
1) राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती हैं?
उत्तर : 250
राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 में उपबंध है कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा 12 सदस्य नामित किए जाते हैं और एकल संक्रणीय मत के माध्यम से अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा राज्यों से अधिकतम 238 प्रतिनिधि निर्वाचित करने होते हैं (संविधान का अनुच्छेद 80)।
2) राज्य सभा के सदस्यों की मौजूदा संख्या कितनी है?
उत्तर : 245 सदस्य
12 नामित हैं और 233 सदस्य निर्वाचित हैं।
3) राज्य सभा का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर: राज्य सभा एक स्थायी सदन है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 83(1) के अनुसार इसे भंग नहीं किया जा सकता ! किन्तु, जहां तक संभव होता है इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त हो जाते हैं और उन्हें प्रतिस्थापित करने के लिए उतनी ही संख्या में सदस्यों को चुना जाता है।
4) राज्य सभा के सदस्यों को कौन निर्वाचित करता है?
उत्तर : राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य उन्हें निर्वाचित करते हैं। ‘राज्य’ शब्द में पुडुचेरी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भी शामिल है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 80(4) में उपबंध हैं कि एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के द्वारा राज्य विधान सभाओं के निर्वाचति सदस्यों द्वारा राज्य सभा के सदस्यों को निर्वाचित किया जाएगा।
5) राज्य सभा के सदस्यों को कौन नामित करता है?
उत्तर : भारत के राष्ट्रपति
भारत के राष्ट्रपति राज्य सभा के लिए 12 सदस्यों को नामित करते हैं जैसा पहले उल्लेख किया गया है।
6) क्या नामित सदस्यों के लिए कोई विशेष अर्हता होती है?
उत्तर : हाँ
भारत के संविधान के अनुच्छेद 80(3) में उपबंध है कि राज्य सभा में राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाने वाले सदस्यों को साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों का विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए।
अनुच्छेद 84(ख) उपबंधित करता है कि वह व्यक्ति 30(तीस) वर्ष से कम आयु का नहीं होगा।
7) राज्य सभा के निर्वाचन में नाम निर्देशन करने के लिए कितने प्रस्तावकों का समर्थन आवश्यक होता है?
उत्तर : मान्यताप्राप्त दलों द्वारा खड़े किए गए अभ्यर्थियों के मामले में राज्य सभा अथवा राज्य विधान परिषद के निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी के प्रत्येक नाम निर्देशन पर संबंधित विधान सभा के कुल निर्वाचित सदस्यों के कम से कम दस प्रतिशत अथवा दस सदस्यों, जो भी कम हो, का प्रस्तावकों के रूप में समर्थन आवश्यक होगा। अन्य अभ्यर्थियों के मामले में, विधान सभा के दस निर्वाचित सदस्यों का समर्थन चाहिए।
8.) एक अभ्यर्थी नाम निर्देशन कागजात के कितने सेट दायर कर सकता है?
उत्तर : चार
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 39 की उप धारा (2)छ के साथ पठित, धारा 33 की उप-धारा (6) के अंतर्गत किसी भी एक अभ्यर्थी के द्वारा अथवा उसकी ओर से अधिकतम केवल चार नाम निर्देशन संबंधी कागजात प्रस्तुत अथवा उसी निर्वाचन क्षेत्र में स्वीकार किए जा सकते हैं।
9) रिटर्निंग अधिकारी को नाम निर्देशन संबंधी कागजात कौन प्रस्तुत कर सकता है?
उत्तर : नाम निर्देशन संबंधी कागजात या तो स्वयं अभ्यर्थी द्वारा अथवा उसके प्रस्तावकों में से किसी एक के द्वारा जमा करवाने होते हैं।
10) राज्य सभा का निर्वाचन लड़ने के लिए अभ्यर्थी को कितनी सुरक्षा राशि जमा करानी होती है?
उत्तर : राज्य सभा अथवा राज्य विधान परिषद के निर्वाचन में प्रत्येक अभ्यर्थी को लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 2009 (1 फरवरी 2010 से लागू हुआ) के द्वारा यथा संशोधित 10,000/- रू. (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 39(2) के साथ पठित धारा 34) जमा कराना अनिवार्य होता है। यदि अभ्यर्थी अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति का है तो उसे केवल 5000/- रू. जमा कराने होंगे।
11) क्या विधान सभा/संघ राज्य क्षेत्र का निर्वाचित सदस्य विधान सभा में अपना पद ग्रहण करने से पहले और संविधान के अंतर्गत विधान सभा के सदस्य के रूप में अपेक्षित शपथ एवं प्रतिज्ञान लेने से पहले राज्य सभा अथवा राज्य विधान परिषद के निर्वाचन में एक निर्वाचक के रूप में भाग लेने हेतु पात्र है? क्या ऐसे सदस्य नाम निर्देशन हेतु प्रस्तावक हो सकते हैं?
