
संवैधानिक निकाय
भारत एक समाजवादी, धर्म निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य एवं विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आधुनिक भारतीय राष्ट्र राज्य 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में आया था। तब से संविधान में प्रतिस्थापित सिद्धान्तों, निर्वाचन विधियों तथा पद्धति के अनुसार नियमित अन्तराल पर स्वतंत्र तथा निष्पक्ष निर्वाचनों का संचालन किया गया है। भारत के संविधान ने संसद और प्रत्येक राज्य के विधान मंडल तथा भारत के राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के पदों के निर्वाचनों के संचालन की पूरी प्रक्रिया का अधीक्षण, निदेशन तथा नियंत्रण का उत्तरदायित्व भारत निर्वाचन आयोग को सौंपा है।
भारत निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी। आयोग ने अपना स्वर्ण जयंती वर्ष 2001 में मनाया था।
प्रारम्भ में, आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे। वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त हैं।
16 अक्तूबर, 1989 को पहली बार दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी परन्तु उनका कार्यकाल बहुत कम था जो 01 जनवरी, 1990 तक चला। तत्पश्चात, 01 अक्तूबर, 1993 को दो अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी। तब से आयोग की बहु-सदस्यीय अवधारणा प्रचलन में है, जिसमें निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है।
आयुक्तों की नियुक्ति एवं कार्यकाल
मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उनका कार्यकाल 6 वर्ष, या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक होता है। उनका दर्जा भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का होता है तथा उन्हें उनके समतुल्य ही वेतन और अनुलाभ मिलते हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पद से केवल संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से ही हटाया जा सकता है।
कार्य निष्पादन
आयोग अपने कार्यों का निष्पादन, नियमित बैठकों के आयोजन और दस्तावेजों के परिचालन द्वारा भी करता है। आयोग द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी निर्वाचन आयुक्तों के पास समान अधिकार होते हैं। समय-समय पर आयोग अपने सचिवालय में अपने अधिकारियों को कुछ कार्यकारी प्रकार्यों का प्रत्यायोजन करता है।
संरचना
आयोग का नई दिल्ली में एक पृथक सचिवालय है जिसमें लगभग 300 अधिकारी/कर्मचारी पदानुक्रम रूप से कार्य करते हैं।
आयोग के कार्यों में सहयोग देने के लिए सचिवालय के वरिष्ठतम अधिकारी के रूप में दो या तीन उप निर्वाचन आयुक्त और महानिदेशक होते हैं। वे सामान्यतः देश की राष्ट्रीय सिविल सेवा से नियुक्त किए जाते हैं और उनका चयन व कार्यकाल सहित उनकी नियुक्ति आयोग द्वारा की जाती है। इसी तरह से, निदेशक, प्रधान सचिव, सचिव, अवर सचिव और उप निदेशक, उप निर्वाचन आयुक्तों और महानिदेशकों को सहयोग देते हैं। आयोग में कार्य का क्षेत्र के आधार पर वितरण किया गया है। कार्य को डिविजनों, शाखाओं और अनुभागों में वितरित किया गया है; उल्लिखित इकाइयों में से प्रत्येक आखिरी इकाई अनुभाग अधिकारी के प्रभार में होती है। मुख्य प्रकार्यात्मक प्रभाग हैः योजना, न्यायिक, प्रशासन, सुव्यवस्थित मतदाता शिक्षा एवं निर्वाचक सहभागिता (स्वीप), सूचना प्रणालियां, मीडिया और सचिवालय समन्वयन। विभिन्न जोन के लिए उत्तरदायी पृथक-इकाइयों के मध्य प्रादेशिक कार्य का बँटवारा किया गया है जिसके लिए प्रबंधन की सुविधा हेतु देश के 35 संघटक राज्यों और संघ राज्य-क्षेत्रों का समूह बनाया गया है।
