भारत निर्वाचन आयोग
राजनैतिक दलों और अभ्यर्थियों के मार्गदर्शन के लिए आदर्श आचार संहिता
I. सामान्य आचरण
1. कोई दल या अभ्यर्थी ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो भिन्न-भिन्न जातियों और समुदायों, चाहे वे धार्मिक या भाषायी हों, के बीच विद्यमान मतभेद को और अधिक बिगाड़े या परस्पर घृणा उत्पन्न करे या उनके बीच तनाव कारित करे।
2. जब राजनैतिक दलों की आलोचना की जाए, तो उसे उनकी नीतियों और कार्यक्रम, विगत रिकॉर्ड और कार्य तक ही सीमित रखा जाएगा। दल और अभ्यर्थी दूसरे दलों के नेताओं या कार्यकर्ताओं की निजी जिंदगी के ऐसे सभी पहलुओं की आलोचना करने से विरत रहेंगे जो उनकी सार्वजनिक गतिविधियों से नहीं जुड़ी हुई हैं। असत्यापित आरोपों या विकृति के आधार पर दूसरे दलों या उनके कार्यकर्ताओं की आलोचना करने से बचना होगा।
3. वोट हासिल करने के लिए जाति या संप्रदाय की भावनाओं के आधार पर कोई अपील नहीं की जाएगी। मस्जिदों, चर्चों, मंदिरों और पूजा के अन्य स्थानों का चुनाव प्रचार के मंच के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
4. सभी दल और अभ्यर्थी ऐसी सभी गतिविधियों से ईमानदारीपूर्वक परहेज करेंगे जो निर्वाचन विधि के अधीन "भ्रष्ट आचरण" एवं अपराध हैं जैसे कि मतदाताओं को घूस देना, मतदाताओं को डराना-धमकाना, मतदाताओं का प्रतिरूपण करना, मतदान केंद्रों से 100 मीटर की दूरी के भीतर प्रचार करना, मतदान समाप्त होने के लिए नियत घंटे के साथ समाप्त होने वाले 48 घंटों की अवधि के दौरान सार्वजनिक बैठकें आयोजित करना, और मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक ले जाने और वापस लाने के लिए परिवहन और वाहन की व्यवस्था करना ।
5. शांतिपूर्ण और बेफ़िक्र गृह (पारिवारिक) जीवन के प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार का सम्मान किया जाएगा, फिर चाहे राजनीतिक दल और अभ्यर्थी उसके राजनीतिक अभिमत या गतिविधियों को कितना भी नापसंद क्यों न करते हों। लोगों के अभिमत या गतिविधियों के प्रति विरोध जतलाने के लिए उनके घरों के सामने किसी भी परिस्थिति में न तो प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा और न ही धरना दिया जाएगा।
6. कोई भी राजनैतिक दल या अभ्यर्थी अपने अनुयायियों को किसी भी व्यक्ति की अनुमति के बिना उसकी भूमि, भवन, परिसर की दीवारों इत्यादि पर झंडा लगाने, बैनर लटकाने, सूचना चिपकाने, नारा लिखने इत्यादि की अनुमति नहीं देगा।
7. राजनैतिक दल और अभ्यर्थी यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके समर्थक दूसरे दलों द्वारा आयोजित बैठकों और जुलूसों में न तो बाधा खड़ी करें और न ही उन्हें भंग करें। एक राजनैतिक दल के कार्यकर्ता या हमदर्द राजनैतिक दल द्वारा आयोजित सार्वजनिक बैठकों में मौखिक या लिखित रूप में प्रश्न पूछकर या अपनी स्वयं की पार्टी के पर्चे बांटकर अव्यवस्था उत्पन्न नहीं करेंगे। एक दल द्वारा उन स्थानों के आसपास जुलूस न निकाला जाएगा जहां दूसरे दल द्वारा बैठकें आयोजित की गई हों। एक दल के द्वारा लगाए गए पोस्टर दूसरे दल के कार्यकर्ताओं द्वारा नहीं हटाए जाएंगे।
II. बैठक (सभा)
III. जलूस
IV. मतदान के दिन
सभी राजनीतिक दल और अभ्यर्थी-
V. मतदान बूथ
मतदाताओं को छोड़कर, ऐसा कोई व्यक्ति मतदान बूथ के भीतर प्रवेश नहीं करेगा जिसके पास निर्वाचन आयोग का कोई मान्य पास नहीं है।
VI. प्रेक्षक
निर्वाचन आयोग प्रेक्षक नियुक्त करता है। यदि अभ्यर्थियों या उनके अभिकर्ताओं को निर्वाचनों के संचालन के संबंध में कोई विशेष शिकायत या समस्या है, तो वे उसे प्रेक्षक के ध्यान में ला सकते हैं।
VII. सत्ताधारी दल
सत्ताधारी दल, चाहे वे केन्द्र में या संबंधित राज्य या राज्यों में हों यह सुनिश्चित करेगा कि इस बात के लिए कोई शिकायत का मौका न दिया जाए कि उन्होंने अपने निर्वाचन अभियान के प्रयोजनार्थ अपनी आधिकारिक स्थिति का उपयोग किया है और विशेष रूप से –
(ख) सत्ताधारी दल के हित को बढ़ावा देने के लिए सरकारी विमानों, वाहनों, मशीनरी और कार्मिक सहित सरकारी परिवहन का उपयोग नहीं करेंगे;
(क) किसी भी रूप में कोई भी वित्तीय अनुदान या उसे दिए जाने के वादे की घोषणा नहीं करेंगे; या
(ख) (लोक सेवकों के सिवाय) किसी भी प्रकार की परियोजनाओं या योजनाओं का शिलान्यास इत्यादि नहीं करेंगे; या
(ग) सड़क निर्माण, पेय जल सुविधाओं की व्यवस्था इत्यादि का कोई वादा नहीं करेंगे; या
(घ) सरकारी, लोक उपक्रमों इत्यादि में कोई भी ऐसी तदर्थ नियुक्तियां नहीं करेंगे जिसका मतदाताओं को सत्ताधारी दल के पक्ष में प्रभावित करने का असर पड़ता हो।
नोट : आयोग किसी भी निर्वाचन की तारीख घोषित करेगा, वह तारीख होगी जो सामान्यतया उस तारीख से तीन सप्ताह से अधिक पहले नहीं होगी जब ऐसे निर्वाचनों के संबंध में अधिसूचना जारी किए जाने की संभावना हो।
VIII. निर्वाचन घोषणा पत्र पर दिशानिर्देश
(i) "हालांकि, कानून स्पष्ट है कि चुनावी घोषणा पत्र लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के अंतर्गत 'भ्रष्ट आचरण' नहीं माने जा सकते, फिर भी, इस वास्तविकता से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी भी रूप में मुफ्त वस्तुओं आदि के वितरण से, नि:संदेह सभी लोग प्रभावित होते हैं। यह काफी हद तक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचनों की बुनियाद को अस्त-व्यस्त कर देता है।"
(ii) "चुनावों में चुनाव लड़ने वाले दलों और अभ्यर्थियों को एक समान अवसर उपलब्ध कराए जाने का सुनिश्चय करने के लिए और यह देखने के लिए कि भी निर्वाचन प्रक्रिया की शुचिता दूषित न हो जाए, निर्वाचन आयोग पहले भी आदर्श आचार संहिता के अधीन अनुदेश जारी करता रहा है। शक्तियों का वह स्रोत जिसके अधीन आयोग ये आदेश जारी करता है, वह संविधान का अनुच्छेद 324 है जो आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन आयोजित करने का अधिदेश देता है।"
(iii) "हम इस तथ्य के प्रति सचेत हैं कि सामान्यतया राजनीतिक दल निर्वाचन की तारीख की घोषणा से पहले अपना निर्वाचन घोषणा पत्र जारी कर देते हैं, उस स्थिति में, साफ-साफ शब्दों में कहा जाए तो निर्वाचन आयोग के पास ऐसे किसी कृत्य को विनियमित करने का प्राधिकार नहीं होगा जो निर्वाचन की तारीख की घोषणा से पूर्व की गई हो। तो भी, इस संबंध में अपवादस्वरुप कार्य किया जा सकता है क्योंकि चुनावी घोषणा पत्र का प्रयोजन निर्वाचन प्रक्रिया से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है।"
परामर्श के दौरान, जबकि कुछ राजनीतिक दल ऐसे दिशानिर्देश जारी किए जाने के समर्थन में थे, वही दूसरे दलों की राय यह थी कि एक स्वस्थ लोकतांत्रिक राज-व्यवस्था में घोषणा पत्रों में ऐसे ऑफर देना और वादे करना मतदाताओं के प्रति उनका अधिकार और कर्तव्य है। जबकि आयोग इस दृष्टिकोण से सिद्धांतत: सहमत है कि घोषणा पत्र तैयार करना राजनीतिक दलों का अधिकार है, फिर भी यह स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचनों के संचालन और सभी राजनीतिक दलों और अभ्यर्थियों के लिए एक समान अवसर उपलब्ध कराने पर कुछ वादों और ऑफरों के अवांछनीय प्रभाव की उपेक्षा नहीं कर सकता है।
(i) निर्वाचन घोषणा पत्र में संविधान में प्रतिष्ठापित आदर्शों और सिद्धांतों के प्रतिकुल कुछ भी अंतर्विष्ट नहीं होगा और यह भी कि यह आदर्श आचार संहिता के अन्य उपबंधों की मूल भावना के साथ सुसंगत होगा।
(ii) संविधान में प्रतिष्ठापित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत राज्य को इस बात का निर्देश देते हैं कि वह नागरिकों के लिए विभिन्न प्रकार के कल्याणकारी उपाय करे और इसलिए, निर्वाचन घोषणा पत्रों में ऐसे कल्याणकारी उपायों के वादे के प्रति कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। हालांकि, राजनीतिक दलों को वैसे वादे करने से परहेज करना चाहिए जिनसे निर्वाचन प्रक्रिया की शुचिता दूषित होने की संभावना हो और न ही अपने मताधिकार का प्रयोग करने में मतदाताओं पर अनुचित प्रभाव डालना चाहिए।
(iii) पारदर्शिता, सभी को एकसमान अवसर उपलब्ध कराने के सिद्धांत और वादों की विश्वसनीयता के हित में, यह अपेक्षा की जाती है कि घोषणा पत्र वादों के तर्काधार को भी प्रतिबिंबित करे और मोटे तौर पर उसके लिए वित्तीय जरूरतों को पूरी करने के अर्थोपायों को इंगित करे। केवल उन्हीं वादों पर मतदाताओं का भरोसा मांगा जाना चाहिए जिन्हें पूरा किया जाना संभव हो।
(i) एकल चरण निर्वाचन की दशा में, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 के अंतर्गत यथा-विहित निषेधात्मक अवधि के दौरान घोषणा पत्र जारी नहीं किया जाएगा।
(ii) बहु-चरणीय निर्वाचनों की दशा में, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 के अंतर्गत उन निर्वाचनों के सभी चरणों की यथा-विहित निषेधात्मक अवधियों के दौरान घोषणा पत्र जारी नहीं किया जाएगा।
भारत निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में निर्वाचन प्रक्रियाओं के संचालन के लिए उत्तरदायी है। यह निकाय भारत में लोक सभा, राज्य सभा, राज्य विधान सभाओं और देश में राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है। निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 और बाद में अधिनियमित लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्राधिकार के तहत कार्य करता है।
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