उत्तर : हाँ।
यह प्रश्न पशुपति नाथ सुकुल बनाम नेमचंद जैन (एआईआर 1984 एससी 399) के मामले में उत्पन्न हुआ था। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 73 के अंतर्गत निर्वाचन आयोग द्वारा इसकी अधिसूचना के द्वारा जैसे ही विधान सभा का गठन किया गया, विधान सभा के नवनिर्वाचित सदस्य उस सदन (विधान सभा) के सदस्य बन गए, और ऐसे सदस्य विधान सभा में अपना पदग्रहण करने से पहले ही राज्य सभा के निर्वाचन सहित सभी गैर-विधायी गतिविधियों में भाग ले सकते थे।
उच्चतम न्यायालय ने अपने दिनांक 6 जनवरी, 1997 के आदेश के द्वारा इस विचार की पुन: पुष्टि भी की थी। [मधुकर जेटली बनाम भारत संघ एवं अन्य – 1997 (II) एससीसी III]
ऐसे सदस्य अभ्यर्थियों के नाम निर्देशन हेतु प्रस्तावक भी बन सकते हैं।
12) क्या राज्य सभा के निर्वाचनों में खुले मतदान पर दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता संबंधी संविधान की दसवीं अनुसूची के उपबंध लागू होते हैं?
उत्तर : नहीं
सर्वोच्च न्यायालय ने कुलदीप नायर बनाम भारत संघ और अन्य (एआईआर 2006 एससी 3127) के मामले में अपने दिनांक 22 अगस्त, 2006 के निर्णय में कहा कि ‘’यह दावा तर्कसंगत नहीं है कि खुले मतदान से राज्य सभा के निर्वाचन में मतदाता का अभिव्यक्ति का अधिकार प्रभावित होता है, क्योंकि एक विशिष्ट पद्धति में मतदान करने से निर्वाचित विधायक सदन की सदस्यता से किसी निरर्हता का सामना नहीं करेगा। ज्यादा से ज्यादा उसे उस राजनैतिक दल की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है जिससे वह संबंधित है।‘’
13) क्या किसी राज्य विधान सभा का ऐसा निर्वाचित सदस्य राज्य सभा अथवा राज्य विधान परिषद के निर्वाचन में मतदान कर सकता है, जिसका किसी निर्वाचन याचिका में उच्च न्यायालय द्वारा निर्वाचन रद्द कर दिया गया हो, लेकिन उसकी अपील के लम्बित होने की अवधि में उच्चतम न्यायालय द्वारा उसके पक्ष में सशर्त स्थगन प्रदान किया हो, जिसमें संबंधित सदस्य को विधान सभा के उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर करने की अनुमति दी गई हो किन्तु, सदन की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति नहीं दी हो?
उत्तर : नहीं
उच्चतम न्यायालय ने अपने दिनांक 27 अक्टूबर, 1967 (सत्यनारायण मित्रा बनाम बिरेश्वर घोष 1967 की अपील सं.1408 (एनसीई)) के आदेश में स्पष्ट किया कि ऐसे संबंधित सदस्य को राज्य सभा के निर्वाचन में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके पश्चात एक नियम के रूप में, किसी भी राज्य की विधान सभा में ऐसे सदस्य को राज्य सभा अथवा राज्य विधान सभा परिषद में किसी भी निर्वाचन में किसी अभ्यर्थी के नाम को प्रस्तावित करने अथवा मतदान करने की अनुमति नहीं दी गई है।
14) क्या राज्य विधान सभा का ऐसा निर्वाचित सदस्य राज्य सभा अथवा राज्य विधान परिषद के निर्वाचन में मतदान कर सकता है जिसका निर्वाचन किसी निर्वाचन याचिका पर उच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया हो, किन्तु उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर एक संपूर्ण स्थगन आदेश पारित कर दिया हो?