राज्य स्तर पर निर्वाचन कार्य का अधीक्षण राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा आयोग के समग्र अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण के अध्यधीन किया जाता है, और आयोग द्वारा इन मुख्य निर्वाचन अधिकारियों की नियुक्ति संबंधित राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित वरिष्ठ सिविल सेवकों में से की जाती है। अधिकतर राज्यों में वे पूर्णकालिक अधिकारी होते हैं और उनके पास सहायक स्टाफ की छोटी सी एक टीम होती है।
जिला एवं निर्वाचन क्षेत्र स्तरों पर जिला निर्वाचन अधिकारी, निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी और रिटर्निंग अधिकारी होते हैं जिन्हें बड़ी संख्या में कनिष्ठ पदाधिकारियों का सहयोग मिलता है और वे निर्वाचन कार्य निष्पादित करते हैं। वे सभी अपने अन्य दायित्वों के अतिरिक्त निर्वाचनों से संबंधित कार्यों का भी निष्पादन करते हैं। तथापि, निर्वाचन के दौरान, वे आयोग के लिए कमोवेश, पूर्णकालिक आधार पर उपलब्ध होते हैं।
देश व्यापी स्तर पर साधारण निर्वाचन का संचालन करने के लिए काफी अधिक कार्यबल अर्थात लगभग पाँच मिलियन निर्वाचन कर्मी एवं सिविल पुलिस बल तैनात किए जाने शामिल हैं। इस विशाल निर्वाचन तंत्र को निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्ति पर लिया जाता है और निर्वाचन अवधि, जो डेढ़ से दो महीनों की अवधि तक होती है, के दौरान इसके नियंत्रण, अधीक्षण एवं अनुशासन के अध्यधीन होता है।
बजट एवं व्यय
आयोग सचिवालय का अपना एक स्वतंत्र बजट होता है जिसे आयोग और संघ सरकार के वित्त मंत्रालय के परामर्श से अंतिम रूप दिया जाता है। वित्त मंत्रालय सामान्य रूप से आयोग के बजट हेतु इसकी संस्तुतियों को स्वीकार कर लेता है। तथापि, निर्वाचनों के वास्तविक संचालन पर मुख्य व्यय, संघ राज्यों तथा संघ शासित क्षेत्रों की संबंधित घटक इकाइयों के बजट में शामिल किया जाता है। यदि निर्वाचन केवल लोक सभा के लिए ही करवाए जाते हैं तो व्यय समग्र रूप से संघ सरकार द्वारा वहन किया जाता है जबकि केवल राज्य विधान मंडल के लिए करवाए जाने वाले निर्वाचनों के लिए सारा व्यय संबंधित राज्य द्वारा वहन किया जाता है। संसदीय एवं राज्य विधान मंडल के निर्वाचन साथ-साथ होने की स्थिति में, केन्द्र एवं राज्य सरकार के बीच व्यय की समान रूप से हिस्सेदारी होती है। पूंजीगत उपस्कर, निर्वाचक नामावलियों को तैयार करने संबंधी व्यय तथा निर्वाचकों के पहचान पत्रों संबंधी योजना का व्यय भी समान रूप से बांट लिया जाता है।
कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त
अपने कार्यों के निष्पादन में, निर्वाचन आयोग कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त है। आयोग ही निर्वाचनों के संचालन के लिए निर्वाचन कार्यक्रम के बारे में निर्णय लेता है चाहे वह साधारण निर्वाचन हो या उप निर्वाचन। पुनः, आयोग ही मतदान केन्द्रों की अवस्थिति, मतदान केन्द्रों के अनुसार मतदाताओं का आबंटन, मतगणना केन्द्रों की अवस्थिति, मतदान केन्द्रों एवं उसके आस-पास किए जाने वाले प्रबंधों और मतगणना केंद्रों तथा सभी संबंधित मामलों पर निर्णय लेता है।
राजनीतिक दल एवं आयोग
