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संख्या. ईसीआई/पीएन/10/2020
दिनांकः 23 जनवरी 2020
प्रेस नोट
भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना के 70वें वर्ष के अवसर पर भारत निर्वाचन आयोग की मेजबानी में आयोजित
प्रथम सुकुमार सेन स्मृति व्याख्यान श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा दिया जाना
भारत के प्रथम निर्वाचन की रिपोर्ट की पुनर्मुद्रित प्रति का श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा विमोचन किया गया; श्री सुकुमार सेन की स्मृति में डाक टिकट जारी किया गया
भारत के प्रथम मुख्य निर्वाचन आयुक्त को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने आज प्रथम सुकुमार सेन स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया। श्री सेन ने 21 मार्च 1950 से 19 दिसम्बर 1958 तक प्रथम निर्वाचन आयुक्त के रूप में सेवा की थी।
पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने भारत की निर्वाचन प्रक्रिया और हमारे निर्वाचन तंत्र के समक्ष चुनौतियों पर अपना उद्घाटन व्याख्यान दिया। श्री मुखर्जी के व्याख्यान में हमारे राष्ट्रीय विकास में संस्थानों की महत्ता पर प्रकाश डाला गया।
इस अवसर पर बोलते हुए, श्री मुखर्जी ने श्री सुकुमार सेन के बारे में उल्लेख करते हुए कहा कि “उन्होने प्रसूति विज्ञानी के रूप में काम करने और भारतीय लोकतंत्र को पहली खेप के रूप में लगभग 3000 निर्वाचित प्रतिनिधि प्रदान करने का कार्य चुना। आश्चर्य मिश्रित एहसास करते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की प्रक्रिया में यथासम्भव, गैर आईसीएस वाली नम्रता हो, मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में उनका दलों के प्रति अप्रत्यक्ष, उदार, प्रभावी धैर्यपूर्वक और न्यायकारी व्यवहार रहा लेकिन दूसरी ओर अपनी जिम्मेदारी के प्रति पूर्ण सख्त रहे”। श्री मुखर्जी ने नोट किया कि स्वतंत्र, निष्पक्ष लोकप्रिय और विश्वसनीय निर्वाचन लोकतंत्र की एक आधारशिला है और सही अर्थ में जीवनदायी रक्त के समान हैं। सेन ने पहले दो साधारण निर्वाचन निर्बाध रूप में सम्पन्न करा कर भारत को सही अर्थों में ब्रिटिश उपनिवेश से एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक गणराज्य की ओर ले जाने का काम किया।
श्री मुखर्जी ने स्मरण करवाया कि “संविधान बनाने वाली भारत की संविधान सभा ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के मसले पर गहन विचार-विमर्श किया था। इसने इसकी सभी कठिनाइयों को पूरी तरह समझते हुए भी बिना किसी हिचकिचाहट के वयस्क मताधिकार की व्यवस्था को स्वीकर किया”। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा “पहले साधारण निर्वाचन की सर्वप्रथम उपलब्धि इस तथ्य में है कि इससे भारत के एकीकरण को मजबूती मिली और कड़ी मेहनत से इसे हासिल किया गया”। उन्होने कहा, भारतीय लोकतंत्र और इसकी अंतर्निहित समत्व की शक्ति ने कुंठित विद्रोह और अलगाववादी आन्दोलनों को सफलतापूर्वक समाप्त किया है और निर्वाचनों द्वारा विभिन्न समूहों को निर्वाचन की मुख्य धारा में लाने में सफलता पाई है। उन्होंने जोर दे कर कहा, “भारतीय लोकतंत्र अनेकों बार चुनौतियों पर खरा उतरा है। सर्वसम्मति लोकतंत्र की रक्त रूपी जीवनदायिनी है। लोकतंत्र की सफलता श्रवण, चर्चा, विचार-विमर्श, तर्क और यहाँ तक कि विरोध में भी निहित है। निर्वाचन प्रक्रिया में जनता की उत्साहपूर्वक भागीदारी स्वस्थ लोकतंत्र की कुंजी है।
निर्वाचन आयोग की भूमिका पर विचार व्यक्त करते हुए, श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा,“ मेरी राय में भारत निर्वाचन आयोग का जनता द्वारा सम्मान किया जाता है और इसमें जनता की आस्था है एवं निर्वाचन के भागीदार इससे भयभीत रहते हैं, ज्यादातर परीक्षा की कसौटी में यह खरा उतरा है। भारत में सही अर्थ में लोकतंत्र को मजबूत करने में भारत निर्वाचन आयोग की भूमिका एकदम उत्कृष्ट रही है। इसने अपने समक्ष आने वाली सभी चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया है। 2019 में विश्व के तीसरे, चौथे और पाँचवे सबसे बडे देशों की कुल जनसंख्या के लगभग बराबर वाले 900 मिलियन से अधिक के निर्वाचक वर्ग का प्रबन्धन करना और निष्पक्ष निर्वाचन सुनिश्चित करना कोई आसान कार्य नहीं है। मैं इस प्रशंसनीय उपलब्धि के लिए भारत निर्वाचन आयोग को बधाई देता हूँ”।
