भारत के संविधान के तहत, भारत का एक राष्ट्रपति (संविधान का अनुच्छेद 52 देखें) सदैव होगा। वह देश में सर्वोच्च निर्वाचित पद धारण करता है एवं संविधान के उपबंधों और राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 के अनुसार निर्वाचित किया जाता है। उक्त अधिनियम को राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 के उपबंधों द्वारा संपूरित किया गया है, एवं और नियमों के अधीन उक्त अधिनियम राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन के आयोजन के सभी पहलुओं को विनियमित करने वाला एक संपूर्ण नियमसंग्रह का निर्माण करता है। राष्ट्रपति उस तिथि से (5) पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करता है, जिस दिन वह अपना पद ग्रहण करता है एवं तदनुसार, 24 जुलाई 2017 को भारत के पदस्थ राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी की पदावधि के अवसान से पूर्व नए राष्ट्रपति का निर्वाचन इस वर्ष (2017) आयोजित किया जाना है।
उक्त निर्वाचन के संदर्भ में, कुछ प्रश्न, जिन्हें अकसर पूछा जा सकता है (अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न) तथा किसी भी संदेह और भ्रम, जो इच्छुक अभ्यर्थियों, निर्वाचकों और साधारण जनता के मन में उत्पन्न हो सकते हैं, के निराकरण हेतु उनके उत्तर नीचे दिए गए हैं :-
1. भारत के राष्ट्रपति का चयन कौन करता है?
उ० राष्ट्रपति का चयन एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य एवं राज्यों की विधान सभाओं एवं साथ ही राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली क्षेत्र तथा संघ शासित क्षेत्र, पुदुचेरी के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं। [भारत के संविधान का अनुच्छेद 54]
2. राष्ट्रपति के पद की अवधि क्या है?
उ० राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने की तिथि से 5 (पाँच) वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करता है। तथापि, अपनी पदावधि के अवसान के पश्चात् भी वह अपने पद पर तब तक बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी उसका पद ग्रहण नहीं कर लेता है। [भारत के संविधान का अनुच्छेद 56]
3. भारत के राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन कब होता है?
उ० राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 4 की उप-धारा (3) के उपबंधों के अधीन, निर्गामी राष्ट्रपति की पदावधि के अवसान से पहले, साठ दिन की अवधि में किसी दिन आयोग द्वारा निर्वाचन आयोजित किए जाने की अधिसूचना जारी की जा सकती है। निर्वाचन कार्यक्रम इस प्रकार नियत किया जाएगा कि निर्गामी राष्ट्रपति की पदावधि समाप्ति के अगले ही दिन निर्वाचित राष्ट्रपति पद ग्रहण करने में सक्षम हों।
4. भारत के राष्ट्रपतीय निर्वाचन कौन आयोजित कराता है?
उ० भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन कराने का अधिकार भारत निर्वाचन आयोग में निहित है।
5. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन हेतु कौन-सी निर्वाचन प्रणाली / प्रक्रिया अपनाई जाती है?
उ० भारत के संविधान के अनुच्छेद 55 (3) के अनुसार, राष्ट्रपतीय निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुरूप किया जाएगा और ऐसे निर्वाचन में गोपनीय मतपत्रों द्वारा मतदान किया जाएगा।
6. भारत के राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन लड़ने के लिए किसी अभ्यर्थी की क्या-क्या योग्यताएं आवश्यक हैं?
उ० अनुच्छेद 58 के अंतर्गत एक अभ्यर्थी को राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन लड़ने के लिए निम्नलिखित आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए :-
भारत का नागरिक होना चाहिए।
पैंतीस (35) वर्ष की आयु पूर्ण होनी चाहिए।
लोक सभा का सदस्य होने के लिए अर्हित होना चाहिए।
भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन या किसी भी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण के अधीन, उक्त किसी भी सरकार के नियंत्रणाधीन किसी भी लाभ का पदधारी नहीं होना चाहिए।
तथापि, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का पदधारी या किसी भी राज्य के राज्यपाल का पदधारी या केन्द्र या राज्य मंत्री का पदधारी अभ्यर्थी हो सकता है, एवं निर्वाचन लड़ने का पात्र होगा।
7. उपर्युक्त के अलावा, नामनिर्देशन के विधिमान्य होने हेतु अभ्यर्थी द्वारा पूरी की जाने वाली अन्य शर्तें क्या हैं?