राजनीतिक दल विधि के अधीन निर्वाचन आयोग के साथ पंजीकृत हैं। आयोग उन पर सामयिक अंतरालों पर संगठन संबंधी निर्वाचन करवाने हेतु जोर देकर उनके कामकाज में आंतरिक दलीय लोकतंत्र सुनिश्चित करता है। निर्वाचन आयोग के साथ इस प्रकार पंजीकृत राजनैतिक दलों को निर्वाचन आयोग, अपने द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार, साधारण निर्वाचनों में राजनैतिक दलों के मतदान प्रदर्शन के आधार पर राज्यीय एवं राष्ट्रीय स्तर की मान्यता प्रदान करता है। आयोग, अपने अर्ध-न्यायिक अधिकार क्षेत्र के भाग के रूप में, ऐसे मान्यता प्राप्त दलों से अलग हुए दलों के बीच के विवादों का भी निपटान करता है।
निर्वाचन आयोग, राजनीतिक दलों की सहमति से तैयार की गई आदर्श आचार संहिता का उनके द्वारा कड़ाई से अनुपालन करवाकर निर्वाचन मैदान में राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है।
आयोग राजनीतिक दलों के साथ आवधिक रूप से निर्वाचनों के संचालन संबंधी मामलों एवं आदर्श आचार संहिता के अनुपालन और आयोग द्वारा निर्वाचन संबंधी मामलों पर प्रस्तावित नए उपायों को लागू करने पर विचार विमर्श करता है।
परामर्शी अधिकार क्षेत्र एवं अर्ध-न्यायिक प्रकार्य
संविधान के अधीन आयोग के पास संसद एवं राज्य विधान मंडलों के आसीन सदस्यों की निर्वाचन पश्चात निरर्हता के मामले में परामर्शी अधिकार हैं। इसके अतिरिक्त, निर्वाचनों में भ्रष्ट आचरण के लिए दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों के मामले, जो कि उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं, भी आयोग की राय जानने के लिए कि क्या ऐसे लोगों को निर्रहित कर दिया जाए और, यदि हां, तो कितने समय के लिए, संबंधी मामले आयोग को सन्दर्भित किए जाते हैं। ऐसे सभी मामलों में आयोग की राय राष्ट्रपति या राज्यपाल, यथामामला जिन्हें ऐसी राय प्रस्तुत की जाती है, पर बाध्यकारी होते हैं।
आयोग के पास ऐसे अभ्यर्थी, जो विधि द्वारा निर्धारित समय और रीति से अपने निर्वाचन व्यय के लेखे दाखिल करने में असफल हो जाते हैं, को निर्रहित करने का अधिकार है। आयोग के पास विधि के अधीन अन्य निर्रहता तथा साथ ही ऐसी निर्रहता की अवधि को समाप्त करने या कम करने का अधिकार भी है।
न्यायिक समीक्षा
आयोग के निर्णयों को भारत के उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में उचित याचिका द्वारा चुनौती दी जा सकती है। लंबे समय से चली आ रही परिपाटी और अनेक न्यायिक घोषणाओं के द्वारा, यदि एक बार निर्वाचनों की वास्तविक प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो न्यायपालिका मतदान के वास्तविक संचालन में हस्तक्षेप नहीं करती है। एक बार मतदान समाप्त हो जाने एवं परिणाम घोषित हो जाने पर, आयोग किसी परिणाम का पुनरीक्षण स्वयं नहीं कर सकता है। संसदीय एवं राज्य विधान मण्डलों के निर्वाचनों के संबंध में इसका पुनरीक्षण केवल निर्वाचन याचिका की प्रक्रिया के माध्यम से किया जा सकता है जो कि उच्च न्यायालय के समक्ष रखी जाती है। राष्ट्रपतीय और उप राष्ट्रपतीय कार्यालयों के निर्वाचनों के संबंध में, ऐसी याचिका केवल उच्चतम न्यायालय के समक्ष ही दायर की जा सकती है।
मीडिया नीति
