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माननीय उच्च न्यायालय, मद्रास ने अनुपस्थित मतदाताओं के लिए ईसीआई की डाक मतपत्र की सुविधा का समर्थन किया 


इस फाइल के बारे में

सं.ईसीआई/प्रेस नोट/32/2021
दिनांक: 18 मार्च
, 2021

प्रेस नोट

माननीय उच्च न्यायालय, मद्रास ने अनुपस्थित मतदाताओं के लिए ईसीआई की डाक मतपत्र की सुविधा का समर्थन किया 

      माननीय उच्‍च न्‍यायालय, मद्रास ने दिनांक 17.03.2021 को 80 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्‍ठ नागरिकों, दिव्‍यांगजनों, कोविड-19 से प्रभावित/संदिग्‍ध और अनिवार्य सेवाओं में कार्यरत व्‍यक्तियों सहित अनुपस्थित मतदाताओं के लिए डाक मतपत्रों की सुविधा के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 60(ग) और तदनुरूपी नियमों की शक्ति को चुनौती देने वाली याचिका (वर्ष 2020) की रिट याचिका सं. 20027) को खारिज कर दिया। 

      माननीय मुख्‍य न्‍यायाधीश की अध्‍यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में अभिनिर्धारित किया कि: 

      ''56. यह स्‍वीकार किया जाना चाहिए कि निर्वाचन आयोग ने यहां जो कुछ भी किया है वह समावेशी है और कुछ ऐसे व्‍यक्तियों की श्रेणियों को अनुमति दी है जो डाक मतपत्र का उपयोग करने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करने और लोकतंत्र के उत्‍सव में भाग लेने से वंचित रह जाते हैं। एस. रघुवीर सिंह गिल प्रकरण के निर्णय में समझदार व्‍यक्तियों ने यह देखा है कि मतपत्र की गोपनीयता और निष्पक्ष निर्वाचनों का संचालन, एक दूसरे के पूरक हैं। कोई भी विनम्रपूर्ण यह कह सकता है कि यदि निर्वाचनों के संचालनों में मतपत्र की गोपनीयता या निष्‍पक्षता, दोनों के साथ समझौता किए बिना प्रक्रिया को समावेशी बनाया जाए, तो यह निर्वाचनों का संचालन करने वाले निकाय के लिए उत्सव मनाने और अभिनंदित होने का समुचित कारण होगा।''   

      न्‍यायालय ने डाक मतपत्र के द्वारा अपना मत डालने के लिए 1961 के नियमों द्वारा प्रतिबद्ध व्‍यक्तियों की श्रेणी में कोई मनमानी नहीं पाई। इसने अभिनिर्धारित किया कि:

''60. इसी प्रकार, डाक मतपत्र द्वारा अपना मत डालने के लिए 1961 के नियमों द्वारा अनुमत व्‍यक्तियों की श्रेणी में भी कोई मनमानी नजर नहीं आती है। इस विचार से ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे कौन से व्‍यक्ति हैं जो किसी मतदान केंद्र में शारीरिक रूप से उपस्थित होकर अपना मतदान नहीं कर सकते। यदि इस तरह का विचार है तो वर्ष 2019 और 2020 के संशोधनों द्वारा परिकलित व्‍यक्तियों की श्रेणियों में कोई मनमानी नहीं है, विशेषकर इसका उद्देश्‍य यह लगता है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए व्‍यक्तियों की ऐसी श्रेणियों को उनका मूल अधिकार दिया जाए।''  

      माननीय न्‍यायालय ने टिप्पणी की कि यह निर्वाचनों में सहजता व सुविधा के लिए दिशा-निर्देश जारी करने हेतु आयोग की पूर्ण शक्तियों के दायरे में आता हैं: 

''62. अंत में, याचिकाकर्ता के इस तर्क कि निर्वाचन आयोग के पास दिशा-निर्देश जारी करने का कोई अधिकार नहीं है, को उस पूर्ण प्राधिकार के आलोक में त्यक्त कर देना चाहिए, जिसे संविधान के अनुच्‍छेद 324 द्वारा ऐसे आयोग को प्रदान किया गया प्रतीत होता है। इसके आलावा, ए.सी. जोस प्रकरण में उच्‍चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग के प्राधिकार को यह मान्‍यता दी थी कि यदि निर्वाचनों के संचालन के संबंध में कोई संसदीय विधान या उक्‍त विधान के अधीन कोई नियम न बना हो, तो वह कोई भी आदेश पारित कर सकता है। ऐसा प्राधिकार तब भी देखा गया था जब ''अनुच्‍छेद 324 द्वारा यथाअनुबंधित अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण संबंधी मामलों में...... विधि की...... अनुपूरकता के लिए................." आयोग के लिए बनाए गए नियमों में कोई स्पष्ट उपबंध नहीं किया गया था।'' इसके अतिरिक्‍त, इस निर्णय में स्‍वीकार किया गया कि ''निर्वाचनों के संचालन..........के संबंध में कोई निर्देश देने के लिए" आयोग को पूर्ण शक्तियां हैं।  

      आयोग ने वर्ष 2019 के झारखंड निर्वाचनों से इनमें से कुछ श्रेणियों के लिए वैकल्पिक डाक मतपत्र की शुरूआत की थी। वर्ष 2020 में बिहार के साधारण निर्वाचनों में, इन सभी श्रेणियों के लिए डाक मतपत्र के विकल्‍प की सुविधा दी गयी थी, जिसका 52,000 से अधिक निर्वाचकों द्वारा प्रयोग किया गया था। मौजूदा निर्वाचनों और उप-निर्वाचनों में आयोग ने पहले से ही निर्वाचकों की ऐसी श्रेणियों के लिए डाक मतपत्र विकल्‍पों की सुविधा के लिए विस्‍तृत दिशा-निर्देश निर्धारित कर दिए हैं ताकि ''कोई मतदाता न छूटे'' के अपने आदर्श वाक्‍य की तर्ज पर निर्वाचनों को अधिक समावेशी बनाया जा सके।  

      इस सुविधा को प्रदान करने के पीछे भावना यह है कि जो मतदाता 80 वर्ष से अधिक आयु के हैं या दिव्‍यांग हैं और जिन्‍हें चलने-फिरने में समस्‍या है तथा दुर्बलता के कारण मतदान केंद्र तक नहीं आ सकते हैं, उन्‍हें घर बैठे डाक मतपत्र के माध्‍यम से मतदान करने की सुविधा प्रदान की जाए। इस सुविधा से बड़ी संख्‍या में ऐसे मतदाताओं को लाभ मिला है। यह उल्‍लेख करना भी उचित है कि आयोग ने मतदान केंद्रों को दिव्‍यांग मतदाताओं या वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए पूरी तरह से सुलभ बनाया है। यहां तक कि अब दिव्‍यांग मतदाताओं अथवा वरिष्‍ठ नागरिकों को नि:शुल्‍क परिवहन सुविधा भी प्रदान की जाती है।

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eci-logo.pngभारत निर्वाचन आयोग एक स्‍वायत्‍त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में निर्वाचन प्रक्रियाओं के संचालन के लिए उत्‍तरदायी है। यह निकाय भारत में लोक सभा, राज्‍य सभा, राज्‍य विधान सभाओं और देश में राष्‍ट्रपति एवं उप-राष्‍ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है। निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्‍छेद 324 और बाद में अधिनियमित लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम के प्राधिकार के तहत कार्य करता है। 

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