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राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में कार्यरत निर्वाचन अधिकारियों की सुरक्षा के संबंध में आयोग के निदेश–तत्संबंधी। 


इस फाइल के बारे में

सं. 154/2020
दिनांकः 15.01.2021

 

सेवा में,

  1. मंत्रिमंडल सचिव, भारत सरकार
  2. सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्य सचिव
  3. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार के सचिव
  4. सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी।

 

विषयः राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में कार्यरत निर्वाचन अधिकारियों की सुरक्षा के संबंध में आयोग के निदेश–तत्संबंधी। 

महोदय/महोदया, 

      देश में संसद और प्रत्येक राज्य की विधान सभा के सभी निर्वाचनों तथा राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों के संचालन की तथा निर्वाचक नामावलियों को तैयार करने के अधीक्षण, निदेश और नियंत्रण की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत निर्वाचन आयोग में निहित है। 

2.    आयोग लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 13क के अंतर्गत राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के परामर्श से, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के लिए मुख्य निर्वाचन अधिकारी नामित करता है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) आयोग के निर्वाचन संबंधी विविध कार्यों को करने के लिए राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में आयोग के अनिवार्य रूप से एक विस्तार की भांति है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी नियुक्त हो जाने पर, वह निर्वाचन आयोग के सीधे नियंत्रण, अधीक्षण और अनुशासन के अंतर्गत आ जाता है और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 13ग ग के अधीन तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 13क के अंतर्गत निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्ति पर रहता है। 

3.    आयोग उपरोक्त उद्देश्यों के लिए मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में अपर/संयुक्त/उप/सहायक मुख्य निर्वाचन अधिकारी और अन्य पदाधिकारियों सहित सहायक पदाधिकारियों को भी नियुक्त करता है जो उपरोक्त प्रावधानों के तहत आयोग में प्रतिनियुक्ति पर होते हैं। 

4.    आयोग ने निर्वाचनोत्तर अवधि में मुख्य निर्वाचन अधिकारियों, अतिरिक्त/संयुक्त/उप/सहायक मुख्य निर्वाचन अधिकारी के उत्पीड़न की कुछ घटनाओं को नोट किया है। कई बार राज्य सरकार में उनके पूर्ववर्ती कार्यकाल के लिए उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद सारहीन आधारों पर अनुशासनात्मक मामलों के आरोप लगाकर उन्हें राजनैतिक प्रतिशोध के लिए निशाना बनाया जाता है। यह जताने के लिए डर का माहौल बनाया जाता है कि ईमानदार, दृढ़ और सत्यनिष्ठ अधिकारियों से किसी भी समय आधारहीन आरोप लगाकर बदला लिया जा सकता है। 

5.    ऐसे परिदृश्य में ये अधिकारी न केवल हतोत्साहित हो जाते हैं, बल्कि उनका मनोबल भी बहुत गिर जाता है, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन सुनिश्चित करने के उनके प्रयास बुरी तरह प्रभावित होते हैं। यदि इस स्थिति पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तो एक ऐसी स्थिति बन जाएगी, जहां अधिकारीगण मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के लिए अनिच्छुक होंगे और जिन लोगों को नियुक्त किया जाएगा, वे निर्वाचन के बाद के चरण में निष्पक्ष व्यवहार की अनिश्चितता का सामना करेंगे। 

6.    निर्वाचन ड्यूटी पर किसी भी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले की भारत का माननीय उच्चतम न्यायालय लंबे अरसे से संवीक्षा कर रहा था। माननीय न्यायालय ने दिनांक 21.09.2000 के अपने आदेश द्वारा वर्ष 1993 की रिट याचिका (सि) सं. 606 (भारत निर्वाचन आयोग बनाम भारत संघ और अन्य) में यह अभिनिर्धारित किया कि निर्वाचन ड्यूटी पर अधिकारियों के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा न तो कोई कार्रवाई शुरू की जा सकती है और न ही सरकार चूककर्ता अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए इसकी सलाह पर कार्रवाई से इंकार कर सकती है। शीर्ष न्यायालय के निर्णय के परिणामस्वरूप, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने भी अपने दिनांक 07 नवंबर, 2000 के का. ज्ञा. सं. 11012/7/98-स्था.(क) के तहत निर्वाचन ड्यूटी हेतु प्रतिनियुक्त पदाधिकारियों पर निर्वाचन आयोग का अनुशासनात्मक नियंत्रण स्थापित करने के लिए तदनुसार अनुदेश जारी किए हैं। इसे  डीओपीटी के दिनांक 20 मार्च, 2008 के का.ज्ञा.सं. 11012(4)/2008-स्था.(क) और दिनांक 28 जुलाई, 2008 के का.ज्ञा. सं. 11012(4)/2008-स्था.(क) के तहत दोहराया और स्पष्ट किया गया है। 

7.    उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए, निर्वाचन आयोग का यह सुविचारित मत है कि प्रेरित उत्पीड़न से निर्वाचन अधिकारियों को सकारात्मक संरक्षण आवश्यक है, ताकि निर्वाचन अधिकारियों को स्वतंत्र, निष्पक्ष, तटस्थ और निर्भीक तरीके से निर्वाचकीय कार्यों को निष्पादित करने में सक्षम बनाया जा सके। तदनुसार, आयोग ने निम्नानुसार निदेशित किया हैः- 

(i) राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सरकारें मुख्य निर्वाचन अधिकारियों और संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी तक के अन्य अधिकारियों के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान और कार्यकाल की समाप्ति से एक वर्ष की अवधि तक किसी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई को शुरू करने से पहले निरपवाद रूप से आयोग का पूर्व-अनुमोदन लेंगी। 

(ii) राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सरकारें अपने कर्तव्यों के उचित निर्वहन के लिए सीईओ के कार्यालय को प्रदान की जाने वाली अन्य सुविधाएं जैसे वाहन; सुरक्षा और अन्य सुविधाएं/सहूलियतें कम नहीं करेंगी। 

8.    आयोग को पूरी उम्मीद है कि सभी संबंधित इस नियम का कड़ाईपूर्वक पालन करेंगे।

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eci-logo.pngभारत निर्वाचन आयोग एक स्‍वायत्‍त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में निर्वाचन प्रक्रियाओं के संचालन के लिए उत्‍तरदायी है। यह निकाय भारत में लोक सभा, राज्‍य सभा, राज्‍य विधान सभाओं और देश में राष्‍ट्रपति एवं उप-राष्‍ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है। निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्‍छेद 324 और बाद में अधिनियमित लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम के प्राधिकार के तहत कार्य करता है। 

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