उत्तर : हां। ऐसे मामले में, उच्च न्यायालय के आदेश को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 116 आ [3] के अंतर्गत कभी भी प्रभावी नहीं होना माना जाएगा, और संबंधित सदस्य बिना किसी बाधा के राज्य सभा अथवा राज्य विधान परिषद के निर्वाचन में भाग लेने हेतु उसके अधिकार सहित विधान सभा के सदस्य के सभी अधिकारों और विशेषाधिकारों का प्रयोग करता रहेगा।
15) यदि कोई द्विवार्षिक निर्वाचन नियत समय पर संबंधित राज्य विधान सभा के न होने के कारण निश्चित समय पर नहीं होता है और परिणामी रिक्तियां लंबे समय तक नहीं भरी जाती हैं और इस दीर्घ अवधि के दौरान अन्य नियमित रिक्तियां भी उत्पन्न हो जाती हैं, तो क्या इस प्रकार से उत्पन्न रिक्तियों को एक सामान्य निर्वाचन हेतु सम्मिलित किया जा सकता है अथवा प्रत्येक अलग समय (श्रेणियों) पर उत्पन्न होने वाली रिक्तियों को अलग निर्वाचन द्वारा भरा जाना होता है, चाहे ऐसे निर्वाचनों के लिए संबंधित विधान सभा के गठन के संबंध में एक सामान्य(कॉमन) समय-सारणी अपनाई गई हो?
उत्तर : भिन्न-भिन्न वर्गों/ समय-अवधि(साइकल)[परिषदों के प्रारंभिक गठन के समय निर्धारित की गई] में उत्पन्न नियमित रिक्तियों को सम्मिलित नहीं किया जा सकता और अलग अलग अवसरों पर उत्पन्न रिक्तियों को अलग निर्वाचनों द्वारा भरा जाना होता है, चाहे ऐसे निर्वाचनों के लिए संबंधित विधान सभा के गठन के संबंध में एक सामान्य(कॉमन) समय-सारणी अपनाई गई हो।
[दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष सुरिन्द्र पाल रातावाल बनाम शमीम अहमद एआईआर 1985 डीईएल 22 एंड ए.के.वालिया बनाम भारत संघ एवं अन्य, 1994 की सिविल रिट सं. 132]
16) क्या उस निर्वाचन में नाम निर्देशन संबंधी कागजातों की संवीक्षा के दिन शपथ ली या प्रतिज्ञान किया जा सकता है और उन पर हस्ताक्षर किए जा सकते हैं ?
उत्तर : नहीं, उस निर्वाचन में नाम निर्देशन संबंधी कागजातों की संवीक्षा के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा नियत तिथि से पहले शपथ लेनी या प्रतिज्ञान किया जाना चाहिए और उन पर हस्ताक्षर नहीं किए जाने चाहिए ! उच्चतम न्यायालय के पशुपतिनाथ सिंह बनाम हरिहर प्रसाद सिंह (ए.आईआर. 1968 एस.सी. 1064) और कादर खान हुसैन खान एवं अन्य बनाम निजलिंगप्पा [ (1970(1)एस.सी.ए.-548] के मामले में दिए गए निर्णयों से स्थिति स्पष्ट हो चुकी है और वास्तव में शपथ लेने अथवा प्रतिज्ञान करने और हस्ताक्षर करने के संबंध में सभी संदेह दूर हो चुके हैं।
इन निर्णयों के अनुसार अभ्यर्थी के नाम निर्देशन संबंधी कागजात प्रस्तुत होने के पश्चात ही उसके द्वारा शपथ ली अथवा प्रतिज्ञान किया जा सकता है और उन पर हस्ताक्षर किए जा सकते हैं तथा संवीक्षा की तिथि को न तो ऐसी शपथ ली जा सकती है न ही प्रतिज्ञान किया जा सकता है। यह कार्य संवीक्षा की नियत तिथि से पहले किया जाना चाहिए।
17) क्या एक ही प्रस्तावक एक से अधिक अभ्यर्थियों के नाम निर्देशन का प्रस्ताव रख सकता है ?
उत्तर : हाँ ! विधि के अंतर्गत एक निर्वाचक द्वारा एक से अधिक अभ्यर्थियों के नाम निर्देशन करने पर कोई रोक नहीं है। अत:, एक अभ्यर्थी के नाम निर्देशन हेतु प्रस्तावक के रूप में समर्थन करने वाला कोई निर्वाचक एक या एक से अधिक अभ्यर्थियों के नाम निर्देशन का भी समर्थन कर सकता है (अमोलक चंद बनाम रघुवीर सिंह एआईआर 1968 एससी 1203).