उ० निर्धारित प्रपत्र में निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी का नामनिर्देशन पत्र (राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 में संलग्न प्रपत्र 2), जिसे कम से कम पचास निर्वाचकों द्वारा प्रस्तावकों के रूप में तथा कम से कम पचास निर्वाचकों द्वारा अनुमोदकों के रूप में समर्थित होना चाहिए। सर्वथा पूर्ण नामनिर्देशन पत्र, निर्वाचन आयोग द्वारा इस प्रयोजन के लिए नियुक्त रिटर्निंग अधिकारी को किसी भी दिन में पूर्वाह्न 11 बजे से अपराह्न 3 बजे तक, सार्वजनिक अवकाश के अलावा, या तो अभ्यर्थी द्वारा स्वयं या उसके प्रस्तावकों या अनुमोदकों में से किसी के भी द्वारा प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यहां ‘निर्वाचकों’ से आशय निर्वाचित सांसदों और निर्वाचित विधायकों से है, जो राष्ट्रपति निर्वाचन के लिए निर्वाचक हैं।
निर्वाचन के लिए 15,000/-₹ का प्रतिभूति निक्षेप भी या तो रिटर्निंग अधिकारी को नकद में जमा कराया जाना चाहिए या नामनिर्देशन पत्र के साथ ऐसी रसीद संलग्न करनी चाहिए जो दर्शित करती हो कि अभ्यर्थी द्वारा या उसकी ओर से यह राशि भारतीय रिज़र्व बैंक या सरकारी खजाने में जमा करा दी गई है।
अभ्यर्थी को उस संसदीय निर्वाचन क्षेत्र जिसमें वह एक निर्वाचक के रूप में पंजीकृत है, की वर्तमान निर्वाचक नामावली में उसके नाम को दर्शित करती हुई प्रविष्टि की प्रमाणित प्रतिलिपि भी प्रस्तुत करना आवश्यक है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 5ख और 5ग देखें]
8. भारत के राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन हेतु किसे रिटर्निंग अधिकारी / सहायक रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त किया जाता है? ऐसी नियुक्तियां किसके द्वारा की जाती हैं?
उ० परंपरानुसार; महासचिव, लोक सभा या महासचिव, राज्य सभा को चक्रानुक्रम में रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है। लोक सभा / राज्य सभा सचिवालय के दो वरिष्ठ अधिकारी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ शासित क्षेत्र पुडुचेरी सहित विधान सभाओं के सचिवों और एक और वरिष्ठ अधिकारी को भी सहायक रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है। भारत निर्वाचन आयोग ऐसी नियुक्तियां करता है। {राष्ट्रपतीय निर्वाचन-2017 हेतु, राज्य सभा के महासचिव को रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है}
9. क्या एक अभ्यर्थी एक से अधिक नामनिर्देशन प्रस्तुत कर सकता है? ऐसे अभ्यर्थी द्वारा किया जाने वाला प्रतिभूति निक्षेप कितना होगा?
उ० हाँ। एक अभ्यर्थी अधिकतम चार नामनिर्देशन पत्र प्रस्तुत कर सकता है। तथापि, इस संबंध में उसे केवल एक ही प्रतिभूति निक्षेप किए जाने की आवश्यकता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 5ख(6) और 5ग देखें]
10. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में एक निर्वाचक एक से अधिक अभ्यर्थियों का प्रस्ताव या अनुमोदन कर सकता है?
उ० नहीं। राष्ट्रपतीय निर्वाचन में एक निर्वाचक केवल एक ही अभ्यर्थी के नाम का प्रस्ताव या अनुमोदन कर सकता है। यदि वह एक से अधिक अभ्यर्थियों के नामनिर्देशनों को प्रस्तावक या अनुमोदक के रूप में समर्थित करता है, तो उसका हस्ताक्षर केवल उस नामनिर्देशन हेतु प्रभावी माना जाएगा, जो रिटर्निंग अधिकारी को सर्वप्रथम प्रदत्त किया गया था। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 5ख(5) देखें]
11. अभ्यर्थियों द्वारा दाखिल नामनिर्देशन पत्रों की संवीक्षा कौन करता है तथा ऐसी संवीक्षा के दौरान कौन उपस्थित रह सकता है?
उ० रिटर्निंग अधिकारी को प्राप्त सभी नामनिर्देशन पत्रों की संवीक्षा, इस प्रयोजन हेतु निर्वाचन आयोग द्वारा निर्दिष्ट अवधि के दौरान, स्वयं रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निर्वाचन आयोग द्वारा नियत तिथि पर राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 4 की उप-धारा (1) के अधीन की जाती है। ऐसी संवीक्षा के दौरान, अभ्यर्थीगण, प्रत्येक अभ्यर्थी का एक प्रस्तावक अथवा एक अनुमोदक एवं प्रत्येक अभ्यर्थी द्वारा विधिवत लिखित में एक अन्य प्राधिकृत व्यक्ति उपस्थित रहने के पात्र होंगे, एवं उन्हें अभ्यर्थियों के नामनिर्देशन पत्रों की छानबीन करने और उन नामनिर्देशन पत्रों के संबंध में आपत्तियां उठाने के लिए सभी उचित सुविधाएं दी जाएंगी।
12. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में किसी अभ्यर्थी के नामनिर्देशन को खारिज किए जाने के आधार क्या हैं?
