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  1. भारत के संविधान के तहत, भारत का एक राष्ट्रपति (संविधान का अनुच्छेद 52 देखें) सदैव होगा। वह देश में सर्वोच्च निर्वाचित पद धारण करता है एवं संविधान के उपबंधों और राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 के अनुसार निर्वाचित किया जाता है। उक्त अधिनियम को राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 के उपबंधों द्वारा संपूरित किया गया है, एवं और नियमों के अधीन उक्त अधिनियम राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन के आयोजन के सभी पहलुओं को विनियमित करने वाला एक संपूर्ण नियमसंग्रह का निर्माण करता है। राष्ट्रपति उस तिथि से (5) पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करता है, जिस दिन वह अपना पद ग्रहण करता है एवं तदनुसार, 24 जुलाई 2017 को भारत के पदस्थ राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी की पदावधि के अवसान से पूर्व नए राष्ट्रपति का निर्वाचन इस वर्ष (2017) आयोजित किया जाना है। उक्त निर्वाचन के संदर्भ में, कुछ प्रश्न, जिन्हें अकसर पूछा जा सकता है (अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न) तथा किसी भी संदेह और भ्रम, जो इच्छुक अभ्यर्थियों, निर्वाचकों और साधारण जनता के मन में उत्पन्न हो सकते हैं, के निराकरण हेतु उनके उत्तर नीचे दिए गए हैं :- 1. भारत के राष्ट्रपति का चयन कौन करता है? उ० राष्ट्रपति का चयन एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य एवं राज्यों की विधान सभाओं एवं साथ ही राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली क्षेत्र तथा संघ शासित क्षेत्र, पुदुचेरी के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं। [भारत के संविधान का अनुच्छेद 54] 2. राष्ट्रपति के पद की अवधि क्या है? उ० राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने की तिथि से 5 (पाँच) वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करता है। तथापि, अपनी पदावधि के अवसान के पश्चात् भी वह अपने पद पर तब तक बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी उसका पद ग्रहण नहीं कर लेता है। [भारत के संविधान का अनुच्छेद 56] 3. भारत के राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन कब होता है? उ० राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 4 की उप-धारा (3) के उपबंधों के अधीन, निर्गामी राष्ट्रपति की पदावधि के अवसान से पहले, साठ दिन की अवधि में किसी दिन आयोग द्वारा निर्वाचन आयोजित किए जाने की अधिसूचना जारी की जा सकती है। निर्वाचन कार्यक्रम इस प्रकार नियत किया जाएगा कि निर्गामी राष्ट्रपति की पदावधि समाप्ति के अगले ही दिन निर्वाचित राष्ट्रपति पद ग्रहण करने में सक्षम हों। 4. भारत के राष्ट्रपतीय निर्वाचन कौन आयोजित कराता है? उ० भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन कराने का अधिकार भारत निर्वाचन आयोग में निहित है। 5. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन हेतु कौन-सी निर्वाचन प्रणाली / प्रक्रिया अपनाई जाती है? उ० भारत के संविधान के अनुच्छेद 55 (3) के अनुसार, राष्ट्रपतीय निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुरूप किया जाएगा और ऐसे निर्वाचन में गोपनीय मतपत्रों द्वारा मतदान किया जाएगा। 6. भारत के राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन लड़ने के लिए किसी अभ्यर्थी की क्या-क्‍या योग्यताएं आवश्यक हैं? उ० अनुच्‍छेद 58 के अंतर्गत एक अभ्यर्थी को राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन लड़ने के लिए निम्नलिखित आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए :- भारत का नागरिक होना चाहिए। पैंतीस (35) वर्ष की आयु पूर्ण होनी चाहिए। लोक सभा का सदस्य होने के लिए अर्हित होना चाहिए। भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन या किसी भी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण के अधीन, उक्त किसी भी सरकार के नियंत्रणाधीन किसी भी लाभ का पदधारी नहीं होना चाहिए। तथापि, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का पदधारी या किसी भी राज्य के राज्यपाल का पदधारी या केन्द्र या राज्य मंत्री का पदधारी अभ्यर्थी हो सकता है, एवं निर्वाचन लड़ने का पात्र होगा। 7. उपर्युक्त के अलावा, नामनिर्देशन के विधिमान्य होने हेतु अभ्यर्थी द्वारा पूरी की जाने वाली अन्य शर्तें क्या हैं? उ० निर्धारित प्रपत्र में निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी का नामनिर्देशन पत्र (राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 में संलग्न प्रपत्र 2), जिसे कम से कम पचास निर्वाचकों द्वारा प्रस्तावकों के रूप में तथा कम से कम पचास निर्वाचकों द्वारा अनुमोदकों के रूप में समर्थित होना चाहिए। सर्वथा पूर्ण नामनिर्देशन पत्र, निर्वाचन आयोग द्वारा इस प्रयोजन के लिए नियुक्त रिटर्निंग अधिकारी को किसी भी दिन में पूर्वाह्न 11 बजे से अपराह्न 3 बजे तक, सार्वजनिक अवकाश के अलावा, या तो अभ्यर्थी द्वारा स्वयं या उसके प्रस्तावकों या अनुमोदकों में से किसी के भी द्वारा प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यहां ‘निर्वाचकों’ से आशय निर्वाचित सांसदों और निर्वाचित विधायकों से है, जो राष्ट्रपति निर्वाचन के लिए निर्वाचक हैं। निर्वाचन के लिए 15,000/-₹ का प्रतिभूति निक्षेप भी या तो रिटर्निंग अधिकारी को नकद में जमा कराया जाना चाहिए या नामनिर्देशन पत्र के साथ ऐसी रसीद संलग्न करनी चाहिए जो दर्शित करती हो कि अभ्यर्थी द्वारा या उसकी ओर से यह राशि भारतीय रिज़र्व बैंक या सरकारी खजाने में जमा करा दी गई है। अभ्यर्थी को उस संसदीय निर्वाचन क्षेत्र जिसमें वह एक निर्वाचक के रूप में पंजीकृत है, की वर्तमान निर्वाचक नामावली में उसके नाम को दर्शित करती हुई प्रविष्टि की प्रमाणित प्रतिलिपि भी प्रस्तुत करना आवश्यक है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 5ख और 5ग देखें] 8. भारत के राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन हेतु किसे रिटर्निंग अधिकारी / सहायक रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त किया जाता है? ऐसी नियुक्तियां किसके द्वारा की जाती हैं? उ० परंपरानुसार; महासचिव, लोक सभा या महासचिव, राज्य सभा को चक्रानुक्रम में रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है। लोक सभा / राज्य सभा सचिवालय के दो वरिष्ठ अधिकारी और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली और संघ शासित क्षेत्र पुडुचेरी सहित विधान सभाओं के सचिवों और एक और वरिष्‍ठ अधिकारी को भी सहायक रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है। भारत निर्वाचन आयोग ऐसी नियुक्तियां करता है। {राष्ट्रपतीय निर्वाचन-2017 हेतु, राज्य सभा के महासचिव को रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है} 9. क्या एक अभ्यर्थी एक से अधिक नामनिर्देशन प्रस्तुत कर सकता है? ऐसे अभ्यर्थी द्वारा किया जाने वाला प्रतिभूति निक्षेप कितना होगा? उ० हाँ। एक अभ्यर्थी अधिकतम चार नामनिर्देशन पत्र प्रस्तुत कर सकता है। तथापि, इस संबंध में उसे केवल एक ही प्रतिभूति निक्षेप किए जाने की आवश्यकता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 5ख(6) और 5ग देखें] 10. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में एक निर्वाचक एक से अधिक अभ्यर्थियों का प्रस्ताव या अनुमोदन कर सकता है? उ० नहीं। राष्ट्रपतीय निर्वाचन में एक निर्वाचक केवल एक ही अभ्यर्थी के नाम का प्रस्ताव या अनुमोदन कर सकता है। यदि वह एक से अधिक अभ्यर्थियों के नामनिर्देशनों को प्रस्तावक या अनुमोदक के रूप में समर्थित करता है, तो उसका हस्ताक्षर केवल उस नामनिर्देशन हेतु प्रभावी माना जाएगा, जो रिटर्निंग अधिकारी को सर्वप्रथम प्रदत्त किया गया था। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 5ख(5) देखें] 11. अभ्यर्थियों द्वारा दाखिल नामनिर्देशन पत्रों की संवीक्षा कौन करता है तथा ऐसी संवीक्षा के दौरान कौन उपस्थित रह सकता है? उ० रिटर्निंग अधिकारी को प्राप्त सभी नामनिर्देशन पत्रों की संवीक्षा, इस प्रयोजन हेतु निर्वाचन आयोग द्वारा निर्दिष्ट अवधि के दौरान, स्वयं रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निर्वाचन आयोग द्वारा नियत तिथि पर राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 4 की उप-धारा (1) के अधीन की जाती है। ऐसी संवीक्षा के दौरान, अभ्यर्थीगण, प्रत्येक अभ्यर्थी का एक प्रस्तावक अथवा एक अनुमोदक एवं प्रत्येक अभ्यर्थी द्वारा विधिवत लिखित में एक अन्य प्राधिकृत व्यक्ति उपस्थित रहने के पात्र होंगे, एवं उन्हें अभ्यर्थियों के नामनिर्देशन पत्रों की छानबीन करने और उन नामनिर्देशन पत्रों के संबंध में आपत्तियां उठाने के लिए सभी उचित सुविधाएं दी जाएंगी। 12. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में किसी अभ्यर्थी के नामनिर्देशन को खारिज किए जाने के आधार क्या हैं? उ० किसी नामनिर्देशन को राष्‍ट्रपतीय और राष्‍ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम 1952 की धारा 5(ड़) के अधीन निम्नलिखित आधारों पर खारिज किया जा सकता है :- नामनिर्देशन की संवीक्षा की तिथि में, अभ्यर्थी संविधान के तहत राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन के लिए पात्र नहीं हैं; अथवा यदि कोई प्रस्तावक या अनुमोदक नामनिर्देशन पत्र को समर्थित करने हेतु पात्र नहीं है, अर्थात वह निर्वाचन में एक निर्वाचक नहीं है; अथवा यदि यह अपेक्षित प्रस्तावकों और/या अनुमोदकों द्वारा समर्थित नहीं है; अथवा यदि अभ्यर्थी या किसी भी प्रस्तावक या अनुमोदक के हस्ताक्षर वास्तविक नहीं हैं या धोखाधड़ी द्वारा प्राप्त किया गया है; अथवा यदि नामनिर्देशन पत्र अभ्यर्थी द्वारा स्वयं अथवा उसके प्रस्तावकों या अनुमोदकों में से किसी एक के द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जाता है या इसे रिटर्निंग अधिकारी को इस प्रयोजन हेतु निर्धारित तिथि एवं समय में या इस हेतु नियत स्थान पर प्रदत्त नहीं किया गया है, या अभ्यर्थी निर्धारित रीति से प्रतिभूति निक्षेप कर पाने में विफल रहा है। तथापि, एक अभ्यर्थी का नामनिर्देशन खारिज नहीं किया जाएगा, यदि उसने नामनिर्देशन पत्रों का एक और सेट प्रस्तुत किया है, जो बिना किसी अनियमितता या दोष के हैं। किसी अभ्यर्थी के नामनिर्देशन को किसी भी दोष के आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा जो सारभूत प्रकृति का नहीं है। 13. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन हेतु मतदान कहाँ किया जाता है ? उ० नई दिल्ली में संसद भवन में एक कक्ष तथा एक कक्ष प्रत्येक राज्य; राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली एवं संघ शासित प्रदेश, पुदुचेरी सहित, के सचिवालय भवनों में, आमतौर पर मतदान स्थल के रूप में निर्वाचन आयोग द्वारा नियत किए जाते हैं। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 7 देखें] 14. क्या निर्वाचक उनके मतदान करने का स्थल चुन सकते हैं? उ० हाँ। जबकि, आमतौर पर सांसद सदस्य नई दिल्ली में मतदान करते हैं एवं राज्य विधान सभाओं के सदस्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली और संघ शासित प्रदेश, पुदुचेरी की विधान सभाओं के सदस्यों सहित, प्रत्येक राज्य / संघ शासित प्रदेश की राजधानी में नियत स्थल पर मतदान करते हैं। राज्य की राजधानी में मतदान करने के लिए किसी भी सांसद हेतु निर्वाचन आयोग द्वारा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं एवं इसी तरह, कोई विधायक, संसद भवन में स्थापित मतदान केंद्र पर मतदान कर सकता है, अगर वह मतदान की तिथि पर दिल्ली में होता है। तथापि, सांसद या विधायक, जो नियत स्थल के अलावा ऐसे स्थल पर मतदान करने का विकल्प चुनते हैं जहां सदस्य को मतदान देने के लिए अभिहित किया गया है, उन्हें आयोग को विधिवत अग्रिम रूप से (दस दिन पूर्व) सूचित करना आवश्यक है। अपवादात्मक परिस्थितियों में, सांसदों और विधायकों को अन्य राज्यों की राजधानी में भी मतदान करने की अनुमति आयोग द्वारा दी जा सकती है। 15. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन में प्रयुक्त मतपत्रो का रंग और स्‍वरूप क्या होता है? उ० निर्वाचन आयोग ने निर्देशित किया है कि मतपत्रों को दो (2) रंगों में, संसद सदस्यों द्वारा उपयोग के लिए हरे रंग में तथा राज्य विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा उपयोग के लिए गुलाबी रंग में मुद्रित किया जाएगा। मतपत्र दो कॉलम के साथ मुद्रित किए जाते हैं – पहले कॉलम में अभ्यर्थियों के नाम होते हैं और, दूसरा कॉलम ऐसे प्रत्येक अभ्यर्थी के लिए निर्वाचक द्वारा अधिमान देने के लिए होता है। सांसदों द्वारा उपयोग करने हेतु मतपत्र हिंदी और अंग्रेज़ी में मुद्रित किए जाते हैं एवं संबंधित राज्य के विधायकों द्वारा उपयोग के लिए राज्य की आधिकारिक भाषा(ओं) तथा अंग्रेज़ी में मुद्रित किए जाते हैं। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 10 देखें] 16. क्या प्रत्येक मतदाता के मत का मूल्य समान है? उ० नहीं। विधायकों के मतों का मूल्य राज्यवार भिन्न-भिन्न होगा, क्योंकि इस तरह के प्रत्येक मत के मूल्य का परिकलन नीचे समझाई गई प्रक्रिया के अनुसार होता है। तथापि, सभी सांसदों के वोटों का मूल्य समान है। 17. निर्वाचक मंडल के सदस्यों के मतों के मूल्य का परिकलन कैसे किया जाता है? उ० निर्वाचकों के मतों का मूल्य, मूलतः संविधान के अनुच्छेद 55 (2) में निर्धारित रीति से राज्यों की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित होता है। संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 उपबंधित करता है कि जब तक वर्ष 2026 के बाद की जाने वाली पहली जनगणना की जनसंख्या का आंकड़ा प्रकाशित नहीं किया जाता है, राष्ट्रपतीय निर्वाचन हेतु मतों के मूल्य के परिकलन के प्रयोजनों के लिए राज्यों की जनसंख्या का अर्थ, वर्ष 1971 की जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या होगा। निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक सदस्य के मत के मूल्य का परिकलन, राज्य की जनसंख्या (1971 की जनगणना के अनुसार) को विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से विभाजित कर किया जाता है, और उसके पश्चात् भागफल को 1000 से विभाजित करते हैं। विभाजन करने पर यदि शेष, 500 या इससे अधिक होता है, तो मूल्य '1' से बढ़ जाता है। प्रत्येक राज्य विधानसभा के सभी सदस्यों के मतों के कुल मूल्य का परिकलन, विधान सभा की निर्वाचित सीटों की संख्या को, संबंधित राज्य के प्रत्येक सदस्य के लिए मतों की संख्या से गुणित कर किया जाता है। सभी राज्यों के मतों का कुल मूल्य, प्रत्येक राज्य के संबंध में ऊपर दिए गए अनुसार परिकलित किया जाता है और प्रत्येक संसद सदस्य के मतों का मूल्य प्राप्त करने के लिए, एक साथ जोड़कर संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से विभाजित कर दिया जाता है (लोकसभा 543 + राज्यसभा 233)। संविधान के अनुच्छेद 55 (2) के अनुसार विधायकों और सांसदों के वोटों का मूल्य नीचे* दिया गया है। (परिशिष्ट) 18. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन में मतों को अभिलेखित करने की रीति / प्रक्रिया क्या है? उ० एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार, प्रत्येक निर्वाचक उतने ही अधिमानों को चिह्नित कर सकते हैं, जितने कि अभ्यर्थी निर्वाचन लड़ रहे हैं। अभ्यर्थियों हेतु यह अधिमान, निर्वाचक द्वारा 1,2,3,4,5 और इसी प्रकार, अभ्यर्थियों के नाम के समक्ष, उनके अधिमान-क्रम में, मतपत्र के कॉलम-2 में दिए गए स्थान पर चिह्नित किया जाना है। अधिमान को भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप में या किसी भी भारतीय भाषा या रोमन रूप में इंगित किया जा सकता है लेकिन अधिमान को शब्दों में, जैसे 'एक', 'दो', 'प्रथम अधिमान, ‘दूसरा अधिमान’, इत्यादि जैसे शब्दों में उपदर्शित नहीं किया जा सकता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 17 देखें] 19. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में किसी निर्वाचक को सभी अभ्यर्थियों के लिए अधिमान चिह्नित करना आवश्यक है? उ० नहीं। मतपत्र के विधिमान्य होने के लिए केवल प्रथम अधिमान को चिह्नित करना अनिवार्य है। अन्य अधिमानों को चिह्नित करना वैकल्पिक है। 20. क्या दल-बदल विरोधी क़ानून के उपबंध राष्ट्रपतीय निर्वाचन में लागू होते हैं? उ० नहीं। निर्वाचक मंडल के सदस्य अपनी रुचि / इच्छा के अनुसार मत डाल सकते हैं एवं किसी भी दल की सचेतिका द्वारा बाध्य नहीं है। मतदान गोपनीय मतपत्र द्वारा होता है। इसलिए, इस निर्वाचन में पार्टी सचेतिका लागू नहीं होती है। 21. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में मतदान करने हेतु संसद के दोनों सदनों के या किसी राज्य की विधान सभा के मनोनीत सदस्य पात्र हैं? उ० नहीं। केवल संसद के दोनों सदनों और राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल के सदस्य हैं। इसलिए, मनोनीत सदस्य इस निर्वाचन में मतदान नहीं कर सकते हैं। [संविधान का अनुच्छेद 54 देखें] 22. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में कोई निर्वाचक परोक्षी द्वारा अपना मत डाल सकता है? उ० नहीं। 23. क्या नोटा का प्रावधान लागू होता है? उ० नहीं। 24. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में एक नि:शक्त या निरक्षर निर्वाचक एक साथी की मदद से अपना वोट अभिलेखित कर सकता है? उ० नहीं। संसदीय और विधानसभा निर्वाचनों के विपरीत, एक निर्वाचक किसी साथी की सहायता नहीं ले सकता है। वह अपने मत को अभिलेखित करने के लिए पीठासीन अधिकारी की सहायता ले सकता है, यदि वह अन्धेपन या कोई भी शारीरिक या अन्य विकलांगता के कारण अपना मत अभिलेखित करने में असमर्थ है। निर्वाचक की इच्छा के अनुसार मत अभिलेखित करने एवं इसे गोपनीय रखने के लिए पीठासीन अधिकारी नियम के अधीन बाध्य है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 19 देखें] 25. राष्ट्रपतीय निर्वाचन की अवधि के दौरान निवारक निरोध के अधीन कोई निर्वाचक मतदान कैसे कर सकता है? उ० निवारक निरोध के अधीन एक निर्वाचक डाक मतपत्र के माध्यम से अपना मत दे सकता है, जो उसे निर्वाचन आयोग द्वारा उसे निरुद्ध किए जाने के स्थान पर प्रेषित किया जाएगा। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 26 देखें] 26. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में विजयी अभ्यर्थी, साधारण बहुमत के आधार पर निर्वाचित होता है? या मतों का एक निर्धारित कोटा प्राप्त करके? उ० जैसा कि राष्ट्रपतीय निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार आयोजित किया जाता है, प्रत्येक निर्वाचक के पास उतने ही अधिमान हैं, जितने कि अभ्यर्थी निर्वाचन लड़ रहे हैं। विजयी अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित होने के लिए आवश्यक मतों का कोटा प्राप्त करना होगा, जो डाले गए विधिमान्य मतों का 50% + (जोड़कर) 1 है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 की अनुसूची देखें] 27. मतपत्रों को खारिज करने के आधार क्या हैं? उ० रिटर्निंग अधिकारी किसी मतपत्र को अविधिमान्य के रूप में खारिज करेगा, जिस पर :- अंक ‘1’ चिह्नित नहीं है; अथवा अंक ‘1’ एक से अधिक अभ्यर्थी के समक्ष चिह्नित किया गया है अथवा इसे इस रीति से चिह्नित किया गया है जो इसे संदिग्ध बना देता है कि यह किस अभ्यर्थी को लागू होने हेतु आशयित है; अथवा अंक ‘1’ तथा कुछ अन्य अंक एक ही अभ्यर्थी के नाम के समक्ष चिह्नित किया गया है; अथवा कोई भी ऐसा चिह्न बनाया जाता है जिसके द्वारा निर्वाचक को पहचाना जा सकता है। एक मतपत्र अविधिमान्य हो सकता है यदि अधिमानों को अंक 1, 2, 3 आदि के बजाय शब्दों में उपदर्शित किया जाता है, जैसे, एक, दो, तीन या प्रथम अधिमान, द्वितीय अधिमान, तृतीय अधिमान, आदि। डाक मतपत्र (निवारक निरोध के अधीन किसी एक निर्वाचक का) को खारिज किया जा सकता है यदि घोषणापत्र पर निर्वाचक के हस्ताक्षर और मतपत्र के साथ प्राप्त अनुप्रमाणन प्रपत्र, ऐसे प्रपत्र में निर्दिष्ट प्राधिकारी (जो आमतौर पर जेल या निरुद्ध-स्थान का प्रभारी अधिकारी है) द्वारा अनुप्रमाणित नहीं है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 31 देखें] 28. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में गणना की प्रक्रिया क्या है? विजयी अभ्यर्थी द्वारा प्राप्त किए जाने वाले मतों का कोटा कैसे निर्धारित किया जाता है? उ० विधिमान्य मतपत्रों को अविधिमान्य मतों से पृथक किए जाने के पश्चात्, विधिमान्य मतपत्रों को निर्वाचन लड़ रहे अभ्यर्थियों के मध्य, उन अभ्यर्थियों हेतु उनमें से प्रत्येक पर चिह्नित प्रथम अधिमान के आधार पर वितरित किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थी को प्राप्त मतों के मूल्य को अभिनिश्चित करने हेतु उन मत‍पत्रों की संख्या को जिन पर उसके लिए प्रथम अधिमान चिह्नित है, उस मत के मूल्य से गुणित किया जाता है जो सदस्य (सांसद या विधायक) के प्रत्येक मतपत्र वर्णित करते हैं, जैसा कि मतपत्र पर ही उपदर्शित किया गया है। सभी अभ्यर्थियों द्वारा प्राप्त विधिमान्य मतों की कुल संख्या को, उनमें से प्रत्येक द्वारा प्राप्त मतों की संख्या को जोड़कर अभिनिश्चित किया जाता है। यह गणना का प्रथम दौर है। एक अभ्यर्थी को निर्वाचित होने के लिए पर्याप्त कोटा अभिनिश्चित करने हेतु, निर्वाचन लड़ रहे प्रत्येक अभ्यर्थी को गणना के प्रथम दौर में प्राप्त मतों के मूल्य को निर्वाचन में डाले गए विधिमान्य मतों के कुल मूल्य का निर्धारण करने के लिए जोड़ा जाता है। तत्पश्चात्, विधिमान्य मतों के ऐसे मूल्य को दो (2) से विभाजित किया जाता है और प्राप्त भागफल में एक (1) जोड़ा जाता है एवं कोई शेष, यदि रह जाता है तो इसे अनदेखा किया जाता है। इस प्रकार अवधारित संख्या वह कोटा होती है, जो किसी अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित होने हेतु प्राप्त करना आवश्यक है। यदि प्रथम गणना में किसी भी