जिन कुछ एक चुनौतियों का सामना हमारा निर्वाचक तंत्र करता है उनके सम्बन्ध में श्री मुखर्जी ने कहा कि परियोजनाओं की स्वीकृति और कार्यावयन में अवरोध आना, अनुपातहीन निर्वाचक मंडल के वृहत आकार की तुलना में जन प्रतिनिधियों की कम संख्या होना, साथ ही संसद और विधान सभाओं में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होना, चिंता के एक बहुत बड़े क्षेत्र के रूप में उभर कर सामने आया है। संस्थाओं की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए, श्री मुखर्जी ने बधाई दी कि “यदि लोकतंत्र सफल हुआ है तो इसका ज्यादा श्रेय श्री सेन से प्रारम्भ कर वर्तमान तक के सभी चुनाव आयुक्तों द्वारा त्रुटिरहित निर्वाचन सम्पन्न कराने को जाता है”। उन्होने जोर दे कर कहा कि, ऐसा न मानने का कोई कारण हो ही नहीं सकता है कि चुनौतियाँ ही हमारे लोकतंत्र का आधार है। नि:सन्देह जनादेश पवित्र है और इसे निस्संदेह सर्वोच्च स्थान पर रखा ही जाना है।
पूर्व में, मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुशील अरोड़ा ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि, “प्रथम सुकुमार सेन स्मृति व्याख्यान देने के लिए अपनी सहमति प्रदान करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग श्री प्रणब मुखर्जी का ऋणी है। आज की इस शाम के लिए विषय और वक्ता का इससे सुसंगत संयोग नहीं हो सकता है — एक विद्वान और राजर्षि”। श्री मुखर्जी राजनैतिक, संवैधानिक और ऐतिहासिक मामलों के जीवंत विश्वकोश माने जाते हैं। जनता की सेवा में महत्वपूर्ण योगदन के लिए वर्ष 2019 में उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान – “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया था। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्री अरोड़ा ने कहा “भारत गणतंत्र के राष्ट्रपति के रूप में श्री मुखर्जी ने पूर्व में भी दो बार आयोग के राष्ट्रीय मतदाता दिवस के अवसर पर वर्ष 2016 और वर्ष 2017 में सम्बोधित किया था। हम सुकुमार सेन स्मृति उद्घाटन व्याख्यान देने के लिए उन्हें पुन: अपने मध्य पा कर आनन्दित हैं”। उन्होंने आगे कहा कि इस व्याख्यान का उद्देश्य भारत निर्वाचन आयोग को प्राप्त संवैधानिक अधिकार की परिधि में ही लोकतांत्रिक और निर्वाचन संवाद में सकारात्मक माहौल तैयार करना है। आयोग राजनीतिक दलों, विख्यात संविधानवेत्ताओं, कानूनविदों, शिक्षाविदों, सिविल सोसाइटियों के कार्यकर्ताओं सहित समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को इसमें शामिल करना चाहता है। उन्होंने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को भी उनकी 123वीं जयंती पर याद किया।
श्री अशोक लवासा, चुनाव आयुक्त ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया और श्री सुशील चन्द्रा, चुनाव आयुक्त ने इस यादगार अवसर पर सभी श्रोताओं का धन्यवाद किया।
इस तथ्य को पुन: याद किया जाना जरूरी है कि श्री सुकुमार सेन ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में एवं पूर्व के थोड़े बहुत मार्गदर्शन से ही सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर आधारित विधान सभा निर्वाचनों के साथ साथ क्रमश: वर्ष 1952 एवं वर्ष 1957 में आयोजित भारत के पहले दो लोकसभा निर्वाचनों को बखूबी सम्पन्न कराया। इस अवसर पर भारत के प्रथम निर्वाचन की रिपोर्ट की पुनर्मुद्रित प्रति का श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा विमोचन किया गया और श्री सुकुमार सेन की स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया यह प्रस्तावित है कि प्रति वर्ष देश या विदेश के ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाएगा, जिसने लोकतंत्र को सुदृढ़ करने में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया हो।
आज के व्याख्यान में श्री सेन के परिवार के सदस्य, पौत्र-पौत्री, डॉ. आशीष मुखर्जी, सुश्री श्यामली मुखर्जी, संजीव सेन, सोनाली सेन, देवदत्त सेन, सुजया सेन, एवं प्रपौत्र-प्रपौत्री आदित्य विक्रम सेन, अर्जुन वीर सेन और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों, शिक्षाविदों, सिविल सोसाइटी संस्थाओं, वरिष्ठ सिविल सेवकों, मीडिया कर्मियों के आमंत्रितगण एवं 24 जनवरी, 2020 को आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली “दी फोरम ऑफ द इलेक्शन मेनेजमेंट बाडीज ऑफ साउथ एशिया” (एफईएमबीओएसए) की 10वीं वार्षिक बैठक में और “संस्थागत क्षमता का सुदृढ़ीकरण” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल होने के लिए दिल्ली में एकत्रित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि भी बडी संख्या में इसमें उपस्थित रहे।