मीडिया के संबंध में आयोग की व्यापक नीति है। यह निर्वाचन अवधि के दौरान एवं अन्य अवसरों पर यथा आवश्यकता विशिष्ट अवसरों पर लघु अंतरालों पर प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मास मीडिया के लिए नियमित ब्रीफिंग आयोजित करता है। मीडिया के प्रतिनिधियों को मतदान एवं मतगणना के वास्तविक संचालन पर रिपोर्ट बनाने के लिए सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं। उन्हें आयोग द्वारा जारी प्राधिकार पत्रों के आधार पर मतदान केन्द्रों एवं गणना केन्द्रों में जाने की अनुमति दी जाती है। इसमें अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय मीडिया दोनों के सदस्य शामिल होते हैं। आयोग सांख्यिकीय रिपोर्ट एवं अन्य दस्तावेज भी प्रकाशित करता है जो सार्वजनिक रूप में उपलब्ध होते हैं। आयोग का पुस्तकालय शैक्षिक जगत के सदस्यों, मीडिया प्रतिनिधियों एवं अन्य कोई भी इच्छुक व्यक्ति जो इसमें रूचि रखता हो, के शोध एवं अध्ययन के लिए उपलब्ध है।
आयोग ने मतदाताओं की जागरूकता के लिए राज्य के स्वामित्व वाले मीडिया - दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के सहयोग से बड़ा प्रचार अभियान चलाया है। प्रसार भारती कॉर्पोरेशन, जो राष्ट्रीय रेडियो एवं टेलीविजन नेटवर्क का प्रबंधन करती है, ने इस उद्देश्य के लिए अनेक नवीन एवं प्रभावकारी लघु क्लिप बनाई हैं।
मतदाता शिक्षा
लोकतान्त्रिक एवं निर्वाचन प्रक्रियाओं में मतदाता सहभागिता किसी भी लोकतन्त्र की सफलता के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है और लोकतान्त्रिक निर्वाचनों का पूर्ण आधार यही है। इस तथ्य को पहचानते हुए, निर्वाचन आयोग ने वर्ष 2009 में निर्वाचन प्रबन्धन के अभिन्न अंग के रूप में मतदाता शिक्षा और निर्वाचन सहभागिता को औपचारिक रूप से अपनाया है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
भारत, लोकतंत्र और निर्वाचन सहायता हेतु अंतर्राष्ट्रीय संस्थान (आईडीईए) स्टॉकहोम, स्वीडन का एक संस्थापक सदस्य है। अभी हाल ही में, आयोग ने निर्वाचन प्रबंधन एवं प्रशासन, निर्वाचक विधियां एवं सुधार के क्षेत्र में अपने अनुभव एवं विशेष जानकारी को साझा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को बढ़ाया है। विभिन्न देशों यथा रूस, श्रीलंका, नेपाल, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, नाइजीरिया, नामीबिया, भूटान, आस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और अफगानिस्तान इत्यादि के राष्ट्रीय निर्वाचन निकायों के निर्वाचन अधिकारी और अन्य शिष्टमंडल भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया को बेहतर रूप से समझने के लिए आयोग का दौरा कर चुके हैं। आयोग ने संयुक्त राष्ट्र संघ और राष्ट्रमंडल सचिवालय के सहयोग से अन्य देशों के निर्वाचनों के लिए प्रेक्षकों और विशेषज्ञों को भी उपलब्ध कराया था।
नई पहल
आयोग ने पिछले कुछ समय में कई नई पहल की हैं। इनमें से कुछ उल्लेखनीय हैं – राजनैतिक दलों द्वारा रेडियो प्रसारण/दूरदर्शन प्रसारण के लिए राज्य के स्वामित्व वाली इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रयोग की योजना बनाना, राजनीति के अपराधीकरण पर रोक लगाना, निर्वाचक नामावलियों का कंम्यूटरीकरण, निर्वाचकों को पहचान-पत्र उपलब्ध करवाना, अभ्यर्थियों द्वारा लेखा-जोखा रखने और उन्हें प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को सरल बनाना तथा आदर्श आचार संहिता का कड़ाई से अनुपालन करने हेतु विविध उपाय करना, निर्वाचनों के दौरान अभ्यर्थियों को एक- समान अवसर उपलब्ध करवाना।
Edited by ECI
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