उ० किसी नामनिर्देशन को राष्ट्रपतीय और राष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम 1952 की धारा 5(ड़) के अधीन निम्नलिखित आधारों पर खारिज किया जा सकता है :-
नामनिर्देशन की संवीक्षा की तिथि में, अभ्यर्थी संविधान के तहत राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन के लिए पात्र नहीं हैं; अथवा
यदि कोई प्रस्तावक या अनुमोदक नामनिर्देशन पत्र को समर्थित करने हेतु पात्र नहीं है, अर्थात वह निर्वाचन में एक निर्वाचक नहीं है; अथवा
यदि यह अपेक्षित प्रस्तावकों और/या अनुमोदकों द्वारा समर्थित नहीं है; अथवा
यदि अभ्यर्थी या किसी भी प्रस्तावक या अनुमोदक के हस्ताक्षर वास्तविक नहीं हैं या धोखाधड़ी द्वारा प्राप्त किया गया है; अथवा
यदि नामनिर्देशन पत्र अभ्यर्थी द्वारा स्वयं अथवा उसके प्रस्तावकों या अनुमोदकों में से किसी एक के द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जाता है या इसे रिटर्निंग अधिकारी को इस प्रयोजन हेतु निर्धारित तिथि एवं समय में या इस हेतु नियत स्थान पर प्रदत्त नहीं किया गया है, या अभ्यर्थी निर्धारित रीति से प्रतिभूति निक्षेप कर पाने में विफल रहा है।
तथापि, एक अभ्यर्थी का नामनिर्देशन खारिज नहीं किया जाएगा, यदि उसने नामनिर्देशन पत्रों का एक और सेट प्रस्तुत किया है, जो बिना किसी अनियमितता या दोष के हैं। किसी अभ्यर्थी के नामनिर्देशन को किसी भी दोष के आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा जो सारभूत प्रकृति का नहीं है।
13. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन हेतु मतदान कहाँ किया जाता है ?
उ० नई दिल्ली में संसद भवन में एक कक्ष तथा एक कक्ष प्रत्येक राज्य; राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली एवं संघ शासित प्रदेश, पुदुचेरी सहित, के सचिवालय भवनों में, आमतौर पर मतदान स्थल के रूप में निर्वाचन आयोग द्वारा नियत किए जाते हैं। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 7 देखें]
14. क्या निर्वाचक उनके मतदान करने का स्थल चुन सकते हैं?
उ० हाँ। जबकि, आमतौर पर सांसद सदस्य नई दिल्ली में मतदान करते हैं एवं राज्य विधान सभाओं के सदस्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली और संघ शासित प्रदेश, पुदुचेरी की विधान सभाओं के सदस्यों सहित, प्रत्येक राज्य / संघ शासित प्रदेश की राजधानी में नियत स्थल पर मतदान करते हैं। राज्य की राजधानी में मतदान करने के लिए किसी भी सांसद हेतु निर्वाचन आयोग द्वारा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं एवं इसी तरह, कोई विधायक, संसद भवन में स्थापित मतदान केंद्र पर मतदान कर सकता है, अगर वह मतदान की तिथि पर दिल्ली में होता है। तथापि, सांसद या विधायक, जो नियत स्थल के अलावा ऐसे स्थल पर मतदान करने का विकल्प चुनते हैं जहां सदस्य को मतदान देने के लिए अभिहित किया गया है, उन्हें आयोग को विधिवत अग्रिम रूप से (दस दिन पूर्व) सूचित करना आवश्यक है। अपवादात्मक परिस्थितियों में, सांसदों और विधायकों को अन्य राज्यों की राजधानी में भी मतदान करने की अनुमति आयोग द्वारा दी जा सकती है।
15. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन में प्रयुक्त मतपत्रो का रंग और स्वरूप क्या होता है?
उ० निर्वाचन आयोग ने निर्देशित किया है कि मतपत्रों को दो (2) रंगों में, संसद सदस्यों द्वारा उपयोग के लिए हरे रंग में तथा राज्य विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा उपयोग के लिए गुलाबी रंग में मुद्रित किया जाएगा। मतपत्र दो कॉलम के साथ मुद्रित किए जाते हैं – पहले कॉलम में अभ्यर्थियों के नाम होते हैं और, दूसरा कॉलम ऐसे प्रत्येक अभ्यर्थी के लिए निर्वाचक द्वारा अधिमान देने के लिए होता है। सांसदों द्वारा उपयोग करने हेतु मतपत्र हिंदी और अंग्रेज़ी में मुद्रित किए जाते हैं एवं संबंधित राज्य के विधायकों द्वारा उपयोग के लिए राज्य की आधिकारिक भाषा(ओं) तथा अंग्रेज़ी में मुद्रित किए जाते हैं। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 10 देखें]
16. क्या प्रत्येक मतदाता के मत का मूल्य समान है?