यहां तक कि एक अभ्यर्थी स्वयं उसी निर्वाचन के लिए किसी अन्य अभ्यर्थी के नाम निर्देशन का भी प्रस्तावक हो सकता है।
18) अभ्यर्थी के नाम निर्देशन संबंधी दस्तावेज कौन प्रस्तुत कर सकता है?
उत्तर : अभ्यर्थी द्वारा स्वयं अथवा उसके किसी भी प्रस्तावक द्वारा नाम निर्देशन संबंधी कागजात रिटर्निंग अधिकारी अथवा प्रधिकृत सहायक रिटर्निंग अधिकारी को प्रस्तुत किए जाएंगे [1951 के अधिनियम की धारा 39(2) के साथ पठित धारा 33(1)]। ये किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत नहीं किए जा सकते हैं, चाहे उन्हें अभ्यर्थी अथवा उसके प्रस्तावक द्वारा लिखित में प्राधिकृत किया जाए।
19) क्या नाम निर्देशन संबंधी दस्तावेज डाक द्वारा अथवा फैक्स या ई-मेल जैसे संचार के अन्य माध्यमों से भेजे जा सकते हैं ?
उत्तर : नहीं ! नाम निर्देशन डाक अथवा फैक्स या ई-मेल जैसे संचार के अन्य माध्यमों से नहीं भेजा जा सकता है [हरी विष्णु कामत बनाम गोपाल स्वरूप पाठक 48 ईएलआर1 देखें]
20) क्या अभ्यर्थिता वापिस लेने के नोटिस को रद्द किया जा सकता हैं ?
उत्तर : नहीं ! अभ्यर्थी द्वारा एक बार विहित पद्धति में अभ्यर्थिता वापिस लेने का नोटिस देने के बाद उसके पास इस नोटिस को वापिस लेने अथवा उसे रद्द करने का कोई विकल्प अथवा अधिकार नहीं होता है [लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 39(2) के साथ पठित धारा 37(2)]।
21) अभ्यर्थी को उसके नाम निर्देशन संबंधी कागजातों के साथ कितने शपथ पत्र दायर करने होते हैं ?
उत्तर : दो शपथ पत्र दायर करने होते हैं, एक फार्म 26 में और एक अतिरिक्त शपथ-पत्र सरकारी आवास की देय राशि के संबंध में आयोग के दिनांक 03.02.2016 के आदेश सं. 509/11/2004-जेएस.I के तहत इसके द्वारा विहित फार्म में !
22) क्या शपथ-पत्रों, (फार्म-26) के किसी कॉलम को खाली छोड़े जाने पर भी नाम निर्देशन संबंधी कागजात वैध होता है ?
उत्तर : माननीय उच्चतम न्यायालय ने 2008 की रिट याचिका (सि) सं. 121 (रिसरजेंस इंडिया बनाम भारत निर्वाचन आयोग एवं अन्य) में अपने दिनांक 13/09/013 के निर्णय में यह अभिनिर्धारित किया है कि अभ्यर्थियों द्वारा अपने नाम निर्देशन संबंधी कागजातों के साथ दायर किए गए शपथ-पत्रों में अभ्यर्थियों को इसके समस्त कॉलम भरने होंगे और किसी भी कॉलम को खाली नहीं छोड़ा जा सकता है। इसीलिए, शपथ-पत्र को दायर करते समय, रिटर्निंग अधिकारी द्वारा यह जांच की जानी चाहिए कि क्या नाम निर्देशन संबंधी कागजातों के साथ दायर शपथ पत्र के सभी कॉलम भरे गए हैं या नहीं। यदि नहीं, तो रिटर्निंग अधिकारी अभ्यर्थी को नोटिस देगा कि वह एक नया शपथ-पत्र जमा कराए जिसमें सभी कॉलम विधिवत भरे हों। माननीय न्यायालय ने निर्णय दिया है कि यदि किसी मद के संबंध में कोई सूचना नहीं है तो उस कॉलम में उपयुक्त टिप्पणी जैसे ‘शून्य’अथवा ‘लागू नहीं’ इत्यादि, जैसा लागू हो, लिखा जाए। अभ्यर्थियों को कोई भी कॉलम खाली नहीं छोड़ना चाहिए। यदि कोई अभ्यर्थी रिटर्निंग अधिकारी के नोटिस के पश्चात भी रिक्त कॉलमों को भरने में असफल रहता है तो नाम निर्देशन संबंधी कागजातों की संवीक्षा करते समय रिटर्निंग अधिकारी द्वारा रद्द किया जा सकता है।
23) क्या किसी अभ्यर्थी के नाम निर्देशन पेपर को निरस्त किया जा सकता है यदि उसमें दी गई सूचना गलत है ?
