचेरी में भी विधान सभाएं हैं। विधान सभाओं का आकार उनकी जनसंख्या के अनुसार है। सबसे बड़ी विधान सभा उत्तर प्रदेश में है जिसमें 403 सदस्य हैं और सबसे छोटी विधान सभा पुदुचेरी की है, जिसमें 30 सदस्य हैं। तथापि, राज्य सभा, संसद का उच्च सदन, विधान परिषद, राज्य विधान मंडलों का उच्च सदन (जो केवल कुछ ही राज्यों में विद्यमान हैं) और राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के माध्यम से समानुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर संचालित किए जाते हैं।
राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति
राष्ट्रपति का निर्वाचन 5 वर्षों की अवधि के लिए विधान सभा, लोकसभा और राज्य सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है। राज्य की जनसंख्या से संबद्ध एक सूत्र संसद के दोनों सदनों-लोकसभा और राज्य के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों का मान निर्धारित करता है और सभी राज्य विधान सभाओं के सदस्यों के कुल मतों से संबद्ध सूत्र द्वारा उनके मतों का मान निर्धारित किया जाता है। यदि कोई भी अभ्यर्थी बहुमत प्राप्त नहीं करता है तो इसके लिए एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा हारने वाले अभ्यर्थियों को निर्वाचन से हटा दिया जाता है और उनको मिले मतों को तब तक अन्य अभ्यर्थियों की हस्तांतरित किया जाता है जब तक कि किसी अभ्यर्थी को बहुमत न मिल जाए। उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन लोकसभा एवं राज्य सभा के सभी निर्वाचित एवं नामित सदस्यों के प्रत्यक्ष मत द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के पद के लिए एक सफल अभ्यर्थी पुन: निर्वाचन का पात्र होता है।
राष्ट्रपति का नाम | अवधि |
डा. राजेन्द्र प्रसाद | 26-जनवरी-1950 से 13-मई-1962 |
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | 13-मई-1962 से 13-मई-1967 |
डा. जाकिर हुसैन | 13-मई-1967 से 3-मई-1969 |
वराहगिरी वैंकट गिरी | 3-मई-1969 से 20-जुलाई-1969 |
मुहम्मद हिदायतुल्ला | 20-जुलाई-1969 से 24-अगस्त-1969 |
वराहगिरी वेंकट गिरी | 24-अगस्त-1969 से 24-अगस्त-1974 |
फखरूद्दीन अली अहमद | 24-अगस्त-1974 से 11-फरवरी-1977 |
बसप्पा दनप्पा जत्ती | 11-फरवरी-1977 से 25-जुलाई-1977 |
नीलम संजीवा रेड्डी | 25-जुलाई-1977 से 25-जुलाई-1982 |
ज्ञानी जैल सिंह | 25-जुलाई-1982 से 25-जुलाई-1987 |
रामास्वामी वेंकटरमन | 25-जुलाई-1987 से 25 जुलाई-1992 |
डा. शंकर दयाल शर्मा | 25-जुलाई-1992 से 25-जुलाई-1997 |
कोचेरिल रमन नारायणन | 25-जुलाई-1997 से 25-जुलाई-2002 |
डा.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम | 25-जुलाई-2002 से 25-जुलाई-2007 |
प्रतिभा पाटिल | 25-जुलाई-2007 से 25-जुलाई-2012 |
प्रणब मुखर्जी | 25-जुलाई-2012 से |
उप-राष्ट्रपति का नाम | अवधि |
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | 13-मई-1952 से 12-मई-1962 |
डा.जाकिर हुसैन | 13-मई-1962 से 12-मई-1967 |
श्री वराहगिरी वैंकट गिरी | 13-मई-1967 से 3-मई-1969 |
गोपाल स्वरूप पाठक | 31-अगस्त-1969 से 30-अगस्त-1974 |
बसप्पा दनप्पा जत्ती | 31-अगस्त-1974 से 30-अगस्त-1979 |
न्यायमूर्ति मुहम्मद हिदायतुल्ला | 31-अगस्त-1979 से 30-अगस्त-1984 |
रामास्वामी वेंकटरमण | 31-अगस्त-1984 से 24-जुलाई-1987 |
डा. शंकर दयाल शर्मा | 3-सितम्बर-1987 से 24-जुलाई-1992 |
कोचेरिल रमन नारायणन | 21-अगस्त-1992 से 24-जुलाई-1997 |
कृष्ण कांत | 21-अगस्त-1997 से 27-जुलाई-2002 |
भैंरो सिंह शिखावत | 19-अगस्त-2002 से 21-जुलाई-2007 |
मोहम्मद हमीद अंसारी | 11-अगस्त-2007 से |
स्वतंत्र निर्वाचन आयोग
भारत निर्वाचन आयोग 25 जनवरी, 1950 से एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण है। सविंधान में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और एक से अधिक निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है। वर्ष 1989 तक आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त होते थे, जब पहली बार दो निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किए गए थे। फिलहाल आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो आयुक्त हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों को भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समान दर्जा दिया गया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त को केवल संसदीय महाभियोग द्वारा ही उसके पद से हटाया जा सकता है। निर्वाचन आयोग संसद एवं राज्य विधायिकाओं और राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के पदों के निर्वाचनों का संचालन करने के लिए उत्तरदायी है। निर्वाचन आयोग, निर्वाचन नामावली जो यह प्रदर्शित करती है कि मत देने के लिए कौन अधिकृत है, को तैयार करता है, उनका अनुरक्षण करता है और आवधिक रूप से उन्हें अद्यतन करता है, आयोग अभ्यर्थियों के नाम-निर्देशन का प्रेक्षण करता है, राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है, निर्वाचन अभियान का अनुवीक्षण करता है, जिसमें अभ्यर्थियों का निधीयन और इससे संबंधित विवरण दर्ज करना शामिल है। यह मीडिया द्वारा निर्वाचन प्रक्रिया की कवरेज को सुकर बनाता है, उन पोलिंग बूथों को व्यवस्थित करता है जहां मतदान किया जाता है, और मतों की गणना और परिणामों की घोषणा का ध्यान रखता है। ये सब यह सुनिश्चित किए जाने के लिए किया जाता है ताकि निर्वाचन सही और निष्पक्ष ढंग से किए जा सकें। आयोग अधिकांश मामलों में आम राय से निर्णय लेता है परंतु असहमति के मामले में बहुमत का विचार अभिभावी होता है। आयोग का अपना मुख्यालय नई दिल्ली में है जिसमें लगभग 350 कर्मचारियों का एक सचिवालय है। राज्य स्तर पर मुख्य 'स्टॉफ के साथ एक मुख्य निर्वाचन अधिकारी पूर्णकालिक आधार पर उपलब्ध रहता है जिसमें कर्मचारियों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। जिला एवं निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर सिविल प्रशासन के अधिकारी और स्टाफ स्थानापन्न निर्वाचन अधिकारियों के रूप में कार्य करने लगते हैं। निर्वाचनों के वास्तविक संचालन के दौरान, लगभग दो हफ्ते के लिए अतिरिक्त स्टाफ की बड़ी संख्या भर्ती की जाती है। वे मुख्य रूप से मतदान एवं मत गणना अधिकारियों के रूप में कार्य करते हैं।
मत कौन डाल सकता है ?
भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत पर आधारित है जिसमें 18 वर्ष से अधिक का कोई भी नागरिक निर्वाचन में मत डाल सकता है (वर्ष 1989 से पहले यह आयु 21 वर्ष थी)। मत देने के अधिकार में जाति, समुदाय, धर्म या लिंग पर ध्यान नहीं दिया जाता है। विक्षिप्त दिमाग के व्यक्ति और कुछेक आपराधिक अभियुक्तों को मत डालने के लिए अनुमति नहीं दी जाती है। भारतीय निर्वाचन में मत देने वाले लोगों की संख्या में सामान्यतया वृद्धि हुई है। वर्ष 1996 में 57.4 प्रतिशत निर्वाचकों ने मतदान किया था। यह वृद्धि वर्ष 2014 के निर्वाचनों में बढ़कर 66% हो गई। महिलाओं ने काफी संख्या में मत दिया और इनकी संख्या लगभग पुरूषों के बराबर हो गई।
निर्वाचक नामावली
किसी भी निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचक नामावली उस निर्वाचन क्षेत्र में उन लोगों की सूची होती है जो निर्वाचन में मतदान करने के लिए अधिकृत होते हैं। केवल उन व्यक्तियों को 'निर्वाचकों' के रूप मे मतदान करने की अनुमति दी जाती है जिनके नाम निर्वाचक नामावली में होते हैं। निर्वाचक नामावली को ऐसे व्यक्तियों के नामों को जोड़ने जो उस वर्ष की पहली जनवरी की अर्हक तारीख को 18 वर्ष से कम आयु के नहीं होते हैं या जो बाहर से निर्वाचन क्षेत्र में आए हैं और उन व्यक्तियों के नामों को हटाने, जिनका देहान्त हो गया है या जो निर्वाचन क्षेत्र से बाहर चले गए हैं, हेतु सामान्यतया प्रतिवर्ष संशोधित किया जाता है। निर्वाचक नामावलियों का अद्यतनीकरण एक सतत प्रक्रिया है जो निर्वाचनों के समय केवल नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तारीख से निर्वाचनों के समापन तक की अवधि के दौरान अवरूद्ध होती है। निर्वाचन नामावलियों के तैयारी करने, अनुरक्षण और संशोधन में जुटी प्रशासनिक कार्यप्रणाली में भारत निर्वाचन आयोग पदानुक्रम में सबसे ऊपर है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 13ख के अनुसार राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचक नामावली निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) द्वारा तैयार एवं संशोधित की जानी होती है। पदक्रम में सबसे नीचे बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) आते हैं और पर्यवेक्षक भी नियुक्त किए जाते हैं। प्रत्येक बीएलओ के पास अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत एक या दो मतदान केन्द्र होते हैं। निर्वाचक नामावलियों में संशोधन के दौरान, बीएलओ को परिगणना, नामावलियों एवं प्ररूपों के सत्यापन और निर्वाचक फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) एवं फोटो नामावली की विस्तृत व्याख्या करने के लिए निर्वाचकों से प्ररूपों एवं फोटोग्राफों का एकत्र करने का कार्य सौंपा जा सकता है। बीएलाओ इस प्रकार एकत्रित किए गए प्ररूपों को आगे की कार्रवाई के लिए नामोद्दिष्ट अधिकारियों एवं ईआरओ को सुपुर्द करते हैं। सतत पुनरीक्षण एवं अद्यतनीकरण की जा रही अवधि के दौरान मृत एवं स्थानांतरित मतदाताओं की पहचान के लिए भारत निर्वाचन आयोग द्वारा (वर्ष की प्रत्येक छमाही में एक बार) इस उद्देश्य के लिए निर्धारित तारीखों पर बीएलओ का प्रयोग किया जाता है। निर्वाचन वर्ष में बीएलओ का कार्य प्रारूप नामावलियों के प्रकाशन के साथ शुरू होता है और भारत निर्वाचन आयोग द्वारा अनुमोदित विशिष्ट कार्यक्रम के अनुसार द्वितीय अनुपूरक की समाप्ति तक चलता है। पर्यवेक्षी अधिकारी बीएलओ द्वारा किए गए कार्य की गुणवत्ता की जांच करता है और बारीकी से इसका अनुवीक्षण करता है। प्रत्येक पर्यवेक्षी अधिकारी के पर्यवेक्षण के अंतर्गत 10 से 20 बीएलओ होते हैं। निर्वाचक नामावालियों की तैयारी एवं पुनरीक्षण की प्रक्रिया में लिप्त कार्यप्रणाली के अलावा, सामुदायिक सहभागिता को भी एक उपाय के रूप में अभिनिर्धारित किया गया है जिसमें राजनैतिक दल बीएलओ के कार्य को पूरा करने के लिए मतदान एजेंटों की नियुक्ति की तर्ज पर बूथ स्तरीय एजेंटों को अपने प्रतिनिधियों के रूप में नियुक्त कर सकते हैं। सामान्य रूप से निर्वाचक नामावली के प्रत्येक भाग के लिए एक बूथ स्तरीय एजेंट नियुक्त किया जा सकता है। बूथ स्तरीय एजेंट (बीएलए) को निर्वाचक नामावली जिसके लिए उसे नियुक्त किया गया है, के संबद्ध भाग में एक पंजीकृत निर्वाचक होना चाहिए, क्योंकि यह अपेक्षा की जाती है कि बीएलओ मृत व्यक्तियों एवं स्थानांतरित व्यक्तियों की पहचान करने के लिए उस क्षेत्र की प्रारूप नामावली में प्रविष्टियों की जांच करेगा।