उ० नहीं। विधायकों के मतों का मूल्य राज्यवार भिन्न-भिन्न होगा, क्योंकि इस तरह के प्रत्येक मत के मूल्य का परिकलन नीचे समझाई गई प्रक्रिया के अनुसार होता है। तथापि, सभी सांसदों के वोटों का मूल्य समान है।
17. निर्वाचक मंडल के सदस्यों के मतों के मूल्य का परिकलन कैसे किया जाता है?
उ० निर्वाचकों के मतों का मूल्य, मूलतः संविधान के अनुच्छेद 55 (2) में निर्धारित रीति से राज्यों की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित होता है। संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 उपबंधित करता है कि जब तक वर्ष 2026 के बाद की जाने वाली पहली जनगणना की जनसंख्या का आंकड़ा प्रकाशित नहीं किया जाता है, राष्ट्रपतीय निर्वाचन हेतु मतों के मूल्य के परिकलन के प्रयोजनों के लिए राज्यों की जनसंख्या का अर्थ, वर्ष 1971 की जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या होगा। निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक सदस्य के मत के मूल्य का परिकलन, राज्य की जनसंख्या (1971 की जनगणना के अनुसार) को विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से विभाजित कर किया जाता है, और उसके पश्चात् भागफल को 1000 से विभाजित करते हैं। विभाजन करने पर यदि शेष, 500 या इससे अधिक होता है, तो मूल्य '1' से बढ़ जाता है। प्रत्येक राज्य विधानसभा के सभी सदस्यों के मतों के कुल मूल्य का परिकलन, विधान सभा की निर्वाचित सीटों की संख्या को, संबंधित राज्य के प्रत्येक सदस्य के लिए मतों की संख्या से गुणित कर किया जाता है। सभी राज्यों के मतों का कुल मूल्य, प्रत्येक राज्य के संबंध में ऊपर दिए गए अनुसार परिकलित किया जाता है और प्रत्येक संसद सदस्य के मतों का मूल्य प्राप्त करने के लिए, एक साथ जोड़कर संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से विभाजित कर दिया जाता है (लोकसभा 543 + राज्यसभा 233)। संविधान के अनुच्छेद 55 (2) के अनुसार विधायकों और सांसदों के वोटों का मूल्य नीचे* दिया गया है। (परिशिष्ट)
18. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन में मतों को अभिलेखित करने की रीति / प्रक्रिया क्या है?
उ० एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार, प्रत्येक निर्वाचक उतने ही अधिमानों को चिह्नित कर सकते हैं, जितने कि अभ्यर्थी निर्वाचन लड़ रहे हैं। अभ्यर्थियों हेतु यह अधिमान, निर्वाचक द्वारा 1,2,3,4,5 और इसी प्रकार, अभ्यर्थियों के नाम के समक्ष, उनके अधिमान-क्रम में, मतपत्र के कॉलम-2 में दिए गए स्थान पर चिह्नित किया जाना है। अधिमान को भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप में या किसी भी भारतीय भाषा या रोमन रूप में इंगित किया जा सकता है लेकिन अधिमान को शब्दों में, जैसे 'एक', 'दो', 'प्रथम अधिमान, ‘दूसरा अधिमान’, इत्यादि जैसे शब्दों में उपदर्शित नहीं किया जा सकता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 17 देखें]
19. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में किसी निर्वाचक को सभी अभ्यर्थियों के लिए अधिमान चिह्नित करना आवश्यक है?
उ० नहीं। मतपत्र के विधिमान्य होने के लिए केवल प्रथम अधिमान को चिह्नित करना अनिवार्य है। अन्य अधिमानों को चिह्नित करना वैकल्पिक है।
20. क्या दल-बदल विरोधी क़ानून के उपबंध राष्ट्रपतीय निर्वाचन में लागू होते हैं?
उ० नहीं। निर्वाचक मंडल के सदस्य अपनी रुचि / इच्छा के अनुसार मत डाल सकते हैं एवं किसी भी दल की सचेतिका द्वारा बाध्य नहीं है। मतदान गोपनीय मतपत्र द्वारा होता है। इसलिए, इस निर्वाचन में पार्टी सचेतिका लागू नहीं होती है।
21. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में मतदान करने हेतु संसद के दोनों सदनों के या किसी राज्य की विधान सभा के मनोनीत सदस्य पात्र हैं?