उत्तर : नहीं ! किसी नाम निर्देशन फार्म मे गलत सूचना देना उस नाम निर्देशन को निरस्त करने का मानदंड नहीं है। रिटर्निंग अधिकारी लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951की धारा 36 में निहित प्रावधानों के अनुसार ही नाम निर्देशन कागजों को रद्द कर सकता है।
24) गलत शपथ-पत्र दायर करने की स्थिति में अभ्यर्थी पर क्या दंड लगाया जाता है ?
उत्तर : यदि कोई अभ्यर्थी प्रपत्र 26 में शपथ-पत्र में कोई मिथ्या घोषणा करता है अथवा कोई सूचना छिपाता है तो वह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 26 के अंतर्गत अधिकतम छह माह के कारावास अथवा जुर्माने अथवा दोनों दंड का भागी है। ऐसे मामले में आयोग के दिनांक 26.04.2014 के अनुदेश के अनुसार, शिकायतकर्ता लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125ए के अंतर्गत कार्रवाई हेतु सीधे उपयुक्त विधि न्यायालय जा सकता है।
25) नाम निर्देशन कागजों के संबंध में दायर किए जाने हेतु अपेक्षित विभिन्न दस्तावेजों को प्रस्तुत करने की अंतिम (आउटर) समय सीमा क्या है ?
उत्तर : (क) फार्म 26 में शपथ-पत्र, अतिरिक्त शपथ-पत्र और फार्म एए और बीबी नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि को अधिकतम अपराह्न 3.00 बजे तक दायर करने होते हैं। यदि अभ्यर्थी ने मूल शपथ-पत्र में कोई कॉलम खाली छोड़ दिया है और रिटर्निंग अधिकारी ने उसे नया और पूरा शपथ-पत्र दायर करने का नोटिस दिया है तो संशोधित शपथ-पत्र नाम निर्देशन की संवीक्षा हेतु नियत समय तक दायर किया जा सकता है।
(ख) नाम निर्देशन दायर करने के बाद और संवीक्षा हेतु नियत तिथि से पहले शपथ ग्रहण करनी होती है।
(ग) निर्वाचक नामावली का सत्यापित उद्धरण संवीक्षा के समय तक प्रस्तुत किया जा सकता है।
26) क्या फार्म ए ए और फार्म बी बी को फैक्स से भेजा जा सकता है अथवा इनकी फोटोकापियां प्रस्तुत की जा सकती हैं ?
उत्तर : नहीं ।
27) क्या फार्म ए ए और बी बी को नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि को अपराह्न 3.00 बजे के बाद जमा कराया जा सकता है
उत्तर : नहीं ।
28) खुली मतदान पद्धति कैसे संचालित की जाती है ?
उत्तर : खुली मतदान पद्धति केवल राज्य सभा के निर्वाचन में ही अपनाई जाती है। प्रत्येक राजनैतिक दल, जिसके विधायकों के रूप में सदस्य हैं, यह पता लगाने के लिए अपना एक प्राधिकृत एजेंट नियुक्त कर सकते हैं कि उसके सदस्यों (विधायकों) ने किसको मत डाला है। प्राधिकृत एजेंट रिटर्निंग अधिकारी द्वारा मतदान केन्द्रों के भीतर उपलब्ध कराई गई सीटों पर बैठेगें। उन विधायकों, जो राजनैतिक दलों के सदस्य हैं, को अपने मतपत्र पर निशान लगाने के बाद और मत पेटी में डालने से पहले अपने-अपने दल के प्राधिकृत एजेंट को चिह्नित पत्र दिखाना आवश्यक होता है।
29) क्या किसी दल का प्राधिकृत एजेंट राज्य सभा के निर्वाचनों में अपने दल के साथ-साथ किसी अन्य दल का प्राधिकृत एजेंट भी हो सकता है ?