नामावलियों का कंप्यूरीकरण
भारत निर्वाचन आयोग ने संपूर्ण भारत की सभी निर्वाचक नामावलियों के कंप्यूटीकरण का कार्य पूरा कर लिया है जिससे निर्वाचक नामावली को अद्यतन बनाने की सटीकता और गति में सुधार आया है।
निर्वाचक फोटो पहचान-पत्र
निर्वाचक फोटो पहचान-पत्र (एपिक) एक पहचान दस्तावेज है जिसे निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी द्वारा जारी किया जाता है। एपिक में निर्वाचक का विवरण जैसे नाम, पिता/माता/पति का नाम, जन्म तिथि/अर्हक तारीख पर उम्र, लिंग, पता और सबसे अधिक महत्वपूर्ण निर्वाचक का फोटोग्राफ होता है। ईपीआईसी निर्वाचक के लिए एक स्थायी दस्तावेज होता है। निर्वाचक इसका उपयोग मतदान के समय अपनी पहचान सिद्ध करने के लिए करता है। किसी निर्वाचक जिसे एपिक जारी किया गया है, के लिए मतदान के समय एपिक प्रस्तुत करना अनिवार्य है ताकि मतदान किया जा सके। प्रतिरूपण उन बहुत सी बुराईयों में से एक थी जो देश की निर्वाचक प्रणाली को लंबे समय से पंगुबना रही थी। मतदानों में प्रतिरूपण पर रोक लगाने के आशय से आयोग ने वर्ष 1994-95 में मतदान के समय मतदाताओं की पहचान करने के लिए एपिक का प्रारंभ किया। आयोग एपिक जारी करने के लिए कवरेज में शत-प्रतिशत वृद्धि करने का हमेशा भरसक प्रयास करता रहा है परंतु निर्वाचक सूची में नए नाम-जोड़ने, मौजूदा निर्वाचकों की मृत्यु और व्यक्तियों के एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थानान्तरण करने के कारण अभी तक कुछ राज्यों में यह लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका है। इसलिए, आयोग मतदान केन्द्रों में निर्वाचकों की पहचान सिद्ध करने के लिए सरकारी पहचान-पत्रों, पासपोर्ट, पैन कार्डों, ड्राइविंग लाइसेंस, बैंक/डाकघर लेखा पासबुक, संपत्ति दस्तावेजों, अ.जा./अ.ज.जा./अन्य पिछड़ा वर्ग प्रमाण-पत्र, पेंशन दस्तावेजों, स्वतंत्रता सेनानी पहचान पत्र, हथियार लाइसेंस, शारीरिक रूप से अपंगता प्रमाण-पत्र, नरेगा के अधीन जारी जॉब कार्ड और स्वास्थ्य बीमा स्कीम स्मार्ट कार्ड जैसे कुछेक वैकल्पिक दस्तावेजों की अनुमति देता है। राष्ट्रीय स्तर पर एपिक की वर्तमान कवरेज 99 प्रतिशत हो गई है।
निर्वाचन कार्यक्रम – निर्वाचन कब होते हैं ?
लोक सभा और सभी राज्य विधान सभाओं के लिए निर्वाचन प्रति पांच वर्ष में किए जाने होते हैं, जब तक कि इनकी पहले करने की जरूरत न पड़े। यदि सरकार लोक सभा में विश्वास मत हासिल न कर सके, और सरकार चलाने के लिए कोई वैकल्पिक सरकार न बन पाए तो राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर सकता है और पांच वर्ष से पहले साधारण निर्वाचन करा सकता है। लोकसभा के साधारण निर्वाचन वर्ष 1952, 1957, 1962, 1967, 1971, 1977, 1984, 1989, 1991, 1996, 1997, 1998, 1999, 2004, 2009, और 2014 में आयोजित किए गए थे। नियमित निर्वाचनों का आयोजन केवल संवैधानिक संशोधन और निर्वाचन आयोग के परामर्श से स्थगित किया जा सकता है और यह माना जाता है कि नियमित निर्वाचनों को केवल असाधारण परिस्थितियों में ही कराए जा सकते हैं। जब पांच वर्ष की समय-सीमा पूरी हो जाती है या विधायिका भंग कर दी जाती है और नए निर्वाचनों की घोषणा कर दी जाती है तो निर्वाचन आयोग निर्वाचन प्रक्रिया आरंभ कर देता है।
निर्वाचन अनुसूची
निर्वाचन प्रक्रिया संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों एवं विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अधिसूचना जारी होने के साथ ही शुरू हो जाती है। विधायी उपबंधों के अनुसार सूचना जारी किए जाने के बाद नाम-निर्देशन के लिए सात दिन का समय दिया जाता है। नाम-निर्देशनों की जांच, नाम-निर्देशनों की अंतिम तारीख के अगले दिन की जाती है। इसके पश्चात् नाम-निर्देशन वापस लेने के लिए दो दिन दिए जाते हैं तथा नाम वापस लेने के पश्चात् अभ्यर्थियों की अंतिम सूची तैयार की जाती है। आमतौर पर प्रचार अवधि 14 दिन या इससे अधिक की होती है और प्रचार-अभियान, संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में मतदानों के समापन से 48 घंटे पहले समाप्त हो जाता है।
मतदान कार्मिकों की तैनाती
अन्य महत्वपूर्ण पहलू मतदान कार्मिकों की तैनाती का है। इसे तीन-चरणीय यादृच्छिकीकरण प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है जो इस प्रकार है:
प्रथम चरण: इस चरण में, जिले के लिए मतदान कर्मचारियों की अपेक्षित संख्या को चिन्हित करना और चयन करना होता है। नियुक्ति - पत्र में विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (एसी) का खुलाव नहीं किया जाता है। मतदान कार्मिकों को उनके पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी होने की जानकारी प्रशिक्षण के स्थान एवं समय पर ही होगी। इस चरण में प्रेक्षकों की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है।
दूसरा चरण: इस चरण में मतदान दलों का निर्माण किया जाता है। इस दौरान निर्वाचन क्षेत्र की जानकारी हो सकती है, लेकिन वास्तविक मतदान केन्द्र का पता नहीं चलता है। यहां प्रेक्षकों को उपस्थित होना जरूरी होता है। यह यादृच्छीकरण मतदान दिवस से 6/7 दिन पहले नहीं किया जाना होता है।
तृतीय चरण: मतदान पार्टी की रवानगी के समय, मतदान केन्द्र का आबंटन किया जाता है। प्रेक्षकों की उपस्थित जरूरी होती है और तीन-चरणीय यादृच्छीकरण प्रक्रिया के आधार पर मतदान दलों के गठन के संबंध में जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा भारत निर्वाचन आयोग को तथा अलग से मुख्य निर्वाचन अधिकारी को प्रमाण-पत्र दिया जाना आवश्यक होता है।
वर्ष 2014 के साधारण निर्वाचनों में, मतदान केन्द्रों पर व्यवस्था की समीक्षा की गई थी और मतदान केन्द्रों पर न्यूनतम आश्वासित सुविधा उपलब्ध कराने के अनुदेश जारी किए गए थे, जिसमें पीने का पानी, रोड शेल्टर प्रकाश–व्यवस्था रैंप आदि जैसी कुछेक मूलभूत न्यूनतम सुविधाएं (बीएमएफ) शामिल हैं। सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में मतदान कक्षों को मानकीकृत किया गया तथा उन्हें इस प्रकार लगाए जाने के अनुदेश जारी किए गए कि मतपत्र की गोपनीयता के साथ कोई समझौता न हो और जूट की थैलियां तथा प्लास्टिक शीट जैसे पदार्थों का प्रयोग निषिद्ध किया गया।
निर्वाचन कौन लड़ सकता है
कोई भी भारतीय नागरिक, जो एक पंजीकृत मतदाता है और जिसे विधि के अंतर्गत अन्यथा निर्हक नहीं किया गया है, और जिसकी आयु 25 वर्ष से अधिक है, को लोक सभा या राज्य विधान सभाओं के लिए निर्वाचन लड़ने की अनुमति दी जाती है। राज्य सभा के लिए यह आयु 30 वर्ष है। विधान सभा के लिए अभ्यर्थियों को उसी राज्य का निवासी होना चाहिए जिससे वे निर्वाचन लड़ना चाहते हैं। प्रत्येक अभ्यर्थी को लोक सभा के निर्वाचन के लिए 25,000/- रूपए और राज्य सभा या विधान सभा निर्वाचनों के लिए 10,000/- रूपए जमा करने होते हैं, केवल अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों को आधी राशि जमा करनी होती है। यदि अभ्यर्थी निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए वैध मतों की कुल संख्या के 1/6 से अधिक मत ग्रहण करते हैं तो जमा राशि वापस कर दी जाती है। किसी मान्यता प्राप्त पार्टी द्वारा प्रायोजित अभ्यर्थी के मामले में नाम-निर्देशनों को निर्वाचन क्षेत्र के कम से कम किसी एक पंजीकृत निर्वाचक द्वारा और अन्य अभ्यर्थियों के मामले में निर्वाचन क्षेत्र के दस पंजीकृत निर्वाचकों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए। निर्वाचन आयोग द्वारा नियुक्त रिटर्निंग अधिकारियों को प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में अभ्यर्थियों के नाम निर्देशन प्राप्त करने का प्रभार दिया गया है और वे निर्वाचन की औपचारिकताओं का निरीक्षण करते हैं । लोक सभा और विधान सभा की कुछ सीटों में केवल अ.जा. या अ.ज.जा. के ही अभ्यर्थी हो सकते हैं। इन आरक्षित सीटों की संख्या प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जातियों या अनुसूचति जनजातियों से लोगों की संख्या के अनुपात के लगभग होती है। इस समय लोक सभा में 84 सीट अनुसूचति जातियों के लिए और 47 सीट अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं।
नाम निर्देशन एवं प्रचार