उ० नहीं। केवल संसद के दोनों सदनों और राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल के सदस्य हैं। इसलिए, मनोनीत सदस्य इस निर्वाचन में मतदान नहीं कर सकते हैं। [संविधान का अनुच्छेद 54 देखें]
22. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में कोई निर्वाचक परोक्षी द्वारा अपना मत डाल सकता है?
उ० नहीं।
23. क्या नोटा का प्रावधान लागू होता है?
उ० नहीं।
24. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में एक नि:शक्त या निरक्षर निर्वाचक एक साथी की मदद से अपना वोट अभिलेखित कर सकता है?
उ० नहीं। संसदीय और विधानसभा निर्वाचनों के विपरीत, एक निर्वाचक किसी साथी की सहायता नहीं ले सकता है। वह अपने मत को अभिलेखित करने के लिए पीठासीन अधिकारी की सहायता ले सकता है, यदि वह अन्धेपन या कोई भी शारीरिक या अन्य विकलांगता के कारण अपना मत अभिलेखित करने में असमर्थ है। निर्वाचक की इच्छा के अनुसार मत अभिलेखित करने एवं इसे गोपनीय रखने के लिए पीठासीन अधिकारी नियम के अधीन बाध्य है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 19 देखें]
25. राष्ट्रपतीय निर्वाचन की अवधि के दौरान निवारक निरोध के अधीन कोई निर्वाचक मतदान कैसे कर सकता है?
उ० निवारक निरोध के अधीन एक निर्वाचक डाक मतपत्र के माध्यम से अपना मत दे सकता है, जो उसे निर्वाचन आयोग द्वारा उसे निरुद्ध किए जाने के स्थान पर प्रेषित किया जाएगा। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 26 देखें]
26. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में विजयी अभ्यर्थी, साधारण बहुमत के आधार पर निर्वाचित होता है? या मतों का एक निर्धारित कोटा प्राप्त करके?
उ० जैसा कि राष्ट्रपतीय निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार आयोजित किया जाता है, प्रत्येक निर्वाचक के पास उतने ही अधिमान हैं, जितने कि अभ्यर्थी निर्वाचन लड़ रहे हैं। विजयी अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित होने के लिए आवश्यक मतों का कोटा प्राप्त करना होगा, जो डाले गए विधिमान्य मतों का 50% + (जोड़कर) 1 है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 की अनुसूची देखें]
27. मतपत्रों को खारिज करने के आधार क्या हैं?
उ० रिटर्निंग अधिकारी किसी मतपत्र को अविधिमान्य के रूप में खारिज करेगा, जिस पर :-
अंक ‘1’ चिह्नित नहीं है; अथवा
अंक ‘1’ एक से अधिक अभ्यर्थी के समक्ष चिह्नित किया गया है अथवा इसे इस रीति से चिह्नित किया गया है जो इसे संदिग्ध बना देता है कि यह किस अभ्यर्थी को लागू होने हेतु आशयित है; अथवा
अंक ‘1’ तथा कुछ अन्य अंक एक ही अभ्यर्थी के नाम के समक्ष चिह्नित किया गया है; अथवा
कोई भी ऐसा चिह्न बनाया जाता है जिसके द्वारा निर्वाचक को पहचाना जा सकता है।
एक मतपत्र अविधिमान्य हो सकता है यदि अधिमानों को अंक 1, 2, 3 आदि के बजाय शब्दों में उपदर्शित किया जाता है, जैसे, एक, दो, तीन या प्रथम अधिमान, द्वितीय अधिमान, तृतीय अधिमान, आदि। डाक मतपत्र (निवारक निरोध के अधीन किसी एक निर्वाचक का) को खारिज किया जा सकता है यदि घोषणापत्र पर निर्वाचक के हस्ताक्षर और मतपत्र के साथ प्राप्त अनुप्रमाणन प्रपत्र, ऐसे प्रपत्र में निर्दिष्ट प्राधिकारी (जो आमतौर पर जेल या निरुद्ध-स्थान का प्रभारी अधिकारी है) द्वारा अनुप्रमाणित नहीं है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 31 देखें]
28. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में गणना की प्रक्रिया क्या है? विजयी अभ्यर्थी द्वारा प्राप्त किए जाने वाले मतों का कोटा कैसे निर्धारित किया जाता है?