उत्तर : नहीं । निर्वाचन संचालन नियमावली 1961 के नियम 39एए की मूल भावना यह है कि किसी भी राजनैतिक दल के विधायक अपने मत पत्र (अपना मत डालने के बाद) केवल अपनी पार्टी के प्राधिकृत एजेंट को ही दिखाएंगे न कि अन्य दलों के प्राधिकृत एजेंटों को। अत:, एक ही एजेंट को एक से अधिक दल के प्राधिकृत एजेंट के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
30) यदि किसी राजनैतिक दल का निर्वाचक अपने दल के प्राधिकृत एजेंट को अपना चिह्नित मतपत्र दिखाने से मना करता है/नहीं दिखाता है अथवा किसी अन्य राजनैतिक दल के प्राधिकृत एजेंट को अपना चिह्नित मतपत्र दिखाता है तो पीठासीन अधिकारी/रिटर्निंग अधिकारी से राज्य सभा के निर्वाचन में कौन सी कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है?
उत्तर : ऐसी स्थिति में पीठासीन अधिकारी अथवा पीठासीन अधिकारी के निदेश के अंतगर्त मतदान अधिकारी उस निर्वाचक को जारी किया गया मतपत्र वापिस ले लेगा और उस मतपत्र के पिछले भाग पर ‘’रद्द - मतदान पद्धति का उल्लंघन’’ लिखने के बाद उसे एक अलग लिफाफे में रख देगा। ऐसे मामले में, निर्वाचन संचालन नियमावली, 1961के नियम 39ए के उप-नियम (6) से (8) के उपबंध लागू होंगे।
यदि ऐसे मतपत्र को वापिस लेने से पहले ही निर्वाचक उसे मत पेटी में डाल देता है तो ऐसे मतपत्रों की गणना के समय, रिटर्निंग अधिकारी को सर्वप्रथम उस मतपत्र को अलग कर देना चाहिए और उस मतपत्र की गणना नहीं की जाएगी।
31) क्या निर्दलीय विधायक अपना चिह्नित मतपत्र किसी अन्य दल के प्राधिकृत एजेंट को दिखा सकता है ?
उत्तर : नहीं । निर्दलीय विधायक के लिए यह अपेक्षित है कि वह अपना चिह्नित मतपत्र किसी एजेंट को दिखाए बिना मतपेटी में उाले।
32) क्या किसी विधायक अथवा मंत्री को राज्य सभा और विधायकों द्वारा राज्य विधान परिषदों के निर्वाचन में दल के प्राधिकृत एजेंट के रूप में नियुक्त किया जा सकता है ?
उत्तर : आयोग की ओर से राज्य सभा और विधायकों द्वारा राज्य विधान परिषद के निर्वाचनों में ऐसी कोई रोक नहीं है।
33) लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 152 के अंतर्गत रखी जाने वाली निर्वाचकों की सूची को क्या राज्य परिषदों के निर्वाचन की अधिसूचना की तिथि के पश्चात अथवा नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि के बाद भी राज्य विधान सभा के नव निर्वाचित सदस्य का नाम शामिल करने के लिए आशोधित किया जा सकता है ?
उत्तर : यदि किसी विधान सभा के ऐसे उप-निर्वाचन में कोई सदस्य निर्वाचित होता है, जिसका परिणाम राज्य सभा के निर्वाचन की अधिसूचना की तिथि के पश्चात् अथवा नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि के बाद घोषित किया गया हो, तो नवनिर्वाचति विधायक के नाम को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 152 के अंतर्गत रखी जा रही सदस्यों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, वह तब राज्य-सभा के निर्वाचन में मतदान का पात्र होगा, यदि मतदान उसके विधायक के रूप में निर्वाचित होने की तिथि के बाद होता है।
यह निदेश विधायकों द्वारा विधान परिषदों के निर्वाचनों के मामले में भी लागू होता है।
34) क्या ऐसा व्यक्ति किसी निर्वाचन में मतदान कर सकता है जो कारागार में बंद है, चाहे उसे कारावास का दंड दिया गया हो, अथवा उसका मामला सुनवाई के अधीन हो अथवा वह पुलिस की कानूनी हिरासत में हो?
उत्तर : नहीं। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के प्रावधानों में उपबंधित है कि कोई भी व्यक्ति किसी निर्वाचन में मतदान नहीं करेगा यदि वह कारावास में बंद है बेशक निर्वासन के दंडादेश के अधीन हो या अन्यथा पुलिस की विधिपूर्ण अभिरक्षा में है।
Edited by ECI