अभ्यर्थी को प्राप्त मतों का कुल मूल्य, किसी अभ्यर्थी को निर्वाचित होने हेतु पर्याप्त कोटे की तुलना में बराबर है अथवा अधिक है, उस अभ्यर्थी को रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। तथापि, यदि गणना के प्रथम दौर के पश्चात्, कोई भी अभ्यर्थी आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं करता है, तो गणना विलोपन एवं अपवर्जन की प्रक्रिया के आधार पर जारी रखी जाती है, जिसके द्वारा सबसे कम मतों वाले आकलित अभ्यर्थी को अपवर्जित कर दिया जाता है तथा उसके मतपत्रों को, उन पर चिह्नित द्वितीय अधिमान, यदि हो, के आधार पर शेष रह गए (बने हुए) अभ्यर्थियों के मध्य वितरित किया जाता है। इस तरह के संक्रमणीय मतपत्रों का मूल्य उस मूल्य के समान होगा, जिस पर अपवर्जित अभ्यर्थी ने उन्हें प्राप्त किया था। जिन मतपत्रों पर दूसरा अधिमान चिह्नित नहीं है, उसे निःशेष मतपत्र माना जाता है और इसे आगे गिना नहीं जाएगा, भले ही इस पर तृतीय या उत्तरवर्ती अधिमानों को चिह्नित किया गया हो। अपवर्जित अभ्यर्थियों के मतों को वितरित किए जाने के पश्चात्, यदि कोई अभ्यर्थी इस स्तर पर भी अपेक्षित कोटा प्राप्त नहीं करता है, तो गणना प्रक्रिया, सबसे कम मत पाने वाले अभ्यर्थियों के विलोपन एवं अपवर्जन के आधार पर तब तक जारी रहेगी, जब तक कोई अभ्यर्थी मतों का आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं कर लेता है। सबसे कम मतों को प्राप्त करने वाले अभ्यर्थी के अपवर्जन के पश्चात् भी, यदि कोई भी अभ्यर्थी आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं करता है और अंततोगत्वा, एक ही अभ्यर्थी एकमात्र शेष अभ्यर्थी के रूप में बने रहता है, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है, भले ही वह अभ्यर्थी के निर्वाचित होने हेतु पर्याप्त कोटा प्राप्त करने में विफल रहा हो। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 की अनुसूची देखें] 29. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में मतगणना कहां की जाती है? उ० मतों की गणना नई दिल्ली में रिटर्निंग अधिकारी के कार्यालय में की जाती है। 30. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में किसी अभ्यर्थी का प्रतिभूति निक्षेप कब जब्त कर लिया जाता है? उ० प्रतिभूति निक्षेप जब्त कर लिया जाता है, यदि अभ्यर्थी निर्वाचित नहीं होता है तथा उनके द्वारा प्राप्त विधिमान्य मतों की संख्या, ऐसे निर्वाचन में अभ्यर्थी के निर्वाचित होने हेतु आवश्यक मतों की संख्या के एक-छठा भाग से अधिक नहीं है। अन्य मामलों में, अभ्यर्थी को प्रतिभूति निक्षेप वापस कर दिया जाएगा। प्रतिभूति निक्षेप को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा वापस किया जाता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय अधिनियम, 1952 की धारा 20क देखें] 31. क्या राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन के परिणामों को चुनौती दी जा सकती है? यदि हाँ, तो ऐसा करने के लिए उचित प्रक्रिया क्या है? उ० हाँ। निर्वाचन संपन्न हो जाने के पश्चात् राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन पर, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष निर्वाचन याचिका के माध्यम से प्रश्न उठाया जा सकता है। ऐसी निर्वाचन याचिका, एक अभ्यर्थी द्वारा या एक साथ प्रत्यर्थियों के रूप में जुड़कर बीस या इससे अधिक निर्वाचकों द्वारा प्रस्तुत की जानी चाहिए और राष्ट्रपतीय एवं उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 12 के अधीन, निर्वाचन में निर्वाचित अभ्यर्थी के नाम को निहित करती हुई घोषणा के प्रकाशन की तिथि के पश्चात् किसी भी समय, किंतु इस तरह के प्रकाशन की तिथि से 30 दिनों के पश्चात नहीं, प्रस्तुत की जा सकती है। इन प्रावधानों के अधीन, संविधान के अनुच्छेद 145 के अधीन सर्वोच्च न्यायालय, ऐसी निर्वाचन याचिकाओं से जुड़े स्‍वरूप, रीति और प्रक्रियाओं को विनियमित कर सकता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय अधिनियम, 1952 की धारा 13 से 20 देखें] राष्ट्रपतीय निर्वाचन, 2017 भारत के संविधान के अनुच्छेद 55 (2) के उपबंधों के अनुसार राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों और संसद के दोनों सदनों के वोटों के मूल्य का विवरण परिशिष्ट-I क्र.सं. राज्य का नाम विधान सभा सीटों की संख्या (निर्वाचित) जनसंख्या (1971 की जनगणना) प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य राज्य हेतु मतों का कुल मूल्य (1) (2) (3) (4) (5) (6) 1. आंध्र प्रदेश 175 27800586 159 159 × 175 = 27825 2. अरुणाचल प्रदेश 60 467511 8 008 × 060 = 480 3. असम 126 14625152 116 116 × 126 = 14616 4. बिहार 243 42126236 173 173 × 243 = 42039 5. छत्तीसगढ़ 90 11637494 129 129 × 090 = 11610 6. गोवा 40 795120 20 020 × 040 = 800 7. गुजरात 182 26697475 147 147 × 182 = 26754 8. हरियाणा 90 10036808 112 112 × 090 = 10080 9. हिमाचल प्रदेश 68 3460434 51 051 × 068 = 3468 10. जम्मू और कश्मीर* 87 6300000 72 072 × 087 = 6264 11. झारखंड 81 14227133 176 176 × 081 = 14256 12. कर्नाटक 224 29299014 131 131 × 224 = 29344 13. केरल 140 21347375 152 152 × 140 = 21280 14. मध्य प्रदेश 230 30016625 131 131 × 230 = 30130 15. महाराष्ट्र 288 50412235 175 175 × 288 = 50400 16. मणिपुर 60 1072753 18 018 × 060 = 1080 17. मेघालय 60 1011699 17 017 × 060 = 1020 18. मिजोरम 40 332390 8 008 × 040 = 320 19. नागालैंड 60 516449 9 009 × 060 = 540 20. ओडिशा 147 21944615 149 149 × 147 = 21903 21. पंजाब 117 13551060 116 116 × 117 = 13572 22. राजस्थान 200 25765806 129 129 × 200 = 25800 23. सिक्किम 32 209843 7 007 × 032 = 224 24. तमिलनाडु 234 41199168 176 176 × 234 = 41184 25. तेलंगाना 119 15702122 132 132 × 119 = 15708 26. त्रिपुरा 60 1556342 26 026 × 060 = 1560 27. उत्तराखंड 70 4491239 64 064 × 070 = 4480 28. उत्तर प्रदेश 403 83849905 208 208 × 403 = 83824 29. पश्चिम बंगाल 294 44312011 151 151 × 294 = 44394 30. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली 70 4065698 58 058 × 070 = 4060 31. पुदुचेरी 30 471707 16 016 × 030 = 480 कुल 4120 549302005 = 549495 * संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए लागू) आदेश (क) संसद सदस्यों के प्रत्येक मत का मूल्य कुल सदस्य : लोक सभा (543) + राज्य सभा (233) = 776 प्रत्येक मत का मूल्य = (ख) 776 संसद सदस्यों के मतों का कुल मूल्य = 708 × 776 = 5,49,408 (ग) राष्ट्रपतीय निर्वाचन हेतु कुल निर्वाचक = विधायक (4120) + सांसद (776) = 4896 (घ) राष्ट्रपतीय निर्वाचन 2017 हेतु 4896 = 5,49,495 + 5,49,408 = 10,98,903 निर्वाचकों के मतों का कुल मूल्य भारत के संविधान से उद्धृत अंश राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति 52. भारत का राष्ट्रपति— भारत का एक राष्ट्रपति होगा। 53. संघ की कार्यपालिका शक्ति— (1) संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा। (2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश राष्ट्रपति में निहित होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित होगा। (3) इस अनुच्छेद की कोई बात— (क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी राज्य की सरकार या अन्य प्राधिकारी को प्रदान किए गए कृत्य राष्ट्रपति को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी; या (ख) राष्ट्रपति से भिन्न अन्य प्राधिकारियों को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद को निवारित नहीं करेगी। 54. राष्ट्रपति का निर्वाचन— राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचकगण के सदस्य करेंगे जिसमें— (क) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य; और (ख) राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य, होंगे। 46 [स्पष्टीकरण—इस अनुच्छेद और अनुच्छेद 55 में, “राज्य” के अंतर्गत दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र और पुदुचेरी संघ राज्यक्षेत्र हैं।] 55. राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति— (1) जहां तक साध्य हो, राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न—भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मान में एकरूपता होगी। (2) राज्यों में आपस में ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्यों और संघ में समतुल्यता प्राप्त कराने के लिए संसद और प्रत्येक राज्य की विधान सभा का प्रत्येक निर्वाचित सदस्य ऐसे निर्वाचन में जितने मत देने का हकदार है उनकी संख्या निम्नलिखित रीति से अवधारित की जाएगी, अर्थात्:— (क) किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत होंगे जितने कि एक हजार के गुणित उस भागफल में हों जो राज्य की जनसंख्या को उस विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए; (ख) यदि एक हजार के उक्त गुणितों को लेने के बाद शेष पांच सौ से कम नहीं है तो उपखंड (क) में निर्दिष्ट प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाएगा; (ग) संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या वह होगी जो उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों के लिए नियत कुल मतों की संख्या को, संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए, जिसमें आधे से अधिक भिन्न को एक गिना जाएगा और अन्य भिन्नों की उपेक्षा की जाएगी। (3) राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा। 47[स्पष्टीकरण—इस अनुच्छेद में, “जनसंख्या” पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं: परंतु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन् 2000 के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है।] 56. राष्ट्रपति की पदावधि— (1) राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा: परंतु— (क) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; (ख) संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 में उपबंधित रीति से चलाए गए महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा; (ग) राष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है। (2) खंड (1) के परंतुक के खंड (क) के अधीन उपराष्ट्रपति को संबोधित त्यागपत्र की सूचना उसके द्वारा लोक सभा के अध्यक्ष को तुरंत दी जाएगी। 57. पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता— कोई व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है या कर चुका है, इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए उस पद के लिए पुनर्निर्वाचन का पात्र होगा। 58. राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं— (1) कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह— (क) भारत का नागरिक है, (ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और (ग) लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है। (2) कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा। स्पष्टीकरण—इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल 48*** है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है। 59. राष्ट्रपति के पद के लिए शर्तें— (1) राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान—मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान—मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है। (2) राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा। (3) राष्ट्रपति, बिना किराया दिए, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जो संसद, विधि द्वारा अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा। (4) राष्ट्रपति की उपलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे। 60. राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान— प्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध वरिष्‍ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्:— “मैं, अमुक ——————————————— कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा।” 61. राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया— (1) जब संविधान के अतिक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो, तब संसद का कोई सदन आरोप लगाएगा। (2) ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि— (क) ऐसा आरोप लगाने की प्रस्थापना किसी ऐसे संकल्प में अंतर्विष्ट नहीं है, जो कम से कम चौदह दिन की ऐसी लिखित सूचना के दिए जाने के पश्चात् प्रस्तावित किया गया है जिस पर उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक—चौथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का अपना आशय प्रकट किया है; और (ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो—तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया है। (3) जब आरोप संसद के किसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दूसरा सदन उस आरोप की जांच करेगा या कराएगा और ऐसी जांच में उपस्थित होने का तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का राष्ट्रपति को अधिकार होगा। (4) यदि जांच के परिणामस्वरूप यह घोषित करने वाला संकल्प कि राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है, आरोप की जांच करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो—तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित किए जाने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाना होगा। 62. राष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन संचालित करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि— (1) राष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा। (2) राष्ट्रपति की मृत्यु, पद त्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने की तारीख के पश्चात् यथाशीघ्र और प्रत्येक दशा में छह मास बीतने से पहले किया जाएगा और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति, अनुच्छेद 56 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा।
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    साधारण निर्वाचन 2014 - पुलिस अधिकारी के लिए माॅडल जांच सूची
  6. 1) राज्‍य सभा के सदस्‍यों की अधिकतम संख्‍या कितनी हो सकती हैं? उत्‍तर : 250 राज्‍य सभा के सदस्‍यों की अधिकतम संख्‍या 250 हो सकती है। भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 80 में उपबंध है कि भारत के राष्‍ट्रपति द्वारा 12 सदस्‍य नामित किए जाते हैं और एकल संक्रणीय मत के माध्‍यम से अनुपातिक प्रतिनिधित्‍व प्रणाली के अनुसार राज्‍य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्‍यों द्वारा राज्‍यों से अधिकतम 238 प्रतिनिधि निर्वाचित करने होते हैं (संविधान का अनुच्‍छेद 80)। 2) राज्‍य सभा के सदस्‍यों की मौजूदा संख्‍या कितनी है? उत्‍तर : 245 सदस्‍य 12 नामित हैं और 233 सदस्‍य निर्वाचित हैं। 3) राज्‍य सभा का कार्यकाल कितना होता है? उत्‍तर: राज्‍य सभा एक स्‍थायी सदन है और भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 83(1) के अनुसार इसे भंग नहीं किया जा सकता ! किन्‍तु, जहां तक संभव होता है इसके एक तिहाई सदस्‍य प्रत्‍येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्‍त हो जाते हैं और उन्‍हें प्रतिस्‍थापित करने के लिए उतनी ही संख्‍या में सदस्‍यों को चुना जाता है। 4) राज्‍य सभा के सदस्‍यों को कौन निर्वाचित करता है? उत्‍तर : राज्‍य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्‍य उन्‍हें निर्वाचित करते हैं। ‘राज्‍य’ शब्‍द में पुडुचेरी और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली भी शामिल है। भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 80(4) में उपबंध हैं कि एकल संक्रमणीय मत के माध्‍यम से अनुपातिक प्रतिनिधित्‍व प्रणाली के द्वारा राज्‍य विधान सभाओं के निर्वाचति सदस्‍यों द्वारा राज्‍य सभा के सदस्‍यों को निर्वाचित किया जाएगा। 5) राज्‍य सभा के सदस्‍यों को कौन नामित करता है? उत्‍तर : भारत के राष्‍ट्रपति भारत के राष्‍ट्रपति राज्‍य सभा के लिए 12 सदस्‍यों को नामित करते हैं जैसा पहले उल्‍लेख किया गया है। 6) क्‍या नामित सदस्‍यों के लिए कोई विशेष अर्हता होती है? उत्‍तर : हाँ भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 80(3) में उपबंध है कि राज्‍य सभा में राष्‍ट्रपति द्वारा नामित किए जाने वाले सदस्‍यों को साहित्‍य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों का विशेष ज्ञान अथवा व्‍यावहारिक अनुभव होना चाहिए। अनुच्‍छेद 84(ख) उपबंधित करता है कि वह व्‍यक्ति 30(तीस) वर्ष से कम आयु का नहीं होगा। 7) राज्‍य सभा के निर्वाचन में नाम निर्देशन करने के लिए कितने प्रस्‍तावकों का समर्थन आवश्‍यक होता है? उत्‍तर : मान्‍यताप्राप्‍त दलों द्वारा खड़े किए गए अभ्‍यर्थियों के मामले में राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन के लिए अभ्‍यर्थी के प्रत्‍येक नाम निर्देशन पर संबंधित विधान सभा के कुल निर्वाचित सदस्‍यों के कम से कम दस प्रतिशत अथवा दस सदस्‍यों, जो भी कम हो, का प्रस्‍तावकों के रूप में समर्थन आवश्‍यक होगा। अन्‍य अभ्‍यर्थियों के मामले में, विधान सभा के दस निर्वाचित सदस्‍यों का समर्थन चाहिए। 8.) एक अभ्‍यर्थी नाम निर्देशन कागजात के कितने सेट दायर कर सकता है? उत्‍तर : चार लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 39 की उप धारा (2)छ के साथ पठित, धारा 33 की उप-धारा (6) के अंतर्गत किसी भी एक अभ्‍यर्थी के द्वारा अथवा उसकी ओर से अधिकतम केवल चार ना‍म निर्देशन संबंधी कागजात प्रस्‍तुत अथवा उसी निर्वाचन क्षेत्र में स्‍वीकार किए जा सकते हैं। 9) रिटर्निंग अधिकारी को नाम निर्देशन संबंधी कागजात कौन प्रस्‍तुत कर सकता है? उत्‍तर : नाम निर्देशन संबंधी कागजात या तो स्‍वयं अभ्‍यर्थी द्वारा अथवा उसके प्रस्‍तावकों में से किसी एक के द्वारा जमा करवाने होते हैं। 10) राज्‍य सभा का निर्वाचन लड़ने के लिए अभ्‍यर्थी को कितनी सुरक्षा राशि जमा करानी होती है? उत्‍तर : राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में प्रत्‍येक अभ्‍यर्थी को लोक प्रतिनिधित्‍व (संशोधन) अधिनियम, 2009 (1 फरवरी 2010 से लागू हुआ) के द्वारा यथा संशोधित 10,000/- रू. (लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951 की धारा 39(2) के साथ पठित धारा 34) जमा कराना अनिवार्य होता है। यदि अभ्‍यर्थी अनुसूचित जाति‍ अथवा अनुसूचित जनजाति का है तो उसे केवल 5000/- रू. जमा कराने होंगे। 11) क्‍या विधान सभा/संघ राज्‍य क्षेत्र का निर्वाचित सदस्‍य विधान सभा में अपना पद ग्रहण करने से पहले और संविधान के अंतर्गत विधान सभा के सदस्‍य के रूप में अपेक्षित शपथ एवं प्रतिज्ञान लेने से पहले राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में एक निर्वाचक के रूप में भाग लेने हेतु पात्र है? क्‍या ऐसे सदस्‍य नाम निर्देशन हेतु प्रस्‍तावक हो सकते हैं? उत्‍तर : हाँ। यह प्रश्‍न पशुपति नाथ सुकुल बनाम नेमचंद जैन (एआईआर 1984 एससी 399) के मामले में उत्‍पन्‍न हुआ था। सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने निर्णय दिया कि लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951 की धारा 73 के अंतर्गत निर्वाचन आयोग द्वारा इसकी अधिसूचना के द्वारा जैसे ही विधान सभा का गठन किया गया, विधान सभा के नवनिर्वाचित सदस्‍य उस सदन (विधान सभा) के सदस्‍य बन गए, और ऐसे सदस्‍य विधान सभा में अपना पदग्रहण करने से पहले ही राज्‍य सभा के निर्वाचन सहित सभी गैर-विधायी गतिविधियों में भाग ले सकते थे। उच्‍चतम न्‍यायालय ने अपने दिनांक 6 जनवरी, 1997 के आदेश के द्वारा इस विचार की पुन: पुष्टि भी की थी। [मधुकर जेटली बनाम भारत संघ एवं अन्‍य – 1997 (II) एससीसी III] ऐसे सदस्‍य अभ्‍यर्थियों के नाम निर्देशन हेतु प्रस्‍तावक भी बन सकते हैं। 12) क्‍या राज्‍य सभा के निर्वाचनों में खुले मतदान पर दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता संबंधी संविधान की दसवीं अनुसूची के उपबंध लागू होते हैं? उत्‍तर : नहीं सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने कुलदीप नायर बनाम भारत संघ और अन्‍य (एआईआर 2006 एससी 3127) के मामले में अपने दिनांक 22 अगस्‍त, 2006 के निर्णय में कहा कि ‘’यह दावा तर्कसंगत नहीं है कि खुले मतदान से राज्‍य सभा के निर्वाचन में मतदाता का अभिव्‍यक्ति का अधिकार प्रभावित होता है, क्‍योंकि एक विशिष्‍ट पद्धति में मतदान करने से निर्वाचित विधायक सदन की सदस्‍यता से किसी निरर्हता का सामना नहीं करेगा। ज्‍यादा से ज्‍यादा उसे उस राजनैतिक दल की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है जिससे वह संबंधित है।‘’ 13) क्‍या किसी राज्‍य विधान सभा का ऐसा निर्वाचित सदस्‍य राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में मतदान कर सकता है, जिसका किसी निर्वाचन याचिका में उच्‍च न्‍यायालय द्वारा निर्वाचन रद्द कर दिया गया हो, लेकिन उसकी अपील के लम्बित होने की अवधि में उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा उसके पक्ष में सशर्त स्‍थगन प्रदान किया हो, जिसमें संबंधित सदस्‍य को विधान सभा के उपस्थिति रजिस्‍टर में हस्‍ताक्षर करने की अनुमति दी गई हो किन्‍तु, सदन की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति नहीं दी हो? उत्‍तर : नहीं उच्‍चतम न्‍यायालय ने अपने दिनांक 27 अक्‍टूबर, 1967 (सत्‍यनारायण मित्रा बनाम बिरेश्‍वर घोष 1967 की अपील सं.1408 (एनसीई)) के आदेश में स्‍पष्‍ट किया कि ऐसे संबंधित सदस्‍य को राज्‍य सभा के निर्वाचन में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके पश्‍चात एक नियम के रूप में, किसी भी राज्‍य की विधान सभा में ऐसे सदस्‍य को राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान सभा परिषद में किसी भी निर्वाचन में किसी अभ्‍यर्थी के नाम को प्रस्‍तावित करने अथवा मतदान करने की अनुमति नहीं दी गई है। 14) क्‍या राज्‍य विधान सभा का ऐसा निर्वाचित सदस्‍य राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में मतदान कर सकता है जिसका निर्वाचन किसी निर्वाचन याचिका पर उच्‍च न्‍यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया हो, किन्‍तु उच्‍चतम न्‍यायालय ने उच्‍च न्‍यायालय के आदेश पर एक संपूर्ण स्‍थगन आदेश पारित कर दिया हो? उत्‍तर : हां। ऐसे मामले में, उच्‍च न्‍यायालय के आदेश को लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 116 आ [3] के अंतर्गत कभी भी प्रभावी नहीं होना माना जाएगा, और संबंधित सदस्‍य बिना किसी बाधा के राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में भाग लेने हेतु उसके अधिकार सहित विधान सभा के सदस्‍य के सभी अधिकारों और विशेषाधिकारों का प्रयोग करता रहेगा। 15) यदि कोई द्विवार्षिक निर्वाचन नियत समय पर संबंधित राज्‍य विधान सभा के न होने के कारण निश्चित समय पर नहीं होता है और परिणामी रिक्तियां लंबे समय तक नहीं भरी जाती हैं और इस दीर्घ अवधि के दौरान अन्‍य नियमित रिक्तियां भी उत्‍पन्‍न हो जाती हैं, तो क्‍या इस प्रकार से उत्‍पन्‍न रिक्तियों को एक सामान्‍य निर्वाचन हेतु सम्मिलित किया जा सकता है अथवा प्रत्‍येक अलग समय (श्रेणियों) पर उत्‍पन्‍न होने वाली रिक्तियों को अलग निर्वाचन द्वारा भरा जाना होता है, चाहे ऐसे निर्वाचनों के लिए संबंधित विधान सभा के गठन के संबंध में एक सामान्‍य(कॉमन) समय-सारणी अपनाई गई हो? उत्‍तर : भिन्‍न-भिन्‍न वर्गों/ समय-अवधि(साइकल)[परिषदों के प्रारंभिक गठन के समय निर्धारित की गई] में उत्‍पन्‍न नियमित रिक्तियों को सम्मिलित नहीं किया जा सकता और अलग अलग अवसरों पर उत्‍पन्‍न रिक्तियों को अलग निर्वाचनों द्वारा भरा जाना होता है, चाहे ऐसे निर्वाचनों के लिए संबंधित विधान सभा के गठन के संबंध में एक सामान्‍य(कॉमन) समय-सारणी अपनाई गई हो। [दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय के समक्ष सुरिन्‍द्र पाल रातावाल बनाम शमीम अहमद एआईआर 1985 डीईएल 22 एंड ए.के.वालिया बनाम भारत संघ एवं अन्‍य, 1994 की सिविल रिट सं. 132] 16) क्‍या उस निर्वाचन में नाम निर्देशन संबंधी कागजातों की संवीक्षा के दिन शपथ ली या प्रतिज्ञान किया जा सकता है और उन पर हस्‍ताक्षर किए जा सकते हैं ? उत्‍तर : नहीं, उस निर्वाचन में नाम निर्देशन संबंधी कागजातों की संवीक्षा के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा नियत तिथि से पहले शपथ लेनी या प्रतिज्ञान किया जाना चाहिए और उन पर हस्‍ताक्षर नहीं किए जाने चाहिए ! उच्‍चतम न्‍यायालय के पशुपतिनाथ सिंह बनाम हरिहर प्रसाद सिंह (ए.आईआर. 1968 एस.सी. 1064) और कादर खान हुसैन खान एवं अन्‍य बनाम निजलिंगप्‍पा [ (1970(1)एस.सी.ए.-548] के मामले में दिए गए निर्णयों से स्थिति स्‍पष्‍ट हो चुकी है और वास्‍तव में शपथ लेने अथवा प्रतिज्ञान करने और हस्‍ताक्षर करने के संबंध में सभी संदेह दूर हो चुके हैं। इन निर्णयों के अनुसार अभ्‍यर्थी के नाम निर्देशन संबंधी कागजात प्रस्‍तुत होने के पश्‍चात ही उसके द्वारा शपथ ली अथवा प्रतिज्ञान किया जा सकता है और उन पर हस्‍ताक्षर किए जा सकते हैं तथा संवीक्षा की तिथि को न तो ऐसी शपथ ली जा सकती है न ही प्रतिज्ञान किया जा सकता है। यह कार्य संवीक्षा की नियत तिथि से पहले किया जाना चाहिए। 17) क्‍या एक ही प्रस्‍तावक एक से अधिक अभ्‍यर्थियों के नाम निर्देशन का प्रस्‍ताव रख सकता है ? उत्‍तर : हाँ ! विधि के अंतर्गत एक निर्वाचक द्वारा एक से अधिक अभ्‍यर्थियों के नाम निर्देशन करने पर कोई रोक नहीं है। अत:, एक अभ्‍यर्थी के नाम निर्देशन हेतु प्रस्‍तावक के रूप में समर्थन करने वाला कोई निर्वाचक एक या एक से अधिक अभ्‍यर्थियों के नाम निर्देशन का भी समर्थन कर सकता है (अमोलक चंद बनाम रघुवीर सिंह एआईआर 1968 एससी 1203). यहां तक कि एक अभ्‍यर्थी स्‍वयं उसी निर्वाचन के लिए किसी अन्‍य अभ्‍य‍र्थी के नाम निर्देशन का भी प्रस्‍तावक हो सकता है। 18) अभ्‍यर्थी के नाम निर्देशन संबंधी दस्‍तावेज कौन प्रस्‍तुत कर सकता है? उत्‍तर : अभ्‍यर्थी द्वारा स्‍वयं अथवा उसके किसी भी प्रस्‍तावक द्वारा नाम निर्देशन संबंधी कागजात रिटर्निंग अधिकारी अथवा प्रधिकृत सहायक रिटर्निंग अधिकारी को प्रस्‍तुत किए जाएंगे [1951 के अधिनियम की धारा 39(2) के साथ पठित धारा 33(1)]। ये किसी अन्‍य व्‍यक्ति द्वारा प्रस्‍तुत नहीं किए जा सकते हैं, चाहे उन्‍हें अभ्‍यर्थी अथवा उसके प्रस्‍तावक द्वारा लिखित में प्राधिकृत किया जाए। 19) क्‍या नाम निर्देशन संबंधी दस्‍तावेज डाक द्वारा अथवा फैक्‍स या ई-मेल जैसे संचार के अन्‍य माध्‍यमों से भेजे जा सकते हैं ? उत्‍तर : नहीं ! नाम निर्देशन डाक अथवा फैक्‍स या ई-मेल जैसे संचार के अन्‍य माध्‍यमों से नहीं भेजा जा सकता है [हरी विष्‍णु कामत बनाम गोपाल स्‍वरूप पाठक 48 ईएलआर1 देखें] 20) क्‍या अभ्‍यर्थिता वापिस लेने के नोटिस को रद्द किया जा सकता हैं ? उत्‍तर : नहीं ! अभ्‍यर्थी द्वारा एक बार विहित पद्धति में अभ्‍यर्थिता वापिस लेने का नोटिस देने के बाद उसके पास इस नोटिस को वापिस लेने अथवा उसे रद्द करने का कोई विकल्‍प अथवा अधिकार नहीं होता है [लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951 की धारा 39(2) के साथ पठित धारा 37(2)]। 21) अभ्‍यर्थी को उसके नाम निर्देशन संबंधी कागजातों के साथ कितने शपथ पत्र दायर करने होते हैं ? उत्‍तर : दो शपथ पत्र दायर करने होते हैं, एक फार्म 26 में और एक अतिरिक्‍त शपथ-पत्र सरकारी आवास की देय राशि के संबंध में आयोग के दिनांक 03.02.2016 के आदेश सं. 509/11/2004-जेएस.I के तहत इसके द्वारा विहित फार्म में ! 22) क्‍या शपथ-पत्रों, (फार्म-26) के किसी कॉलम को खाली छोड़े जाने पर भी नाम निर्देशन संबंधी कागजात वैध होता है ? उत्‍तर : माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय ने 2008 की रिट याचिका (सि) सं. 121 (रिसरजेंस इंडिया बनाम भारत निर्वाचन आयोग एवं अन्‍य) में अपने दिनांक 13/09/013 के निर्णय में यह अभिनिर्धारित किया है कि अभ्‍यर्थियों द्वारा अपने नाम निर्देशन संबंधी कागजातों के साथ दायर किए गए शपथ-पत्रों में अभ्‍यर्थियों को इसके समस्‍त कॉलम भरने होंगे और किसी भी कॉलम को खाली नहीं छोड़ा जा सकता है। इसीलिए, शपथ-पत्र को दायर करते समय, रिटर्निंग अधिकारी द्वारा यह जांच की जानी चाहिए कि क्‍या नाम निर्देशन संबंधी कागजातों के साथ दायर शपथ पत्र के सभी कॉलम भरे गए हैं या नहीं। यदि नहीं, तो रिटर्निंग अधिकारी अभ्‍यर्थी को नोटिस देगा कि वह एक नया शपथ-पत्र जमा कराए जिसमें सभी कॉलम विधिवत भरे हों। माननीय न्‍यायालय ने निर्णय दिया है कि यदि किसी मद के संबंध में कोई सूचना नहीं है तो उस कॉलम में उपयुक्‍त टिप्‍पणी जैसे ‘शून्‍य’अथवा ‘लागू नहीं’ इत्‍यादि, जैसा लागू हो, लिखा जाए। अभ्‍यर्थियों को कोई भी कॉलम खाली नहीं छोड़ना चाहिए। यदि कोई अभ्‍यर्थी रिटर्निंग अधिकारी के नोटिस के पश्‍चात भी रिक्‍त कॉलमों को भरने में असफल रहता है तो नाम निर्देशन संबंधी कागजातों की संवीक्षा करते समय रिटर्निंग अधिकारी द्वारा रद्द किया जा सकता है। 23) क्‍या किसी अभ्‍यर्थी के नाम निर्देशन पेपर को निरस्‍त किया जा सकता है यदि उसमें दी गई सूचना गलत है ? उत्‍तर : नहीं ! किसी नाम निर्देशन फार्म मे गलत सूचना देना उस नाम निर्देशन को निरस्‍त करने का मानदंड नहीं है। रिटर्निंग अधिकारी लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951की धारा 36 में निहित प्रावधानों के अनुसार ही नाम निर्देशन कागजों को रद्द कर सकता है। 24) गलत शपथ-पत्र दायर करने की स्थिति में अभ्‍यर्थी पर क्‍या दंड लगाया जाता है ? उत्‍तर : यदि कोई अभ्‍यर्थी प्रपत्र 26 में शपथ-पत्र में कोई मिथ्‍या घोषणा करता है अथवा कोई सूचना छिपाता है तो वह लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 26 के अंतर्गत अधिकतम छह माह के कारावास अथवा जुर्माने अथवा दोनों दंड का भागी है। ऐसे मामले में आयोग के दिनांक 26.04.2014 के अनुदेश के अनुसार, शिकायतकर्ता लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 125ए के अंतर्गत कार्रवाई हेतु सीधे उपयुक्‍त विधि न्‍यायालय जा सकता है। 25) नाम निर्देशन कागजों के संबंध में दायर किए जाने हेतु अपेक्षित विभिन्‍न दस्‍तावेजों को प्रस्‍तुत करने की अंतिम (आउटर) समय सीमा क्‍या है ? उत्‍तर : (क) फार्म 26 में शपथ-पत्र, अतिरिक्‍त शपथ-पत्र और फार्म एए और बीबी नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि को अधिकतम अपराह्न 3.00 बजे तक दायर करने होते हैं। यदि अभ्‍यर्थी ने मूल शपथ-पत्र में कोई कॉलम खाली छोड़ दिया है और रिटर्निंग अधिकारी ने उसे नया और पूरा शपथ-पत्र दायर करने का नोटिस दिया है तो संशोधित शपथ-पत्र नाम निर्देशन की संवीक्षा हेतु नियत समय तक दायर किया जा सकता है। (ख) नाम निर्देशन दायर करने के बाद और संवीक्षा हेतु नियत तिथि से पहले शपथ ग्रहण करनी होती है। (ग) निर्वाचक नामावली का सत्‍यापित उद्धरण संवीक्षा के समय तक प्रस्‍तुत किया जा सकता है। 26) क्‍या फार्म ए ए और फार्म बी बी को फैक्‍स से भेजा जा सकता है अथवा इनकी फोटोकापियां प्रस्‍तुत की जा सकती हैं ? उत्‍तर : नहीं । 27) क्‍या फार्म ए ए और बी बी को नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि को अपराह्न 3.00 बजे के बाद जमा कराया जा सकता है उत्‍तर : नहीं । 28) खुली मतदान पद्धति कैसे संचालित की जाती है ? उत्‍तर : खुली मतदान पद्धति केवल राज्‍य सभा के निर्वाचन में ही अपनाई जाती है। प्रत्‍येक राजनैतिक दल, जिसके विधायकों के रूप में सदस्‍य हैं, यह पता लगाने के लिए अपना एक प्राधिकृत एजेंट नियुक्‍त कर सकते हैं कि उसके सदस्‍यों (विधायकों) ने किसको मत डाला है। प्राधिकृत एजेंट रिटर्निंग अधिकारी द्वारा मतदान केन्‍द्रों के भीतर उपलब्‍ध कराई गई सीटों पर बैठेगें। उन विधायकों, जो राजनैतिक दलों के सदस्‍य हैं, को अपने मतपत्र पर निशान लगाने के बाद और मत पेटी में डालने से पहले अपने-अपने दल के प्राधिकृत एजेंट को चिह्नित पत्र दिखाना आवश्‍यक होता है। 29) क्‍या किसी दल का प्राधिकृत एजेंट राज्‍य सभा के निर्वाचनों में अपने दल के साथ-साथ किसी अन्‍य दल का प्राधिकृत एजेंट भी हो सकता है ? उत्‍तर : नहीं । निर्वाचन संचालन नियमावली 1961 के नियम 39एए की मूल भावना यह है कि किसी भी राजनैतिक दल के विधायक अपने मत पत्र (अपना मत डालने के बाद) केवल अपनी पार्टी के प्राधिकृत एजेंट को ही दिखाएंगे न कि अन्‍य दलों के प्राधिकृत एजेंटों को। अत:, एक ही एजेंट को एक से अधिक दल के प्राधिकृत एजेंट के रूप में नियुक्‍त नहीं किया जा सकता है। 30) यदि किसी राजनैतिक दल का निर्वाचक अपने दल के प्राधिकृत एजेंट को अपना चिह्नित मतपत्र दिखाने से मना करता है/नहीं दिखाता है अथवा किसी अन्‍य राजनैतिक दल के प्राधिकृत एजेंट को अपना चिह्नित मतपत्र दिखाता है तो पीठासीन अधिकारी/रिटर्निंग अधिकारी से राज्‍य सभा के निर्वाचन में कौन सी कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है? उत्‍तर : ऐसी स्थिति में पीठासीन अधिकारी अथवा पीठासीन अधिकारी के निदेश के अंतगर्त मतदान अधिकारी उस निर्वाचक को जारी किया गया मतपत्र वापिस ले लेगा और उस मतपत्र के पिछले भाग पर ‘’रद्द - मतदान पद्धति का उल्‍लंघन’’ लिखने के बाद उसे एक अलग लिफाफे में रख देगा। ऐसे मामले में, निर्वाचन संचालन नियमावली, 1961के नियम 39ए के उप-नियम (6) से (8) के उपबंध लागू होंगे। यदि ऐसे मतपत्र को वापिस लेने से पहले ही निर्वाचक उसे मत पेटी में डाल देता है तो ऐसे मतपत्रों की गणना के समय, रिटर्निंग अधिकारी को सर्वप्रथम उस मतपत्र को अलग कर देना चाहिए और उस मतपत्र की गणना नहीं की जाएगी। 31) क्‍या निर्दलीय विधायक अपना चिह्नित मतपत्र किसी अन्‍य दल के प्राधिकृत एजेंट को दिखा सकता है ? उत्‍तर : नहीं । निर्दलीय विधायक के लिए यह अपेक्षित है कि वह अपना चिह्नित मतपत्र किसी एजेंट को दिखाए बिना मतपेटी में उाले। 32) क्‍या किसी विधायक अथवा मंत्री को राज्‍य सभा और विधायकों द्वारा राज्‍य विधान परिषदों के निर्वाचन में दल के प्राधिकृत एजेंट के रूप में नियुक्‍त किया जा सकता है ? उत्‍तर : आयोग की ओर से राज्‍य सभा और विधायकों द्वारा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचनों में ऐसी कोई रोक नहीं है। 33) लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 152 के अंतर्गत रखी जाने वाली निर्वाचकों की सूची को क्‍या राज्‍य परिषदों के निर्वाचन की अधिसूचना की तिथि के पश्‍चात अथवा नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम ति‍थि के बाद भी राज्‍य विधान सभा के नव निर्वाचित सदस्‍य का नाम शामिल करने के लिए आशोधित किया जा सकता है ? उत्‍तर : यदि किसी विधान सभा के ऐसे उप-निर्वाचन में कोई सदस्‍य निर्वाचित होता है, जिसका परिणाम राज्‍य सभा के निर्वाचन की अधिसूचना की तिथि के पश्‍चात् अथवा नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि के बाद घोषित किया गया हो, तो नवनिर्वाचति विधायक के नाम को लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 152 के अंतर्गत रखी जा रही सदस्‍यों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्‍त, वह त‍ब राज्‍य-सभा के निर्वाचन में मतदान का पात्र होगा, यदि मतदान उसके विधायक के रूप में निर्वाचित होने की तिथि के बाद होता है। यह निदेश विधायकों द्वारा विधान परिषदों के निर्वाचनों के मामले में भी लागू होता है। 34) क्‍या ऐसा व्‍यक्ति किसी निर्वाचन में मतदान कर सकता है जो कारागार में बंद है, चाहे उसे कारावास का दंड दिया गया हो, अथवा उसका मामला सुनवाई के अधीन हो अथवा वह पुलिस की कानूनी हिरासत में हो? उत्‍तर : नहीं। लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के प्रावधानों में उपबंधित है कि कोई भी व्‍यक्ति किसी निर्वाचन में मतदान नहीं करेगा यदि वह कारावास में बंद है बेशक निर्वासन के दंडादेश के अधीन हो या अन्‍यथा पुलिस की विधिपूर्ण अभिरक्षा में है।
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eci-logo.pngभारत निर्वाचन आयोग एक स्‍वायत्‍त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में निर्वाचन प्रक्रियाओं के संचालन के लिए उत्‍तरदायी है। यह निकाय भारत में लोक सभा, राज्‍य सभा, राज्‍य विधान सभाओं और देश में राष्‍ट्रपति एवं उप-राष्‍ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है। निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्‍छेद 324 और बाद में अधिनियमित लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम के प्राधिकार के तहत कार्य करता है। 

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