उ० विधिमान्य मतपत्रों को अविधिमान्य मतों से पृथक किए जाने के पश्चात्, विधिमान्य मतपत्रों को निर्वाचन लड़ रहे अभ्यर्थियों के मध्य, उन अभ्यर्थियों हेतु उनमें से प्रत्येक पर चिह्नित प्रथम अधिमान के आधार पर वितरित किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थी को प्राप्त मतों के मूल्य को अभिनिश्चित करने हेतु उन मतपत्रों की संख्या को जिन पर उसके लिए प्रथम अधिमान चिह्नित है, उस मत के मूल्य से गुणित किया जाता है जो सदस्य (सांसद या विधायक) के प्रत्येक मतपत्र वर्णित करते हैं, जैसा कि मतपत्र पर ही उपदर्शित किया गया है। सभी अभ्यर्थियों द्वारा प्राप्त विधिमान्य मतों की कुल संख्या को, उनमें से प्रत्येक द्वारा प्राप्त मतों की संख्या को जोड़कर अभिनिश्चित किया जाता है। यह गणना का प्रथम दौर है।
एक अभ्यर्थी को निर्वाचित होने के लिए पर्याप्त कोटा अभिनिश्चित करने हेतु, निर्वाचन लड़ रहे प्रत्येक अभ्यर्थी को गणना के प्रथम दौर में प्राप्त मतों के मूल्य को निर्वाचन में डाले गए विधिमान्य मतों के कुल मूल्य का निर्धारण करने के लिए जोड़ा जाता है। तत्पश्चात्, विधिमान्य मतों के ऐसे मूल्य को दो (2) से विभाजित किया जाता है और प्राप्त भागफल में एक (1) जोड़ा जाता है एवं कोई शेष, यदि रह जाता है तो इसे अनदेखा किया जाता है। इस प्रकार अवधारित संख्या वह कोटा होती है, जो किसी अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित होने हेतु प्राप्त करना आवश्यक है।
यदि प्रथम गणना में किसी भी अभ्यर्थी को प्राप्त मतों का कुल मूल्य, किसी अभ्यर्थी को निर्वाचित होने हेतु पर्याप्त कोटे की तुलना में बराबर है अथवा अधिक है, उस अभ्यर्थी को रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। तथापि, यदि गणना के प्रथम दौर के पश्चात्, कोई भी अभ्यर्थी आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं करता है, तो गणना विलोपन एवं अपवर्जन की प्रक्रिया के आधार पर जारी रखी जाती है, जिसके द्वारा सबसे कम मतों वाले आकलित अभ्यर्थी को अपवर्जित कर दिया जाता है तथा उसके मतपत्रों को, उन पर चिह्नित द्वितीय अधिमान, यदि हो, के आधार पर शेष रह गए (बने हुए) अभ्यर्थियों के मध्य वितरित किया जाता है। इस तरह के संक्रमणीय मतपत्रों का मूल्य उस मूल्य के समान होगा, जिस पर अपवर्जित अभ्यर्थी ने उन्हें प्राप्त किया था। जिन मतपत्रों पर दूसरा अधिमान चिह्नित नहीं है, उसे निःशेष मतपत्र माना जाता है और इसे आगे गिना नहीं जाएगा, भले ही इस पर तृतीय या उत्तरवर्ती अधिमानों को चिह्नित किया गया हो। अपवर्जित अभ्यर्थियों के मतों को वितरित किए जाने के पश्चात्, यदि कोई अभ्यर्थी इस स्तर पर भी अपेक्षित कोटा प्राप्त नहीं करता है, तो गणना प्रक्रिया, सबसे कम मत पाने वाले अभ्यर्थियों के विलोपन एवं अपवर्जन के आधार पर तब तक जारी रहेगी, जब तक कोई अभ्यर्थी मतों का आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं कर लेता है। सबसे कम मतों को प्राप्त करने वाले अभ्यर्थी के अपवर्जन के पश्चात् भी, यदि कोई भी अभ्यर्थी आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं करता है और अंततोगत्वा, एक ही अभ्यर्थी एकमात्र शेष अभ्यर्थी के रूप में बने रहता है, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है, भले ही वह अभ्यर्थी के निर्वाचित होने हेतु पर्याप्त कोटा प्राप्त करने में विफल रहा हो। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 की अनुसूची देखें]
29. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में मतगणना कहां की जाती है?
उ० मतों की गणना नई दिल्ली में रिटर्निंग अधिकारी के कार्यालय में की जाती है।
30. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में किसी अभ्यर्थी का प्रतिभूति निक्षेप कब जब्त कर लिया जाता है?
उ० प्रतिभूति निक्षेप जब्त कर लिया जाता है, यदि अभ्यर्थी निर्वाचित नहीं होता है तथा उनके द्वारा प्राप्त विधिमान्य मतों की संख्या, ऐसे निर्वाचन में अभ्यर्थी के निर्वाचित होने हेतु आवश्यक मतों की संख्या के एक-छठा भाग से अधिक नहीं है। अन्य मामलों में, अभ्यर्थी को प्रतिभूति निक्षेप वापस कर दिया जाएगा। प्रतिभूति निक्षेप को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा वापस किया जाता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय अधिनियम, 1952 की धारा 20क देखें]
31. क्या राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन के परिणामों को चुनौती दी जा सकती है? यदि हाँ, तो ऐसा करने के लिए उचित प्रक्रिया क्या है?