प्रचार अवधि वह अवधि है जिसके दौरान राजनैतिक दल और अभ्यर्थी अपने विचार और पक्ष रखते हैं जिस आधार पर वे लोगों को उनके लिए मत देने के लिए राजी कराने का प्रयास करते हैं। अभ्यर्थियों को अपना नामनिर्देशन दायर करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाता है। रिटर्निंग अधिकारी द्वारा इनकी जांच की जाती है और यदि यह सही नहीं पाया जाता है तो इसे तत्काल सुनवाई के पश्चात निरस्त किया जा सकता है। वैध रूप से नाम-निर्देशित अभ्यर्थी नाम-निर्देशनों की जांच करने के दो दिनों के पश्चात् दो दिनों के भीतर अपना नाम-निर्देशन वापस ले सकते हैं। आधिकारिक प्रचार नाम-निर्देशित अभ्यर्थियों की सूची को तैयार करने से लेकर दो हफ्तों तक के लिए चलता है और आधिकारिक रूप से मतदान समाप्त होने से 48 घंटे पहले समाप्त हो जाता है। एक बार निर्वाचन की घोषणा हो जाने के पश्चात् राजनैतिक दल अपना घोषणा-पत्र जारी करते हैं जिसमें उन कार्यक्रमों का ब्यौरा होता है जिन्हें वे सरकार में निर्वाचित होने की स्थिति में कार्यान्वित करना चाहते हैं, उनके नेताओं की क्षमता और विपक्षी पाटियों एवं उनके नेताओं की असफलताओं का विवरण होता है। पार्टियों और मुद्दों को लोकप्रिय बनाने के लिए नारों का प्रयोग किया जाता है और निर्वाचकों में इश्तहार और पोस्टर वितरित किए जाते हैं। पूरे निर्वाचन क्षेत्र में रैलियां एवं बैठकों का आयोजन किया जाता है, जिसमें अभ्यर्थी समर्थकों को मनाने, फुसलाने और उत्साहित करने तथा विपक्षियों को कमतर दिखाने का प्रयास करते हैं। समर्थकों को यथासंभव प्रभावित करने का प्रयास करने के लिए अभ्यर्थियों द्वारा पूरे निर्वाचन क्षेत्र में भ्रमण कर रहे सुधारों की वैयक्तिक अपील एवं प्रतिज्ञाएं की जाती हैं। पार्टी के प्रतीक चिह्न को पोस्टरों एवं इश्तहारों पर प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाता है।
आदर्श आचार संहिता
निर्वाचन प्रचार के दौरान राजनैतिक दलों एवं निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों से राजनैतिक पार्टियों में आम राय के आधार पर भारत निर्वाचन आयोग द्वारा विकसित आदर्श आचार संहिता का अनुपालन किए जाने की अपेक्षा की जाती है। आदर्श आचार संहिता में विस्तृत दिशा-निर्देश दिए गए हैं कि राजनैतिक दल एवं अभ्यर्थी निर्वाचन प्रचार के दौरान स्वयं किस प्रकार का आचरण करें। यह अपेक्षा की जाती है कि निर्वाचन स्वस्थ प्रकार की परंपरा को बनाए रखा जाए, राजनैतिक दलों या उनके समर्थकों के बीच संघर्ष और विवादों को दूर रखा जाए और प्रचार अवधि और उसके बाद परिणाम घोषित किए जाने तक शांति एवं व्यवस्था बनाए रखी जाए। आदर्श आाचार संहिता केन्द्र या राज्य में सतारूढ़ दल के लिए भी यह सुनिश्चित करने के लिए मार्ग निर्देशन निर्धारित करती है कि समान अवसर बनाए रखे जायें और शिकायत का कोई मौका न दिया जाए कि सतारूढ़ दल ने अपने निर्वाचन के प्रयोजन के लिए अपनी आधिकारिक हैसियत का प्रयोग किया है।
मतदान व्यय संबंधी सीमा
निर्वाचन प्रचार के दौरान किसी अभ्यर्थी द्वारा धनराशि खर्च किए जाने के संबंध में कड़ी कानूनी सीमाएं तय की गई हैं। अधिकांश लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों में यह सीमा हाल ही में किए गए संशोधन के अनुसार 70,00,000/- रूपए है। यद्यपि विधान सभा निर्वाचनों के लिए कुछेक छोटे राज्यों में यह सीमा 28,00,000/- रूपए है। हालांकि किसी अभ्यर्थी के समर्थक प्रचार में सहायता करने के लिए अपनी इच्छा के अनुसार खर्च कर सकते हैं परंतु इसके लिए उन्हें अभ्यर्थी से लिखित अनुमति प्राप्त करनी होती है। इसी तरह से पार्टियों को उनकी इच्छा के मुताबिक खर्च किए जाने की अनुमति दी गई है, परंतु हाल ही के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में कहा गया है कि जब तक कोई राजनैतिक दल प्रचार के दौरान खर्च किए धन के लिए विशिष्ट रूप से स्पष्टीकरण न दे तब तक न्यायालय द्वारा किसी भी कार्यकलाप को अभ्यर्थियों द्वारा खर्च किया गया समझा जाएगा और उनके निर्वाचन व्ययों में इसकी गणना की जाएगी। अभ्यर्थियों एवं पार्टियों पर डाली गई जवाबदेही ने कुछेक ऐसे खर्चीले प्रचारों पर लगाम लगा दी जो पहले भारतीय निर्वाचनों का एक हिस्सा बन गया था।
मत पत्र एवं प्रतीक
अभ्यर्थियों का नाम निर्देशन पूरा हो जाने के पश्चात रिटर्निंग अधिकारी द्वारा प्रतियोगी अभ्यर्थियों की एक सूची तैयार की जाती है और मत पत्र प्रिंट कर दिए जाते हैं। मत-पत्र अभ्यर्थियों के नाम से प्रिंट किए जाते हैं (निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित की गई भाषा में) जिसमें प्रत्येक अभ्यर्थी के फोटो और आबंटित प्रतीक होते हैं। मान्यता-प्राप्त दलों के अभ्यर्थियों को पार्टी प्रतीक आबंटित किए जाते हैं। कुछेक निर्वाचकों, जिसमें सशस्त्र सेना के सदस्य या देश के बाहर सेवा कर रहे भारत सरकार के पदाधिकारी शामिल हैं, को डाक द्वारा मत देने की अनुमति है।
इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन
इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को मतदान एवं मतगणना को आसान एवं सुविधाजनक बनाने के लिए विकसित किया गया है। मशीन का उपयोग पेपर एवं प्रिंटिंग आदि को बचाने और तीन या चार घंटों के भीतर परिणाम प्राप्त करने के लिए है और इस प्रकार पारंपरिक मतगणना में शामिल मैनुअल कार्य की बहुत बचत हो जाती है। मशीनें इलैक्ट्रॉनिक कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) और भारत इलैक्ट्रॉनिक कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (बीईएल) द्वारा विकसित की गई हैं। ये मशीनें मतदान में शीघ्रता एवं तात्कालिक परिणाम सुनिश्चित करने के अतिरिक्त मतपत्र की गोपनीयता को सुनिश्चित करने एवं मशीनों की छेड़छाड़ को रोकने के लिए पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती हैं। संसद ने मार्च, 1989 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का संशोधन किया जिसमें उक्त अधिनियम में धारा 61(क) को शामिल किया गया है जिसमें यह उपबंध किया गया है कि वोटिंग मशीनों से ऐसी रीति से, जैसी विहित की जाए, मत देना और अभिलिखित करना ऐसे निर्वाचन-क्षेत्र या निर्वाचन क्षेत्रों में अंगीकार किया जा सकेगा जो निर्वाचन आयोग विनिर्दिष्ट करे। उपर्युक्त उपबंधों के अनुसरण में, केन्द्र सरकार ने इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के प्रयोग को सुगम बनाने के लिए निर्वाचनों का संचलन नियम, 1961 एक नया अध्याय ।। [नियम 49(क) से 49(भ) को अंतर्विष्ट करके संशोधित किया। आयोग ने निर्वाचनों के निर्वाध संचालन के लिए पर्याप्त संख्या में ईवीएम की उपलब्धता सुनिश्चित करने की व्यवस्था की है। आयोग ने ईवीएम की प्रथम स्तरीय जांच के संबंध में अनुदेशों का एक नया सेट जारी किया है जिसका उपयोग राज्यों में मतदानों के दौरान किया जाएगा। ईवीएम की प्रथम स्तरीय जांच राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में की जाती है। ईवीएम का एक द्विस्तरीय यादृच्छिकीकरण किया जाता है। प्रथम चरण में, जिला भंडारण केन्द्र में एकत्र की गई सभी ईवीएम का विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र-वार आबंटन करने के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी (डीईओ) द्वारा मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में यादृच्छीकरण किया जाता है। निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यार्थियों की अंतिम रूप से सूची तैयार हो जाने के बाद ईवीएम को निर्वाचनों के लिए तैयार एवं सेट किया जाता है। इस चरण में भी अभ्यर्थियों या उनके प्रतिनिधियों को हर प्रकार से ईवीएम की कार्यप्रणाली की जांच करने और स्वयं को संतुष्ट करने की अनुमति दी जाएगी। रिटर्निंग अधिकारी द्वारा ईवीएम को निर्वाचन क्षेत्र में मतदान के लिए तैयार करने और साथ में बैलट यूनिटों में मत पत्रों को फिट करने के पश्चात्, वास्तविक मतदान केन्द्र जहां ईवीएम का अंतिम उपयोग किया जाएगा, का निर्धारण करने के लिए उनका फिर से यादृच्छिकीकरण किया जाएगा। दूसरे चरण का यादृच्छिकीकरण प्रेक्षकों, अभ्यर्थियों या उनके निर्वाचन अभिकर्ताओं की उपस्थिति में किया जाएगा।
वीवीपीएटी (वोटर वैरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) वर्ष 2013 से ईवीएम में एक नई प्रणाली को जोड़ा गया है जिसे वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल कहते हैं। ईवीएम के साथ एक प्रिंटर संलग्न किया जाता है और मतदान कक्ष में रखा जाता है जो उस अभ्यर्थी का क्रमांक, नाम और प्रतीक प्रिंट करता है जिसे मतदाता ने मत दिया है। यह प्रिंट की गई पर्ची एक पारदर्शी खिड़की से 7 सेंकड के लिए दिखाई देती है और अपने आप कट जाती है और ड्रापबॉक्स में गिर जाती है जो सीलबंद रहता है।
ईवीएम में 'इनमें से कोई नहीं (नोटा)' का विकल्प
उच्चतम न्यायालय ने 27 सितंबर, 2013 में रिट याचिका सं. 2004 का 161(ग) में दिए गए अपने निर्णय में यह निदेश दिया है कि मतपत्रों एवं ईवीएम में 'इनमें से कोई नहीं (नोटा)' का विकल्प होना चाहिए। न्यायालय ने निदेश दिया है कि आयोग को इसे या तो चरणबद्ध ढंग से या भारत सरकार की मदद से एक ही बार में कार्यान्वित करना चाहिए।
बैलटिंग यूनिट पर, अंतिम अभ्यर्थी के नाम के नीचे 'नोटा' विकल्प के लिए एक बटन होगा ताकि जो निर्वाचक किसी भी अभ्यर्थी को मत नहीं देना चाहता है बटन दबाकर 'नोटा' के लिए अपना विकल्प दे सकता है।
आयोग इसे सभी मतदाताओं और अन्य हितधारकों की जानकारी में लाने के लिए और 'नोटा' विकल्प के बारे में मतदान कर्मचारियों सहित सभी क्षेत्रीय स्तर के अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए सभी प्रयास कर रहा है। इसी प्रकार से डाक मतपत्र के लिए भी 'नोटा' का प्रावधान है।
अभ्यर्थियों का शपथ पत्र–सभी कालम भरे जाएं
उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 13 सितंबर, 2013 को रिट याचिका सं. 2008 की 121(ग) में पारित निर्णय जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ रिटर्निंग अधिकारी के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वह ''यह जांच करे कि क्या शपथ-पत्र भरते समय अपेक्षित सूचना पूर्ण रूप से प्रस्तुत की गई थी जिसमें नामनिर्देशन पत्र के साथ उनके आपराधिक पूर्ववृत्त, परिसंपतियां, दायित्व, और योग्यताएं स्पष्ट की गई हों'' का अनुसरण करते हुए आयोग ने अनुदेश जारी किए हैं कि नाम-निर्देशन पत्र के साथ दायर किए जाने वाले शपथ-पत्र में अभ्यर्थियों के सभी कालम भरने होंगे, यदि शपथ-पत्र में कोई कालम रिक्त रहता है तो रिटर्निंग अधिकारी अभ्यर्थी को सभी कालम भरा हुआ शपथ-पत्र दायर करने के लिए नोटिस जारी करेगा। ऐसे नोटिस के बाद, यदि कोई अभ्यर्थी सभी प्रकार से पूर्ण किया गया शपथ-पत्र दायर करने में असफल रहता है तो संवीक्षा करते समय नाम-निर्देशन पत्र निरस्त किया जा सकता है, मुख्य निर्वाचन अधिकारी को उच्चतम न्यायालय के निर्णय एवं आयोग के अनुदेशों के बारे में सभी रिटर्निंग अधिकारियों को जानकारी देने का निर्देश दिया गया है।
संचार योजना
निर्वाचन आयोग जिला/निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर सुचारू रूप से निर्वाचन कराने के लिए तथा मतदान के दिन आवश्यकता पड़ने पर सुधार कर सकने के लिए एक सुनियोजित संचार योजना तैयार करने एवं उसे कार्यान्वित करने को अत्यधिक महत्व देता है। उक्त प्रयोजन के लिए आयोग ने राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को राज्य मुख्यालयों में दूरसंचार विभाग के अधिकारियों, बीएसएनएल/एमटीएनएल प्राधिकारियों, राज्य में अन्य अग्रणी सेवा प्रदाताओं के प्रतिनिधियों के साथ समन्वय करने का निर्देश दिया है ताकि राज्यों में नेटवर्क स्थिति की जांच की जा सके और बिना संचार वाले क्षेत्रों का पता लगाया जा सके। सीईओ को राज्य में उत्कृष्ट संचार व्यवस्था सुनिश्चित करने की भी सलाह दी गई है।
वीडियोग्राफी
सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी की जाती है। जिला निर्वाचन अधिकारी इस प्रयोजन के लिए पर्याप्त संख्या में वीडियो एवं डिजिटल कैमरा और कैमरा टीम की व्यवस्था करता है। जिन कार्यक्रमों के लिए वीडियोग्राफी की जाती है उनमें नाम-निर्देशन दायर करना, उनकी संवीक्षा और प्रतीकों का आबंटन, प्रथम स्तरीय जांच, इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की तैयारी एवं भंडारण, महत्वपूर्ण सार्वजनिक बैठकें, प्रचार के दौरान जुलूस आदि, डाक मतपत्र प्रेषण करने की प्रक्रिया, निर्धारित संवेदनशील मतदान केन्द्रों में मतदान प्रक्रिया, मत डाले गए ईवीएम का भंडारण, मतों की गणना इत्यादि शामिल हैं। जहां-कहीं आवश्यक हो, मतदान बूथों के अंदर वेबकास्टिंग, वीडियोग्राफी और डिजिलटल कैमरा तैनात किए जाते हैं। जो भी व्यक्ति वीडियो रिकार्डिंग की सीडी की प्रति प्राप्त करना चाहता है उसे भुगतान करने पर उपलब्ध करा दी जाएगी।
सुरक्षा सरोकार
शांतिपूर्ण एवं निष्पक्ष निर्वाचनों के संचालन के लिए सुरक्षा निर्वाचन प्रक्रिया का एक अहम भाग है। वर्ष 2014 के साधारण निर्वाचन के दौरान, निष्पक्ष एवं स्वतंत्र निर्वाचन सुनिश्चित करने का दायित्व केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएएफपी) का था क्योंकि उन्हें स्थानीय प्रभावों से मुक्त समझा जाता है। राज्य पुलिस और केन्द्रीय पुलिस बलों को भारत निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्ति पर माना जाता है और वे इस अवधि के दौरान सभी प्रयोजनों के लिए इसके अधीक्षण, निर्देश और नियंत्रण के अधीन होते हैं। विस्तृत क्षेत्रों में बड़ी संख्या में फैली निर्वाचकों और अत्यधिक विषम परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा व्यवस्था और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन पूरा करने की जिम्मेदारी बहुत चुनौतीपूर्ण हो जाती है। 2014 के लोकसभा निर्वाचनों के दौरान भय का माहौल बना रहा जिसमें देश के कुछ भागों में वामपंथी उग्रवाद, जम्मू व कश्मीर तथा उत्तर पूर्व के कुछ भागों में स्थिति, समग्र सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील स्थितियां, मतदान संबंधी जातिगत एवं सांप्रदायिक हिंसा और प्रचार अवधि के दौरान प्रमुख नेताओं को खतरे की आशंका शामिल हैं। इसे ध्यान में रखते हुए मतदान कार्यक्रम तैयार करने एवं बहु-चरणीय निर्वाचन आयोजित करने के पीछे सुरक्षा बलों की उपलब्धता और उनकी तैनाती को ध्यान में रखा जाता है। मतदान दिवसों के साथ-साथ प्रचार अवधि के दौरान सुरक्षा प्रबंधन को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों के लिए निम्नलिखित कार्यनीतियां अपनाई गईं।
वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्र – यहां एक लम्बी समयावधि और कार्यनीतिक रूप से समय पूर्व निर्वाचन करने की आवश्यकता होती है।
जम्मू एवं कश्मीर: यहां चरणबद्ध तरीके से मतदान कराना समय की कसौटी पर जांचा-परखा दृष्टिकोण है। इसे सभी चरणों को कवर करते हुए एक अलग जगह में रखा गया था।
उत्तर-पूर्व : त्यौहारों एवं पूर्व–मानसूनों के अलावा, इस क्षेत्र में सुरक्षा एक प्रमुख विषय है। भारत निर्वाचन आयोग ने कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उपाय किए हैं जिसमें कुख्यात अपराधियों की सूचियां अद्यतन करने के लिए निवारक उपाय करना और विशेष अभियान, गैर-जमानती वारंट जारी करना, लंबित निर्वाचन मामलों पर शीघ्र निर्णय लेना, अवैध शराब का पता लगाना, गैर-कानूनी हथियार एवं बारूद जब्त करना, निषेधात्मक आदेश जारी करना, लाइसेंस-युक्त हथियारों की जांच करना और उन्हें जमा करना, नए हथियार जारी करने पर रोक लगाना और अन्य में गैर-कानूनी हथियार लाने ले जाने, असामाजिक तत्वों, नकदी एवं शराब के लाने जाने की जांच करना और निवारक एवं दैनिक कानून एवं व्यवस्था रिपोर्टें शामिल हैं। भारत निर्वाचन आयोग ने केन्द्रीय एवं राज्यीय सुरक्षा बलों की राष्ट्रीय उपलब्धता और केन्द्रीय बलों के लिए विभिन्न राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों द्वारा प्रस्तुत की गई आवश्यकताओं की जांच करने के लिए एक व्यापक प्रक्रिया शुरू की। चूंकि मांग आमतौर पर उपलब्धता से अधिक है, इसलिए भारत निर्वाचन आयोग ने राज्य सुरक्षा बलों का इष्टतम प्रयोग सुनिश्चित किया जिसमें राज्य सशस्त्र बल (एसएपी) होम गार्ड्स, जिला पुलिस आदि शामिल हैं। भारत निर्वाचन आयोग ने वर्तमान में अनेक प्रकार के सुरक्षा बलो के संबंध में डाटा उपलब्ध कराने के लिए एक पद्धति बनाने पर भी जोर दिया। गृह मंत्रालय के साथ-साथ विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुख के साथ निरंतर समन्वय बनाए रखा गया। सुरक्षा बलों की तैनाती के लिए समेकित अनुदेशों का एक सेट जारी किया गया था। अन्य बातों के अलावा, भारत निर्वाचन आयोग ने अनेक प्रकार के सुरक्षा बलों के लिए भी निर्देश जारी किए। सीएपीएफ और भारतीय रेलवे के मुख्य समन्वयकर्ता के परामर्श से सुरक्षा बलों के संचलन एवं तैनाती के लिए एक विस्तृत राष्ट्रीय योजना तैयार की गयी थी। भारत निर्वाचन आयोग ने सुरक्षा बलों की निरंतर तैनाती एवं संचलन की समीक्षा की तथा योजना की गहन निगरानी की। सुरक्षा बलों की भूमिका मतदान दिवस से काफी पहले शुरू हो जाती है और मतगणना के पश्चात् परिणामों की घोषणा के बाद ही समाप्त होती है।
मतदान से पहले:
सीएपीएफ, क्षेत्र को नियंत्रण में लेने के लिए समय से पूर्व पहुंच जाती है। फ्लैग मार्च के साथ-साथ व्यापक पैदल मार्च करना एवं विश्वास कायम करने के अन्य उपाय किए जाते हैं। असमाजिक तत्वों की क्षेत्र-वार सूची बनाना, उनके रहने के ठिकानों, उपस्थिति और गतिविधियों का सत्यापन करना, मतदान के दिन मतदान केन्द्रों, मतदान सामग्री, मतदान कर्मचारियों और मतदान प्रक्रिया की सुरक्षा करना। अशांत क्षेत्रों की सुरक्षा करना। मतदान केन्द्रों के चयनित समूह को कवर करते हुए निर्धारित मार्गों पर पैट्रोलिंग ड्यूटी करना। आश्चर्य रूप से अचानक 'उड़न दस्ते' के रूप में गश्त लगाना। मत डाले गए ईवीएम को सुरक्षा में ले जाना।
मतदान के बाद
मतगणना प्रक्रिया समाप्त होने तक मत डाले गए ईवीएम को सुरक्षा में ले जाना। विजेता अभ्यर्थी के विजय जुलूस के लिए कानून एवं व्यवस्था बनाए रखना सुनिश्चित करना। निर्वाचन प्रक्रिया के प्रत्येक भाग में और विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में ठोस सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किए गए ताकि किसी मतदाता को किसी प्रकार का कोई भय न रहे। विभिन्न सुरक्षा बलों से कर्मचारी तैनात किए गए और उन्हें 10 मतदान दिवसों के दौरान निरंतर देशभर में तैनात किया गया। भारतीय रेलवे ने सुरक्षा बलों के आवागमन में बहुमूल्य सहायता प्रदान की। भारतीय वायु सेना ने भौगोलिक रूप से कठिन भूभाग, प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों, लंबी दूरी वाले इलाकों या वाम मोर्चा चरमपंथ-प्रभावित क्षेत्रों जैसे दुर्गम स्थानों में स्थित मतदान केन्द्रों में आने-जाने के लिए हेलीकॉप्टर सेवाएं प्रदान कीं। सुरक्षा व्यवस्था की विशिष्टता इस प्रकार थीं : निर्वाचन के आरंभ से लेकर अंत तक सीएपीएफ की 1349 कंपनियां तैनात की गईं थीं। उन्हें एक मतदान दिवस से दूसरे मतदान दिवस में तैनात किया गया, जिसमें अनेक प्रकार के सुरक्षा बल शामिल हुए जिससे कंपनियों की समग्र संख्या बढ़कर 8087 हो गई। सुरक्षा कर्मचारियों, मतदान कर्मचारियों और मतदान सामग्री हवाई जहाज से लाने ले-जाने के लिए भारतीय वायु सेना के 76 हेलीकॉप्टरों का प्रयोग किया गया। हेलीकॉप्टरों द्वारा 1516 उड़ानें भरी गईं। संवेदनशील स्थलों पर किसी भी अप्रत्याशित घटना का सामना करने के लिए एअर एंबुलेंसों को तैयार हालत में रखा गया – जो सुरक्षा कर्मचारियों के लिए एक उत्साही कार्य था। सीएपीएफ, मतदान एवं कर्मचारियों के संचलन के लिए 570 ट्रेनों की व्यवस्था की गई। भारतीय रेल द्वारा अधिक से अधिक 932 विशेष कोच उपलब्ध कराए गए, जिसमें रसोई सुविधाएं और सफाई कर्मचारी उपलब्ध थे। मार्ग में नामजद स्टेशनों से भारतीय रेलवे केटरिंग और टूरिज्म कार्पोरेशन के खाने के पैकेटों को उठाने की व्यवस्था की गई थी।
संवेदनशील क्षेत्रों का पता लगाना
सेक्टर अधिकारी द्वारा संवेदनशील क्षेत्रों/समुदायों से संबंधित मतदान केन्द्रों के आवाह-क्षेत्र का दौरा करके उनकी पहचान करना। समुदाय, स्थानीय आसूचना आदि के साथ बैठकें करना, भय एवं आशंका के स्रोत की पहचान करना। उन लोगों के नामों की पहचान करना जो अवांछित प्रभाव डालने जैसे अपराध कर सकते हैं। विगत घटनाओं एवं मौजूदा आशंकाओं पर विचार करना। एसएचओ, बीडीओ, तहसीलदार के परामर्श से अंतिम निर्णय लेना। समुदाय में ऐसे स्थलों का पता लगाना ताकि ऐसी घटनाओं से संबंधित सूचना का तुरंत पता लगाया जा सके। मतदान केन्द्र-वार सूचियां तैयार की जाएंगी। सीईओ एवं एसपी सभी निवारक उपाय एवं विश्वास कायम करने के उपाय शुरू करेंगे। गड़बड़ी फैलाने वालों को उपयुक्त कानून के दायरे में लाना। यदि आवश्यक हो तो तो एहतियातन हिरासत में लेना। सही आचरण सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय स्टेशनों पर अनिवार्य उपस्थिति दर्ज करना। पुलिस चौकी बनाना।
कानून एवं व्यवस्था और सुरक्षा बलों की तैनाती
निर्वाचनों के आयोजन में व्यापक सुरक्षा व्यवस्था करना शामिल होता है। इसमें मतदान कार्मिकों की सुरक्षा, मतदान केन्द्र में सुरक्षा, मतदान सामग्री की सुरक्षा और साथ ही निर्वाचन प्रक्रिया की समग्र सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है। केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) को मतदाताओं, विशेष तौर पर कर्मजोर वर्ग, अल्पसंख्यक आदि जैसे संवेदनशील मतदाताओं के मन में विश्वास कायम करने के लिए, मतदान से पहले क्षेत्र को नियंत्रण में लेने के लिए तैनात किया जाता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मतदान कार्यक्रम की सही रूपरेखा बनाना और बहु-चरणीय निर्वाचनों की क्रमबद्धता और प्रत्येक चरण के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का चयन उपलब्ध सुरक्षा बल और बल प्रबंधन के अनुसार होगा।
आयोग ने ऐसे वातावरण का सृजन करते हुए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं जिसमें प्रत्येक निर्वाचक, किसी भी व्यक्ति द्वारा रूकावट पैदा किए बिना और अनुचित रूप से प्रभावित/डराए-धमकाए बिना किसी मतदान केन्द्र में प्रवेश कर सकता है।
वास्तविक स्थिति की जांच के आधार पर केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल और राज्य सशस्त्र पुलिस बल को, जिन्हें अन्य राज्यों से मंगाया जाता है, इन निर्वाचनों के दौरान तैनात किया जाता है। केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल और राज्य सशस्त्र पुलिस बल को सामान्य तौर पर मतदान केन्द्रों की सुरक्षा के लिए तथा मतदान के दिन मतदान केन्द्रों पर निर्वाचकों एवं मतदान कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा, इन सुरक्षा बलों को स्ट्रांग रूम की सुरक्षा के लिए, जहां ईवीएम रखे जाते हैं तथा मतगणना केन्द्रों एवं यथापेक्षित अन्य प्रयोजनों के लिए तैनात किया जाता है। आयोग समय-समय पर जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस प्राधिकारियों द्वारा कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचनों के संचालन के लिए अनुकूल वातावरण बनाए रखने के लिए किए गए निवारक उपाय करने के संबंध में अनुदेश जारी करता रहा है। आयोग वास्तविक स्थिति की गहन निगरानी करता है और राज्यों में शांतिपूर्ण, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाता है।
सामान्य प्रेक्षक
आयोग निर्वाचनों का सुचारू ढंग से संचालन सुनिश्चित करने के लिए सामान्य प्रेक्षकों की पर्याप्त संख्या में तैनाती करता है जो अन्य राज्य संवर्गों के वरिष्ठ सिविल कर्मचारी होते हैं। प्रेक्षकों को स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण पर गहन निगरानी रखने के लिए कहा जाता है। उनके नाम, जिला/निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत उनके पते और उनके टेलीफोन नम्बर स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित किए जाते हैं ताकि सामान्य जनता किसी भी प्रकार की शिकायत के निवारण के लिए तुरंत उनसे संपर्क कर सके। आयोग द्वारा प्रेक्षकों की तैनाती से पहले उन्हें पूरी जानकारी दी जाती है।
निर्वाचन व्यय अनुवीक्षण
अभ्यर्थियों के निर्वाचन व्यय के वास्तविक अनुवीक्षण के लिए व्यापक अनुदेश जारी किए गए हैं जिसमें उड़न दस्तों, स्थैतिक निगरानी दल, वीडियो निगरानी दलों का गठन, आयकर विभाग के अन्वेषण निदेशालयों आदि की संबद्धता शामिल होती है। राज्य आबकारी विभागों एवं पुलिस प्राधिकारियों को निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान शराब एवं अन्य मादकों के उत्पादन, वितरण, बिक्री एवं भंडारण पर निगरानी रखने के लिए कहा जाता है।
अधिक पारदर्शिता और निर्वाचन व्ययों की आसान निगरानी के लिए अभ्यर्थियों से एक अलग से खाता खोले जाने और इसी खाते से ही निर्वाचन व्यय करने की अपेक्षा की जाती है। आयकर विभाग के अन्वेषण निदेशालय से इन राज्यों के एअरपोर्टों में वायु आसूचना इकाई खोलने और साथ ही इन राज्यों में बड़ी धनराशि के लेनदेन के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए जानकारी एकत्रित करने हेतु कहा गया है।
केन्द्रीय सरकार के विभागों से व्यय प्रेक्षक और सहायक व्यय प्रेक्षकों को अभ्यर्थियों के निर्वाचन व्यय पर गहन निगरानी रखने के लिए नियुक्त किया जाता है। कंट्रोल रूम और शिकायत अनुवीक्षण केन्द्र संपूर्ण निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान चौबीसों घंटे नि:शुल्क नम्बरों के साथ सक्रिय रहेंगे। भारत सरकार के बैंकों एवं वित्तीय आसूचना इकाइयों से निर्वाचन अधिकारियों को संदिग्ध नकदी निकासी की रिपोर्टें करने के लिए कहा गया है।
पेड न्यूज
'पेड न्यूज़' के मुद्दे से निपटने के लिए जिला, राज्य और भारत निर्वाचन आयोग के स्तर पर मीडिया प्रमाणन एवं अनुवीक्षण समितियों की एक तीन स्तरीय कार्यप्रणाली निर्धारित की गई है। आयोग की वेबसाइट पर ''पेड न्यूज़'' संबंधी पुनरीक्षित व्यापक अनुदेश उपलब्ध हैं।
पुलिस प्रेक्षक
आयोग, आवश्यकता और संवेदनशीलता पर निर्भर करते हुए मतदान हो रहे राज्यों में जिला स्तर पर अन्य राज्यों के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को पुलिस प्रेक्षकों के रूप में तैनात कर सकता है। वे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा बल तैनाती, कानून एवं व्यवस्था की स्थिति से संबंधित सभी कार्यकलापों का अनुवीक्षण करते हैं और सिविल एवं पुलिस प्रशासन के बीच समन्वय करते हैं।
माइक्रो प्रेक्षक
सामान्य प्रेक्षकों के अलावा, आयोग चयनित महत्वपूर्ण मतदान केन्द्रों में मतदान के दिन मतदान कार्यवाहियों की निगरानी करने के लिए माइक्रो प्रेक्षक भी तैनात करता है। उनका चयन केन्द्रीय सरकार/केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के पदाधिकारियों में से किया जाता है। माइक्रो-प्रेक्षक यह सुनिश्चित करने के लिए कि पुलिस दलों एवं मतदान अभिकर्ताओं द्वारा मतदान के दिन छद्म मतदान से लेकर मतदानों के समापन और ईवीएम एवं अन्य दस्तावेजों को सीलबंद करने की प्रक्रिया तक आयोग के अनुदेशों का पालन सुनिश्चित कराने के लिए मतदान केन्द्रों पर कार्यवाहियों का प्रेक्षण करेंगे। वे अपने आबंटित मतदान केन्द्रों में मतदान कार्यवाहियों के किसी भी प्रकार के व्यवधान के बारे में सामान्य प्रेक्षकों को रिपोर्ट करेंगे।
व्यवस्थित मतदान शिक्षा एवं निर्वाचक सहभागिता (स्वीप)
राज्य में विशेष नामावली पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान मतदाताओं की शिक्षा के लिए व्यापक उपाय किए गए हैं। ये उपाय जारी रहेंगे और निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान इनका आगे विस्तार किया जाता है।
प्रत्येक जिले में न्यूनतम मतदान प्रतिशत वाले मतदान केन्द्रों में से 10 प्रतिशत केन्द्रों का निर्धारण किया जाता है और न्यूनतम मतदान प्रतिशत के संभावित कारणों का विश्लेषण किया जाता है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा केएबीबीपी (जानकारी, मनोकृति, व्यवहार, विश्वास और पद्धतियां) सर्वेक्षण कराए जाते हैं, और जानकारी के आधार पर कार्रवाई की जाती है।
राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को मतदान में लोगों की व्यापक सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन संबंधित सूचना के व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ-साथ पर्याप्त सुविधा विकल्प सुनिश्चित करने के निर्देश दिए जाते हैं। आदर्श मतदान केन्द्रों की स्थापना की जाती है। मतदाताओं की सहायता के लिए मतदाता हेल्पलाइन, मतदाता सुविधा केन्द्र, वेब एवं एसएमएस आधारित सर्च सुविधायें क्रियाशील हैं। ये दिव्यांग व्यक्तियों के लिए विशेष सुविधायें हैं। जमीनी स्तर पर सूचना की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन अवधि के दौरान किए जा रहे 'स्वीप' कार्यक्रम का पर्यवेक्षण करने के लिए केन्द्रीय सरकार के विभागों से जागरूकता प्रेक्षक नियुक्त किए जा रहे हैं।
जिला निर्वाचन योजना
जिला निर्वाचन अधिकारी, पुलिस अधीक्षकों और सेक्टर अधिकारियों के परामर्श से एक व्यापक जिला निर्वाचन योजना तैयार करता है जिसमें निर्वाचनों के संचालन के लिए मार्ग योजना और संचार योजना शामिल होता है। प्रेक्षकों द्वारा भारत निर्वाचन आयोग के मौजूदा अनुदेशों के अनुसार संवेदनशीलता मानचित्रण प्रक्रिया और महत्वपूर्ण मतदान के मानचित्रण को ध्यान में रखते हुए इन योजनाओं का पुनरीक्षण किया जाता है।
मतदाता फोटो पर्ची
मतदाताओं के लिए यह जानना आसान बनाने के लिए कि वह किस विशिष्ट मतदान केन्द्र में मतदाता के रूप में नामांकित है और निर्वाचन नामावली में उसका क्रमांक क्या है, इसके लिए निर्वाचन आयोग ने यह निर्देश दिया है कि जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा नामावली में दर्ज मतदाताओं को फोटो के साथ मतदाता पर्ची वितरित की जाएगी। यह भी निर्देश दिया गया है कि उक्त मतदाता पर्ची उसी भाषा में होना चाहिए जिस भाषा में उस विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचन नामावली प्रकाशित की गई है।
शिकायत निवारण कार्य तंत्र-कॉल सेंटर एवं वेबसाइट आधारित
राज्य में वेबसाइट एवं कॉल सेंटर पर आधारित शिकायत निवारण तन्त्र होगे। कॉल सेंटरों का नम्बर 1950 है जिस पर कॉल नि:शुल्क है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा राज्य के लिए शिकायत रजिस्ट्रीकरण वेबसाइट के यूआरएल अलग से घोषित किए जाते हैं। शिकायतें, नि:शुल्क कॉल सेंटर नम्बरों में कॉल करके या वेब साइट पर रजिस्टर की जा सकती हैं। सभी शिकायतों पर समय सीमा के भीतर कार्रवाई की जाएगी। शिकायतकर्ता को की गई कार्रवाई के बारे में एसएमएस और कॉल सेंटर द्वारा सूचित किया जाएगा। शिकायतकर्ता वेबसाइट पर भी की गई कार्रवाई का विवरण देख सकता है।
मतदान केन्द्रों की मूलभूत न्यूनतम सुविधाएं
सभी मतदान केन्द्रों पर मूलभूत न्यूनतम सुविधायें उपलब्ध कराने के काम को भी प्राथमिकता दी गई। मतदान दिवसों पर सभी मतदाताओं के लिए आराम सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार और अन्य एजेंसियों की मदद से मतदान केन्द्रों में स्थायी रैंपो, बिजली, पीने का पानी, प्रसाधन (पुरूष एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग), फर्नीचर, संकेतक, व्हील चेयर्स आदि का निर्माण किया गया/व्यवस्था की गई। आयोग द्वारा इस संबंध में हुई प्रगति पर साप्ताहिक रूप से निगरानी की गयी जिसके फलस्वरूप मतदान केन्द्रों पर इन सुविधाओं में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई।
क्षमता संवर्धन
निर्वाचनों के सफल संचालन में प्रशिक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आयोग ने निर्वाचन से संबंधित कार्मिकों के लिए चरणबद्ध प्रशिक्षण की विस्तृत योजना तैयार की है। राज्य स्तरीय मास्टर प्रशिक्षकों को प्रत्येक कार्यकलाप के लिए आईआईआईडीईएम, नई दिल्ली में प्रशिक्षण दिया जाता है जो फिर राज्य स्तर में जिला स्तरीय मास्टर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देते हैं। इसी प्रकार से जिला स्तरीय मास्टर प्रशिक्षक निर्वाचन क्षेत्र स्तर के मास्टर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देते हैं। विभिन्न प्रकोष्ठों के नोडल अधिकारियों, मास्टर प्रशिक्षकों (डीईओ), (आरओ), (एआरओ), आबकारी अधिकारियों, राज्य स्तर पर पुलिस, आयकर, आई टी से संबंधित व्यक्तियों के लिए प्रशिक्षण के अनेक दौर चलाए गए। प्रशिक्षण के ये तीन दौर जिला/विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर-राज्य/जिला प्रशिक्षण कैलेण्डर के अनुसार चलाए गए। पॉवर पॉइंट प्रदर्शन, भारत निर्वाचन आयोग का श्रव्य/दृश्य प्रशिक्षण सामग्री, जांच सूची, हैंडबुक, क्या करें क्या न करें, प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्न, व्यावहारिक प्रशिक्षण इत्यादि का इस प्रशिक्षणों के लिए प्रयोग किया गया। राज्य/प्रभाग/जिला/विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र पर सभी मतदान संबंधित अधिकारियों के लिए ईवीएम और वीवीपीएटी का प्रशिक्षण और मतदान केन्द्र स्तर पर ईवीएम जागरूकता चरणबद्ध ढंग से संचालित की गई। पहली बार भारत निर्वाचन आयोग के ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर के माध्यम से राज्य में ईवीएम का यादृच्छीकीकरण किया गया था।
बेहतर निर्वाचनों के लिए आई टी पहल
निर्वाचक नामावली प्रबंधन प्रणाली (ईआरएमएस)
ईआरएमएस में राज्य के लिए निर्वाचक नामावली संशोधन डाटा प्रबंधन से लेकर अंतिम निर्वाचक नामावली के प्रकाशन तक की संपूर्ण प्रक्रिया शामिल होगी।
प्रमुख विशेषताएं
- यह वेब सेवा आधार पर विकसित विंडो/वेब आधारित एप्लीकेशन का समूह है
- इसमें राज्यों में निर्वाचक नामावली प्रशिक्षण, डाटा प्रबंधन प्रक्रिया, निर्वाचकों का पंजीकरण, सुधार एवं डाटा रूपांतरणों से लेकर निर्वाचक नामावली के अंतिम रूप से प्रकाशन और निर्वाचक फोटो पहचान (एपिक) तक की संपूर्ण प्रक्रिया को शामिल किया गया है।
- नागरिक सेवाएं प्रदान किए जाने के लिए निम्नलिखित साधनों को समेकित किया गया है जैसे सर्च सुविधा एवं मतदाता पर्ची (आन लाइन/मोबाइल आधारित) और अपने आवेदन की स्थिति की जानकारी लेना, फार्मेट 1 से 8 का रिपोर्टिंग माड्यूल, डाटाबेस त्रुटि का पता लगाने वाला मॉड्यूल एवं मतदान केन्द्र का यादृच्छीकीकरण इत्यादि।
मतदाता (मतदाता)
मतदाता ऐप को मतदाताओं की सुविधा के लिए प्रयोग किया गया था। कोई भी नागरिक अपने मोबाइल में ऐप डाउनलोड करके एपिक नम्बर या नाम के जरिए निर्वाचक नामावली में नाम दर्ज होने के विवरण देख सकता है। वह गूगल मैप पर अपने मतदान केन्द्र की स्थिति का भी पता लगा सकता है। इसके अलावा, नागरिकों के स्थान के नजदीक सभी नजदीकी मतदान केन्द्रों को जीपीएस समर्थित मोबाइल पर देखा जा सकता है।
मतदान
मतदान ऐप का प्रयोग मतदान के दिन जाँच जैसे मतदान घटनाओं, मतदान पार्टियों को पहुंचने, मतदान केन्द्र के चित्र, डाले गए मत, मतदाताओं के फोटो आदि के लिए किया गया। इसमें नेटवर्क की कनेक्टिविटी न रहने की स्थिति में भी इस एप्लीकेशन का ऑफ लाइन प्रयोग किए जाने की सुविधा है। जैसे ही ऐप का प्रयोग करने वाला व्यक्ति कवरेज क्षेत्र के अंतर्गत आता है, ऑफ लाइन प्राप्त सभी डाटा केन्द्रीकृत सर्वर में आ जाता है। इस ऐप के जरिए हम लिंग-वार, उम्र-वार और वर्ग-वार मतदाता प्रतिशत का पता लगा सकते हैं। इस ऐप की मदद से जैसा कि हम नामावली में मतदाताओं की पुरानी/खराब गुणवत्ता के स्थान पर वर्तमान रंगीन फोटोग्राफ प्राप्त करते हैं, इसलिए नामावली में चित्र की गुणवत्ता में भी सुधार किया जा सकता है।
समाधान
यह एप्लीकेशन लोगों/राजनीतिक दलों को, सभी स्रोतों से प्राप्त सभी शिकायतों के लिए समान प्लेटफार्म पर उनकी शिकायतें दर्ज करने की सुविधा प्रदान करता है। लोगों के लिए मोबाइल ऐप उपलब्ध था ताकि वे कॉमन प्लेटफार्म पर फोटोग्राफ/वीडियो के साथ अपनी शिकायतें दर्ज कर सकें। शिकायतकर्ता को शिकायत की प्राप्ति/निपटान होने की स्थिति में एसएमएस भेजा जाता है। शिकायतकर्ता एन्ड्रायड ऐप के माध्यम से स्थिति का पता लगा सकते हैं तथा की गई कार्रवाई रिपोर्ट देख सकते हैं।
सुविधा
निर्वाचन प्रचार अभियान के भाग के रूप में राजनीतिक दलों तथा अभ्यर्थियों से बैठकों, रैलियों, वाहनों, लाउडस्पीकरों, अस्थाई पार्टी कार्यालयों, हैलीपैड और हैलीकॉप्टर उतरने आदि के लिए अनुमति प्राप्त करना अपेक्षित है। अनुमति देने की पहले की व्यवस्था पुराने तरीके से मैनुअल रूप में कारवाई करने पर आधारित थी जिसमें विभिन्न प्राधिकरियों की सहमति प्राप्त करना अपेक्षित था। यह व्यवस्था अपारदर्शी तथा समय लेने वाली थी। पहले की सिंगल विंडो व्यवस्था में समुचित निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं थी जिससे अनुमति देने में विलंब करने और भेदभाव की शिकायतें आती थीं। इससे कईबार निर्वाचन संबद्ध अधिकारियों के विरूद्ध आरोप लगते रहते थे। सुविधा सॉफ्टवेयर में विभिन्न अनुमतियों के लिए आवेदन हेतु मानक प्ररुप उपलब्ध कराए गए हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की अनुमति प्राप्त करने के लिए अपेक्षित अनिवार्य तथा वैकल्पिक दस्तावेजों की जांच सूची भी दर्शाई गई है। इसने आवेदन करने वाले तथा आवेदन स्वीकार करने वाले व्यक्ति का कार्य सरल एवं पारदर्शी बना दिया है। इसने यह भी सुनिश्चित किया कि आवेदन अस्वीकार करने की गुंजाइश न के बराबर हो। आवेदन करते समय आवेदक का मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से तथा ई-मेल वैकल्पिक रूप से प्राप्त किया जाता है। जैसे ही आवेदन स्वीकार कर लिया जाता है, आवेदक को आवेदन संख्या, तिथि और समय का ब्यौरा देते हुए पावती के रूप में एक एसएमएस भेजा जाता था। आवेदन संख्या का प्रयोग वेबसाइट पर स्थिति का पता लगाने के लिया किया जा सकता है। सभी अनुमतियां 24 घंटे के भीतर दिया जाना अनिवार्य बनाया गया है।
सुगम
इस एप्लीकेशन का प्रयोग निर्वाचनों में वाहनों के अनुरोध से लेकर इसके भुगतान/निर्गम तक वाहनों का प्रबंधन किए जाने के लिए किया गया था। इस ऐप का प्रयोग वाहनों का अनुरोध पत्र जारी करने, पता सहित विवरण प्राप्त करने, वाहन स्वामी और ड्राइवर का मोबाइल नंबर दर्ज करने, लॉग बुक जेनरट करने, भुगतान की ऑनलाइन एंट्री करने, एक जिले से दूसरे जिले में वाहन का स्थानांतरण करने, भुगतान परिकलन चार्ट और अन्य आदेश जारी करने के लिए किया जाता है। यह मोबाइल ऐप वाहन स्वामी द्वारा भुगतान के संबंध में कोई शिकायत दर्ज करने के साथ-साथ निर्वाचनों के दौरान वाहन की आवाजाही का पता लगाने के लिए उपयोगी था।
इलेकॉन
इलेकॉन एप्लीकेशन का उपयोग पुलिस/मतदान कर्मियों का डाटाबेस तैयार करने, कमान/नियुक्ति पत्र निकालने, प्रतिनियुक्ति/प्रशिक्षण के संबंध में एसएमएस भेजने, सुरक्षा बलों के साथ गस्ती दल लगाने, पोस्टल बैलेट के लिए आवेदन निकालने, एक जिले से दूसरे जिले में मतदान कर्मियों/पुलिस बल को भेजने के लिए यादृच्छिकीकरण के उपरांत पोलिंग पार्टी/पुलिस पार्टी का गठन करने आदि के लिए किया जाता है।
एस एम एस मतदान निगरानी
एस एम एस के माध्यम से पीठासीन अधिकारियों/सेक्टर ऑफिसर से विभिन्न प्रकार की सूचना प्राप्त करने के लिए इस ऐप का प्रयोग मतदान के दिन से पहले से मतदान समाप्त होने तक विभिन्न घटनाओं के संबंध में सूचनाओं की जानकारी लेने, उन्हें प्राप्त करने के लिए किया गया था। यह एक 'घटना आधारित प्रबंधन प्रणाली' है जिसमें मतदान पार्टियों के भेजने के समय से उन के वापस आने के बाद निर्वाचन सामग्री को जमा करने के समय तक की सूचना दर्ज की जाती है। मतदान दलों को दूरदराज के स्थानों पर वितरित किया जाता है, इसलिए समय पर सूचना प्राप्त करना एक चुनौती होती है। पूर्व निर्धारित स्वरूप की घटनाओं (पोलिंग पार्टी की रवानगी, आगमन आदि) या पहले से निर्धारित न किए जाने योग्य (घटना, हिंसा आदि) की घटनाओं को भी दर्ज किया जाता है। प्राप्त इस प्रकार की सभी घटनाओं के बारे में सूचनाओं को एस एम एस के जरिए प्राप्त किया गया और प्रत्येक घटना की पोलिंग स्टेशन/विधान सभा/जिला-वार रिपोर्टें रियल टाइम आधार पर स्वत: मिली।
ई-मतगणना
मतगणना कक्ष से मेज-वार/अभ्यर्थी-वार डाले गए मतों की जानकारी अपलोड करने के लिए ऑनलाइन ई-काउंटिंग साफ्टवेयर का प्रयोग किया गया। मोबाइल फोन में एन्ड्रायड ऐप से कोई भी व्यक्ति मतगणना/परिणाम देख सकता है।
ईटीएस
ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) ट्रैकिंग साफ्टवेयर का प्रयोग ईवीएम की उपलब्धता, ईवीएम लाने ले जाने की जानकारी रखने में किया जाता है।
मतदान केंद्रों पर वेबकास्टिंग का प्रयोग
सूचना प्रौद्योगिकी के आने से जीवन का हर क्षेत्र प्रभावित हुआ है और इसने सभी प्रमुख कार्यों में निर्णायक भूमिका निभाई है। इसने निर्वाचनों के संचालन में भी पारदर्शिता और प्रभावकारिता लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में मतदान के दिन निगरानी के लिए वेबकास्टिंग की अवधारणा शुरू की गयी है। वेबकास्टिंग एक प्रक्रिया है जिसमें मतदान के दिन की संपूर्ण कार्यवाही की वीडियो फाइल बनाई जाती है और चुनिंदा स्थानों पर देखने के लिए इसका सीधा प्रसारण किया जाता है।
मतदान कैसे होता है
मतदान गोपनीय मतपत्र से होता है। मतदान केन्द्र आमतौर पर सार्वजनिक संस्थानों जैसे विद्यालयों और सामुदायिक हॉलों में स्थापित किए जाते हैं। निर्वाचन आयोग यह सुनिश्चित करने के भरसक प्रयास करता है कि मतदाताओं को मतदान केन्द्र में आने के लिए 2 किमी. से ज्यादा दूर न जाना पड़े। प्रत्येक मतदान केन्द्र के लिए निर्वाचकों की संख्या को 1200 के भीतर रखने का भी प्रयास किया जाता है। निर्वाचन के दिन प्रत्येक मतदान केन्द्र कम से कम 8 घंटे तक खुला रहता है। मतदान केन्द्र में प्रवेश करने पर निर्वाचक की जांच निर्वाचक नामावली से की जाती है और उनके पहचान दस्तावेज का सत्यापन किया जाता है। बायें हाथ की तर्जनी अंगुली में अमिट स्याही लगाई जाती है और मतदाता पर्ची जारी की जाती है तथा पीठासीन अधिकारी द्वारा कंट्रोल यूनिट में बैलट बटन चालू करके मतदाता को मत डालने की अनुमति दी जाती है।
मतदान के दिन
सामान्यतया लोकसभा के लिए मतदान, विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में अलग-अलग दिनों में आयोजित किया जाता है ताकि सुरक्षा बल और निर्वाचन की निगरानी करने वाले कार्मिक, मतदान के दिन कानून और व्यवस्था बनाए रख सकें और यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्वाचनों के दौरान मतदान निष्पक्ष रूप से संचालित हो। बहुत बड़े राज्यों को छोड़कर राज्य विधान सभाओं के लिए मतदान एक ही दिन में कराया जाता है।
मतगणना
मतदान समाप्त होने के उपरांत, ईवीएम में डाले गए मतों की गणना निर्वाचन आयोग द्वारा नियुक्त रिटर्निंग ऑफिसरों और प्रेक्षकों की देखरेख में की जाती है। मतगणना पूरी हो जाने के उपरांत, रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा उस अभ्यर्थी को सबसे अधिक संख्या में मत प्राप्त होने के आधार पर विजेता के रूप में और उस निर्वाचन क्षेत्र द्वारा संबंधित सदन के सदस्य के रूप में चुना गया घोषित किया जाता है।
निर्वाचन याचिकाएं
यदि कोई निर्वाचक या अभ्यर्थी यह मानता है कि निर्वाचन के दौरान कदाचार हुआ है तो वह निर्वाचन याचिका दायर कर सकता है। निर्वाचन याचिका कोई साधारण सिविल मुकदमा नहीं होता है परंतु इसे एक ऐसी निर्वाचन लड़ाई माना जाता है जिसमें पूरा निर्वाचन क्षेत्र शामिल होता है। निर्वाचन याचिकाओं की सुनवाई निर्वाचन वाले राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है और यदि उस याचिका को सही ठहराया जाता है तो फिर उस निर्वाचन क्षेत्र में फिर से निर्वाचन भी कराया जा सकता है।
राजनीतिक दल और निर्वाचन
राजनीतिक दल आधुनिक लोकतंत्र के एक स्थापित भाग हैं और निर्वाचनों का संचालन मुख्य रूप से राजनीतिक दलों के व्यवहार पर निर्भर करता है। यद्यपि भारतीय निर्वाचनों में अनेक अभ्यर्थी निर्दलीय होते है, किंतु सामान्यतया लोक सभा और विधान सभा के विजयी अभ्यर्थी राजनीतिक दलों के सदस्य के रूप में खड़े होते हैं तथा ओपिनियन पोल से यह पता चलता है कि लोग किसी अभ्यर्थी विशेष को मत देने के बजाए किसी दल को मत देना पसंद करते हैं। राजनीतिक दल अभ्यर्थियों को संगठनात्मक सहायता देते हैं और ये सरकार के कामकाज के रिकार्ड देखते हुए तथा सरकार के लिए वैकल्पिक प्रस्तावों को सामने रखते हुए व्यापक निर्वाचन प्रचार अभियान चलाकर मतदाताओं को यह विकल्प चुनने में सहायता करते हैं कि सरकार किस प्रकार कार्य करे।
निर्वाचन आयोग में पंजीकरण
राजनीतिक दलों को निर्वाचन आयोग में कराना होता है। आयोग यह निर्धारित करता है कि क्या राजनीतिक दल ने अपना ढांचा बनाया है और यह भारतीय संविधान के अनुसार लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के सिद्धांतों के प्रति समर्पित है और यह भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखेगा। दलों से अपेक्षित है कि वे संगठनात्मक निर्वाचन आयोजित करें और उनका एक लिखित संविधान हो। 1985 में पारित दल-बदल विरोधी कानून किसी एक दल से अभ्यर्थियों के रूप में निर्वाचित संसद सदस्य और विधान सभा सदस्य को एक नया दल बनाने या नए दल में शामिल होने से प्रतिबंधित करता है जब तक कि वे विद्यानमण्डल में मूल दल की संख्या के दो तिहाई से अधिक न हो।
प्रतीकों की मान्यता और आरक्षण
राजनीतिक सक्रियता के विस्तार और निर्वाचनों में सफलता के संबंध में निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित कतिपय मापदंडों के अनुसार आयोग द्वारा दलों को राष्ट्रीय या राज्यी की श्रेणी में रखा जाता है अथवा इन्हें केवल पंजीकृत गैर-मान्यताप्राप्त दल के रूप में घोषित किया जाता है। किसी दल की श्रेणी उसके कतिपय विशेषाधिकारों जैसे कि निर्वाचक नामावली तक पहुंच और राज्य के स्वामित्व वाले टेलीविजन और रेडियो स्टेशनों- ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर राजनीतिक प्रसारण हेतु समय का प्रावधान तथा दल के प्रतीक के आवंटन जैसे महत्वपूर्ण विषयों के बारे में उस दल के अधिकार का निर्धारण करती है।दल के प्रतीक निरक्षर मतदाताओं को उस दल के अभ्यर्थी को पहचानने में समर्थ बनाता है जिसको वो अपना मत देना चाहते हैं। राष्ट्रीय दलों को जो प्रतीक आवंटित किए जाते है वो पूरे देश में केवल उनके प्रयोग के लिए होता है। राज्य के राजनीतिक दल उस राज्य में ही प्रतीक का प्रयोग करते हैं जिस राज्य में वे पंजीकृत हैं, इसलिए पंजीकृत गैर-मान्यताप्राप्त दल 'स्वतंत्र' प्रतीकों में से एक प्रतीक का चयन कर सकते हैं।
विभाजन और विलय
विभाजन, विलय और गठबंधन से राजनीतिक दलों की संरचना में फरेबदल हुआ है। इसकी वजह से अनेक विवाद उत्पन्न हुए हैं जिसमें विभाजित दल के एक हिस्से को दल का प्रतीक रखने का अधिकार होगा और राष्ट्रीय और राज्य दलों के संदर्भ में बनने वाले नए दलों को किस श्रेणी में रखा जाएगा। निर्वाचन आयोग को इन विवादों को निपटाना होता है यद्यपि आयोग के निर्णयों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। वर्ष 2014 की स्थिति के अनुसार 6 राष्ट्रीय दल, 50 राज्य दलों और 1848 पंजीकृत गैर-मान्यताप्राप्त दल हैं।
सरकार के स्वामित्व वाले इलेक्ट्रानिक मीडिया पर प्रचार अभियान हेतु मुक्त समय
निर्वाचन आयोग के आदेश द्वारा, सभी पंजीकृत राष्ट्रीय और राज्य राजनीतिक दलों को निर्वाचनों के दौरान अपने प्रचार अभियान के लिए सरकार के स्वामित्व वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया – एआईआर और दूरदर्शन पर व्यापक पैमाने पर मुक्त समय की अनुमति दी गयी है। यह आवंटित कुल मुक्त समय, सरकार के स्वामित्व वाले टेलीविजन और रेडियो चैनलों पर 122 घंटे का हो जाता है। यह संबंधित सदन के अंतिम साधारण निर्वाचन में पार्टी की आधार भूत सीमा और संबंधित दल के मतदान निष्पादन से जुड़े अतिरिक्त समय को जोड़कर बराबर आधार पर आंबटित किया जाता है।
मीडिया कवरेज
निर्वाचन प्रक्रिया में यथासंभव अधिक से अधिक पारदर्शिता लाने के लिए मीडिया को मत की गोपनीयता बनाए रखने की शर्त पर निर्वाचन का प्रसारण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इसके लिए सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। मीडिया कर्मियों को मतदान प्रक्रिया का प्रसारण करने के लिए मतदान केन्द्रों में प्रवेश करने तथा मतों की वास्तविक गणना के दौरान मतगणना हाल में प्रवेश करने के लिए विशेष पास दिए जाते है। मीडिया, ओपिनियन पोल आयोजित करने के लिए भी स्वतंत्र है। हाल ही में जारी दिशानिर्देशों द्वारा निर्वाचन आयोग ने यह निर्धारित किया है कि किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में ओपिनियन पोल का परिणाम मतदान शुरू होने के दो दिन पहले तथा समाप्त होने तक के बीच प्रकाशित नहीं किए जा सकते। एग्जिट पोल के परिणाम मतदान के अंतिम दिन मतदान समाप्त होने के आधे घंटे पश्चात ही प्रकाशित किए जा सकते हैं या अन्यथा रूप में सार्वजनिक किए जा सकते हैं।
आईआईआईडीईएम- अंतर्राष्ट्रीय भारतीय लोकतंत्र और निर्वाचन प्रबंधन संस्थान
भारत में निर्वाचनों का निष्पक्ष, स्वतंत्र और सुचारू संचालन एक बहुत भारी चुनौती है। लगभग 1.2 बिलियन की जनसंख्या और 834 मिलियन से अधिक मतदाताओं के साथ, भारत न केवल विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है अपितु यह एक ऐसा देश है जो अपनी सांस्कृतिक, भाषाई और नृजातीय विविधता के लिए जाना जाता है जहां धर्मनिरपेक्षता और संघीय ढांचे से लोगों एक-दूसरे से जुड़े हैं। इन सबके अलावा भौगोलिक विविधता, सामाजिक-आर्थिक विभिन्नता है, सूचना और ज्ञान की अत्यधिक कमी है जिसमें निर्वाचन अधिकारियों और कार्यकर्ताओं को भारी चुनौती का सामना करना पड़ता है। निर्वाचन कर्मियों को तैयार करना एक सतत प्रक्रिया है और इसके लिए उनकी सुविज्ञता को निरंतर बढ़ाने, उनकी दक्षता में सुधार करने और देश के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक निर्वाचन संस्कृति का निर्माण करने की आवश्यकता होती है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, यह आशा की जाती है कि भारत अन्य लोकतंत्रात्मक देशों और इच्छुक देशों के साथ अपने विशिष्ट अनुभवों को साझा करे। इसलिए अंतर-सांस्थानिक संपर्क को बढ़ावा देने और विश्व के निर्वाचन आयोगों और प्राधिकरणों के अनुरोध पर उन्हें तकनीकी सहायता और प्रयोक्ता अनुकूल संसाधन मुहैया कराए जाने की आवश्यकता है। क्षमता निर्माण, अनुसंधान और ज्ञान प्रबंधन के संबंध में एक विशिष्ट संस्थागत पहल की आवश्यकता के महत्व और तात्कालिकता को महसूस करते हुए, भारत निर्वाचन आयोग ने नई दिल्ली स्थित अपने निर्वाचन सदन से 2011 के मध्य से आईआईआईडीईएम का प्रचालन शुरू किया जिससे पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सद्भावना को संस्था का रूप प्रदान किया जा रहा है। लोकतांत्रिक ताकतों को प्रशिक्षित करना, निर्वाचन का प्रबंधन करना और पेशेवर तरीके से निर्वाचन कराना एक तकनीकी और कौशलपूर्ण कार्य है जिसके लिए मानव संसाधन का स्थाई क्षमता विकास किया जाना अपेक्षित है। जून, 2011 में भारत निर्वाचन आयोग ने भारत और विदेश में सुप्रशिक्षित और प्रतिबद्ध मानव संसाधन की एक पीढ़ी तैयार करने के लिए विशेषज्ञता प्राप्त एक संस्थान अंतर्राष्ट्रीय 'लोकतंत्र और निर्वाचन प्रबंधन संस्थान' का गठन किया है।
लोकतांत्रिक ताकतों को प्रशिक्षित करना
यह संस्थान भारत निर्वाचन आयोग का एक अभिन्न अंग है और इसका उद्गम आधुनिक भारत के संस्थापको और संविधान निर्माताओं की इस सोच से हुआ है कि स्वतंत्र, निष्पक्ष, विश्वसनीय और पेशेवर रूप से प्रबंधित निर्वाचन लोकतंत्र की आधारशिला है। इस परिप्रेक्ष्य में, आईआईआईडीईएम भारतीय लोकतंत्र के लिए भारत निर्वाचन आयोग की आंकाक्षाओं का वास्तविक स्वरूप है। यह भारत निर्वाचन आयोग के लिए अपने निर्वाचन प्रबंधन के साधनों को निरंतर रूप से तेज, तैयार और अद्यतन रखने का माध्यम है। आईआईआईडीईएम की परिकल्पना सहभागी लोकतंत्र और निर्वाचन प्रबंधन के संबंध में शिक्षण, अनुसंधान, प्रशिक्षण और विस्तार के उन्नत संसाधन केंद्र के रूप में की गई है। इसका लक्ष्य क्षमता निर्माण, विस्तार, पहुंच, अनुसंधान, विश्लेषण और ज्ञान सृजन और प्रबंधन के माध्यम से लोकतांत्रिक मूल्यों, सिद्धांतों और प्रथाओं के उच्च मानकों को बढ़ाना है जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचनों के प्रभावी संचालन को सक्षम बनाया जा सके और राष्ट्रीय और अन्य निर्वाचन प्रबंध निकायों (ईएमबी) के बीच इस प्रयोजनार्थ परस्पर लाभकारी भागीदारी और सहयोग विकसित किया जा सके।आईआईआईडीईएम भारत निर्वाचन आयोग के भाग के रूप मे कार्य करता है जिसका लक्ष्य लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली पर समग्र ध्यान देना और इसके प्रशिक्षण, पहुंच और ज्ञान संबंधी कार्यकलापों का अधिक पेशेवर तरीके से अनुकूलन करता है। संस्थान के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं: निर्वाचन प्रबंधन में पेशेवर सक्षमता को बढावा देना और हितधारकों की जागरूकता, ज्ञान, संबद्धता और भागीदारी के स्तर को उपर उठाना। भारत निर्वाचन आयोग और इससे संबद्ध निकायों को इनके अनिवार्य दायित्व और कार्यों का निर्वहन करने में समर्थन और सहायता प्रदान करना। सक्षम, विश्वसनीय और कुशल प्रबंधकों तथा संबद्ध निकायों द्वारा निर्वाचन प्रक्रिया के कार्यान्वयन को मतदाता अनुकूल बनाना। राजनीति विज्ञान, लोकतंत्र और निर्वाचन प्रबंधन के क्षेत्र में व्यवहारिक अनुसंधान को बढ़ावा देना और पेपर, जर्नल और पुस्तकों के प्रकाशन को प्रोत्साहित करना। विश्व में भारत को प्रतिष्ठित स्थान दिलाने और इसके अनुकरणीय नेतृत्व स्थापित करने में सक्रिय भूमिका अदा करना। अपने गठन के बाद से आईआईआईडीईएम ने तीन वर्षों की अल्पावधि में 100 से अधिक घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण/ सेमिनार/कार्यशालाओं का आयोजन किया है जिससे इसको प्रोत्साहक फीडबैक मिला और इसकी प्रशंसा हुई है। संस्थान ने निर्वाचन प्रणाली और निर्वाचन कर्मियों के लिए तकनीकी और विश्लेषणात्मक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, माड्यूल तैयार किए हैं। यह निर्वाचन संबंधी कार्यनीतियों, दृष्टिकोणों, अभिनव सोच, सामग्रियों, दस्तावेजों और रिपोर्टों के लिए विशिष्ट संसाधन केंद्र के रूप में कार्य करता है। यह अनेक श्रेणियों में कार्यक्रम संचालित करता है जो इस प्रकार हैं: भारत निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम : भारत निर्वाचन आयोग द्वारा संचालित निर्वाचनों और तैयार निर्वाचक नामावलियों के लिए। राज्य निर्वाचन आयोगों के लिए निर्वाचन प्रशिक्षण: राज्य निर्वाचन आयोगों द्वारा आयोजित किए गए निर्वाचनों और उनके द्वारा तैयार निर्वाचक नामावलियों के लिए।
राष्ट्रीय मतदाता दिवस: समावेशन का माध्यम
राष्ट्रीय मतदाता दिवस, भारत के संविधान के अस्तित्व में आने से एक दिन पहले अर्थात दिनांक 25 जनवरी, 1950 को भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना के उपलक्ष्य में पूरे भारत में मनाया जाता है।
इस दिन नए पात्र पंजीकृत मतदाताओं को उनका एपिक और 'मतदाता होने पर गर्व है- मत देने के लिए तैयार हूं' नारा लिखा एक बैज भी दिया जाता है। देश के सभी पोलिंग स्थलों पर राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाए जाने के दौरान उपस्थित सभी निर्वाचकों/जनता को राष्ट्रीय मतदाता शपथ दिलाई जाती है। वातावरण निर्माण और जागरूकता पैदा करने के लिए विचार-गोष्ठी, साइकिल रैली, मानव श्रृंखला, लोक कला कार्यक्रम, मिनी मैराथन, रेस प्रतियोगिताएं और जागरूकता सेमिनार जैसे पहुंच प्रत्यक्ष सम्पर्क (आउटरीच) के उपाय किए जाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
पिछले दशक से भारत निर्वाचन आयोग अंतर-संस्थागत संपर्क को बढ़ावा देने और अन्य निर्वाचन प्राधिकरियों की मांग पर उन्हें तकनीकी सहायता और प्रयोक्ता अनुकूल संसाधन और सलाह प्रदान करने के लिए निरन्तर और ज्यादा प्रयास कर रहा है। इस प्रक्रिया में भारत निर्वाचन आयोग ने भी अन्य देशों में अपने समकक्ष संगठनों से मूल्यवान जानकारी प्राप्त की है। विश्व भर में लोकतंत्र को बढ़ावा देने और निर्वाचन प्रबंधन को सुदृढ़ करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आउटरीच को भारत की विदेश नीति के उद्देश्यों के अनरूप बनाया गया है। वर्तमान में भारत निर्वाचन आयोग, एशियाई निर्वाचन प्राधिकरणों से एसोसिस्शन संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष (2015-16), दक्षिण एशियाई निर्वाचन प्रबंधन निकाय फोरम का संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष (2012-13) है। विश्व निर्वाचन निकाय के कार्यकारी बोर्ड संघ का सदस्य (2013-17), राष्ट्रमंडल निर्वाचन नेटवर्क की संचालन समिति का सदस्य (2010-14), लोकतंत्र देशों के समुदाय निर्वाचन संबंधी कार्य समूह (2014) का सदस्य है।
निष्कर्ष – भारत में निर्वाचन संचालित करने की चुनौतियां
भारत जैसे विशाल देश में निर्वाचनों के संचालन में व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए जाते हैं। इसमें मतदान कर्मियों की सुरक्षा, मतदान केंद्रो पर सुरक्षा, मतदान सामग्री की सुरक्षा करने के साथ-साथ संपूर्ण निर्वाचन प्रक्रिया की सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है। मतदाताओं, विशेषकर असुरक्षित मतदाताओं नामत: कमजोर वर्गों, अल्पसंख्यकों आदि के मन में भरोसा पैदा करने के लिए मतदान से पहले उस क्षेत्र को अपने नियन्त्रण में लेने के लिए केंद्रीय सशस्त्र अर्धसैनिक बलों को तैनात किया जाता है। यह चुनौती वामपंथी उग्रवाद (LWE) से प्रभावित क्षेत्र में और अधिक है। निर्वाचनों में धन बल के दुरूपयोग से निर्वाचन के समान अवसर न होने, निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के अभाव, कतिपय वर्गों का राजनीतिक बहिष्कार, प्रचार हेतु ऋण के तहत सहयोजित राजनेता, और कुशासन जैसे कतिपय जोखिम रहते हैं। इसकी अंतर्निहित जटिलताओं के मध्यनजर निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान धन बल के दुरूपयोग को रोकना एक अन्य प्रमुख चुनौती है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में किए गए संशोधन द्वारा सभी निर्वाचन क्षेत्रों में एग्जिट पोल के परिणामों के प्रकाशन पर मतदान शुरू होने के समय से मतदान समाप्त होने के आधे घंटे तक प्रतिबंध लगाया गया है। आयोग, सरकार को परामर्श देता रहा है कि ओपिनियन पोल पर भी ऐसा ही प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए क्योंकि अनेक ओपिनियन पोल तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किए हुए हो सकते हैं जो मतदान के पैटर्न को प्रभावित कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों से वेब और सोशल मीडिया की मौजूदगी बढ़ी है और राजनीतिक और सामाजिक समूहों से यह मांग की गई है कि निर्वाचनों के दौरान जिस प्रकार अन्य मीडिया को विनियमित किया जाता है उसी प्रकार सोशल मीडिया को भी विनियमित किया जाए। निर्वाचन प्रचार के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग होने और सोशल मीडिया में निर्वाचन कानूनों के कतिपय उल्लंघनों के परिप्रेक्ष्य में, निर्वाचनों में पारदर्शिता लाने और समान अवसर प्रदान करने में सोशल मीडिया का विनियमन करना जरूरी हो गया है।
Edited by ECI
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