उ० हाँ। निर्वाचन संपन्न हो जाने के पश्चात् राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन पर, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष निर्वाचन याचिका के माध्यम से प्रश्न उठाया जा सकता है। ऐसी निर्वाचन याचिका, एक अभ्यर्थी द्वारा या एक साथ प्रत्यर्थियों के रूप में जुड़कर बीस या इससे अधिक निर्वाचकों द्वारा प्रस्तुत की जानी चाहिए और राष्ट्रपतीय एवं उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 12 के अधीन, निर्वाचन में निर्वाचित अभ्यर्थी के नाम को निहित करती हुई घोषणा के प्रकाशन की तिथि के पश्चात् किसी भी समय, किंतु इस तरह के प्रकाशन की तिथि से 30 दिनों के पश्चात नहीं, प्रस्तुत की जा सकती है। इन प्रावधानों के अधीन, संविधान के अनुच्छेद 145 के अधीन सर्वोच्च न्यायालय, ऐसी निर्वाचन याचिकाओं से जुड़े स्वरूप, रीति और प्रक्रियाओं को विनियमित कर सकता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय अधिनियम, 1952 की धारा 13 से 20 देखें]
राष्ट्रपतीय निर्वाचन, 2017
भारत के संविधान के अनुच्छेद 55 (2) के उपबंधों के अनुसार राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों और संसद के दोनों सदनों के वोटों के मूल्य का विवरण
परिशिष्ट-I
क्र.सं.
राज्य का नाम
विधान सभा
सीटों की संख्या (निर्वाचित)
जनसंख्या (1971 की जनगणना)
प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य
राज्य हेतु मतों का कुल मूल्य
(1)
(2)
(3)
(4)
(5)
(6)
1.
आंध्र प्रदेश
175
27800586
159
159 × 175 = 27825
2.
अरुणाचल प्रदेश
60
467511
8
008 × 060 = 480
3.
असम
126
14625152
116
116 × 126 = 14616
4.
बिहार
243
42126236
173
173 × 243 = 42039
5.
छत्तीसगढ़
90
11637494
129
129 × 090 = 11610
6.
गोवा
40
795120
20
020 × 040 = 800
7.
गुजरात
182
26697475
147
147 × 182 = 26754
8.
हरियाणा
90
10036808
112
112 × 090 = 10080
9.
हिमाचल प्रदेश
68
3460434
51
051 × 068 = 3468
10.
जम्मू और कश्मीर*
87
6300000
72
072 × 087 = 6264
11.
झारखंड
81
14227133
176
176 × 081 = 14256
12.
कर्नाटक
224
29299014
131
131 × 224 = 29344
13.
केरल
140
21347375
152
152 × 140 = 21280
14.
मध्य प्रदेश
230
30016625
131
131 × 230 = 30130
15.
महाराष्ट्र
288
50412235
175
175 × 288 = 50400
16.
मणिपुर
60
1072753
18
018 × 060 = 1080
17.
मेघालय
60
1011699
17
017 × 060 = 1020
18.
मिजोरम
40
332390
8
008 × 040 = 320
19.
नागालैंड
60
516449
9
009 × 060 = 540
20.
ओडिशा
147
21944615
149
149 × 147 = 21903
21.
पंजाब
117
13551060
116
116 × 117 = 13572
22.
राजस्थान
200
25765806
129
129 × 200 = 25800
23.
सिक्किम
32
209843
7
007 × 032 = 224
24.
तमिलनाडु
234
41199168
176
176 × 234 = 41184
25.
तेलंगाना
119
15702122
132
132 × 119 = 15708
26.
त्रिपुरा
60
1556342
26
026 × 060 = 1560
27.
उत्तराखंड
70
4491239
64
064 × 070 = 4480
28.
उत्तर प्रदेश
403
83849905
208
208 × 403 = 83824
29.
पश्चिम बंगाल
294
44312011
151
151 × 294 = 44394
30.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली
70
4065698
58
058 × 070 = 4060
31.
पुदुचेरी
30
471707
16
016 × 030 = 480
कुल
4120
549302005
= 549495
* संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए लागू) आदेश
(क) संसद सदस्यों के प्रत्येक मत का मूल्य
कुल सदस्य :
लोक सभा (543) + राज्य सभा (233) = 776
प्रत्येक मत का मूल्य =
(ख) 776 संसद सदस्यों के मतों का कुल मूल्य = 708 × 776 = 5,49,408
(ग) राष्ट्रपतीय निर्वाचन हेतु कुल निर्वाचक = विधायक (4120) + सांसद (776) = 4896
(घ) राष्ट्रपतीय निर्वाचन 2017 हेतु 4896 = 5,49,495 + 5,49,408 = 10,98,903
निर्वाचकों के मतों का कुल मूल्य
भारत के संविधान से उद्धृत अंश
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति
52. भारत का राष्ट्रपति—
भारत का एक राष्ट्रपति होगा।
53. संघ की कार्यपालिका शक्ति—
(1) संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
(2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश राष्ट्रपति में निहित होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात—
(क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी राज्य की सरकार या अन्य प्राधिकारी को प्रदान किए गए कृत्य राष्ट्रपति को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी; या
(ख) राष्ट्रपति से भिन्न अन्य प्राधिकारियों को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद को निवारित नहीं करेगी।
54. राष्ट्रपति का निर्वाचन—
राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचकगण के सदस्य करेंगे जिसमें—
(क) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य; और
(ख) राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य, होंगे।
46 [स्पष्टीकरण—इस अनुच्छेद और अनुच्छेद 55 में, “राज्य” के अंतर्गत दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र और पुदुचेरी संघ राज्यक्षेत्र हैं।]
55. राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति—
(1) जहां तक साध्य हो, राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न—भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मान में एकरूपता होगी।
(2) राज्यों में आपस में ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्यों और संघ में समतुल्यता प्राप्त कराने के लिए संसद और प्रत्येक राज्य की विधान सभा का प्रत्येक निर्वाचित सदस्य ऐसे निर्वाचन में जितने मत देने का हकदार है उनकी संख्या निम्नलिखित रीति से अवधारित की जाएगी, अर्थात्:—
(क) किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत होंगे जितने कि एक हजार के गुणित उस भागफल में हों जो राज्य की जनसंख्या को उस विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए;
(ख) यदि एक हजार के उक्त गुणितों को लेने के बाद शेष पांच सौ से कम नहीं है तो उपखंड (क) में निर्दिष्ट प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाएगा;
(ग) संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या वह होगी जो उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों के लिए नियत कुल मतों की संख्या को, संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए, जिसमें आधे से अधिक भिन्न को एक गिना जाएगा और अन्य भिन्नों की उपेक्षा की जाएगी।
(3) राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा।
47[स्पष्टीकरण—इस अनुच्छेद में, “जनसंख्या” पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं:
परंतु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन् 2000 के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है।]
56. राष्ट्रपति की पदावधि—
(1) राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा: परंतु—
(क) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
(ख) संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 में उपबंधित रीति से चलाए गए महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा;
(ग) राष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।
(2) खंड (1) के परंतुक के खंड (क) के अधीन उपराष्ट्रपति को संबोधित त्यागपत्र की सूचना उसके द्वारा लोक सभा के अध्यक्ष को तुरंत दी जाएगी।
57. पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता—
कोई व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है या कर चुका है, इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए उस पद के लिए पुनर्निर्वाचन का पात्र होगा।
58. राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं—
(1) कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह—
(क) भारत का नागरिक है,
(ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और
(ग) लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।
(2) कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा।
स्पष्टीकरण—इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल 48*** है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है।
59. राष्ट्रपति के पद के लिए शर्तें—
(1) राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान—मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान—मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
(2) राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
(3) राष्ट्रपति, बिना किराया दिए, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जो संसद, विधि द्वारा अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा।
(4) राष्ट्रपति की उपलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे।
60. राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान—
प्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध वरिष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्:—
“मैं, अमुक ——————————————— कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा।”
61. राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया—
(1) जब संविधान के अतिक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो, तब संसद का कोई सदन आरोप लगाएगा।
(2) ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि—
(क) ऐसा आरोप लगाने की प्रस्थापना किसी ऐसे संकल्प में अंतर्विष्ट नहीं है, जो कम से कम चौदह दिन की ऐसी लिखित सूचना के दिए जाने के पश्चात् प्रस्तावित किया गया है जिस पर उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक—चौथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का अपना आशय प्रकट किया है; और
(ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो—तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया है।
(3) जब आरोप संसद के किसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दूसरा सदन उस आरोप की जांच करेगा या कराएगा और ऐसी जांच में उपस्थित होने का तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का राष्ट्रपति को अधिकार होगा।
(4) यदि जांच के परिणामस्वरूप यह घोषित करने वाला संकल्प कि राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है, आरोप की जांच करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो—तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित किए जाने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाना होगा।
62. राष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन संचालित करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि—
(1) राष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा।
(2) राष्ट्रपति की मृत्यु, पद त्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने की तारीख के पश्चात् यथाशीघ्र और प्रत्येक दशा में छह मास बीतने से पहले किया जाएगा और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति, अनुच्छेद 56 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा।