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  1. भारत के संविधान के तहत, भारत का एक राष्ट्रपति (संविधान का अनुच्छेद 52 देखें) सदैव होगा। वह देश में सर्वोच्च निर्वाचित पद धारण करता है एवं संविधान के उपबंधों और राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 के अनुसार निर्वाचित किया जाता है। उक्त अधिनियम को राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 के उपबंधों द्वारा संपूरित किया गया है, एवं और नियमों के अधीन उक्त अधिनियम राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन के आयोजन के सभी पहलुओं को विनियमित करने वाला एक संपूर्ण नियमसंग्रह का निर्माण करता है। राष्ट्रपति उस तिथि से (5) पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करता है, जिस दिन वह अपना पद ग्रहण करता है एवं तदनुसार, 24 जुलाई 2017 को भारत के पदस्थ राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी की पदावधि के अवसान से पूर्व नए राष्ट्रपति का निर्वाचन इस वर्ष (2017) आयोजित किया जाना है। उक्त निर्वाचन के संदर्भ में, कुछ प्रश्न, जिन्हें अकसर पूछा जा सकता है (अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न) तथा किसी भी संदेह और भ्रम, जो इच्छुक अभ्यर्थियों, निर्वाचकों और साधारण जनता के मन में उत्पन्न हो सकते हैं, के निराकरण हेतु उनके उत्तर नीचे दिए गए हैं :- 1. भारत के राष्ट्रपति का चयन कौन करता है? उ० राष्ट्रपति का चयन एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य एवं राज्यों की विधान सभाओं एवं साथ ही राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली क्षेत्र तथा संघ शासित क्षेत्र, पुदुचेरी के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं। [भारत के संविधान का अनुच्छेद 54] 2. राष्ट्रपति के पद की अवधि क्या है? उ० राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने की तिथि से 5 (पाँच) वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करता है। तथापि, अपनी पदावधि के अवसान के पश्चात् भी वह अपने पद पर तब तक बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी उसका पद ग्रहण नहीं कर लेता है। [भारत के संविधान का अनुच्छेद 56] 3. भारत के राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन कब होता है? उ० राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 4 की उप-धारा (3) के उपबंधों के अधीन, निर्गामी राष्ट्रपति की पदावधि के अवसान से पहले, साठ दिन की अवधि में किसी दिन आयोग द्वारा निर्वाचन आयोजित किए जाने की अधिसूचना जारी की जा सकती है। निर्वाचन कार्यक्रम इस प्रकार नियत किया जाएगा कि निर्गामी राष्ट्रपति की पदावधि समाप्ति के अगले ही दिन निर्वाचित राष्ट्रपति पद ग्रहण करने में सक्षम हों। 4. भारत के राष्ट्रपतीय निर्वाचन कौन आयोजित कराता है? उ० भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन कराने का अधिकार भारत निर्वाचन आयोग में निहित है। 5. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन हेतु कौन-सी निर्वाचन प्रणाली / प्रक्रिया अपनाई जाती है? उ० भारत के संविधान के अनुच्छेद 55 (3) के अनुसार, राष्ट्रपतीय निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुरूप किया जाएगा और ऐसे निर्वाचन में गोपनीय मतपत्रों द्वारा मतदान किया जाएगा। 6. भारत के राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन लड़ने के लिए किसी अभ्यर्थी की क्या-क्‍या योग्यताएं आवश्यक हैं? उ० अनुच्‍छेद 58 के अंतर्गत एक अभ्यर्थी को राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन लड़ने के लिए निम्नलिखित आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए :- भारत का नागरिक होना चाहिए। पैंतीस (35) वर्ष की आयु पूर्ण होनी चाहिए। लोक सभा का सदस्य होने के लिए अर्हित होना चाहिए। भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन या किसी भी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण के अधीन, उक्त किसी भी सरकार के नियंत्रणाधीन किसी भी लाभ का पदधारी नहीं होना चाहिए। तथापि, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का पदधारी या किसी भी राज्य के राज्यपाल का पदधारी या केन्द्र या राज्य मंत्री का पदधारी अभ्यर्थी हो सकता है, एवं निर्वाचन लड़ने का पात्र होगा। 7. उपर्युक्त के अलावा, नामनिर्देशन के विधिमान्य होने हेतु अभ्यर्थी द्वारा पूरी की जाने वाली अन्य शर्तें क्या हैं? उ० निर्धारित प्रपत्र में निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी का नामनिर्देशन पत्र (राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 में संलग्न प्रपत्र 2), जिसे कम से कम पचास निर्वाचकों द्वारा प्रस्तावकों के रूप में तथा कम से कम पचास निर्वाचकों द्वारा अनुमोदकों के रूप में समर्थित होना चाहिए। सर्वथा पूर्ण नामनिर्देशन पत्र, निर्वाचन आयोग द्वारा इस प्रयोजन के लिए नियुक्त रिटर्निंग अधिकारी को किसी भी दिन में पूर्वाह्न 11 बजे से अपराह्न 3 बजे तक, सार्वजनिक अवकाश के अलावा, या तो अभ्यर्थी द्वारा स्वयं या उसके प्रस्तावकों या अनुमोदकों में से किसी के भी द्वारा प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यहां ‘निर्वाचकों’ से आशय निर्वाचित सांसदों और निर्वाचित विधायकों से है, जो राष्ट्रपति निर्वाचन के लिए निर्वाचक हैं। निर्वाचन के लिए 15,000/-₹ का प्रतिभूति निक्षेप भी या तो रिटर्निंग अधिकारी को नकद में जमा कराया जाना चाहिए या नामनिर्देशन पत्र के साथ ऐसी रसीद संलग्न करनी चाहिए जो दर्शित करती हो कि अभ्यर्थी द्वारा या उसकी ओर से यह राशि भारतीय रिज़र्व बैंक या सरकारी खजाने में जमा करा दी गई है। अभ्यर्थी को उस संसदीय निर्वाचन क्षेत्र जिसमें वह एक निर्वाचक के रूप में पंजीकृत है, की वर्तमान निर्वाचक नामावली में उसके नाम को दर्शित करती हुई प्रविष्टि की प्रमाणित प्रतिलिपि भी प्रस्तुत करना आवश्यक है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 5ख और 5ग देखें] 8. भारत के राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन हेतु किसे रिटर्निंग अधिकारी / सहायक रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त किया जाता है? ऐसी नियुक्तियां किसके द्वारा की जाती हैं? उ० परंपरानुसार; महासचिव, लोक सभा या महासचिव, राज्य सभा को चक्रानुक्रम में रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है। लोक सभा / राज्य सभा सचिवालय के दो वरिष्ठ अधिकारी और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली और संघ शासित क्षेत्र पुडुचेरी सहित विधान सभाओं के सचिवों और एक और वरिष्‍ठ अधिकारी को भी सहायक रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है। भारत निर्वाचन आयोग ऐसी नियुक्तियां करता है। {राष्ट्रपतीय निर्वाचन-2017 हेतु, राज्य सभा के महासचिव को रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है} 9. क्या एक अभ्यर्थी एक से अधिक नामनिर्देशन प्रस्तुत कर सकता है? ऐसे अभ्यर्थी द्वारा किया जाने वाला प्रतिभूति निक्षेप कितना होगा? उ० हाँ। एक अभ्यर्थी अधिकतम चार नामनिर्देशन पत्र प्रस्तुत कर सकता है। तथापि, इस संबंध में उसे केवल एक ही प्रतिभूति निक्षेप किए जाने की आवश्यकता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 5ख(6) और 5ग देखें] 10. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में एक निर्वाचक एक से अधिक अभ्यर्थियों का प्रस्ताव या अनुमोदन कर सकता है? उ० नहीं। राष्ट्रपतीय निर्वाचन में एक निर्वाचक केवल एक ही अभ्यर्थी के नाम का प्रस्ताव या अनुमोदन कर सकता है। यदि वह एक से अधिक अभ्यर्थियों के नामनिर्देशनों को प्रस्तावक या अनुमोदक के रूप में समर्थित करता है, तो उसका हस्ताक्षर केवल उस नामनिर्देशन हेतु प्रभावी माना जाएगा, जो रिटर्निंग अधिकारी को सर्वप्रथम प्रदत्त किया गया था। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 5ख(5) देखें] 11. अभ्यर्थियों द्वारा दाखिल नामनिर्देशन पत्रों की संवीक्षा कौन करता है तथा ऐसी संवीक्षा के दौरान कौन उपस्थित रह सकता है? उ० रिटर्निंग अधिकारी को प्राप्त सभी नामनिर्देशन पत्रों की संवीक्षा, इस प्रयोजन हेतु निर्वाचन आयोग द्वारा निर्दिष्ट अवधि के दौरान, स्वयं रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निर्वाचन आयोग द्वारा नियत तिथि पर राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 4 की उप-धारा (1) के अधीन की जाती है। ऐसी संवीक्षा के दौरान, अभ्यर्थीगण, प्रत्येक अभ्यर्थी का एक प्रस्तावक अथवा एक अनुमोदक एवं प्रत्येक अभ्यर्थी द्वारा विधिवत लिखित में एक अन्य प्राधिकृत व्यक्ति उपस्थित रहने के पात्र होंगे, एवं उन्हें अभ्यर्थियों के नामनिर्देशन पत्रों की छानबीन करने और उन नामनिर्देशन पत्रों के संबंध में आपत्तियां उठाने के लिए सभी उचित सुविधाएं दी जाएंगी। 12. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में किसी अभ्यर्थी के नामनिर्देशन को खारिज किए जाने के आधार क्या हैं? उ० किसी नामनिर्देशन को राष्‍ट्रपतीय और राष्‍ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम 1952 की धारा 5(ड़) के अधीन निम्नलिखित आधारों पर खारिज किया जा सकता है :- नामनिर्देशन की संवीक्षा की तिथि में, अभ्यर्थी संविधान के तहत राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन के लिए पात्र नहीं हैं; अथवा यदि कोई प्रस्तावक या अनुमोदक नामनिर्देशन पत्र को समर्थित करने हेतु पात्र नहीं है, अर्थात वह निर्वाचन में एक निर्वाचक नहीं है; अथवा यदि यह अपेक्षित प्रस्तावकों और/या अनुमोदकों द्वारा समर्थित नहीं है; अथवा यदि अभ्यर्थी या किसी भी प्रस्तावक या अनुमोदक के हस्ताक्षर वास्तविक नहीं हैं या धोखाधड़ी द्वारा प्राप्त किया गया है; अथवा यदि नामनिर्देशन पत्र अभ्यर्थी द्वारा स्वयं अथवा उसके प्रस्तावकों या अनुमोदकों में से किसी एक के द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जाता है या इसे रिटर्निंग अधिकारी को इस प्रयोजन हेतु निर्धारित तिथि एवं समय में या इस हेतु नियत स्थान पर प्रदत्त नहीं किया गया है, या अभ्यर्थी निर्धारित रीति से प्रतिभूति निक्षेप कर पाने में विफल रहा है। तथापि, एक अभ्यर्थी का नामनिर्देशन खारिज नहीं किया जाएगा, यदि उसने नामनिर्देशन पत्रों का एक और सेट प्रस्तुत किया है, जो बिना किसी अनियमितता या दोष के हैं। किसी अभ्यर्थी के नामनिर्देशन को किसी भी दोष के आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा जो सारभूत प्रकृति का नहीं है। 13. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन हेतु मतदान कहाँ किया जाता है ? उ० नई दिल्ली में संसद भवन में एक कक्ष तथा एक कक्ष प्रत्येक राज्य; राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली एवं संघ शासित प्रदेश, पुदुचेरी सहित, के सचिवालय भवनों में, आमतौर पर मतदान स्थल के रूप में निर्वाचन आयोग द्वारा नियत किए जाते हैं। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 7 देखें] 14. क्या निर्वाचक उनके मतदान करने का स्थल चुन सकते हैं? उ० हाँ। जबकि, आमतौर पर सांसद सदस्य नई दिल्ली में मतदान करते हैं एवं राज्य विधान सभाओं के सदस्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली और संघ शासित प्रदेश, पुदुचेरी की विधान सभाओं के सदस्यों सहित, प्रत्येक राज्य / संघ शासित प्रदेश की राजधानी में नियत स्थल पर मतदान करते हैं। राज्य की राजधानी में मतदान करने के लिए किसी भी सांसद हेतु निर्वाचन आयोग द्वारा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं एवं इसी तरह, कोई विधायक, संसद भवन में स्थापित मतदान केंद्र पर मतदान कर सकता है, अगर वह मतदान की तिथि पर दिल्ली में होता है। तथापि, सांसद या विधायक, जो नियत स्थल के अलावा ऐसे स्थल पर मतदान करने का विकल्प चुनते हैं जहां सदस्य को मतदान देने के लिए अभिहित किया गया है, उन्हें आयोग को विधिवत अग्रिम रूप से (दस दिन पूर्व) सूचित करना आवश्यक है। अपवादात्मक परिस्थितियों में, सांसदों और विधायकों को अन्य राज्यों की राजधानी में भी मतदान करने की अनुमति आयोग द्वारा दी जा सकती है। 15. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन में प्रयुक्त मतपत्रो का रंग और स्‍वरूप क्या होता है? उ० निर्वाचन आयोग ने निर्देशित किया है कि मतपत्रों को दो (2) रंगों में, संसद सदस्यों द्वारा उपयोग के लिए हरे रंग में तथा राज्य विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा उपयोग के लिए गुलाबी रंग में मुद्रित किया जाएगा। मतपत्र दो कॉलम के साथ मुद्रित किए जाते हैं – पहले कॉलम में अभ्यर्थियों के नाम होते हैं और, दूसरा कॉलम ऐसे प्रत्येक अभ्यर्थी के लिए निर्वाचक द्वारा अधिमान देने के लिए होता है। सांसदों द्वारा उपयोग करने हेतु मतपत्र हिंदी और अंग्रेज़ी में मुद्रित किए जाते हैं एवं संबंधित राज्य के विधायकों द्वारा उपयोग के लिए राज्य की आधिकारिक भाषा(ओं) तथा अंग्रेज़ी में मुद्रित किए जाते हैं। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 10 देखें] 16. क्या प्रत्येक मतदाता के मत का मूल्य समान है? उ० नहीं। विधायकों के मतों का मूल्य राज्यवार भिन्न-भिन्न होगा, क्योंकि इस तरह के प्रत्येक मत के मूल्य का परिकलन नीचे समझाई गई प्रक्रिया के अनुसार होता है। तथापि, सभी सांसदों के वोटों का मूल्य समान है। 17. निर्वाचक मंडल के सदस्यों के मतों के मूल्य का परिकलन कैसे किया जाता है? उ० निर्वाचकों के मतों का मूल्य, मूलतः संविधान के अनुच्छेद 55 (2) में निर्धारित रीति से राज्यों की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित होता है। संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 उपबंधित करता है कि जब तक वर्ष 2026 के बाद की जाने वाली पहली जनगणना की जनसंख्या का आंकड़ा प्रकाशित नहीं किया जाता है, राष्ट्रपतीय निर्वाचन हेतु मतों के मूल्य के परिकलन के प्रयोजनों के लिए राज्यों की जनसंख्या का अर्थ, वर्ष 1971 की जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या होगा। निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक सदस्य के मत के मूल्य का परिकलन, राज्य की जनसंख्या (1971 की जनगणना के अनुसार) को विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से विभाजित कर किया जाता है, और उसके पश्चात् भागफल को 1000 से विभाजित करते हैं। विभाजन करने पर यदि शेष, 500 या इससे अधिक होता है, तो मूल्य '1' से बढ़ जाता है। प्रत्येक राज्य विधानसभा के सभी सदस्यों के मतों के कुल मूल्य का परिकलन, विधान सभा की निर्वाचित सीटों की संख्या को, संबंधित राज्य के प्रत्येक सदस्य के लिए मतों की संख्या से गुणित कर किया जाता है। सभी राज्यों के मतों का कुल मूल्य, प्रत्येक राज्य के संबंध में ऊपर दिए गए अनुसार परिकलित किया जाता है और प्रत्येक संसद सदस्य के मतों का मूल्य प्राप्त करने के लिए, एक साथ जोड़कर संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से विभाजित कर दिया जाता है (लोकसभा 543 + राज्यसभा 233)। संविधान के अनुच्छेद 55 (2) के अनुसार विधायकों और सांसदों के वोटों का मूल्य नीचे* दिया गया है। (परिशिष्ट) 18. राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन में मतों को अभिलेखित करने की रीति / प्रक्रिया क्या है? उ० एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार, प्रत्येक निर्वाचक उतने ही अधिमानों को चिह्नित कर सकते हैं, जितने कि अभ्यर्थी निर्वाचन लड़ रहे हैं। अभ्यर्थियों हेतु यह अधिमान, निर्वाचक द्वारा 1,2,3,4,5 और इसी प्रकार, अभ्यर्थियों के नाम के समक्ष, उनके अधिमान-क्रम में, मतपत्र के कॉलम-2 में दिए गए स्थान पर चिह्नित किया जाना है। अधिमान को भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप में या किसी भी भारतीय भाषा या रोमन रूप में इंगित किया जा सकता है लेकिन अधिमान को शब्दों में, जैसे 'एक', 'दो', 'प्रथम अधिमान, ‘दूसरा अधिमान’, इत्यादि जैसे शब्दों में उपदर्शित नहीं किया जा सकता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 17 देखें] 19. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में किसी निर्वाचक को सभी अभ्यर्थियों के लिए अधिमान चिह्नित करना आवश्यक है? उ० नहीं। मतपत्र के विधिमान्य होने के लिए केवल प्रथम अधिमान को चिह्नित करना अनिवार्य है। अन्य अधिमानों को चिह्नित करना वैकल्पिक है। 20. क्या दल-बदल विरोधी क़ानून के उपबंध राष्ट्रपतीय निर्वाचन में लागू होते हैं? उ० नहीं। निर्वाचक मंडल के सदस्य अपनी रुचि / इच्छा के अनुसार मत डाल सकते हैं एवं किसी भी दल की सचेतिका द्वारा बाध्य नहीं है। मतदान गोपनीय मतपत्र द्वारा होता है। इसलिए, इस निर्वाचन में पार्टी सचेतिका लागू नहीं होती है। 21. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में मतदान करने हेतु संसद के दोनों सदनों के या किसी राज्य की विधान सभा के मनोनीत सदस्य पात्र हैं? उ० नहीं। केवल संसद के दोनों सदनों और राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल के सदस्य हैं। इसलिए, मनोनीत सदस्य इस निर्वाचन में मतदान नहीं कर सकते हैं। [संविधान का अनुच्छेद 54 देखें] 22. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में कोई निर्वाचक परोक्षी द्वारा अपना मत डाल सकता है? उ० नहीं। 23. क्या नोटा का प्रावधान लागू होता है? उ० नहीं। 24. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में एक नि:शक्त या निरक्षर निर्वाचक एक साथी की मदद से अपना वोट अभिलेखित कर सकता है? उ० नहीं। संसदीय और विधानसभा निर्वाचनों के विपरीत, एक निर्वाचक किसी साथी की सहायता नहीं ले सकता है। वह अपने मत को अभिलेखित करने के लिए पीठासीन अधिकारी की सहायता ले सकता है, यदि वह अन्धेपन या कोई भी शारीरिक या अन्य विकलांगता के कारण अपना मत अभिलेखित करने में असमर्थ है। निर्वाचक की इच्छा के अनुसार मत अभिलेखित करने एवं इसे गोपनीय रखने के लिए पीठासीन अधिकारी नियम के अधीन बाध्य है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 19 देखें] 25. राष्ट्रपतीय निर्वाचन की अवधि के दौरान निवारक निरोध के अधीन कोई निर्वाचक मतदान कैसे कर सकता है? उ० निवारक निरोध के अधीन एक निर्वाचक डाक मतपत्र के माध्यम से अपना मत दे सकता है, जो उसे निर्वाचन आयोग द्वारा उसे निरुद्ध किए जाने के स्थान पर प्रेषित किया जाएगा। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 26 देखें] 26. क्या राष्ट्रपतीय निर्वाचन में विजयी अभ्यर्थी, साधारण बहुमत के आधार पर निर्वाचित होता है? या मतों का एक निर्धारित कोटा प्राप्त करके? उ० जैसा कि राष्ट्रपतीय निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार आयोजित किया जाता है, प्रत्येक निर्वाचक के पास उतने ही अधिमान हैं, जितने कि अभ्यर्थी निर्वाचन लड़ रहे हैं। विजयी अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित होने के लिए आवश्यक मतों का कोटा प्राप्त करना होगा, जो डाले गए विधिमान्य मतों का 50% + (जोड़कर) 1 है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 की अनुसूची देखें] 27. मतपत्रों को खारिज करने के आधार क्या हैं? उ० रिटर्निंग अधिकारी किसी मतपत्र को अविधिमान्य के रूप में खारिज करेगा, जिस पर :- अंक ‘1’ चिह्नित नहीं है; अथवा अंक ‘1’ एक से अधिक अभ्यर्थी के समक्ष चिह्नित किया गया है अथवा इसे इस रीति से चिह्नित किया गया है जो इसे संदिग्ध बना देता है कि यह किस अभ्यर्थी को लागू होने हेतु आशयित है; अथवा अंक ‘1’ तथा कुछ अन्य अंक एक ही अभ्यर्थी के नाम के समक्ष चिह्नित किया गया है; अथवा कोई भी ऐसा चिह्न बनाया जाता है जिसके द्वारा निर्वाचक को पहचाना जा सकता है। एक मतपत्र अविधिमान्य हो सकता है यदि अधिमानों को अंक 1, 2, 3 आदि के बजाय शब्दों में उपदर्शित किया जाता है, जैसे, एक, दो, तीन या प्रथम अधिमान, द्वितीय अधिमान, तृतीय अधिमान, आदि। डाक मतपत्र (निवारक निरोध के अधीन किसी एक निर्वाचक का) को खारिज किया जा सकता है यदि घोषणापत्र पर निर्वाचक के हस्ताक्षर और मतपत्र के साथ प्राप्त अनुप्रमाणन प्रपत्र, ऐसे प्रपत्र में निर्दिष्ट प्राधिकारी (जो आमतौर पर जेल या निरुद्ध-स्थान का प्रभारी अधिकारी है) द्वारा अनुप्रमाणित नहीं है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 का नियम 31 देखें] 28. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में गणना की प्रक्रिया क्या है? विजयी अभ्यर्थी द्वारा प्राप्त किए जाने वाले मतों का कोटा कैसे निर्धारित किया जाता है? उ० विधिमान्य मतपत्रों को अविधिमान्य मतों से पृथक किए जाने के पश्चात्, विधिमान्य मतपत्रों को निर्वाचन लड़ रहे अभ्यर्थियों के मध्य, उन अभ्यर्थियों हेतु उनमें से प्रत्येक पर चिह्नित प्रथम अधिमान के आधार पर वितरित किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थी को प्राप्त मतों के मूल्य को अभिनिश्चित करने हेतु उन मत‍पत्रों की संख्या को जिन पर उसके लिए प्रथम अधिमान चिह्नित है, उस मत के मूल्य से गुणित किया जाता है जो सदस्य (सांसद या विधायक) के प्रत्येक मतपत्र वर्णित करते हैं, जैसा कि मतपत्र पर ही उपदर्शित किया गया है। सभी अभ्यर्थियों द्वारा प्राप्त विधिमान्य मतों की कुल संख्या को, उनमें से प्रत्येक द्वारा प्राप्त मतों की संख्या को जोड़कर अभिनिश्चित किया जाता है। यह गणना का प्रथम दौर है। एक अभ्यर्थी को निर्वाचित होने के लिए पर्याप्त कोटा अभिनिश्चित करने हेतु, निर्वाचन लड़ रहे प्रत्येक अभ्यर्थी को गणना के प्रथम दौर में प्राप्त मतों के मूल्य को निर्वाचन में डाले गए विधिमान्य मतों के कुल मूल्य का निर्धारण करने के लिए जोड़ा जाता है। तत्पश्चात्, विधिमान्य मतों के ऐसे मूल्य को दो (2) से विभाजित किया जाता है और प्राप्त भागफल में एक (1) जोड़ा जाता है एवं कोई शेष, यदि रह जाता है तो इसे अनदेखा किया जाता है। इस प्रकार अवधारित संख्या वह कोटा होती है, जो किसी अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित होने हेतु प्राप्त करना आवश्यक है। यदि प्रथम गणना में किसी भी अभ्यर्थी को प्राप्त मतों का कुल मूल्य, किसी अभ्यर्थी को निर्वाचित होने हेतु पर्याप्त कोटे की तुलना में बराबर है अथवा अधिक है, उस अभ्यर्थी को रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। तथापि, यदि गणना के प्रथम दौर के पश्चात्, कोई भी अभ्यर्थी आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं करता है, तो गणना विलोपन एवं अपवर्जन की प्रक्रिया के आधार पर जारी रखी जाती है, जिसके द्वारा सबसे कम मतों वाले आकलित अभ्यर्थी को अपवर्जित कर दिया जाता है तथा उसके मतपत्रों को, उन पर चिह्नित द्वितीय अधिमान, यदि हो, के आधार पर शेष रह गए (बने हुए) अभ्यर्थियों के मध्य वितरित किया जाता है। इस तरह के संक्रमणीय मतपत्रों का मूल्य उस मूल्य के समान होगा, जिस पर अपवर्जित अभ्यर्थी ने उन्हें प्राप्त किया था। जिन मतपत्रों पर दूसरा अधिमान चिह्नित नहीं है, उसे निःशेष मतपत्र माना जाता है और इसे आगे गिना नहीं जाएगा, भले ही इस पर तृतीय या उत्तरवर्ती अधिमानों को चिह्नित किया गया हो। अपवर्जित अभ्यर्थियों के मतों को वितरित किए जाने के पश्चात्, यदि कोई अभ्यर्थी इस स्तर पर भी अपेक्षित कोटा प्राप्त नहीं करता है, तो गणना प्रक्रिया, सबसे कम मत पाने वाले अभ्यर्थियों के विलोपन एवं अपवर्जन के आधार पर तब तक जारी रहेगी, जब तक कोई अभ्यर्थी मतों का आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं कर लेता है। सबसे कम मतों को प्राप्त करने वाले अभ्यर्थी के अपवर्जन के पश्चात् भी, यदि कोई भी अभ्यर्थी आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं करता है और अंततोगत्वा, एक ही अभ्यर्थी एकमात्र शेष अभ्यर्थी के रूप में बने रहता है, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है, भले ही वह अभ्यर्थी के निर्वाचित होने हेतु पर्याप्त कोटा प्राप्त करने में विफल रहा हो। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन नियम, 1974 की अनुसूची देखें] 29. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में मतगणना कहां की जाती है? उ० मतों की गणना नई दिल्ली में रिटर्निंग अधिकारी के कार्यालय में की जाती है। 30. राष्ट्रपतीय निर्वाचन में किसी अभ्यर्थी का प्रतिभूति निक्षेप कब जब्त कर लिया जाता है? उ० प्रतिभूति निक्षेप जब्त कर लिया जाता है, यदि अभ्यर्थी निर्वाचित नहीं होता है तथा उनके द्वारा प्राप्त विधिमान्य मतों की संख्या, ऐसे निर्वाचन में अभ्यर्थी के निर्वाचित होने हेतु आवश्यक मतों की संख्या के एक-छठा भाग से अधिक नहीं है। अन्य मामलों में, अभ्यर्थी को प्रतिभूति निक्षेप वापस कर दिया जाएगा। प्रतिभूति निक्षेप को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा वापस किया जाता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय अधिनियम, 1952 की धारा 20क देखें] 31. क्या राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन के परिणामों को चुनौती दी जा सकती है? यदि हाँ, तो ऐसा करने के लिए उचित प्रक्रिया क्या है? उ० हाँ। निर्वाचन संपन्न हो जाने के पश्चात् राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन पर, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष निर्वाचन याचिका के माध्यम से प्रश्न उठाया जा सकता है। ऐसी निर्वाचन याचिका, एक अभ्यर्थी द्वारा या एक साथ प्रत्यर्थियों के रूप में जुड़कर बीस या इससे अधिक निर्वाचकों द्वारा प्रस्तुत की जानी चाहिए और राष्ट्रपतीय एवं उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 12 के अधीन, निर्वाचन में निर्वाचित अभ्यर्थी के नाम को निहित करती हुई घोषणा के प्रकाशन की तिथि के पश्चात् किसी भी समय, किंतु इस तरह के प्रकाशन की तिथि से 30 दिनों के पश्चात नहीं, प्रस्तुत की जा सकती है। इन प्रावधानों के अधीन, संविधान के अनुच्छेद 145 के अधीन सर्वोच्च न्यायालय, ऐसी निर्वाचन याचिकाओं से जुड़े स्‍वरूप, रीति और प्रक्रियाओं को विनियमित कर सकता है। [राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय अधिनियम, 1952 की धारा 13 से 20 देखें] राष्ट्रपतीय निर्वाचन, 2017 भारत के संविधान के अनुच्छेद 55 (2) के उपबंधों के अनुसार राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों और संसद के दोनों सदनों के वोटों के मूल्य का विवरण परिशिष्ट-I क्र.सं. राज्य का नाम विधान सभा सीटों की संख्या (निर्वाचित) जनसंख्या (1971 की जनगणना) प्रत्येक विधायक के मत का मूल्य राज्य हेतु मतों का कुल मूल्य (1) (2) (3) (4) (5) (6) 1. आंध्र प्रदेश 175 27800586 159 159 × 175 = 27825 2. अरुणाचल प्रदेश 60 467511 8 008 × 060 = 480 3. असम 126 14625152 116 116 × 126 = 14616 4. बिहार 243 42126236 173 173 × 243 = 42039 5. छत्तीसगढ़ 90 11637494 129 129 × 090 = 11610 6. गोवा 40 795120 20 020 × 040 = 800 7. गुजरात 182 26697475 147 147 × 182 = 26754 8. हरियाणा 90 10036808 112 112 × 090 = 10080 9. हिमाचल प्रदेश 68 3460434 51 051 × 068 = 3468 10. जम्मू और कश्मीर* 87 6300000 72 072 × 087 = 6264 11. झारखंड 81 14227133 176 176 × 081 = 14256 12. कर्नाटक 224 29299014 131 131 × 224 = 29344 13. केरल 140 21347375 152 152 × 140 = 21280 14. मध्य प्रदेश 230 30016625 131 131 × 230 = 30130 15. महाराष्ट्र 288 50412235 175 175 × 288 = 50400 16. मणिपुर 60 1072753 18 018 × 060 = 1080 17. मेघालय 60 1011699 17 017 × 060 = 1020 18. मिजोरम 40 332390 8 008 × 040 = 320 19. नागालैंड 60 516449 9 009 × 060 = 540 20. ओडिशा 147 21944615 149 149 × 147 = 21903 21. पंजाब 117 13551060 116 116 × 117 = 13572 22. राजस्थान 200 25765806 129 129 × 200 = 25800 23. सिक्किम 32 209843 7 007 × 032 = 224 24. तमिलनाडु 234 41199168 176 176 × 234 = 41184 25. तेलंगाना 119 15702122 132 132 × 119 = 15708 26. त्रिपुरा 60 1556342 26 026 × 060 = 1560 27. उत्तराखंड 70 4491239 64 064 × 070 = 4480 28. उत्तर प्रदेश 403 83849905 208 208 × 403 = 83824 29. पश्चिम बंगाल 294 44312011 151 151 × 294 = 44394 30. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली 70 4065698 58 058 × 070 = 4060 31. पुदुचेरी 30 471707 16 016 × 030 = 480 कुल 4120 549302005 = 549495 * संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए लागू) आदेश (क) संसद सदस्यों के प्रत्येक मत का मूल्य कुल सदस्य : लोक सभा (543) + राज्य सभा (233) = 776 प्रत्येक मत का मूल्य = (ख) 776 संसद सदस्यों के मतों का कुल मूल्य = 708 × 776 = 5,49,408 (ग) राष्ट्रपतीय निर्वाचन हेतु कुल निर्वाचक = विधायक (4120) + सांसद (776) = 4896 (घ) राष्ट्रपतीय निर्वाचन 2017 हेतु 4896 = 5,49,495 + 5,49,408 = 10,98,903 निर्वाचकों के मतों का कुल मूल्य भारत के संविधान से उद्धृत अंश राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति 52. भारत का राष्ट्रपति— भारत का एक राष्ट्रपति होगा। 53. संघ की कार्यपालिका शक्ति— (1) संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा। (2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश राष्ट्रपति में निहित होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित होगा। (3) इस अनुच्छेद की कोई बात— (क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी राज्य की सरकार या अन्य प्राधिकारी को प्रदान किए गए कृत्य राष्ट्रपति को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी; या (ख) राष्ट्रपति से भिन्न अन्य प्राधिकारियों को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद को निवारित नहीं करेगी। 54. राष्ट्रपति का निर्वाचन— राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचकगण के सदस्य करेंगे जिसमें— (क) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य; और (ख) राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य, होंगे। 46 [स्पष्टीकरण—इस अनुच्छेद और अनुच्छेद 55 में, “राज्य” के अंतर्गत दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र और पुदुचेरी संघ राज्यक्षेत्र हैं।] 55. राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति— (1) जहां तक साध्य हो, राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न—भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मान में एकरूपता होगी। (2) राज्यों में आपस में ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्यों और संघ में समतुल्यता प्राप्त कराने के लिए संसद और प्रत्येक राज्य की विधान सभा का प्रत्येक निर्वाचित सदस्य ऐसे निर्वाचन में जितने मत देने का हकदार है उनकी संख्या निम्नलिखित रीति से अवधारित की जाएगी, अर्थात्:— (क) किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत होंगे जितने कि एक हजार के गुणित उस भागफल में हों जो राज्य की जनसंख्या को उस विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए; (ख) यदि एक हजार के उक्त गुणितों को लेने के बाद शेष पांच सौ से कम नहीं है तो उपखंड (क) में निर्दिष्ट प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाएगा; (ग) संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या वह होगी जो उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों के लिए नियत कुल मतों की संख्या को, संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए, जिसमें आधे से अधिक भिन्न को एक गिना जाएगा और अन्य भिन्नों की उपेक्षा की जाएगी। (3) राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा। 47[स्पष्टीकरण—इस अनुच्छेद में, “जनसंख्या” पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं: परंतु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन् 2000 के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है।] 56. राष्ट्रपति की पदावधि— (1) राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा: परंतु— (क) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; (ख) संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 में उपबंधित रीति से चलाए गए महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा; (ग) राष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है। (2) खंड (1) के परंतुक के खंड (क) के अधीन उपराष्ट्रपति को संबोधित त्यागपत्र की सूचना उसके द्वारा लोक सभा के अध्यक्ष को तुरंत दी जाएगी। 57. पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता— कोई व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है या कर चुका है, इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए उस पद के लिए पुनर्निर्वाचन का पात्र होगा। 58. राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं— (1) कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह— (क) भारत का नागरिक है, (ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और (ग) लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है। (2) कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा। स्पष्टीकरण—इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल 48*** है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है। 59. राष्ट्रपति के पद के लिए शर्तें— (1) राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान—मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान—मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है। (2) राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा। (3) राष्ट्रपति, बिना किराया दिए, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जो संसद, विधि द्वारा अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा। (4) राष्ट्रपति की उपलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे। 60. राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान— प्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध वरिष्‍ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्:— “मैं, अमुक ——————————————— कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा।” 61. राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया— (1) जब संविधान के अतिक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो, तब संसद का कोई सदन आरोप लगाएगा। (2) ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि— (क) ऐसा आरोप लगाने की प्रस्थापना किसी ऐसे संकल्प में अंतर्विष्ट नहीं है, जो कम से कम चौदह दिन की ऐसी लिखित सूचना के दिए जाने के पश्चात् प्रस्तावित किया गया है जिस पर उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक—चौथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का अपना आशय प्रकट किया है; और (ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो—तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया है। (3) जब आरोप संसद के किसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दूसरा सदन उस आरोप की जांच करेगा या कराएगा और ऐसी जांच में उपस्थित होने का तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का राष्ट्रपति को अधिकार होगा। (4) यदि जांच के परिणामस्वरूप यह घोषित करने वाला संकल्प कि राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है, आरोप की जांच करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो—तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित किए जाने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाना होगा। 62. राष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन संचालित करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि— (1) राष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा। (2) राष्ट्रपति की मृत्यु, पद त्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने की तारीख के पश्चात् यथाशीघ्र और प्रत्येक दशा में छह मास बीतने से पहले किया जाएगा और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति, अनुच्छेद 56 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा।
  2. प्र. 1 भारत में निर्वाचकों की कितनी मुख्‍य श्रेणियां हैं? उ. भारत में निर्वाचकों की तीन मुख्‍य श्रेणियां हैं: (i) सामान्‍य निर्वाचक; (ii) प्रवासी (एनआरआई) निर्वाचक – (कृपया ‘प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्‍न – प्रवासी निर्वाचक’ का संदर्भ लें) ; (iii) सेवा निर्वाचक – (कृपया ‘प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्‍न – सेवा निर्वाचक’ का संदर्भ लें’) प्र.2 सामान्‍य निर्वाचक के रूप में पंजीकृत होने के लिए कौन पात्र है? उ. प्रत्‍येक भारतीय नागरिक, जिसने अर्हक तिथि अर्थात निर्वाचक नामावली के पुनरीक्षण के वर्ष के जनवरी माह के प्रथम दिन को 18 वर्ष की आयु प्राप्‍त कर ली है और जब तक अन्‍यथा निरर्हित न किया गया हो, उस निर्वाचन क्षेत्र, जहां का वह सामान्‍यत: निवासी है, के भाग/मतदान क्षेत्र की नामावली, में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का पात्र है। प्र.3 18 वर्ष की आयु निर्धारित करने के लिए संगत तारीख क्‍या है? क्‍या मैं स्‍वयं को उस दिन एक मतदाता के रूप में पंजीकृत करा सकता हूं जिस दिन मैंने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है? उ. लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1950 की धारा 14(ख) के अनुसार, किसी आवेदक की आयु का निर्धारण करने के लिए संगत तारीख (अर्हक तारीख) उस वर्ष की जनवरी का पहला दिन है जिसमें संशोधन के उपरांत निर्वाचक नामावली अंतिम रूप से प्रकाशित की जाती है। उदाहरणार्थ, यदि आपने 2 जनवरी, 2013 को या उसके बाद से परंतु 01 जनवरी, 2014 तक की किसी तारीख को 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है या करने वाले हो तो उस निर्वाचक नामावली, जो अंतिम रूप से जनवरी, 2014 में प्रकाशित होगी, में मतदाता के रूप में पंजीकरण के लिए पात्र होंगे। प्र.4 क्‍या भारत का कोई गैर-नागरिक भारत की निर्वाचक नामावली में मतदाता बन सकता है? उ. नहीं ! वह व्‍यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, भारत में निर्वाचक नामावली में मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने के लिए पात्र नहीं है। यहां तक कि ऐसे व्‍यक्ति, जो अन्‍य देश की नागरिकता प्राप्‍त करने पर भारत के ना‍गरिक नहीं रह जाते, वे भी भारत में निर्वाचक नामावली में पंजीकरण कराने हेतु पात्र नहीं होते हैं। प्र. 5 क्‍या विदेश में बसा कोई प्रवासी भारतीय भारत में निर्वाचक नामावली में एक निर्वाचक बन सकता है? उ. हां ! लोक प्रतिनिधित्‍व (संशोधन) अधिनियम, 2010 के द्वारा लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1950 की धारा 20क के उपबंधों के अनुसार, भारत का वह नागरिक जिसने किसी अन्‍य देश की नागरिकता प्राप्‍त नहीं की है और एक मतदाता के रूप में रजिस्‍टर होने हेतु अन्‍यथा पात्र है तथा जो अपने रोजगार, शिक्षा अथवा अन्‍यथा की वजह से भारत में अपने सामान्‍य निवास स्‍थान पर नहीं रह रहा है, उस निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता के रूप में रजिस्‍टर होने का पात्र है, जहां उसके पासपोर्ट में भारत में उसके निवास स्‍थान का उल्‍लेख किया गया है। (अधिक जानकारी के लिए, कृपया ‘प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्‍न – प्रवासी निर्वाचक का संदर्भ लें)’ प्र. 6 निर्वाचक नामावली में कोई पंजीकरण/नामांकन कैसे करवा सकता है? उ. कोई भी आवेदक उस निर्वाचन क्षेत्र, जिसमें उसका सामान्‍य निवास शामिल हैं, के निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी/सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी के समक्ष इस प्रयोजन हेतु विनिर्दिष्‍ट प्ररूप 6 में आवेदन दायर कर सकता है। संबद्ध दस्‍तावेजों की प्रतियों सहित आवेदन संबंधित निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी/सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी के समक्ष व्‍यक्तिगत रूप से दायर किया जा सकता है अथवा उसे संबोधित करते हुए डाक से भेजा जा सकता है अथवा आपके मतदान क्षेत्र के बूथ लेवल अधिकारी को सौंपा जा सकता है अथवा संबंधित राज्‍य के मुख्‍य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट अथवा भारत निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर भी ऑनलाइन दायर किया जा सकता है। प्ररूप 6 ऑनलाइन भरते समय आवश्‍यक दस्‍तावेजों की प्रतियां भी अपलोड की जानी चाहिए। प्र.7 प्ररूप 6 कहां से प्राप्‍त किया जा सकता है? उ. इसे भारत निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से डाउनलोड किया जा सकता है। संबंधित मतदान केंद्रों के निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारियों/सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों और बूथ लेवल अधिकारियों के कार्यालयों में भी प्ररूप 6 नि:शुल्‍क उपलब्‍ध है। प्र.8 प्ररूप 6 के साथ संलग्‍न किए जाने वाले अपेक्षित दस्‍तावेज क्‍या-क्‍या हैं? उ. हाल ही का एक पासपोर्ट आकार का रंगीन फोटोग्राफ, जिसे प्ररूप 6 में इस प्रयोजन के लिए दिए गए बॉक्‍स में विधिवत रूप से चिपकाया जाए, और आयु एवं आवास के दस्‍तावेजी प्रमाणों की फोटो प्रतियां प्ररूप 6 के साथ संलग्‍न की जानी अपेक्षित हैं। प्ररूप 6 के साथ संलग्‍न किए जाने वाले आयु एवं आवास के दस्‍तावेजी प्रमाणों की सूची प्ररूप 6 के साथ संलग्‍न दिशा-निर्देशों में दी गई है। प्ररूप 6 को भरने के लिए इसके साथ संलग्‍न उक्‍त दिशा-निर्देशों का संदर्भ लें। प्र.9 मेरे पास राशन कार्ड नहीं है। क्‍या मैं राशन कार्ड के बिना रजिस्‍ट्रेशन करा सकता हूँ? ऐसे अन्‍य दस्‍तावेज क्‍या-क्‍या हैं जिन्‍हें मैं अपने आवास के प्रमाण के रूप में दिखा सकता हूं? उ. यदि किसी आवेदक के पास राशन कार्ड नहीं है, तो वह आवास का कोई अन्‍य प्रमाण प्रस्‍तुत कर सकता है जिसकी सूची प्ररूप 6 के साथ संलग्‍न दिशा-निर्देशों में दी गई है। प्र.10 क्‍या ऐसे मामलों में आयु के दस्‍तावेजी प्रमाण की आवश्‍यकता है जिनमें आवेदक की आयु 21 वर्ष से अधिक है? उ. आयु के दस्‍तावेजी प्रमाण की केवल ऐसे मामलों में आवश्‍यकता होती है जहां आवेदक की आयु 18 वर्ष और 21 वर्ष के बीच होती है। अन्‍य सभी मामलों में, आवेदक द्वारा उसकी आयु की घोषणा को आयु का प्रमाण माना जाएगा। प्र.11 18-21 वर्ष की आयु के किसी आवेदक के पास आयु/जन्‍मतिथि का कोई दस्‍तावेजी प्रमाण नहीं है। उसे निर्वाचक के रूप में रजिस्‍ट्रेशन करवाने के लिए आवेदन-पत्र के साथ कौन से दस्‍तावेज संलग्‍न करने होंगे? उ. यदि 18-21 वर्ष की आयु के आवेदक के पास उक्‍त दिशा-निर्देशों में आयोग द्वारा विनिर्दिष्‍ट दस्‍तावेजों में से कोई भी दस्‍तावेज उपलब्‍ध नहीं है तो आवेदक के माता-पिता में से किसी एक के द्वारा (अथवा ट्रांससेक्‍सुअल (‘अन्‍य’) श्रेणी में निर्वाचक के मामले में गुरू के द्वारा) अनुलग्‍नक-I (निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर उपलब्‍ध प्ररूप 6 के साथ संलग्‍न किए गए दिशा निर्देशों के साथ संलग्‍न) में दिए गए विनिर्दिष्‍ट फार्मेट में एक घोषणा की जा सकती है। ऐसे मामलों में जिनमें आयु के प्रमाण के रूप में माता-पिता द्वारा घोषणा की गई है, आवेदक को बूथ लेवल अधिकारी/ सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी/ निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी के समक्ष सत्‍यापन के लिए स्‍वयं प्रस्‍तुत होना होगा। इसके अलावा, यदि उपर्युक्‍त दस्‍तावेजों में से कोई भी दस्‍तावेज उपलब्‍ध नहीं है और माता-पिता में से कोई भी जीवित नहीं है, तो आवेदक संबंधित ग्राम पंचायत के सरपंच अथवा संबंधित नगर निगम/नगर निगम परिषद/विधान सभा/संसद के सदस्‍य द्वारा दिए गए उसकी आयु के प्रमाणपत्र को संलग्‍न कर सकता है। प्र.12 मैं एक विद्यार्थी हूं और मैं जो एक ऐसे हॉस्‍टल/मेस में अध्‍ययन के लिए रह रहा हूँ जो मूल निवास स्‍थल से दूर है। मैं आवास के वर्तमान पते पर अपना रजिस्‍ट्रेशन करवाना चाहता हूँ। मुझे क्‍या करना चाहिए? उ. यदि कोई विद्यार्थी शैक्षिक संस्‍थान द्वारा संचालित हॉस्‍टल अथवा मेस में अथवा अन्‍यत्र अध्‍ययन के लिए रह रहा है, तो उसके पास यह विकल्‍प होगा कि वह अपने माता-पिता के साथ मूल निवास स्‍थल पर स्‍वयं को रजिस्‍टर कराए अथवा अपनी पढ़ाई को पूरा करने के लिए वर्तमान में जिस हॉस्‍टल/मेस में रह रहा है, उसके पते पर रजिस्‍टर कराए। ऐसे विद्यार्थियों के द्वारा किए जाने वाले अध्‍ययन का पाठ्यक्रम किसी केंद्रीय/राज्‍य सरकार/बोर्ड/विश्‍वविद्यालय/मानद विश्‍वविद्यालय द्वारा मान्‍यता-प्राप्‍त होना चाहिए और ऐसा पाठ्यक्रम की अवधि एक वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। ऐसा विद्यार्थी जो हॉस्‍टल/मेस के पते पर खुद का रजिस्‍ट्रेशन कराना चाहता है, उसे प्ररूप 6 के साथ अपने शैक्षिक संस्‍थान के प्रमुख अध्‍यापक/प्रधानाचार्य/निदेशक/रजिस्‍ट्रार/डीन से मूल प्रमाण पत्र (निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर उपलब्‍ध प्ररूप 6 के साथ संलग्‍न दिशा-निदेशों के अनुलग्‍नक II पर दिए गए नमूने के अनुसार) संलग्‍न करना होगा। प्र.13 एक बेघर व्‍यक्ति, जो अन्‍यथा एक निर्वाचक के रूप में रजिस्‍ट्रेशन हेतु पात्र है, किंतु उसके पास सामान्‍य निवास के दस्‍तावेजी प्रमाण नहीं है। ऐसे मामले में सत्‍यापन की प्रक्रिया क्‍या होती है? उ. बेघर व्‍यक्ति के मामले में बूथ लेवल अधिकारी प्ररूप 6 में दिए गए पते पर यह पता लगाने के लिए रात्रि में जाएगा कि वह बेघर व्‍यक्ति वास्‍तव में उस स्‍थान पर सोता है जो उसने प्ररूप 6 में अपने पते के रूप में भरा है। यदि बूथ लेवल अधिकारी यह सत्‍यापित कर लेता है कि बेघर व्‍यक्ति वास्‍तव में उस पते पर ही सोता है तो निवास के स्‍थान के किसी दस्‍तावेजी प्रमाण की आवश्‍यकता नहीं होगी। ऐसा सत्‍यापन करने के लिए बूथ लेवल अधिकारी को एक से ज्‍यादा बार रात्रि में उस स्‍थान पर जाना चाहिए। प्र. 14 मैं एक किराएदार हूँ और मेरा मकान मालिक नहीं चाहता कि मैं रजिस्‍ट्रेशन कराऊं। मैं एक मतदाता के रूप में कैसे रजिस्ट्रेशन करवा सकता हूँ? उ. मतदाता सूची में रजिस्‍ट्रेशन करवाना आपका संवैधानिक अधिकार है। कृपया अपने क्षेत्र की निर्वाचक नामावली की जांच निर्वाचन आयोग/ राज्‍य के मुख्‍य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर/निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी/सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी के कार्यालय में करें। यदि आपका नाम निर्वाचक नामावली में नहीं है तो कृपया प्ररूप 6 भरें और इसे निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी/सहायक निर्वाचन रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी/बूथ लेवल अधिकारी के समक्ष प्रस्‍तुत करें। प्र.15 दावे से संबंधित आवेदनों और आपत्तियों का सत्‍यापन करने के लिए कौन सक्षम है? उ. संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी/सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी। प्र. 16 निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारियों के डाक पते कहां से प्राप्‍त कर सकते हैं? उ. निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारियों के डाक पते भारत निर्वाचन आयोग/संबंधित राज्‍य/ संघ राज्‍य क्षेत्रों के मुख्‍य निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइट पर उपलब्‍ध हैं (इनके लिंक भारत निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर उपलब्‍ध है)। प्र.17 यदि मैं ऑनलाइन आवेदन करता हूं तो क्‍या मुझे अपेक्षित दस्‍तावेजों सहित प्ररूप 6 की हस्‍ताक्षरित प्रति निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी के पते पर भेजने की आवश्‍यकता है अथवा नहीं? उ. जैसे ही निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी/सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी को ऑनलाइन पर भेजा गया प्ररूप 6 प्राप्‍त होता है, वह अनुलग्‍नकों सहित प्ररूप को डाउनलोड करता है और सत्‍यापन करने और आवेदन पत्र पर आपके मूल हस्‍ताक्षर लेने के लिए बूथ लेवल अधिकारी को आपके निवास पर जाने के लिए तैनात कर देता है। प्र. 18 निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी द्वारा सुनवाई का नोटिस कहां भेजा जाएगा? उ. निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी आवेदक द्वारा यथासूचित आवेदक के वर्तमान निवास स्‍थान वाले देश में उसके पते पर नोटिस भेजेगा, और इसे आवेदक को विधिवत तामिल किया हुआ माना जाएगा। प्र. 19 क्‍या आवेदक की अथवा सुनवाई वाली पार्टियों की व्‍यक्तिगत उपस्थिति आवश्‍यक है? यदि हां तो सुनवाई कैसे की जाएगी? उ. सामान्‍यत: व्‍यक्तिगत उपस्थिति अथवा सुनवाई अनिवार्य नहीं होती है। प्ररूप 6 प्राप्‍त होने पर निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी किन्‍हीं भी आपत्तियों, को आमंत्रित करते हुए उक्‍त प्ररूप की प्रति को एक सप्‍ताह के भीतर अपने नोटिस बोर्ड पर लगाएगा। निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी संबंधित बूथ लेवल अधिकारी को आवेदक के आवास पर जाने और आवेदक द्वारा दी गई सूचना का सत्‍यापन उसके रिश्‍तेदारों अथवा पड़ोसियों, यदि कोई हो, से करने के लिए कहेगा। यदि प्ररूप 6 पूरी तरह से भरा हुआ है और सभी संगत दस्‍तावेजों की प्रतियां संलग्‍न कर दी गई हैं तथा किसी भी व्‍यक्ति ने एक हफ्ते की निर्धारित समय-सीमा के भीतर आपत्ति नहीं की है, तो निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी/सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी, बूथ स्‍तरीय अधिकारी द्वारा किए गए ऐसे सत्‍यापन के पश्‍चात, जो वह आवश्‍यक समझे, निर्वाचक नामावली में नाम को शामिल करने का आदेश दे सकता है। यदि प्ररूप 6 में नाम को शामिल करने के लिए किए गए दावे पर कोई आपत्ति है, तो निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी/सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी उठाई गई आपत्ति के संबंध में आवेदक और आपत्तिकर्ता की सुनवाई करता है। प्र.20 दावों और आपत्तियों की सूची कहां देखी जा सकती है? उ. इसे संबंधित राज्‍य के मुख्‍य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर देखा जा सकता है। इसे निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी के कार्यालय में नोटिस बोर्ड पर भी देखा जा सकता है। प्र.21 किसी आवेदक को कैसे पता चलेगा कि उसका नाम निर्वाचक नामावली में शामिल कर दिया गया है? उ. निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी का निर्णय आवेदक को उसके द्वारा प्ररूप-6 में दिए गए उसके पते पर डाक द्वारा और साथ ही प्ररूप-6 में उसके द्वारा दिए गए मोबाइल नम्‍बर पर एसएमएस द्वारा भी सूचित किया जाएगा। निर्वाचक नामावलियां संबंधित राज्‍य के मुख्‍य निर्वाचक अधिकारी की वेबसाइट पर भी उपलब्‍ध हैं और इसे किसी भी व्‍यक्ति द्वारा देखा जा सकता है। प्र.22 यदि निर्वाचक नामावली में निर्वाचकों से संबंधित प्रविष्टियों में त्रुटियां हैं, तो इनमें सुधार कैसे किए जा सकते हैं? उ. निर्वाचक नामावलियों में त्रुटियों के सुधार के लिए प्ररूप-8 में एक आवेदन संबंधित निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी को प्रस्‍तुत किया जाना होता है। प्र.23 मैनें अपने उस निवास स्‍थान, जहां मैं एक निर्वाचक के रूप में पंजीकृत हूँ, से किसी अन्‍य स्‍थान में स्‍थानांतरण कर लिया है। मैं यह कैसे सुनिश्चित करूं कि मेरा नामांकन मेरे नए निवास स्‍थान में कर दिया गया है? उ. यदि नया निवास स्‍थान एक ही निर्वाचन क्षेत्र में है, तो कृपया प्ररूप-8क भरें, अन्‍यथा प्ररूप-6 भरें और इसे अपने नए निवास स्‍थान के क्षेत्र के निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी/सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी को भेजें। प्र.24 मैंने हाल ही में मेरा निवास स्‍थान स्‍थानांतरित किया है। मेरे पास पुराने पते वाला निर्वाचक फोटो पहचान-पत्र (एपिक) है। क्‍या मुझे वर्तमान पते वाला नया एपिक मिल सकता है? उ. सर्वप्रथम, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप उस संबंधित विधान सभा निर्वाचन-क्षेत्र, जिसमें आपका नया पता अवस्थित है, की निर्वाचक नामावली में नामांकित हैं। य‍द्यपि, एपिक में आपके नए पते को बदलवाना जरूरी नहीं है, तथापि, यदि आप एपिक में पता बदलवाना चाहते हैं, तो नए निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी को 25 रूपए के शुल्‍क के साथ एक आवेदन देकर ऐसा किया जा सकता है। निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी नए पते वाला एक एपिक जारी करेगा, हालांकि एपिक की संख्‍या वही होगी जो पुराने एपिक की थी। प्र.25 मेरे एपिक में कुछ त्रुटियाँ हैं। सही विवरणों के साथ नया एपिक लेने की क्‍या प्रक्रिया है? उ. आप अपने एपिक में त्रुटियों को ठीक करने के लिए प्ररूप-8 में आवेदन कर सकते हैं। निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी आवश्‍यक सुधार करने के पश्‍चात उसी नम्‍बर वाला एक नया एपिक जारी करेगा। प्र.26 मैंने अपना पुराना एपिक गुम कर दिया है। मैं नया एपिक कैसे प्राप्‍त कर सकता हूँ? उ. पुलिस के पास एपिक के गुम हो जाने के बारे में दर्ज की गई शिकायत की प्रति के साथ-साथ 25/रूपए के शुल्‍क के भुगतान पर निर्वाचक को प्रतिस्‍थापन एपिक जारी किया जा सकता है। तथापि, बाढ़, आग अन्‍य प्राकृतिक आपदा आदि जैसे निर्वाचक के नियंत्रण से परे वाले कारणों की वजह से एपिक गुम होने की स्थिति में कोई शुल्‍क नहीं लिया जाएगा। प्र.27 निर्वाचक नामावलियों में नामों को शामिल करने के संबंध में कौन आपत्ति कर सकता है? उ. कोई भी व्‍यक्ति जो संबंधित निर्वाचन-क्षेत्र में मतदाता है निर्वाचक नामावलियों में नामों को शामिल करने के बारे में इस आधार पर आपत्ति कर सकता है कि जिस व्‍यक्ति का नाम शामिल किया गया है या शामिल करने के लिए प्रस्‍ताव किया गया है, वह उस निर्वाचन-क्षेत्र में एक मतदाता के रूप में रजिस्‍ट्रीकृत किए जाने के लिए अर्हक नहीं है। आपत्ति प्ररूप 7 में संबंधित निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी को संगत प्रमाण के साथ की जा सकती है। प्र.28 मेरे पड़ोसी/संबंधी अपना निवास स्‍थान छोड़कर किसी नए स्‍थान पर चले गए हैं लेकिन उनका नाम अभी भी निर्वाचक नामावली में बना हुआ है। निर्वाचक नामावली में से उनके नाम को हटाने के लिए आवेदन किस प्ररूप में किया जा सकता है? उ. स्‍थानांतरित/मृत/अनुपस्थित निर्वाचक के नाम को निर्वाचक नामावली से हटाने के लिए आवेदन प्ररूप 7 में किया जा सकता है। दोहरी प्रविष्टि को हटाने के लिए भी आवेदन प्ररूप 7 में दिए जाने चाहिए। प्र.29 कोई व्‍यक्ति निर्वाचक नामावली में कब रजिस्‍ट्रीकरण करवा सकता है? क्‍या रजिस्‍ट्रीकरण पूरे वर्ष भर चलता रहता है? उ. निर्वाचन आयोग सामान्‍यत: प्रतिवर्ष सितंबर से अक्‍टूबर के महीनों में मौजूदा निर्वाचक नामावली के पुनरीक्षण का आदेश देता है और ऐसी पुनरीक्षित नामावलियां आगामी वर्ष के जनवरी महीने के प्रथम सप्‍ताह में अंतिम रूप से प्रकाशित की जाती हैं। कोई भी व्‍यक्ति रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी या ऐसे आवेदनों को प्राप्‍त करने के लिए नामोदिष्‍ट अधिकारी अर्थात नामित अधिकारी को निर्वाचक दावे एवं आपत्तियां दर्ज करवाने की अवधि के दौरान दावा आवेदन (प्ररूप 6) प्रस्‍तुत कर सकता है। अंतिम प्रकाशन के पश्‍चात भी, नामावलियों को निरंतर अद्यतित किया जाता है और कोई भी व्‍यक्ति सतत अद्यतन के दौरान निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी/ सहायक निर्वाचक रजिस्‍ट्रीकरण अधिकारी को दावा आवेदन पत्र दायर करते हुए कभी भी रजिस्‍ट्रीकरण करवा सकता है। प्र. 30 क्‍या कोई व्‍यक्ति एक से अधिक स्‍थान पर रजिस्‍ट्रेशन करा सकता है? यदि मैं दिल्‍ली में कार्यरत हूँ/रह रहा हूँ तो क्‍या मैं अपने मूल स्‍थान उत्‍तराखंड में निर्वाचक बन सकता हूँ? उ. नहीं। लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1950 की धाराओं 17 और 18 में विनिर्दिष्‍ट उपबंधों के मद्देनज़र कोई व्‍यक्ति एक से अधिक स्‍थानों पर पंजीकरण नहीं करवा सकता है। इसी प्रकार, कोई भी व्‍यक्ति किसी भी निर्वाचक नामावली में निर्वाचक के रूप में एक से अधिक बार रजिस्‍ट्रेशन नहीं करवा सकता है। कोई भी व्‍यक्ति नए रजिस्‍ट्रेशन के लिए आवेदन करते समय एक कथन देता/देती है अथवा घोषणा करता/ती है कि क्‍या उसका नाम पहले से किसी अन्‍य निर्वाचक क्षेत्र की निर्वाचक नामावली में शामिल है अथवा नहीं, और यदि उसका कथन/घोषणा गलत पाई जाती है और आवेदक यह जानता अथवा विश्‍वास करता है कि वह गलत हो सकती है अथवा सत्‍य नहीं हो सकती, तो वह लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1950 की धारा 31 के अधीन दण्‍ड का पात्र होता है। प्र. 31 यदि मुझे निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी के आदेश के विरूद्ध कोई शिकायत है, तो मुझे किस अधिकारी के समक्ष अपील करनी चाहिए? उ. पुनरीक्षण अवधि के दौरान, आप जिला निर्वाचन अधिकारी के समक्ष अपील कर सकते हैं। सतत् अद्यतन की प्रक्रिया के दौरान आवेदन-पत्र के मामले में निर्वाचक रजिस्‍ट्रेशन अधिकारी के किसी आदेश के विरूद्ध ऐसी अपील संबंधित जिले के जिला मजिस्‍ट्रेट/अपर जिला मजिस्‍ट्रेट/कार्यकारी मजिस्‍ट्रेट/जिला कलेक्‍टर के समक्ष की जाएगी। अपीलीय प्राधिकारी के आदेश के विरूद्ध आगे अपील राज्‍य के मुख्‍य निर्वाचन अधिकारी के समक्ष की जाएगी।
  3. प्रश्न 1 इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन क्या है? इसकी कार्यप्रणाली किस तरह से मतदान की पारंपरिक प्रणाली से अलग है? उत्तर - इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) मतों को दर्ज करने का एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन दो इकाइयों से बनी होती हैं - एक कंट्रोल यूनिट और एक बैलेटिंग यूनिट - जो पाँच-मीटर केबल से जुड़ी होती हैं। नियंत्रण इकाई पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी के पास रखी जाती है और बैलेट यूनिट को मतदान कम्पार्टमेंट के अंदर रखा जाता है। मतपत्र जारी करने के बजाय, कंट्रोल यूनिट के प्रभारी मतदान अधिकारी कंट्रोल यूनिट पर मतपत्र बटन दबाकर एक मतपत्र जारी करेंगे। इससे मतदाता अपनी पसंद के अभ्यर्थी और प्रतीक के सामने बैलेट यूनिट पर नीले बटन को दबाकर अपना वोट डाल सकेगा। प्रश्न 2 ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) का निर्वाचनों में पहली बार कब इस्तेमाल किया गया था? उत्तर - ईवीएम का पहली बार 1982 में केरल के 70-पारुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में इस्तेमाल किया गया था। प्रश्न 3 जिन क्षेत्रों में बिजली नहीं है, वहां ईवीएम का उपयोग कैसे किया जा सकता है? उत्तर - ईवीएम के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं होती है। ईवीएम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड/इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा जोड़ी गई एक साधारण बैटरी पर चलती है। प्रश्न 4 ईवीएम में अधिकतम कितने वोट दर्ज किए जा सकते हैं? उत्तर - भारत निर्वाचन आयोग द्वारा उपयोग की जा रही ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) अधिकतम 2,000 मत दर्ज कर सकती है। प्रश्न 5 अभ्‍यर्थियों की वह अधिकतम संख्‍या क्‍या है जिसके लिए ईवीएम काम कर सकती है? उत्तर - एम2 ईवीएम (2006-10) के मामले में, ईवीएम से नोटा सहित अधिकतम 64 अभ्यर्थियों के निर्वाचन कराए जा सकते हैं। एक बैलेटिंग यूनिट में 16 अभ्यर्थियों के लिए प्रावधान होता है। यदि अभ्यर्थियों की कुल संख्या 16 से अधिक है, तो 4 बैलेटिंग यूनिटों को जोड़कर अधिक से अधिक 64 अभ्यर्थियों तक के लिए एक से अधिक बैलटिंग इकाईयां (16 अभ्‍यर्थी पर एक) जोड़ी जा सकती हैं। हालांकि, एम3 ईवीएम (2013 के बाद) के मामले में, ईवीएम से 24 बैलटिंग इकाइयों को जोड़कर नोटा सहित अधिकतम 384 अभ्‍यर्थियों के लिए निर्वाचन कराया जा सकता है। प्रश्‍न 6 यदि किसी मतदान केंद्र विशेष में ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) खराब हो जाती है तो क्या होगा? उत्तर - यदि किसी मतदान केंद्र विशेष की ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) खराब हो जाती है, तो उसे नई ईवीएम के साथ बदल दिया जाता है। जब ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) खराब हुई हो तो उस समय (चरण) तक दर्ज किए गए मत कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में सुरक्षित पड़े रहते हैं और खराब ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को नए ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) से बदलने के बाद मतदान प्रक्रिया को जारी रखना पूरी तरह से उपयुक्‍त होता है और मतदान को शुरूआत से शुरू करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मतगणना के दिन, दोनों नियंत्रण इकाइयों में दर्ज मतों को उस मतदान केंद्र का पूर्ण योग परिणाम प्राप्त करने हेतु गिना जाता है। प्रश्न 7 ईवीएम को किसने डिजाइन किया है? उत्तर - ईवीएम को दो सार्वजनिक क्षेत्र के दो उपक्रमों, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बैंगलोर और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद के सहयोग से निर्वाचन आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टीईसी) द्वारा तैयार और डिज़ाइन किया गया है। ईवीएम का विनिर्माण उपरोक्त दो उपक्रमों द्वारा किया जाता है। प्रश्न 8 वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) क्या है? उत्तर - वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से जुड़ी एक स्वतंत्र प्रणाली है जो मतदाताओं को यह सत्यापित करने की अनुमति देती है कि उनका मत उनके इच्छा के अनुरूप पड़ा है। जब कोई मत डाला जाता है, तो अभ्यर्थी के नाम, क्रम संख्‍या और प्रतीक वाली एक पर्ची मुद्रित होती है और 7 सेकंड के लिए एक पारदर्शी खिड़की के माध्यम से दिखाई देती है। उसके बाद, यह मुद्रित पर्ची स्वचालित रूप से कट जाती है और वीवीपीएटी (वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) के सीलबंद ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है। प्रश्न 9 क्या वीवीपीएटी (वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) बिजली से चलता है? उत्तर - नहीं, वीवीपीएटी (वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) पावर पैक बैटरी पर चलता है। प्रश्न 10. भारत में पहली बार वीवीपीएटी का उपयोग कहाँ किया गया था? उत्तर - वीवीपीएटी युक्‍त ईवीएम का पहली बार उपयोग नागालैंड के 51-नोकसेन (अ.ज.जा.) विधानसभा क्षेत्र के उप निर्वाचन में किया गया था। प्रश्न 11ईवीएम और वीवीपीएटी की प्रथम स्तरीय जाँच कौन करता है? उत्तर - विनिर्माताओं, नामत: भारत इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) के केवल अधिकृत इंजीनियर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि की मौजूदगी में जिला निर्वाचन अधिकारी के नियंत्रण में और उप जिला निर्वाचन अधिकारी की सीधी निगरानी में, ईवीएम और वीवीपीएटी की प्रथम स्तरीय जाँच (एफएलसी) करते हैं और इसकी वीडियोग्राफी की जाती है। प्रश्न12 मशीनों की लागत क्या है? क्या ईवीएम का उपयोग करना बहुत महंगा नहीं है? उत्तर - एम2 ईवीएम (2006-10 के बीच निर्मित) की लागत रु.8670/- प्रति ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) (बैलेटिंग यूनिट और कंट्रोल यूनिट) थी। एम3 ईवीएम की लागत अनंतिम रूप से लगभग रु.17,000 प्रति यूनिट नियत की गई है। यद्यपि शुरुआती निवेश कुछ अधिक प्रतीत होता है, किंतु इसकी प्रत्‍येक निर्वाचन के लिए लाखों की संख्‍या में मतपत्रों के मुद्रण, उनके परिवहन, भंडारण आदि से संबंधित बचत से और मतगणना स्‍टॉफ में और उन्‍हें प्रदत्‍त पारिश्रमिक में काफी कमी होने से कहीं अधिक मात्रा में भरपाई हो जाती है। प्रश्न13 हमारे देश में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा निरक्षर है। क्या इससे निरक्षर मतदाताओं को दिक्कत नहीं होगी? उत्तर - ईवीएम के द्वारा मतदान करना पारंपरिक प्रणाली की तुलना में कहीं अधिक सरल है, जिसमें व्‍यक्ति को मतपत्र पर अपनी पसंद के उम्मीदवार के प्रतीक पर या उसके निकट मतदान चिह्न लगाना होता है, उसे पहले लंबवत रूप से और फिर क्षैतिज रूप से मोड़ना होता है और तदुपरांत उसे मत पेटी में डालना होता है। ईवीएम में, मतदाता को अपनी पसंद के अभ्यर्थी और प्रतीक के सामने बैलट यूनिट पर सिर्फ नीला बटन दबाना होता है और मत दर्ज हो जाता है। प्रश्न14 क्या संसद और राज्य विधानसभा के लिए एक साथ निर्वाचन कराने के लिए ईवीएम का उपयोग करना संभव है? उत्तर - हाँ। हालांकि, समकालिक निर्वाचनों के दौरान ईवीएम के 2 अलग-अलग सेटों की आवश्यकता होती है, एक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के लिए और दूसरा विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए। प्रश्न15 ईवीएम का उपयोग करने के क्या-क्‍या फायदे हैं? उत्तर - ईवीएम का उपयोग करने के फायदे: यह 'अविधिमान्‍य मत' डाले जाने की संभावना को पूरी तरह से समाप्त कर देता है, जिसे कागज मतपत्र व्यवस्था के दौरान, प्रत्येक निर्वाचन के दौरान बड़ी संख्या में देखा जाता था। वास्तव में, कई मामलों में, 'अविधिमान्‍य मतों' की संख्या जीत के अंतर से अधिक हो जाती थी, जिसके कारण ढेरों शिकायतें और मुकदमे होते थे। इस प्रकार, ईवीएम ने निर्वाचक की पसंद के अधिक प्रामाणिक और ठीक-ठीक प्रतिफल को संभव बनाया। ईवीएम के उपयोग के साथ, प्रत्‍येक निर्वाचन के लिए लाखों की संख्‍या में मतपत्रों की छपाई से छुटकारा मिल सकता है, क्योंकि व्यक्तिश: प्रत्येक निर्वाचक के लिए एक मतपत्र के बजाय प्रत्येक मतदान केंद्र पर बैलेटिंग यूनिट पर चिपकाने के लिए केवल एक मत पत्र की आवश्यकता होती है। इसके परिणामस्‍वरूप कागज, छपाई, परिवहन, भंडारण और वितरण की लागत के हिसाब से भारी बचत होती है। मतगणना की प्रक्रिया अत्‍यन्‍त तीव्र होती है और परिणाम पारंपरिक मत-पत्र प्रणाली के तहत औसतन 30-40 घंटों की तुलना में 3 से 5 घंटे के भीतर घोषित किया जा सकता है। प्रश्न16 मतपेटियों के साथ मतपत्रों को मिलाने के बाद मतगणना की जाती है। क्या ईवीएम का इस्तेमाल होने पर इस प्रणाली को अपनाना संभव है? उत्तर - हां, 'टोटलाइज़र' नामक एक उपकरण के उपयोग के माध्यम से, जो एक विशेष मतदान केंद्र पर इस्तेमाल किए गए एकल ईवीएम की अभ्यर्थीवार गिनती को प्रकट किए बिना एक बार में 14 नियंत्रण इकाईयों को समायोजित कर सकता है। हालाँकि, वर्तमान में टोटलाइजर का उपयोग नहीं किया जाता है क्योंकि इसके तकनीकी पहलुओं और अन्य संबंधित मुद्दों की जांच चल रही है और यह एक न्‍यायालयीन मुकदमें का विषय भी है। प्रश्न17 कंट्रोल यूनिट अपनी मेमोरी में कितने समय तक रिजल्ट स्टोर करता है? उत्तर - नियंत्रण इकाई (कंट्रोल यूनिट) अपनी मेमोरी में परिणाम को तब तक स्टोर कर सकता है जब तक कि डाटा को हटा या क्‍लीयर न कर दिया जाए। प्रश्न18. जहां कही भी निर्वाचन याचिका दायर की जाती है, वहां निर्वाचन का परिणाम अंतिम परिणाम के अधीन होता है। अदालतें, उपयुक्त मामलों में, मतों की पुनर्गणना का आदेश दे सकती हैं। क्या ईवीएम को उतने लंबे समय तक स्‍टोर किया जा सकता है और क्या न्यायालयों द्वारा अधिकृत अधिकारियों की उपस्थिति में परिणाम लिया जा सकता है? उत्तर - एक ईवीएम (इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की मियाद 15 वर्ष और इससे भी अधिक होती है और कंट्रोल यूनिट में दर्ज मतों को उसकी मियाद के लिए तब तक स्‍टोर किया जा सकता है जब तक कि उसे क्लियर न कर दिया जाए। यदि अदालत पुनर्मतगणना का आदेश देती है, तो बैटरी को ठीक करके कंट्रोल यूनिट को फिर से क्रियाशील किया जा सकता है और यह इसकी मेमोरी में संग्रहित परिणाम प्रदर्शित करेगा। प्रश्न19 क्या बार-बार बटन दबाने से एक से अधिक बार मतदान संभव है? उत्तर - नहीं। जैसे ही बैलेटिंग यूनिट पर एक विशेष बटन दबाया जाता है, उस विशेष अभ्यर्थी के लिए मत दर्ज हो जाता है और मशीन लॉक हो जाती है। यहां तक कि अगर कोई उस बटन को दोबारा या किसी अन्य बटन को दबाता है, तो भी आगे कोई मत दर्ज नहीं किया जाएगा। इस तरह, ईवीएम "एक व्‍यक्ति, एक मत" के सिद्धांत को सुनिश्चित करती है। अगला मत केवल तभी संभव हो पाता है जब कंट्रोल यूनिट के पीठासीन अधिकारी/प्रभारी मतदान अधिकारी मतपत्र बटन को दबाकर मतपत्र जारी करते हैं। यह मतपत्र प्रणाली की तुलना में एक विशिष्‍ट लाभ है। प्रश्न 20 एक मतदाता यह कैसे सुनिश्चित कर सकता है कि ईवीएम (इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिग मशीन) काम कर रही है और उसका मत अभिलिखित किया गया है? उत्तर - जैसे ही मतदाता अपनी पसंद के अभ्यर्थी और प्रतीक के सामने `नीला बटन' दबाता है, उस अभ्यर्थी विशेष के प्रतीक के सामने की बत्ती लाल रंग में चमक उठती है और एक लंबी बीप ध्‍वनि सुनाई देती है। इस प्रकार, मतदाता को यह आश्‍वस्‍त करने के लिए श्रव्‍य और दृश्‍य दोनों संकेत मिलते हैं कि उसका मत सही तरह से दर्ज हो गया है। इसके अलावा, वीवीपीएटी पेपर स्लिप के रूप में मतदाता को एक अतिरिक्त दृश्‍य सत्यापन उपलब्‍ध कराता है ताकि वह इस बात के प्रति सुनिश्चित हो सके कि उसका मत उसकी पसंद के अभ्यर्थी के लिए सही ढंग से दर्ज हो गया है। प्रश्न21 क्या यह सच है कि कभी-कभी शॉर्ट-सर्किट या अन्य कारण से इस बात की संभावना होती है कि `नीले बटन’ को दबाने पर मतदाता को बिजली का झटका लग जाए? उत्तर - नहीं। ईवीएम बैटरी पर काम करती है और `नीले बटन’ को दबाने या ईवीएम (इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को हैंडल करने के समय किसी भी मतदाता को किसी भी समय बिजली का झटका लगने की कोई संभावना नहीं है। प्रश्न22 क्या ईवीएम को इस तरह से क्रमादेशित करना संभव है कि शुरू में, मानिए कि 100 मत तक, मत उसी तरह से दर्ज हों जैसे कि `नीले बटन 'दबाए जाते हैं, लेकिन उसके बाद, मत केवल एक अभ्यर्थी विशेष के पक्ष में दर्ज होंगे चाहे उस अभ्यर्थी या किसी अन्य अभ्यर्थी के सामने ‘नीला बटन’ दबाया गया हो या नहीं? उत्तर - ईवीएम में इस्तेमाल किया जाने वाला माइक्रोचिप एक बार का क्रमादेशन-योग्‍य/मास्क्ड चिप होता है, जिसे न तो पढ़ा जा सकता है और न ही ओवरराइट किया जा सकता है। इसलिए, ईवीएम में उपयोग किए जाने वाले क्रमादेशन को एक विशेष तरीके से पुन: क्रमादेशित नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, ईवीएम पूर्णतया पृथक मशीनें होती हैं जिस तक न तो किसी भी नेटवर्क से दूरचालित रूप में पहुंचा जा सकता है और न ही किसी बाहरी उपकरण से जोड़ा जा सकता है और इन मशीनों में कोई भी ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग नहीं किया जाता है। इसलिए, किसी भी विशेष उम्मीदवार या राजनीतिक पार्टी का चयन करने के लिए ईवीएम को एक विशेष तरीके से क्रमादेशित करने की बिल्‍कुल भी संभावना नहीं है। प्रश्न23 क्या ईवीएम को मतदान केंद्रों तक ढोकर ले जाना मुश्किल नहीं होगा? उत्तर - नहीं। इसके उलट, मतपेटियों की तुलना में ईवीएम को ढोकर ले जाना आसान है, क्योंकि ईवीएम अधिक हल्के, वहनीय होते हैं और ढुलाई/परिवहन की सहूलियत के लिए ग्राहकोनुकूलित पॉलीप्रोपीलिन केरिंईंग केस के साथ आते हैं। प्रश्न24 देश के कई क्षेत्रों में, बिजली कनेक्शन नहीं है और यहां तक कि उन जगहों पर भी जहां बिजली कनेक्शन है, बिजली की आपूर्ति अनियमित है। इस परिदृश्य में क्या इससे बिना एयर कंडीशनिंग के मशीनों को स्टोर करने में समस्या उत्‍पन्‍न नहीं होगी? उत्तर - उस कमरे/हॉल को वातानुकूलित करने की कोई आवश्यकता नहीं है जहां ईवीएम रखे जाते हैं। जरूरी केवल इतना है कि कमरे/हॉल को धूल, नमी और कृन्तकों से मुक्त रखा जाए जैसा कि मतपेटियों के मामले में किया जाता है। प्रश्न 25 परंपरागत प्रणाली में, किसी भी विशेष समय-बिंदु में पड़े मतों की कुल संख्या को जानना संभव होगा। ईवीएम में 'परिणाम' भाग को सील कर दिया जाता है और उसे मतगणना के समय ही खोला जाएगा। मतदान की तारीख को कुल कितने वोट मिले, इसे कैसे जाना जा सकता है? उत्तर - 'परिणाम' बटन के अलावा, ईवीएम के कंट्रोल यूनिट पर एक 'टोटल' बटन होता है। इस बटन को दबाने से अभ्यर्थीवार परिणाम सूचित किए बिना बटन दबाने के समय तक पड़े मतों की कुल संख्या प्रदर्शित हो जाएगी। प्रश्न26 बैलेटिंग यूनिट में 16 अभ्यर्थियों के लिए प्रावधान होता है। एक निर्वाचन क्षेत्र में, केवल 10 अभ्यर्थी हैं। मतदाता 11 से 16 तक के किसी भी बटन को दबा सकता है। क्या ये मत निष्‍फल नहीं होंगे? उत्तर - नहीं। यदि एक निर्वाचन-क्षेत्र में नोटा सहित केवल 10 अभ्यर्थी हैं, तो रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा ईवीएम (इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) तैयार करने के समय क्रम. सं. 11 से 16 पर दिए गए 'कैंडिडेट' बटन को छिपा दिया जाएगा। इसलिए, किसी भी मतदाता द्वारा 11 से 16 के अभ्यर्थियों के लिए कोई अन्‍य बटन को दबाने का सवाल ही नहीं है। प्रश्न27 मतपेटियों को उत्कीर्ण किया जाता है ताकि इन बॉक्सों को बदले जाने की शिकायत के किसी भी संभावना से बचा जा सके। क्या ईवीएम के संख्‍यांकन की कोई व्यवस्था है? उत्तर - हाँ। प्रत्येक बैलेटिंग यूनिट और कंट्रोल यूनिट में एक विशिष्‍ट आईडी संख्‍या होती है, जिसे प्रत्येक यूनिट पर उकेरा जाता है। किसी विशेष मतदान केंद्र में प्रयुक्‍त की जाने वाली ईवीएम (इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की आईडी संख्‍या वाली सूची तैयार की जाती है और निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों/उनके एजेन्टों को उपलब्ध कराई जाती है। प्रश्न28 पारंपरिक प्रणाली में, मतदान शुरू होने से पहले, पीठासीन अधिकारी उपस्थित मतदान एजेंटों को दिखाता है कि मतदान केंद्र में इस्तेमाल की जाने वाली मतपेटी खाली है। क्या मतदान एजेंटों को आश्‍वस्‍त करने के लिए ऐसा कोई प्रावधान है कि ईवीएम में पहले से दर्ज मत अव्‍यक्‍त रूप में नहीं हैं? उत्तर - हाँ। मतदान शुरू होने से पहले, पीठासीन अधिकारी परिणाम बटन दबाकर उपस्थित मतदान एजेंटों को प्रदर्शित करता है कि मशीन में पहले से छिपे हुए मत नहीं हैं। इसके बाद, वह मतदान एजेंटों की उपस्थिति में कम से कम 50 मतों के साथ मतदान एजेंटों को इस बात से पूरी तरह से संतुष्ट करने के लिए मॉक पोल का संचालन करता है और सीयू में संग्रहीत इलेक्ट्रॉनिक परिणाम से मिलान करता है कि दर्शित परिणाम पूरी तरह उनके द्वारा दर्ज किए मतों के अनुसार है। तदुपरांत पीठासीन अधिकारी वास्तविक मतदान शुरू होने से पहले मॉक पोल के परिणाम को हटाने के लिए क्लियर बटन दबाएगा। वह 'टोटल' बटन दबाकर फिर मतदान एजेंटों को दिखाता है कि वह 'शून्य' दर्शित कर रहा है। फिर वह मतदान एजेंटों की उपस्थिति में वास्तविक मतदान शुरू करने से पहले कंट्रोल यूनिट को सीलबंद करता है। अब, हरेक पोलिंग बूथ पर 100% वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) के उपयोग के साथ, मॉक पोल के बाद, वीवीपीएटी पेपर स्लिप भी गिने जाते हैं। प्रश्न29 मतदान समाप्‍त होने के बाद और मतगणना शुरू होने से पहले हितबद्ध पक्षकारों द्वारा किसी भी समय और अधिक मतों को दर्ज करने की संभावना को कैसे खारिज किया जा सकता है? उत्तर - मतदान पूरा होने के बाद अर्थात जब आखिरी मतदाता मतदान कर ले, कंट्रोल यूनिट का प्रभारी अधिकारी/ पीठासीन अधिकारी 'क्लोज' बटन दबाता है। तदुपरांत, ईवीएम (इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) कोई भी वोट को स्वीकार नहीं करती है। मतदान समाप्त होने के बाद, कंट्रोल यूनिट को स्विच ऑफ कर दिया जाता है और उसके बाद बैलेटिंग यूनिट को कंट्रोल यूनिट से अलग कर दिया जाता है और संबंधित कैरिईंग केस में अलग से रखा जाता है और सीलबंद कर दिया जाता है। इसके अलावा, पीठासीन अधिकारी को प्रत्येक मतदान एजेंट को दर्ज किए गए मतों के लेखे की एक प्रति सौंपनी होती है। मतगणना के समय, एक विशेष कंट्रोल यूनिट में दर्ज कुल मतों का इस लेखे से मिलान किया जाता है और यदि कोई असंगति है, तो काउंटिंग एजेंटों द्वारा उसे इंगित किया जा सकता है। प्रश्न30 यदि प्रिंटर द्वारा उत्‍पन्‍न पेपर पर्ची उस अभ्यर्थी से इतर अभ्‍यर्थी के नाम या प्रतीक को दर्शाती है जिसके लिए उसने मतदान किया है तो क्या उसके लिए शिकायत करने का कोई प्रावधान है? उत्तर - हां, अगर कोई निर्वाचक अपना मत दर्ज करने के बाद यह आरोप लगाता है कि प्रिंटर द्वारा मुद्रित पेपर पर्ची में उस अभ्‍यर्थी से इतर अभ्‍यर्थी का नाम या प्रतीक दर्शाया गया है जिसके लिए उसने मतदान किया है तो निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 के नियम 49डक के प्रावधानों के अनुसार पीठासीन अधिकारी निर्वाचक को झूठी घोषणा करने के परिणाम के बारे में चेतावनी देने के पश्चात आरोप के बारे में उनसे लिखित घोषणा प्राप्त करेगा। यदि निर्वाचक नियम 49डक के उप-नियम (1) में निर्दिष्ट लिखित घोषणा देता है, तो पीठासीन अधिकारी निर्वाचक को अपनी उपस्थिति में और अभ्यर्थियों या मतदान अभिकर्ताओं, जो मतदान केंद्र में उपस्थित हो सकते हैं, की उपस्थिति में वोटिंग मशीन में एक परीक्षण मत रिकॉर्ड करने और प्रिंटर द्वारा उत्पन्न पेपर स्लिप का निरीक्षण करने की अनुमति देगा। यदि आरोप सत्य पाया जाता है, तो पीठासीन अधिकारी रिटर्निंग ऑफिसर को तथ्यों की तुरंत रिपोर्टिंग करेगा, उस वोटिंग मशीन में वोटों की आगे रिकॉर्डिंग रोक देगा और रिटर्निंग अधिकारी द्वारा दिए गए निर्देश के अनुसार कार्य करेगा। हालांकि, यदि आरोप गलत पाया गया है और उप-नियम (1) के तहत इस तरह उत्पन्न पेपर स्लिप का मिलान उप-नियम (2) के तहत निर्वाचक द्वारा दर्ज किए गए परीक्षण मत से हो जाता है, तो, पीठासीन अधिकारी - उस निर्वाचक से संबंधित दूसरी प्रविष्टि के प्रति प्ररूप 17क में उस अभ्‍यर्थी की क्रम संख्या और नाम का उल्लेख करते हुए एक टिप्पणी करेगा, जिसके लिए इस तरह का परीक्षण मत दर्ज किया गया है; ऐसी टिप्पणियों के सामने उस निर्वाचक के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान प्राप्त करेगा; तथा प्ररूप 17ग के भाग I में मद 5 में इस तरह के परीक्षण मत के बारे में आवश्यक प्रविष्टियां करेगा। " प्रश्न31 निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों को आवंटित क्रम संख्याएं, अभ्यर्थियों के नाम और प्रतीकों को वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) इकाई में कौन लोड करता है? उत्तर - उन्हें आवंटित क्रम संख्याएं अभ्यर्थियों के नाम, और प्रतीक विनिर्माता अर्थात ईसीआईएल/बीईएल के इंजीनियरों की मदद से वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) यूनिट में लोड किए जाते हैं। प्रश्न32 क्या क्रम संख्याओं, वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) में लोड किए गए अभ्यर्थियों के नामों और प्रतीकों के परीक्षण प्रिंटआउट आवश्यक हैं? उत्तर - हाँ। वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) में लोड की क्रम संख्‍याएं अभ्यर्थियों के नामों और प्रतीकों के परीक्षण प्रिंटआउट की जांच बैलट यूनिट पर रखे गए बैलेट पेपर के साथ की जानी अपेक्षित होती है। उसके बाद, प्रत्येक अभ्‍यर्थी को एक मत यह जांचने के लिए दिया जाएगा कि वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) सभी अभ्यर्थियों के संबंध में पेपर पर्चियों का सही ढंग से मुद्रण कर रहा है। प्रश्न33 क्या वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) इकाई को हैंडल करने के लिए प्रत्येक मतदान केंद्र में अतिरिक्त मतदान कार्मिक की आवश्यकता होती है? उत्तर - हाँ। प्रत्येक ऐसे मतदान केंद्र पर अतिरिक्त मतदान कार्मिक की आवश्यकता होती है, जहां ईवीएम के साथ एम2 वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) लगाए जाते हैं। इस मतदान कार्मिक का कर्तव्य पूरे मतदान प्रक्रिया के दौरान पीठासीन अधिकारी की मेज पर रखी हुई वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) स्टेटस डिस्प्ले यूनिट (वीएसडीयू) पर नजर रखना होगा। हालांकि, एम3 वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) के मामले में वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) को हैंडल करने के लिए किसी अतिरिक्त मतदान कार्मिक की आवश्यकता नहीं है। प्रश्न34 मतदान केंद्रों पर पेपर रोल बदलने की अनुमति है या नहीं? उत्तर - मतदान केंद्रों पर पेपर रोल को बदलने की सख्त मनाही है। प्रश्न35 क्या मतगणना के दिन वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) की मुद्रित पेपर पर्चियों की गिनती की जानी अनिवार्य है? उत्तर - वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) की मुद्रित पेपर पर्चियों की गिनती केवल निम्नलिखित मामलों में की जाती है: (क‍) राज्य विधान सभा के निर्वाचन के मामले में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र और (ख) लोक सभा के निर्वाचन के मामले में प्रत्येक विधानसभा खंड के यादृच्छिक रूप से चयनित 01 मतदान केंद्र की मुद्रित वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) पेपर पर्चियों का अनिवार्य सत्यापन कंट्रोल यूनिट से परिणाम का कोई प्रदर्शन न होने की स्थिति में, संबंधित वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) की मुद्रित पेपर पर्चियों की गणना की जाती है। यदि कोई भी अभ्‍यर्थी या उसकी अनुपस्थिति में, उसका निर्वाचन एजेंट या उसका कोई भी मतगणना एजेंट निर्वाचनों का संचालन नियम,1961 के नियम 56 घ के तहत किसी भी मतदान केंद्र या मतदान केंद्रों के संबंध में वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) की मुद्रित पेपर पर्चियों की गिनती करने के लिए लिखित अनुरोध करता है, तो रिटर्निंग ऑफिसर विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेता है और लिखित आदेश जारी करता है, कि उस विशेष मतदान केंद्र (केन्द्रों) की वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) के मुद्रित पेपर पर्चियों की गिनती की जानी है या नहीं। प्रश्न36 परिणाम की घोषणा के बाद, क्या वीवीपीएटी (वोटर वेरिफॉयबल पेपर ऑडिट ट्रेल) की मुद्रित पेपर पर्चियों (गिनी हुई या न गिनी हुई) को वीवीपीएटी प्रिंटर इकाई के ड्रॉप बॉक्स से बाहर निकाले जाने की जरूरत होती है? उत्तर - नहीं। वीवीपीएटी को निर्वाचन याचिका की अवधि पूरी होने तक ईवीएम के साथ एक सुरक्षित स्ट्रांग रूम में संग्रहित किया जाता है। प्रश्न37 मैं ईवीएम और वीवीपीएटी के बारे में और अधिक जानकारी कहां से प्राप्‍त कर/पढ़ सकता हूं? उत्तर - और अधिक पढ़ने-जानने के लिए आप निम्नलिखित का संदर्भ ले सकते हैं: ईवीएम मैनुअल https://eci.gov.in/files/file/9230-manual-on-electronic-voting-machine-and-vvpat/ पर उपलब्ध है ईवीएम पर स्टेटस पेपर https://eci.gov.in/files/file/8756-status-paper-on-evm-edition-3/ पर उपलब्ध है। प्रश्न38 क्या किसी विशेष मतदान केंद्र में ईवीएम की तैनाती के बारे में पहले से जानना संभव है? उत्तर - नहीं, यहाँ यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि मतपत्र में, और इसलिए बैलट यूनिट में अभ्यर्थियों के नामों की व्यवस्था वर्णमाला के क्रम में, पहले राष्ट्रीय और राज्य मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिए, उसके बाद अन्य राज्य पंजीकृत दलों के लिए और फिर निर्दलीयों के लिए होती है। इस प्रकार, अभ्यर्थी जिस क्रम में बैलेट यूनिट पर दिखाई देते हैं, वह अभ्यर्थियों के नामों और उनकी दलीय संबद्धता पर निर्भर होती है और उसका पहले से पता नहीं लगाया जा सकता है। ईवीएम को आयोग द्वारा विकसित ईवीएम (इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) ट्रैकिंग सॉफ़्टवेयर के माध्यम से यादृच्छिकीकरण प्रक्रिया के दो चरणों के द्वारा मतदान केंद्र के लिए आवंटित किया जाता है। ईवीएम की प्रथम स्तरीय जाँच के बाद उन्हें विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रवार आवंटित करने के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी स्तर पर ईवीएम का पहला यादृच्छिकीकरण राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि की उपस्थिति में किया जाता है। उसके बाद, ईवीएम की कमीशनिंग से पहले, रिटर्निंग ऑफिसर स्तर अभ्यर्थियों/उनके एजेंटों की उपस्थिति में ईवीएम का दूसरा यादृच्छिकीकरण किया जाता है ताकि उन्‍हें मतदान केंद्रवार आवंटित किया जा सके। प्रश्न39 क्या यह सत्य है कि न्यायालयों में ईवीएम के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई हैं? इसका परिणाम क्या है? उत्तर - हाँ। 2001 के बाद से, विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष ईवीएम (इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के साथ संभव रूप से गड़बड़ करने का मुद्दा उठाया गया है। उनमें से कुछ का उल्‍लेख नीचे किया गया है: मद्रास उच्च न्यायालय-2001 केरल उच्च न्यायालय-2002 दिल्ली उच्च न्यायालय -2004 कर्नाटक उच्च न्यायालय- 2004 बॉम्बे उच्च न्यायालय (नागपुर बेंच) -2004 उत्तराखंड उच्च न्यायालय - 2017 भारत का सर्वोच्च न्यायालय - 2017 ईवीएम के इस्‍तेमाल से जुड़ी प्रौद्योगिकीय सुरक्षा और प्रशासनिक रक्षोपायों के विभिन्न पहलुओं के विस्तृत विश्लेषण के बाद, विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा ईवीएम की साख, विश्वसनीयता और त्रुटिमुक्‍तता को सभी मामलों में विधिमान्‍य ठहराया गया है। इनमें से कुछ मामलों में, माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय के आदेशों जो ईवीएम के पक्ष में थे के खिलाफ कुछ याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया है, । विवरण के लिए, ईवीएम (इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर स्टेटस पेपर जो https://eci.gov.in/files/file/ 8756-status-paper-on-evm-edition-3/ पर उपलब्ध है, देखें।
  4. राजनैतिक दलों और अभ्‍यर्थियों के मार्गदर्शन के लिए आदर्श आचार संहिता प्रश्‍न 1: आदर्श आचार संहिता क्‍या है ? उत्तर: आदर्श आचार संहिता राजनैतिक दलों और अभ्‍यर्थियों के मार्गदर्शन के लिए निर्धारित किए गए मानकों का एक ऐसा समूह है जिसे राजनैतिक दलों की सहमति से तैयार किया गया है और उन्‍होंने उक्‍त संहिता में सन्निहित सिद्धांतों का पालन करने और साथ ही उनकों मानने और उसका अक्षरश: अनुपालन करने के लिए सभी ने सहमति दी है। प्रश्‍न 2: इस मामले में निर्वाचन आयोग की क्‍या भूमिका है ? उत्तर : भारत निर्वाचन आयोग, भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 324 के अधीन संसद और राज्‍य विधान मंडलों के लिए स्‍वतंत्र, निष्‍पक्ष और शांतिपूर्ण निर्वाचनों के आयोजन हेतु अपने सांविधिक कर्तव्‍यों के निर्वहन में केन्‍द्र तथा राज्‍यों में सत्तारूढ़ दल (दलों) और निर्वाचन लड़ने वाले अभ्‍यर्थियों द्वारा इसका अनुपालन सुनिश्चित करता है। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन के प्रयोजनार्थ अधिकारी तंत्र का दुरूपयोग न हो। इसके अतिरिक्‍त यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन अपराध, कदाचार और भ्रष्‍ट आचरण यथा प्रतिरूपण, रिश्‍वतखोरी और मतदाताओं को प्रलोभन, मतदाताओं को धमकाना और भयभीत करना जैसी गतिविधियों को हर प्रकार से रोका जा सके। उल्‍लंघन के मामले मे उचित उपाय किए जाते हैं। प्रश्‍न 3: किस तारीख से आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है और यह किस तारीख तक प्रवृत्त रहती है ? उत्तर : आदर्श आचार संहिता को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचन अनुसूची की घोषणा की तारीख से लागू किया जाता है और यह निर्वाचन प्रक्रिया के पूर्ण होने तक प्रवृत्त रहती है। प्रश्‍न 4: साधारण निर्वाचनों और उप-निर्वाचनों के दौरान संहिता की क्‍या प्रयोजनीयता है ? उत्तर: लोक सभा के साधारण निर्वाचनों के दौरान यह संहिता सम्‍पूर्ण देश में लागू होती है। विधान सभा के साधारण निर्वाचनों के दौरान यह संहिता संपूर्ण राज्‍य में लागू होती है। उप निर्वाचनों के दौरान, यदि वह निर्वाचन क्षेत्र राज्‍य राजधानी/महानगर शहरों/ नगर-निगमों में शामिल है तो यह संहिता केवल संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में ही लागू होगी। अन्‍य सभी मामलों में आदर्श आचार संहिता उप निर्वाचन (नों) वाले निर्वाचन क्षेत्रों के अन्‍तर्गत आने वाले संपूर्ण जिले (लों) में लागू होगी। प्रश्‍न 5: आदर्श आचार संहिता की मुख्‍य विशेषताएं क्‍या हैं ? उत्तर : आदर्श आचार संहिता की मुख्‍य विशेषताएं निर्धारित करती हैं कि राजनीतिक दलों, निर्वाचन लड़ने वाले अभ्‍यथियों और सत्ताधारी दल (लों) को निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान कैसा व्‍यवहार करना चाहिए अर्थात् निर्वाचन प्रक्रिया, बैठकें आयोजित करने, शोभायात्राओं, मतदान दिवस गतिविधियों तथा सत्ताधारी दल के कामकाज इत्‍यादि के दौरान उनका सामान्‍य आचरण कैसा होगा। सरकारी तंत्र पर प्रश्‍न 6: क्‍या मंत्री अपने आधिकारिक दौरे को निर्वाचन प्रचार के साथ मिला सकते हैं ? उत्तर : नहीं। मंत्री अपने आधिकारिक दौरे को निर्वाचन प्रचार संबंधी कार्यों के साथ नहीं मिलाएंगे और न ही निर्वाचन प्रचार संबंधी कार्यों के दौरान सरकारी तंत्र या कार्मिकों का प्रयोग करेंगे तथापि, आयोग ने निर्वाचन प्रचार दौरे के साथ आधिकारिक दौरे को मिलाने संबंधी आदर्श आचार संहिता के प्रावधान से प्रधानमंत्री को छूट दी हुई है। प्रश्‍न 7: क्‍या सरकारी वाहन को निर्वाचन प्रचार संबंधी कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है ? उत्तर : विमान, वाहनों इत्‍यादि सहित कोई भी सरकारी वाहन किसी दल या अभ्‍यर्थी के हितों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रयोग नहीं किया जाएगा। प्रश्‍न 8: क्‍या सरकार निर्वाचन कार्य से संबंधित पदाधिकारियों का स्‍थानांतरण और तैनाती कर सकती है ? उत्तर : निर्वाचन के आयोजन से प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से जुड़े हुए सभी अधिकारियों/पदाधिकारियों के स्‍थानांतरण और तैनाती पर संपूर्ण प्रतिबंध होगा। यदि किसी अधिकारी का स्‍थानांतरण या तैनाती आवश्‍यक मानी जाती है तो आयोग की पूर्व-अनुमति ली जाएगी। प्रश्‍न 9: यदि निर्वाचन कार्य से संबंधित किसी अधिकारी का आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले सरकार द्वारा स्‍थानांतरण कर दिया जाता है और उसने नए स्‍थान पर कार्यभार ग्रहण नहीं किया है तो क्‍या ऐसा अधिकारी आचार संहिता की घोषणा के बाद नए स्‍थान पर कार्यभार ग्रहण कर सकता है ? उत्तर : नहीं। यथापूर्णस्थिति बनाए रखी जाएगी। प्रश्‍न 10 : क्‍या कोई केन्‍द्रीय मंत्री या राज्‍य सरकार का मंत्री निर्वाचनों की अवधि के दौरान किसी आधिकारिक चर्चा के लिए किसी राज्‍य या निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचन संबंधी अधिकारी को बुला सकता है ? उत्तर : नहीं। कोई भी केन्‍द्रीय या राज्‍य सरकार का मंत्री कहीं भी किसी आधिकारिक चर्चा हेतु राज्‍य या निर्वाचन क्षेत्र के किसी निर्वाचन संबंधी अधिकारी को नहीं बुला सकता है। इसका एकमात्र अपवाद तभी होगा जब कोई मंत्री संबंधित विभाग के प्रभारी होने के नाते या कोई मुख्‍यमंत्री कानून एवं व्‍यवस्‍था के असफल हो जाने या प्राकृतिक आपदा या किसी आपातकाल में ऐसे किसी निर्वाचन क्षेत्र का आधिकारिक दौरा करते हैं जिसमें अधीक्षण, मदद, राहत और इसी प्रकार के विशेष प्रयोजनार्थ ऐसे मंत्री/मुख्‍यमंत्री की व्‍यक्तिगत उपस्थिति अपेक्षित होती है। यदि कोई केन्‍द्रीय मंत्री पूर्णत: आधिकारिक कार्य से दिल्‍ली से बाहर दौरा कर रहे हैं, जिसे लोकहित मे टाला नहीं जा सकता है तो उस मंत्रालय/ विभाग के संबंधित सचिव से इस आशय को प्रमाणित करने वाला एक पत्र संबंधित राज्‍य के मुख्‍य सचिव को भेजने के साथ उसकी एक प्रति निर्वाचन आयोग को भेजी जाएगी। प्रश्‍न 11: क्‍या कोई पदाधिकारी मंत्री से उनके निजी दौरे के दौरान उस निर्वाचन क्षेत्र में मिल सकते हैं जहां निर्वाचन हो रहे हैं। उत्तर : कोई पदाधिकारी जो मंत्री से निर्वाचन क्षेत्र में उनके निजी दौरे के दौरान मिलते हैं, संगत सेवा नियमों के अधीन कदाचार के दोषी होंगे और यदि वह लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 129(1) में उल्लिखित पदाधिकारी हैं तो उन्‍हें उस धारा के सांविधिक उपबंधों का उल्‍लंघन करने का अतिरिक्‍त दोषी माना जाएगा और वे उसके अधीन उपबंधित दांडिक कार्रवाई के भागी होंगे। प्रश्‍न 12: क्‍या निर्वाचनों के दौरान मंत्री आधिकारिक वाहन के हकदार होंगे ? उत्तर : मंत्रियों को अपना आधिकारिक वाहन केवल अपने आधिकारिक निवास से अपने कार्यालय तक शासकीय कार्यों के लिए ही मिलेगा बशर्ते इस प्रकार के सफर को किसी निर्वाचन प्रचार कार्य या राजनीतिक गतिविधि से न जोड़ा जाए। प्रश्‍न 13: क्‍या मंत्री या कोई अन्‍य राजनीतिक कार्यकर्ता सायरन सहित बीकन प्रकाश वाली पायलट कार का प्रयोग कर सकते हैं ? उत्तर : मंत्री या किसी अन्‍य राजनीतिक कार्यकर्ता को निर्वाचन अवधि के दौरान निजी या आधिकारिक दौरे पर किसी पायलट कार या किसी रंग की बीकन लाइट अथवा किसी भी प्रकार के सायरन सहित कार का प्रयोग करने की अनुमति नहीं होगी भले ही राज्‍य प्रशासन ने उसे सुरक्षा कवर दिया हो जिसमें ऐसे दौरों पर उसके साथ सशस्‍त्र अंगरक्षकों के उपस्थित रहने की आवश्‍यकता हो। यह निषेध सरकारी व निजी स्‍वामित्‍व वाले दोनों प्रकार के वाहनों पर लागू होगा। प्रश्‍न 14: यदि राज्‍य द्वारा मंत्री को वाहन उपलब्‍ध करवाया गया है और ऐसे वाहन के रख-रखाव के लिए मंत्री को भत्ता दिया गया है तो क्‍या मंत्री द्वारा इसे निर्वाचन के प्रयोजनार्थ इस्‍तेमाल किया जा सकता है ? उत्तर : जहां मंत्री को राज्‍य द्वारा वाहन उपलब्‍ध करवाया जाता है या वाहन के रख-रखाव हेतु मंत्री को भत्ता दिया जाता है तो मंत्री निर्वाचनों के लिए ऐसे वाहनों का इस्‍तेमाल नहीं कर सकता है। प्रश्‍न 15: क्‍या अनुसूचित जाति राष्‍ट्रीय आयोग या इसी प्रकार के किसी अन्‍य राष्‍ट्रीय/राज्‍य आयोग के सदस्‍यों की विज़ि‍ट पर कोई प्रतिबंध है ? उत्तर : यह सलाह दी जाती है कि जब तक किसी आकस्मिक स्थिति में ऐसी विजिट अपरिहार्य न हो तो ऐसे आयोगों के सदस्‍यों के आधिकारिक दौरे निर्वाचन प्रक्रिया के पूर्ण होने तक आस्‍थगित रखे जाएंगे ताकि किसी स्‍थान पर इस वजह से होने वाले भ्रम से बचा जा सके। प्रश्‍न 16: क्‍या कोई मुख्‍य मंत्री/ मंत्री/स्‍पीकर राज्‍य के 'राज्‍य दिवस' समारोह में भाग ले सकते हैं ? उत्तर : इसमें कोई आपत्ति नहीं है बशर्तो वह इस अवसर पर कोई राजनीतिक भाषण न दें और उस समारोह में केवल सरकारी पदाधिकारी ही उपस्थित हों। मुख्‍यमंत्री/मंत्री/स्‍पीकर के फोटो वाल कोई भी विज्ञापन जारी नहीं किया जाएगा। प्रश्‍न 17: क्‍या राज्‍यपाल/मुख्‍यमंत्री/मंत्री किसी विश्‍वविद्यालय या संस्‍थान के दीक्षांत-समारोह में भाग ले सकते हैं और इसे संबोधित कर सकते है? उत्तर : राज्‍यपाल दीक्षांत समारोह में भाग ले सकतें है और उसे संबोधित भी कर सकते हैं। मुख्‍यमंत्री या मंत्री को सलाह दी जाती है कि वे ऐसे किसी दीक्षांत समारोह में भाग न लें और न ही उसे संबोधित करें। प्रश्‍न 18: क्‍या राजनीतिक कार्यकर्ताओं के निवास स्‍थान पर "इफ्तार पार्टी" या ऐसी ही कोई अन्‍य पार्टी आयोजित की जा सकती है जिसका खर्चा सरकारी कोष से किया जाएगा। उत्तर : नहीं। तथापि, कोई भी व्‍यक्ति अपनी निजी क्षमता और अपने निजी निवास स्‍थान पर ऐसी पार्टी का आयोजन करने के लिए स्‍वतंत्र है। कल्‍याणकारी योजनाएं, सरकारी निर्माण कार्य इत्‍यादि पर प्रश्‍न 19: क्‍या सत्ताधारी पार्टी की संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए उपलब्धियों के संबंध में सरकारी कोष की लागत पर विज्ञापन जारी करने पर कोई प्रतिबंध है ? उत्तर : हाँ। निर्वाचन अवधि के दौरान प्रिंट और इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में सरकारी कोष की लागत पर पार्टी की उपलब्धियों के संबंध में विज्ञापन और सरकारी जन-सम्‍पर्क मीडिया के दुरूपयोग पर निषेध है। प्रश्‍न 20: क्‍या केन्‍द्र में सत्ताधारी पार्टी/राज्‍य सरकार की उपब्धियों को प्रदर्शित करने वाले होर्डिंग/विज्ञापनों को राजकोष की लागत पर जारी रखा जा सकता है? उत्तर : नहीं। प्रदार्शित किए गए इस प्रकार के सभी होर्डिंग, विज्ञापन इत्‍यादि संबंधित प्राधिकारियों द्वारा तुरन्‍त हटा दिए जाएंगे। इसके अतिरिक्‍त, अखबारों और इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया सहित अन्‍य मीडिया पर सरकारी राजकोष के खर्चें पर कोई विज्ञापन जारी नहीं किया जाएगा। प्रश्‍न 21: क्‍या कोई मंत्री या कोई अन्‍य प्राधिकारी अपने विवेकानुसार कोई अनुदान/भुगतान कर सकता है ? उत्तर : नहीं। मंत्री या अन्‍य प्राधिकारी निर्वाचनों की घोषणा होने के समय से विवेकाधीन कोष से कोई अनुदान/भुगतान नहीं कर सकते हैं। प्रश्‍न 22: मान लीजिए किसी योजना या कार्यक्रम के संबंध में कार्य आदेश जारी किया गया है। क्‍या इसे निर्वाचन के बाद शुरू किया जा सकता है ? उत्तर : निर्वाचनों की घोषणा से पूर्व जारी कार्य आदेश के संबंध में यदि क्षेत्र में वास्‍तविक रूप से कार्य शुरू नहीं किया गया है तो उसे शुरू नहीं किया जाएगा। परंतु यदि काम वास्‍तव में शुरू कर दिया गया है तो उसे जारी रखा जा सकता है। प्रश्‍न 23: क्‍या एमपी/एमएलए/एमएलसी स्‍थानीय क्षेत्र विकास फंड की किसी योजना के अंतर्गत निधियों को नए सिरे से जारी कर सकता है ? उत्तर : नहीं। ऐसे किसी भी क्षेत्र में जहां निर्वाचन चल रहे है वहां निर्वाचन प्रक्रिया पूर्ण होने तक एमपी/एमएलए/एमएलसी स्‍थानीय क्षेत्र विकास फंड की किसा योजना के अंतर्गत निधियों को नए सिरे से जारी नहीं किया जाएगा। प्रश्‍न 24: केन्‍द्रीय सरकार के बहुत से ग्रामीण विकास कार्यक्रम/योजनाएं हैं यथा इंदिरा आवास योजना, सम्‍पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, स्‍वर्णजयन्‍ती ग्राम स्‍वरोजगार योजना, नेशनल फूड फॉर वर्क प्रोग्राम, नेशनल रूरल एंपलाईमेंट गारंटी एक्‍ट। क्‍या इन योजनाओं/कार्यक्रमों के कार्यान्‍वयन के लिए कोई दिशा-निर्देश हैं ? उत्तर : हां। प्रत्‍येक योजना/कार्यक्रम के संबंध में निम्‍नलिखित दिशा-निर्देशों का निम्‍नलिखित अनुसार अनुसरण किया जाएगा: इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) लाभार्थी, जिन्‍हें इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत हाउसिंग स्‍कीम की संस्‍वीकृति दी गई है और जिन्‍होंने काम शुरू कर दिया है, उनकी मानदंडों के अनुसार सहायता की जाएगी। कोई भी नया निर्माण कार्य आरंभ नहीं किया जाएगा और निर्वाचनों के पूरा होने तक किसी भी नए लाभार्थी को संस्‍वीकृति नहीं दी जाएगी। संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (एसजीआरवाई) चल रहे कार्यों को जारी रखा जा सकता है और ऐसे कार्यों के लिए चिह्नित निधियों को जारी किया जा सकता है। पंचायत के मामले में जहां सभी जारी कार्यों को पूरा कर लिया गया है वहां नया मजदूरी रोजगार कार्य शुरू किया जाना अपेक्षित है तथा जहां निधियों को सीधे ही ग्रामीण विकास मंत्रालय से पंचायतों को जारी किया गया है और वे उनके पास उपलब्‍ध हैं, वहां जिला निर्वाचन आधिकारी की पूर्व सहमति से चालू वर्ष के लिए अनुमोदित वार्षिक कार्य योजना से नया कार्य आरंभ किया जा सकता है। अन्‍य निधियों से कोई भी नया कार्य शुरू नहीं किया जाएगा। स्‍वर्णजयंती ग्राम स्‍वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) केवल वही सहायता समूह जिन्‍होंने सब्सिडी/अनुदान का अंश प्राप्‍त कर लिया हो, उन्‍हें ही बची हुई किश्‍त उपलब्‍ध करवाई जाएगी। निर्वाचनों के पूर्ण होने तक किसी भी नए व्‍यक्तिगत लाभार्थी या सहायता समूहों को वित्तीय सहायता नहीं दी जाएगी। नेशनल फूड फॉर वर्क प्रोग्राम (एनएफडब्‍ल्‍यूपी) जिन जिलों में निर्वाचनों की घोषणा नहीं हुई है वहां पुराने कार्यों और संस्‍वीकृति को जारी रखने में कोई आपत्ति नहीं है। जिन जिलों में निर्वाचनों की घोषणा हो चुकी है और निर्वाचन चल रहे हैं वहां जमीनी स्‍तर पर केवल वास्‍तविक रूप से शुरू किए गए कार्यों का ही दायित्‍व लिया जा सकता है बशर्ते दिए गए समय में ऐसे कार्य के कार्यान्‍वयन के लिए दी गई बकाया अग्रिम राशि 45 दिनों के काम करने के बराबर राशि से अधिक नहीं होगी। राष्‍ट्रीय रोजगार ग्रामीण गारंटी अधिनियम (एनईआरजीए) ग्रामीण विकास मंत्रालय ऐसे जिलों की संख्‍या नहीं बढ़ाएगा जिनमें निर्वाचनों की घोषणा के पहले से ही ऐसी योजनाओं का कार्यान्‍वयन हो रहा है। निर्वाचनों की घोषणा के पश्‍चात जॉब कार्ड धारक को चल रहे काम में तभी रोजगार उपलब्‍ध करवाया जा सकता है यदि वे काम की मांग करें। यदि चल रहे काम में कोई भी रोजगार उपलब्‍ध नहीं करवाया जा सकता तो सक्षम प्राधिकारी अनुमोदित परियोजनाओं में से कोई नया काम शुरू कर सकते हैं और संबंधित जिला निर्वाचन अधिकारी (डीईओ) को इस तथ्‍य के संबंध में सूचित कर सकते हैं। सक्षम प्राधिकारी द्वारा कोई भी नया काम शुरू नहीं किया जाएगा, इस दौरान चल रहे कामों में से ही रोजगार दिया जा सकता है। यदि परियोजना की कोई सूची नहीं है या उस समयावधि के अंदर सभी कार्य पूरे कर लिए गए हैं तो संबंधित सक्षम प्राधिकारी संबंधित जिला निर्वाचन अधिकारी के माध्‍यम से अनुमोदन लेने के लिए आयोग को सूचित करेंगे। सक्षम प्राधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी को इस आशय का एक प्रमाणपत्र प्रस्‍तुत करेंगे कि नए कार्य की संस्‍वीकृति दे दी गई है क्‍योंकि चल रहे काम में जॉब कार्ड धारक को कोई रोजगार नहीं दिया जा सकता है। प्रश्‍न 25: क्‍या कोई मंत्री अथवा कोई अन्‍य प्राधिकारी किसी भी रूप में किसी वित्तीय अनुदान के संबंध में घोषणा कर सकते हैं या उसका कोई वायदा कर सकते हैं अथवा किसी परियोजना की आधारशिला रख सकते हैं या किसी प्रकार की कोई योजना इत्‍यादि घोषित कर सकते हैं ? उत्तर : नहीं। मंत्री या अन्‍य प्राधिकारी किसी भी रूप में कोई वित्तीय अनुदान या उससे संबंधित कोई वायदा नहीं करेंगे ; या (सिविल सेवक के अलावा) किसी परियोजना अथवा योजना की आधारशिला इत्‍यादि नहीं रखेगे; या सड़क बनवाने, पीने के पानी की सुविधा इत्‍यादि उपलब्‍ध करवाने का कोई वायदा नहीं करेंगे अथवा सरकार या निजी क्षेत्र के उपक्रमों में तदर्थ आधार पर कोई नियुक्ति नहीं करेंगे। ऐसे मामले में वरिष्‍ठ सरकारी अधिकारी किसी राजनीतिक पदाधि‍कारी को शामिल किए बिना आधारशिला इत्‍यादि रख सकते हैं। प्रश्‍न 26: किसी विशेष योजना के लिए बजट का प्रावधान किया गया है या किसी योजना को पहले ही मंजूरी मिली हुई है। क्‍या ऐसी योजना की घोषणा की जा सकती है या उसका उद्घाटन किया जा सकता है ? उत्तर : नहीं। निर्वाचन अवधि के दौरान ऐसी योजनाओं के उद्घाटन/घोषणा पर प्रति‍बंध है। प्रश्‍न 27: क्‍या चल रही लाभार्थी योजना को जारी रखा जा सकता है ? उत्तर : आदर्श आचार संहिता के लागू होने के बाद से निर्वाचन आयोग को बिना सूचित किए सरकारी एजेंसियों द्वारा निम्‍नलिखित विद्यमान कार्यों को जारी रखा जा सकता है: वे कार्य-परियोजनाएं जो सभी प्रकार के आवश्‍यक अनुमोदन प्राप्‍त कर लेने के बाद बुनियादी रूप से वास्‍तव में शुरू हो गई हैं; वे लाभार्थी परियोजनाएं जहां आदर्श आचार संहिता के लागू होने से पूर्व विशेष लाभार्थियों के नाम चिह्नित कर लिए गए हैं। मनरेगा के पंजीकृत लाभार्थियों को विद्यमान परियोजनाओं के अंतर्गत कवर किया जा सकता है। मनरेगा के अंतर्गत नई परियोजनाएं, जिन्‍हें अधिनियम के उपबंधों के अंतर्गत प्राधिकृत किया गया है, पर कार्य तभी आरंभ किया जा सकता है, यदि वह पहले से पंजीकृत लाभार्थियों के लिए हो और परियोजना पहले से अनुमोदित और संस्‍वीकृत परियोजनाओं में सूचीबद्ध हो और जिसके लिए निधियां पहले से ही निश्चित की गई हैं। आदर्श आचार संहिता के लागू होने से पहले आयोग को सूचित करते हुए निम्‍नलिखित नए कार्य (लाभार्थी या कार्य उन्‍मुख) शुरू किए जा सकते हैं: वित्त-पोषण की पूरी व्‍यवस्‍था कर ली गई है। प्रशासनिक, तकनीकी और वित्तीय संस्‍वीकृतियां प्राप्‍त की ली गई हैं। निविदा आमंत्रित की गई, उसका मूल्‍यांकन करके उसे सौंप दिया गया है। इसके अंतर्गत एक निश्चित समय-सीमा के अंदर काम शुरू करना और उसे समाप्‍त करना एक संविदात्‍मक बाध्‍यता है और ऐसा न होने पर संविदाकार पर जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है। यदि उपर्युक्‍त में से कोई शर्त पूरी नहीं की जा रही है तो ऐसे मामलों में आयोग का पूर्व अनुमोदन मांगा और प्राप्‍त किया जाएगा। प्रश्‍न 28: क्‍या पूरे किए गए कार्य का भुगतान जारी करने पर कोई रोक होती है ? उत्तर : पूरे किए गए कार्य का भुगतान करने पर कोई रोक नहीं है बशर्ते कि संबंधित पदाधिकारी उससे पूर्ण रूप से संतुष्‍ट हों। प्रश्‍न 29: सरकार आपातकालिक स्थिति या अप्रत्‍य‍ाशित आपदाओं से निपटने के लिए क्‍या करती है जबकि कल्‍याणकारी उपायों की घोषणा पर प्रतिबंध लगा होता है ? उत्तर : आपातकालिक स्थिति या अप्रत्‍य‍ाशित आपदाओं यथा सूखे, बाढ़, महामारी, अन्‍य प्राकृतिक आपदाओं से निपटने अथवा वृद्धजनों तथा निशक्‍त इत्‍यादि हेतु कल्‍याणकारी उपाय करने के लिए सरकार आयोग का पूर्व अनुमोदन ले सकती है तथा सरकार को आडंबरपूर्ण समारोहों से पूरी तरह से बचना चाहिए और सरकार को ऐसी कोई भी परिस्थिति उत्‍पन्‍न करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए कि सरकार द्वारा ऐसे कल्‍याणकारी उपाय या सहायता या पुनर्वास कार्य किसी अंतर्निहित उद्देश्‍य से किए जा रहे हैं। प्रश्‍न 30: क्‍या सरकार द्वारा आंशिक रूप से या पूर्णत: वित्तपोषित वित्तीय संस्‍थान किसी व्‍यक्ति, कंपनी या फर्म इत्‍यादि को दिया गया कर्ज बट्टे खातें मे डाल सकते हैं ? उत्तर : जी नहीं। सरकार द्वारा आंशिक रूप से या पूर्णत: वित्त पोषित वित्तीय संस्‍थान किसी व्‍यक्ति, कम्‍पनी, फर्म इत्‍यादि को दिए गए कर्जों को बट्टे खाते में डालने का तरीका नहीं अपनाएंगें। साथ ही ऐसे संस्‍थानों की वित्तीय सीमा, लाभार्थी को कर्ज प्रदान करते या बढ़ाते समय बेहिसाब ऋण जारी नहीं करना चाहिए। प्रश्‍न 31: क्‍या शराब के ठेकों, तेंदु की पत्तियों और ऐसे अन्‍य मामलों के संबंध में निविदा नीलामी इत्‍यादि कार्रवाई की जा सकती है ? उत्तर : जी नहीं, संबंधित क्षेत्र में निर्वाचन प्रक्रिया के पूर्ण होने तक ऐसे मामलों पर कार्रवाई को आस्‍थगित किया जा सकता है और सरकार वहां अंतरिम व्‍यवस्‍था कर सकती है जहां यह अपरिहार्य रूप से आवश्‍यक हो। प्रश्‍न 32: क्‍या राजस्‍व संग्रहण और वार्षिक बजट के मसौदे की समीक्षा करने के लिए नगर निगम, नगर पंचायत, नगर क्षेत्र समिति इत्‍यादि को संचालित किया जा सकता है ? उत्तर : जी हां। बशर्ते कि ऐसी बैठकों में ही रोजमर्रा के प्रशासन से संबंधित नियमित प्रकृति के मामले उठाए जाएं, न कि इसकी नीतियों और कार्यक्रमों से संबंधित मामले। प्रश्‍न 33: क्‍या राजनीतिक कार्यकर्ता "सद्भावना दिवस", जो कि देशभर में मनाया जाता है, में भाग ले सकते हैं ? उत्तर : केंद्रीय मंत्री/राज्‍यों के मुख्‍य मंत्री/मंत्री तथा अन्‍य राजनीतिक कार्यकर्त्ता 'सद्भावना दिवस' के अयोजन में भाग ले सकते हैं बशर्तें कि उनके भाषण का "विषय" केवल लोगों में सद्भावना को बढाने तक ही सीमित होना चाहिए और इसमे संबंधित मंत्री का कोई फोटो चित्र प्र‍काशित न किया जाए। प्रश्‍न 34: क्‍या शहीदों की शहादत के सम्‍मान हेतु राज्‍य–स्‍तरीय समारोह आयोजित किया जा सकता है जिसकी अध्‍यक्षता मुख्‍यमंत्री/मंत्री कर सकें/उसमें भाग ले सकें। उत्तर : जी हां। बशर्तें कि मुख्‍य मंत्री या अन्‍य मंत्रियों के भाषण शहीदों की शहादत और उनके गुणगान तक ही सीमित हो, इस भाषण में कोई भी राजनीतिक भाषण या सत्ताधारी दल की उपलब्धियों का बखान या उनका वर्णन नहीं किया जाना चाहिए। प्रश्‍न 35: क्‍या स्‍वतंत्रता दिवस/गणतंत्र दिवस के संबंध में कोई कवि सम्‍मेलन, मुशायरा या अन्‍य सांस्‍कृतिक समारोह आयोजित किए जा सकते हैं और क्‍या इसमें राजनीतिक कार्यकर्ता भाग ले सकते हैं ? उत्तर : जी हां। केन्‍द्रीय मंत्री/राज्‍य में मुख्‍य मंत्री/मंत्री तथा अन्‍य राजनीतिक कार्यकर्ता कार्यक्रम में हिस्‍सा ले सकते हैं। तथापि,‍ यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस अवसर पर कोई भी राजनीतिक भाषण सत्ताधारी दल की उपलब्धियों का उल्‍लेख करने वाला नहीं होगा। प्रश्‍न 36: क्‍या सरकारी स्‍वामित्‍व वाली बसों की बस टिकट के पिछली ओर राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशि‍त किया जा सकता है। उत्तर : जी नहीं। प्रश्‍न 37: क्‍या गेहूं और अन्‍य कृषि-संबंधी उत्‍पादों का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य निर्धारित किया जा सकता है ? उत्तर : इस संबंध में निर्वाचन आयोग से परामर्श लिया जा सकता है। प्रश्‍न 38: क्‍या राज्‍य सरकार निर्वाचन आयोग से प्रत्‍यक्ष रूप में किसी प्रस्‍ताव के संबंध में कोई स्‍पष्‍टीकरण/अनापत्ति/अनुमोदन मांग सकती है? उत्तर : जी नहीं। निर्वाचन आयोग से स्‍पष्‍टीकरण/अनापत्ति/अनुमोदन मांगने हेतु राज्‍य सरकार का कोई भी प्रस्‍ताव केवल मुख्‍य निर्वाचन अधिकारी के माध्‍यम से ही भेजा जाना चाहिए जो संबंधित मामले में अपनी सिफारिशें देंगे अथवा अन्‍यथा टिप्‍पणी प्रस्‍तुत करेंगे। निर्वाचन प्रचार प्रश्‍न 39: निर्वाचन प्रचार करते समय राजनीतिक दलों/अभ्‍यर्थियों के लिए प्रमुख दिशा-निर्देश क्‍या हैं? उत्तर : निर्वाचन प्रचार के दौरान कोई भी अभ्‍यर्थी या दल ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जिससे मौजूदा मतभेद बढ़ जाए या जिनसे परस्‍पर द्वेष पैदा हो अथवा भिन्‍न-भिन्‍न जातियों और समुदायों, धर्मों या भाषा-भाषी लोगों में तनाव बढ़ जाए। इसके अतिरिक्‍त अन्‍य राजनीतिक दलों की आलोचना करते समय यह केवल उनकी नीतियों और कार्यक्रमों, पिछले रिकॉर्ड और कार्यों तक ही सीमित होनी चाहिए। दलों और अभ्‍यर्थियों का निजी जीवन के सभी पहलुओं की आलोचना करने से बचना चाहिए, जो अन्‍य दलों के नेताओं या कार्यकर्ताओं की सार्वजनिक गतिविधियों से जुड़े न हों। दूसरे दलों या उनके कार्यकर्ताओं की आलोचना निराधार आरोपों या तथ्‍यों को तोड़-मरोड़कर नहीं की जानी चाहिए। प्रश्‍न 40: क्‍या निर्वाचन प्रचार के लिए धार्मिक स्‍थानों का प्रयोग करने पर कोई प्रतिबंध है? उत्तर : जी हां। धार्मिक स्‍थान यथा मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारा या पूजा के अन्‍य स्‍थानों का निर्वाचन प्रचार के मंच के रूप में प्रयोग नहीं किया जाएगा। इसके अतिरिक्‍त, मत प्राप्‍त करने के लिए जाति या सांप्रदायिक भावनाओं के आधार पर कोई अपील नहीं की जाएगी। प्रश्‍न 41: क्‍या कोई अभ्‍यर्थी जुलस के साथ अपना नाम-निर्देशन पत्र भरने के लिए रिटर्निंग अधिकारी के कार्यालय जा सकता है ? उत्तर : जी नहीं। रिटर्निंग अधिकारी के कार्यालय की परिधि में आने वालो वाहनों की अधिकतम संख्‍या को तीन तक सीमित रखा गया है और रिटर्निंग अधिकारी के कार्यालय में जाने वाले व्‍यक्तियों की अधिकतम संख्‍या को पांच (अभ्‍यर्थी सहित) तक सीमित रखा गया है। प्रश्‍न 42: रिटर्निंग अधिकारी द्वारा नाम-निर्देशन की संवीक्षा करते समय कितने व्‍यक्तियों को उपस्थित रहने की अनुमति दी जाती है? उत्तर : अभ्‍यर्थी, उसका निर्वाचन अभिकर्ता, एक प्रस्‍तावक और एक अन्‍य व्‍यक्ति (जो अधिवक्‍ता हो सकता है) को अभ्‍यर्थी द्वारा लिखित में विधिवत् प्राधिकार दिया जाएगा। परंतु इनके अलावा अन्‍य कोई व्‍यक्ति रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निर्धारित समय पर नाम-निर्देशन की संवीक्षा में भाग नहीं ले सकता है। (संदर्भ: लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 36(1) प्रश्‍न 43: क्‍या मंत्रियों/राजनीतिक कार्यकताओं/अभ्‍यर्थियों, जिन्‍हें राज्‍य द्वारा सुरक्षा उपलब्‍ध करवाई गई है, द्वारा वाहनों के प्रयोग के संबंध में कोई दिशा-निर्देश हैं? उत्तर : जी हां। सुरक्षा द्वारा कवर किए गए व्‍यक्तियों के संबंध में आसूचना प्राधिकारियों सहित सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसा निर्धारित किया है वहां ऐसे सभी मामलों में उस विशेष व्‍यक्ति को राज्‍य द्वारा प्रदत्त एक बुलेट प्रूफ वाहन का प्रयोग करने की अनुमति दी जाएगी। 'स्‍टैंड-बाई' के नाम पर बहुल कारों के प्रयोग की अनुमति नहीं दी जाएगी जब तक कि सुरक्षा प्राधिकारियों द्वारा ऐसी विशेष रूप से अनुमति न दी जाए। जहां ऐसे बुलेट प्रूफ वाहनों के प्रयोग को विनर्दिष्‍ट किया गया है वहां ऐसे बुलेट प्रूफ वाहन की चलाने की लागत उस विशेष व्‍यक्ति द्वारा वहन की जाएगी। पायलट, एस्‍कॉर्ट इत्‍यादि सहित काफिले के साथ चलने वाले वाहनों की संख्‍या कड़ाई से सुरक्षा प्राधिकारियों द्वारा निर्धारित अनुदेशों के अनुरूप होगी और किसी भी परिस्थिति में उससे अधिक नहीं होगी। ऐसे सभी वाहनों, सरकारी स्‍वामित्‍व अथवा किराए पर लिए वाहन, को चलाने की लागत राज्‍य सरकार द्वारा वहन की जाएगी। ये प्रतिबंध प्रधानमंत्री पर लागू नहीं होंगे, जिनकी सुरक्षा अपेक्षाएं सरकार की ब्‍लू बुक द्वारा नियंत्रित होती हैं। प्रश्‍न 44: क्‍या निर्वाचकीय प्रयोजनों हेतु वाहनों के चलाने पर कोई प्रतिबंध है ? उत्तर : निर्वाचन प्रचार के प्रयोजनार्थ अभ्‍यर्थी कितने भी वाहन (टू व्‍हीलर सहित सभी यांत्रिकीय और मोटरयुक्‍त वाहन) चला सकता है पंरतु उसे ऐसे वाहन चलाने के लिए रिटर्निंग अधिकारी का पूर्व अनुमोदन लेना होता है और उसे रिटर्निंग अधिकारी द्वारा जारी परमिट की मूल प्रति (फोटोकापी नहीं) को वाहन की विंड स्‍क्रीन पर प्रमुखता से प्रदर्शित करना चाहिए। परमिट पर वाहन की परमिट संख्‍या और उस अभ्‍यर्थी का नाम, जिसके पक्ष में वाहन जारी किया गया है, का उल्‍लेख होना चाहिए। प्रश्‍न 45: क्‍या किसी वाहन, जिसके लिए अभ्‍यर्थी के नाम पर निर्वाचन प्रचार हेतु अनुमति ली गई है, को दूसरे अभ्‍यर्थी द्वारा निर्वाचन प्रचार हेतु प्रयोग किया जा सकता है ? उत्तर : जी नहीं। अन्‍य अभ्‍यर्थी द्वारा निर्वाचन प्रचार हेतु ऐसे वाहन के प्रयोग हेतु भारतीय दंड संहिता की धारा 171ज के अधीन कार्रवाई की जाएगी। प्रश्‍न 46: क्‍या जिला निर्वाचन अधिकारी/रिटर्निंग अधिकारी से परमिट लिए बिना वाहन को निर्वाचन प्रचार के प्रयोजनार्थ प्रयोग किया जा सकता है? उत्तर : जी नहीं। अभ्‍यर्थी द्वारा निर्वाचन प्रचार हेतु ऐसे वाहनों के प्रयोग को अनधिकृत माना जाएगा और वह भारतीय दंड संहिता के अध्‍याय 1 क के दांडिक प्रावधान का भागी होगा और इसलिए वह वाहन तत्‍काल निर्वाचन प्रचार प्रक्रिया से हटा लिया जाएगा और आगे के प्रचार अभियान के लिए उसका प्रयोग नहीं किया जाएगा। प्रश्‍न 47: क्‍या राजनीतिक प्रचार अभियान तथा रैलियों के लिए शैक्षणिक संस्‍थानों और उनके मैदानों (भले ही सरकारी सहायता प्राप्‍त, निजी या सरकारी) के प्रयोग पर प्रतिबंध है? उत्तर : आयोग ने राजनीतिक प्रयोग हेतु स्‍कूलों और कॉलेज के मैदानों (पंजाब और हरियाणा राज्‍य को छोड़कर जहां पंजाब और हरियाणा उच्‍च न्‍यायालय से विशेष निषेध है) के प्रयोग की अनुमति नहीं दी है बशर्तें कि: किसी भी परिस्थिति में स्‍क्‍ूल और कालेज के शैक्षिक कैलेण्‍डर को वितरित न किया जाए। स्‍कूल/ कॉलेज प्रबंधन को इस प्रयोजनार्थ कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए और ऐसे प्रचार अभियान के लिए स्‍कूल/कॉलेज प्रबंधन तथा साथ ही सब डिवीज़नल अधिकारी से अनुमति ली जाए। ऐसी अनुमति 'पहले आओ पहले पाओ' आधार पर दी जाती है और किसी भी राजनीतिक दल को इन मैदानों के प्रयोग पर एकाधिकार करने की अनुमति नहीं है। किसी भी न्‍यायालय का ऐसा कोई आदेश/निदेश नहीं है जो ऐसे परिसर/मैदान के प्रयोग पर रोक लगाता है। राजनैतिक बैठकों के लिए स्‍कूल/कॉलेज के मैदानों के आबंटन में किसी भी उल्‍लंघन को आयोग द्वारा गंभीरता से लिया जाएगा। इस संबंध में जिम्‍मेवारी सब-डिवीज़नल अधिकारी की है, और राजनीतिक दल और अभ्‍यर्थी तथा निर्वाचन प्रचार करने वाले इस बात का पूरा ध्‍यान रखेंगे कि उपर्युक्‍त मानदंडों का उल्‍लंघन न हो। यदि ऐसे मैदानों को निर्वाचन प्रचार के प्रयोजनार्थ प्रयोग किया जा रहा है तो प्रयोग के बाद इन्‍हें बिना किसी नुकसान के या की गई क्षति, यदि कोई हुई है, हेतु अपेक्षित क्षतिपूर्ति के साथ संबंधित प्राधिकारी को लौटाना चाहिए। कोई भी राजनीतिक दल जो संबंधित स्‍कूल/ कॉलेज प्राधिकारी को प्रचार अभियान वापस करते समय ऐसी क्षतिपूर्ति, यदि कोई हुई है, का भुगतान करने के जिम्‍मेवार होंगे। प्रश्‍न 48: क्‍या निर्वाचन प्रचार हेतु प्रयुक्‍त वाहनों में बाहरी फिटिंग/ परिवर्तन की अनुमति है? उत्तर : वाहन पर लाउडस्‍पीकर लगाने सहित वाहनों का बाहरी परिवर्तन मोटर वाहन अधिनियम/ नियम तथा अन्‍य स्‍थानीय अधिनियम/ नियम के उपबंधों के अधीन होगा। परिवर्तनों सहित वाहन और विशेष प्रचार अभियान वाहन यथा वीडियो रथ इत्‍यादि को मोटर वाहन अधिनियम के अधीन सक्षम प्राधिकारियों से अपेक्षित अनुमति लेने के बाद ही प्रयोग किया जा सकता है। प्रश्‍न 49: क्‍या निर्वाचन प्रचार के प्रयोजनार्थ कोई सार्वजनिक बैठक आयोजित करने हेतु प्रचार अधिकारी के लिए रेस्‍ट हाउस, डाक बंगला या अन्‍य सरकारी स्‍थान का प्रयोग करने पर रोक हैं ? उत्तर : जी हां। रेस्‍ट हाउस, डाक बंगला या अन्‍य सरकारी निवासों पर सत्ताधारी दल या इसके अभ्‍यर्थियों द्वारा एकाधिकार नहीं रखा जाएगा। ऐसे निवास स्‍थान के लिए अन्‍य दलों या अभ्‍यर्थियों द्वारा प्रयोग करने की अनुमति होगी परंतु कोई भी दल या अभ्‍यर्थी इसे प्रचार कार्यालय के रूप में इस्‍तेमाल नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्‍त यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि: कोई भी कार्यकर्ता सर्किट हाउस, डाक बंगला में प्रचार कार्यालय स्‍थापित करने हेतु उनका प्रयोग नहीं कर सकता क्‍योंकि सर्किट हाउसेस/डाक बंगले ऐसे कार्यकताओं के राह से गुजरने के दौरान अस्‍थायी रूप से रहने के लिए होते हैं (बोर्डिंग एंड लांजिग) यहां तक कि सरकार के स्‍वामित्‍व वाले गेस्‍ट हाउसेस इत्‍यादि के परिसर के अंदर राजनीतिक दलों के सदस्‍यों द्वारा आकास्मिक बैठकें भी नहीं की जा सकती और इस संबंध में किसी भी उल्‍लंघन को आदर्श आचार संहिता का उल्‍लंघन माना जाएगा। गेस्‍ट हाउस के परिसर में केवल वाहनों को आने की अनुमति होगी जो गेस्‍ट हाउस में निवास स्‍थान आंबटित व्‍यक्तियों को ले जा रही हो और इसके अलावा दो अन्‍य वाहनों की आने की अनुमति होगी, यदि वे उन्‍ही व्‍यक्तियों द्वारा प्रयोग किए जा रहे हैं। किसी भी एक व्‍यक्ति को 48 घंटों से अधिक के लिए कक्ष उपलब्‍ध नहीं करवाए जाने चाहिए। किसी मतदान के समाप्‍त होने से 48 घंटे पहले किसी विशेष क्षेत्र में मतदान या पुनर्ममतदान पूर्ण होने तक ऐसे आबंटनों पर रोक रहेगी। प्रश्‍न 50: राजनीतिक दलों/ अभ्‍यर्थियों द्वारा सरकारी एयरक्रॉफ्ट/हेलीकॉप्‍टरों (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित) को लेने के लिए कोई नियम है ? उत्तर : जी हां। राजनीतिक दलों/अभ्‍यर्थियों के लिए सरकारी विमान/हेलीकॉप्‍टर या प्राइवेट कंपनियों के एयरक्रॉफ्ट/हेलीकॉप्‍टर को किराए पर लेने की अनुमति देते हुए निम्‍नलिखित शर्तों का अनुसरण किया जाना चाहिए। सत्ताधारी दल और अन्‍य दल तथा निर्वाचन लड़ने वाले अभ्‍यर्थी के बीच कोई भेद नहीं होना चाहिए। इसका भुगतान राजनीतिक दलों या निर्वाचन लड़ने वाले अभ्‍यर्थियों द्वारा किया जाएगा और इसका उचित रिकॉर्ड रखा जाएगा। सभी के लिए दरें और निबंधन व शर्तें एक समान होंगी। वास्‍तविक आबंटन 'पहले आओ पहले पाओ' आधार पर होना चाहिए। इस प्रयोजनार्थ आवेदन की तारीख व समय को आवेदन प्राप्‍त करने वाले प्राधिकृत प्राधिकारी द्वारा नोट कर लेना चाहिए। ऐसे मामलों में जब कभी दो या उससे अधिक आवेदनों की तारीख व समय एक होगा तो आबंटन का निर्णय ड्रॉ द्वारा होगा। किसी भी व्‍यक्ति, फर्म, पार्टी या अभ्‍यर्थी को एक ही समय पर तीन दिन से अधिक के लिए एयरक्रॉफ्ट/हेलीकॉप्‍टर किराए पर लेने की अनुमति नहीं होगी। प्रश्न. 51. क्या संबंधित पार्टी या अभ्यर्थी के पोस्टर, प्लेकार्ड, बैनर, ध्वज आदि को किसी सार्वजनिक संपत्ति पर प्रदर्शित करने पर कोई प्रतिबंध है? उत्तरः सार्वजनिक संपत्ति पर अभ्यर्थी संबंधित पार्टी अथवा अभ्‍यर्थी के पोस्टर, प्लेकार्ड, बैनर, ध्वज आदि को लागू स्थानीय कानून के प्रावधानों और निषेधात्मक आदेशों के अध्‍यधीन प्रदर्शित कर सकता है। विस्‍तृत ब्‍योरा के लिए आयोग के अनुदेश संख्या 3/7/2008/जेएस-II दिनांक 7.10.2008 तथा संख्या 437/6/कैम्पेन/ईसीआई/ आईएनएसटी/एफयूएनसीटी/एमसीसी-2016 दिनांक 04.01.2017 का संदर्भ लें। प्रश्न. 52. यदि स्थानीय कानून/उप-विधि, दीवार लेखन और पोस्टर चिपकाने, निजी परिसरों/संपत्तियों पर होर्डिंग्स, बैनर आदि लगाने की अनुमति देते हैं, तो क्या परिसर/संपत्ति के मालिक से पूर्व लिखित अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है? उत्तरः हाँ। अभ्यर्थी को संपत्ति/परिसर के स्वामी से पूर्व लिखित अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है और इस तरह की अनुमति की फोटोकॉपी (यां) 3 दिनों के भीतर रिटर्निंग ऑफिसर या उसके द्वारा नाम-निर्दिष्ट अधिकारी को प्रस्तुत की जानी चाहिए। प्रश्न. 53. क्या जुलूस के दौरान वाहन पर संबंधित पार्टी या अभ्यर्थी के पोस्टर/प्लेकार्ड/बैनर/ध्वज को प्रदर्शित करने/ले जाने पर कोई प्रतिबंध है? उत्तरः जुलूस के दौरान किसी वाहन पर किसी पार्टी या अभ्यर्थी द्वारा झंडों/बैनरों की अधिकतम अनुमत संख्या और आकार इस प्रकार है- दुपहिया वाहन – अधिकतम 1 X 1/2 फीट के आकार का एक ध्वज। किसी भी बैनर की अनुमति नहीं है। उपयुक्त आकार के एक या दो स्टिकर की अनुमति है। तीन पहिया वाहन, चार पहिया वाहन, ई-रिक्शा - किसी भी बैनर की अनुमति नहीं है। केवल अधिकतम 3X2 फीट आकार का एक ध्वज उपयुक्त आकार के एक या दो स्टिकर की अनुमति है। यदि किसी राजनीतिक दल का किसी अन्य पार्टी के साथ निर्वाचन पूर्व गठबंधन/सीट बंटवारे की व्यवस्था है, तो अभ्यर्थी/राजनीतिक दल का वाहन ऐसे दलों में से प्रत्येक का एक-एक झण्डा प्रदर्शित कर सकता है। प्रश्न. 54. क्‍या निर्वाचन प्रचार के दौरान पोस्टर/बैनर का इस्‍तेमाल करने के लिए प्लास्टिक शीट के उपयोग पर कोई प्रतिबंध है ? उत्तरः पर्यावरण संरक्षण के हित में राजनीतिक दलों और अभ्यर्थियों को पोस्टर, बैनर आदि तैयार करने के लिए प्लास्टिक/पॉलिथीन के इस्‍तेमाल से बचना चाहिए। प्रश्न.55. क्या पैम्‍फलेट, पोस्टर आदि की छपाई पर कोई प्रतिबंध है? उत्तरः हाँ। अभ्यर्थी किसी ऐसे निर्वाचन पैम्पलेट अथवा पोस्टर का मुद्रण अथवा प्रकाशन नहीं करेगा अथवा उसका मुद्रण अथवा प्रकाशन नहीं करवाएगा, जिस पर उसका चेहरा, नाम अथवा पते मुद्रित अथवा प्रकाशित नहीं होते हों। (संदर्भ: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 127क) प्रश्न 56. क्या निर्वाचन प्रचार के दौरान अभ्यर्थी को विशेष सहायक सामग्री जैसे कि टोपी, मास्क, स्कार्फ आदि पहनने की अनुमति है? उत्तरः हां, बशर्ते कि वे संबंधित अभ्यर्थी के निर्वाचन व्यय के लेखा-जोखा में शामिल हो। हालांकि, दल/अभ्यर्थी द्वारा साड़ी, शर्ट इत्यादि जैसे मुख्य परिधानों की आपूर्ति और वितरण की अनुमति नहीं है क्योंकि यह मतदाताओं को रिश्वत देने के समान हो सकता है। प्रश्न 57. क्या सिनेमैटोग्राफ, टेलीविजन या इसी तरह के अन्य उपकरणों के माध्यम से जनता को किसी भी निर्वाचन सामग्री का प्रदर्शन करने पर प्रतिबंध है? उत्तरः हाँ। अभ्यर्थी निर्वाचन के समापन के लिए तय किए गए समय के साथ समाप्त होने वाले 48 घंटे की अवधि के दौरान, सिनेमैटोग्राफ, टेलीविजन या अन्य इसी तरह के उपकरण के माध्यम से जनता को किसी भी निर्वाचन सामग्री अथवा प्रचार को प्रदर्शित नहीं कर सकते हैं। (संदर्भ: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126) प्रश्न 58. क्या मुद्रित "स्टेपनी कवर" या इसी प्रकार की अन्य सामग्री जिसमें पार्टी/अभ्यर्थी का प्रतीक हो या इसका चित्रण किए बिना इसका वितरण, एक तरह का उल्लंघन है? उत्तरः हाँ। यदि यह बात सिद्ध हो जाती है कि ऐसी सामग्री वितरित की गई है, तो जिला प्रशासन द्वारा क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के समक्ष आईपीसी की धारा 171-ख के तहत उक्त सामग्री के वितरण के विरुद्ध शिकायत दर्ज की जा सकती है। प्रश्न 59. क्या पार्टी या अभ्यर्थी द्वारा अस्थायी कार्यालयों की स्थापना और संचालन के लिए शर्तें/दिशानिर्देश हैं? उत्तरः हाँ। ऐसे कार्यालय किसी भी अतिक्रमण के माध्यम से सार्वजनिक या निजी संपत्ति/किसी भी धार्मिक स्थानों पर, अथवा ऐसे धार्मिक स्थानों के परिसर/किसी भी शैक्षणिक संस्थान/अस्पताल के समीप, किसी मौजूदा मतदान केंद्र के 200 मीटर के भीतर नहीं खोले जा सकते हैं। इसके अलावा, ऐसे कार्यालय पार्टी का केवल एक झण्डा और बैनर को पार्टी प्रतीक/तस्वीरों के साथ प्रदर्शित कर सकते हैं, और ऐसे कार्यालयों में उपयोग किए जाने वाले बैनर का आकार इस अतिरिक्‍त शर्त के अध्‍यधीन 4 फीट X 8 फीट से अधिक नहीं होना चाहिए कि यदि स्‍थानीय विधियों द्वारा बैनर/होर्डिंग इत्‍यादि के लिए अधिक छोटे आकार का निर्धारण किया जाएगा तो स्‍थानीय विधि द्वारा निर्धारित छोटे आकार का इस्‍तेमाल किया जाएगा। प्रश्न 60. क्या अभियान अवधि समाप्त होने के बाद राजनीतिक पदाधिकारियों की किसी निर्वाचन क्षेत्र में उपस्थिति पर कोई प्रतिबंध है? उत्तरः हाँ। प्रचार की अवधि (मतदान बंद होने से 48 घंटे पहले से शुरू होता हुआ) के बंद होने के बाद, राजनीतिक पदाधिकारी आदि, जो निर्वाचन क्षेत्र के बाहर से आए हैं और जो निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता नहीं हैं, उन्हें निर्वाचन क्षेत्र में मौजूद नहीं रहना चाहिए। ऐसे पदाधिकारी को प्रचार अवधि समाप्त होने के तुरंत बाद निर्वाचन क्षेत्र को छोड़ देना चाहिए। यह प्रतिबंध अभ्यर्थी या उसके निर्वाचन अभिकर्ता के मामले में लागू नहीं होगा, भले ही वे निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता न हों। प्रश्न 61. क्या जनसभा आयोजित करने या जुलूस निकालने पर कोई प्रतिबंध है? उत्तरः हाँ। किसी भी सार्वजनिक या निजी स्थान पर सभा आयोजित करने और जुलूस निकालने के लिए संबंधित पुलिस अधिकारियों से पूर्व लिखित अनुमति लेनी चाहिए। प्रश्न 62. क्या पुलिस अधिकारियों से अनुमति प्राप्त किए बिना लाउडस्पीकरों का इस्‍तेमाल जन सभाओं के लिए या जुलूसों के लिए या सामान्य प्रचार के लिए किया जा सकता है? उत्तर नहीं। लाउडस्पीकर का इस्‍तेमाल करने के लिए संबंधित पुलिस अधिकारियों से पूर्व लिखित अनुमति लेनी चाहिए। प्रश्न.63. क्या लाउडस्पीकर का इस्‍तेमाल करने के लिए कोई समय-सीमा है? उत्तरः हाँ। रात 10.00 बजे से प्रात: 6.00 बजे के बीच लाउडस्पीकर का इस्‍तेमाल नहीं किया जा सकता है। प्रश्न 64. वह कौन सी अंतिम समय-सीमा है जिसके बाद कोई जनसभा और जुलूस नहीं निकाला जा सकता है? उत्तरः जन सभाएं सुबह 6.00 बजे से पहले और शाम 10 बजे के बाद आयोजित नहीं की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्‍त, अभ्यर्थी मतदान के समापन के लिए निर्धारित समय के साथ समाप्‍त होने वाले 48 घंटे की अवधि के दौरान जनसभाएं और जुलूस नहीं निकाल सकते। मान लीजिए, मतदान का दिन 15 जुलाई है और मतदान का समय सुबह 8 बजे से शाम 5.00 बजे तक है, तो जन सभा और जुलूस 13 जुलाई को शाम 5.00 बजे से बंद हो जाएंगे। (संदर्भ: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126) प्रश्न 65. क्या मतदाताओं को गैर-सरकारी पहचान पर्चियाँ जारी करने के लिए राजनीतिक दलों/अभ्यर्थियों के लिए कोई दिशानिर्देश हैं? उत्तरः हाँ। सफेद कागज पर गैर-सरकारी पहचान पर्ची में केवल मतदाता का नाम, मतदाता की क्रम संख्या, मतदाता सूची में भाग संख्या, मतदान केंद्र संख्या व नाम, और मतदान की तिथि शामिल होगी। इसमें अभ्यर्थी का नाम, उसकी तस्वीर और निर्वाचन प्रतीक नहीं होना चाहिए। प्रश्न 66. क्या कोई मंत्री/सांसद/विधायक/एमएलसी या कोई अन्य व्यक्ति जो सुरक्षा घेरे में है, की नियुक्ति निर्वाचन अभिकर्ता/पोलिंग अभिकर्ता/ मतगणना अभिकर्ता के रूप में करने पर कोई प्रतिबंध है? उत्तरः हाँ। कोई अभ्यर्थी किसी मंत्री/सांसद/विधायक/एमएलसी या किसी अन्य व्यक्ति को जो सुरक्षा कवर के तहत है, निर्वाचन/मतदान अभिकर्ता/मतगणना अभिकर्ता के रूप में नियुक्त नहीं कर सकता है, क्योंकि उसकी व्यक्तिगत सुरक्षा को इस तरह की नियुक्ति से खतरा होगा, और उसके सुरक्षाकर्मी को किसी भी परिस्थिति में मतदान केंद्रों के 100 मीटर परिधि में मतदान केंद्र और मतगणना केंद्र के परिसर के भीतर और मतगणना केंद्र के भीतर जाने की अनुमति है, जिसे "मतदान केंद्र पड़ोस" के रूप में वर्णित किया गया है। सुरक्षा कवर प्राप्त ऐसे किसी भी व्यक्ति को ऐसे अभ्यर्थी के अभिकर्ता के रूप में कार्य करने के लिए अपने सुरक्षा कवर को आत्मसमर्पण करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। प्रश्न. 67. आर.पी. अधिनियम, 1951 की धारा 77 (1) के तहत लाभ उठाने वाले राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों (नेताओं) को परमिट जारी करने का अधिकार किसे है? उत्तरः यदि सड़क परिवहन का उपयोग राजनीतिक स्टार प्रचारकों (नेताओं) द्वारा किया जाना है, तो इस हेतु परमिट मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा केंद्रीय रूप से जारी किया जाएगा। यदि पार्टी ऐसे वाहन के लिए परमिट जारी करने के लिए आवेदन करती है जो किसी नेता द्वारा पूरे राज्य में निर्वाचन प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जाना है, तो मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा ऐसे वाहन के लिए अनुमति केंद्रीय रूप से जारी किया जा सकता है, जिसे इस तरह के वाहन के विंडस्क्रीन पर प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा, जिसे संबंधित नेता द्वारा उपयोग किया जाना है। यदि अलग-अलग क्षेत्रों में ऐसे पार्टी नेताओं द्वारा विभिन्न वाहनों का उपयोग किया जाना है, तो संबंधित व्यक्ति के नाम के सापेक्ष परमिट जारी किया जा सकता है, जो ऐसे नेता द्वारा उपयोग किए जा रहे वाहन की विंडस्क्रीन पर इसे प्रमुखता से प्रदर्शित करेगा। प्रश्न. 68. क्या ओपिनियन पोल या एक्जिट पोल किसी भी समय आयोजित, प्रकाशित, प्रचारित या प्रसारित किए जा सकते हैं? उत्तरः नहीं। किसी भी तरह से प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, या किसी अन्य मीडिया द्वारा किसी भी जनमत सर्वेक्षण या एक्जिट पोल के परिणाम को प्रकाशित, प्रचारित या प्रसारित नहीं किया जाएगा, जो निम्नलिखित अवधि के लिए मान्य होंगे: एक ही चरण में आयोजित निर्वाचन में मतदान समापन के निर्धारित घंटे के साथ समाप्त हो रही 48 घंटों की अवधि के दौरान; तथा एक बहु स्तरीय निर्वाचन में, और विभिन्न राज्यों में एक साथ निर्वाचनों की घोषणा के मामले में, निर्वाचन के प्रथम चरण के मतदान के लिए निर्धारित अवधि के आरंभ होने से 48 घंटे आरंभ होने की अवधि के दौरान और सभी राज्यों में सभी चरणों के मतदान समाप्त हो जाने तक। मतदान दिवस प्रश्न 69. क्या निर्वाचन बूथ स्थापित करने के लिए संबंधित सरकारी अधिकारियों या स्थानीय अधिकारियों की लिखित अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है? उत्तरः हाँ। ऐसे बूथ स्थापित करने से पहले संबंधित सरकारी अधिकारियों या स्थानीय अधिकारियों से लिखित अनुमति लेना आवश्यक है। पुलिस/निर्वाचन अधिकारियों द्वारा मांगे जाने पर लिखित अनुमति बूथ से संबंधित व्यक्तियों अथवा वहाँ उपस्थित कर्मचारियों के पास उपलब्ध होनी चाहिए। प्रश्न 70. क्या मतदान केंद्र में या उसके आस-पास प्रचार पर कोई प्रतिबंध है? उत्तरः हाँ। मतदान के दिन मतदान केंद्र के एक सौ मीटर की दूरी के भीतर वोटों के लिए प्रचार करना निषिद्ध है। (देखें: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 130) प्रश्न. 71. क्या मतदान केंद्र या उसके पास सशस्त्र जाने पर कोई प्रतिबंध है? उत्तरः हाँ। मतदान के दिन मतदान केंद्र के आस-पास शस्त्र अधिनियम 1959 में परिभाषित किए गए किसी भी तरह के हथियारों से लैस किसी भी व्यक्ति को हथियार ले जाने की अनुमति नहीं है। (देखें: 1951 के प्रतिनिधित्व की धारा 134ख) प्रश्न 72. मतदान के दिन एक अभ्यर्थी कितने वाहनों के लिए हकदार है? उत्तरः (i) लोक सभा के निर्वाचन के लिए, अभ्यर्थी हकदार होगा: पूरे निर्वाचन क्षेत्र में अभ्यर्थी को स्वयं के उपयोग के लिए एक वाहन। पूरे निर्वाचन क्षेत्र के लिए अभ्यर्थी के निर्वाचन अभिकर्ता के उपयोग के लिए एक वाहन। इसके अतिरिक्त, संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्येक विधानसभा खंड में अभ्यर्थी के कार्यकर्ताओं अथवा दल के कार्यकर्ताओं के उपयोग के लिए, जैसा भी मामला हो, एक वाहन। (ii) राज्य विधान सभा के निर्वाचन के लिए, अभ्यर्थी हकदार होगा: अभ्यर्थी के स्वयं के उपयोग के लिए एक वाहन अभ्यर्थी के निर्वाचन अभिकर्ता के उपयोग के लिए एक वाहन इसके अलावा, अभ्यर्थी के कार्यकर्ताओं या पार्टी कार्यकर्ताओं के उपयोग के लिए एक वाहन। प्रश्न 73. यदि मतदान के दिन अभ्यर्थी निर्वाचन क्षेत्र में अनुपस्थित रहता है, तो क्या उसके नाम पर आवंटित वाहन किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उपयोग किया जा सकता है? उत्तरः नहीं। अभ्यर्थी के उपयोग के लिए आवंटित वाहन का किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उपयोग करने की अनुमति नहीं है। प्रश्न 74. क्या मतदान के दिन किसी भी प्रकार के अधिकारिक वाहन का उपयोग किया जा सकता है? उत्तरः नहीं। अभ्यर्थी या उसके अभिकर्ता या दल के कार्यकर्ता को केवल चार/तीन/दो पहिया वाहनों, अर्थात कार (सभी प्रकार के), टैक्सी, ऑटो रिक्शा, रिक्शा और दोपहिया वाहनों का उपयोग करने की अनुमति होगी। मतदान के दिन इन वाहनों में चालक सहित पाँच से अधिक व्यक्तियों को ले जाने की अनुमति नहीं होगी। प्रश्न 75. क्या राजनीतिक दल/अभ्यर्थी मतदान केंद्र से मतदाताओं को लाने और ले-जाने के लिए परिवहन के लिए व्यवस्था कर सकते हैं? उत्तरः नहीं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिवहन के लिए किसी भी प्रकार के वाहन द्वारा किसी भी मतदाता को मतदान केंद्र तक लाने - ले जाने के लिए कोई भी व्यवस्था, एक दांडिक अपराध है। (देखें: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 133) प्रश्न 76. क्या राजनीतिक दल का कोई नेता मतदान के दिन मतदान और मतगणना की प्रक्रिया का पर्यवेक्षण और निगरानी के लिए निजी फिक्स्ड-विंग विमानों और हेलीकॉप्टरों का उपयोग कर सकता है? उत्तरः नहीं। किसी राजनीतिक दल के नेता को मतदान और मतगणना के दिन मतदान और मतगणना की प्रक्रिया की निगरानी और पर्यवेक्षण के उद्देश्य से, निजी फिक्स्ड-विंग विमानों और हेलीकॉप्टरों का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।
  5. ECI

    संसद

    प्रश्न 1. भारत की संसद की क्या संरचना है? उत्तर. भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार संसद, भारत के राष्ट्रपति और संसद के दो सदनों यथा-राज्य सभा और लोक सभा से मिलकर बनती है। प्रश्न 2. भारत के राष्ट्रपति को कौन निर्वाचित करता है? उत्तर . राष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों और राज्य विधान सभाओं एवं दिल्ली तथा पांडिचेरी के संघ राज्य-क्षेत्रों के निर्वाचित सदस्यों से बने निर्वाचकगण के सदस्यों द्वारा किया जाता है। प्रश्न 3 . राष्ट्रपति के निर्वाचन की क्या रीति है? उत्तर . संविधान के अनुच्छेद 55 के अनुसार, जहां तक साध्य हो, राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न-भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व; के मापमान में एकरूपता होनी है। राज्यों में आपस में ऐसी एकरूपता प्राप्त कराने के प्रयोजन के लिए प्रत्येक राज्य मतों की जितनी संख्या का हकदार है वह निम्नलिखित रीति से अवधारित की जाएगी; (क) किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत होंगे जितने कि एक हजार के गुणित उस भागफल में हों जो राज्य की जनसंख्या को उस विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए; (ख) यदि एक हजार के उक्त गुणितों को लेने के बाद शेष पांच सौ से कम नहीं है तो प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाएगा; (ग) संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्यों के मतों की संख्या वह होगी जो राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों के लिए नियत कुल मतों की संख्या को, संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए, जिसमें आधे से अधिक भिन्न को एक गिना जाएगा और अन्य भिन्नों की उपेक्षा की जाएगी। राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा। प्रश्न 4. राष्ट्रपति की पदावधि क्या है? उत्तर . राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा। प्रश्न 5 . क्या कोई ऐसी परिस्थिति होगी जिसमें राष्ट्रपति पांच वर्ष की पदावधि से पहले पद से पदत्याग कर सकते हैं? उत्तर . हां। ऐसी दो परिस्थितियां होंगी। पहली तब, जब राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेंगे और दूसरी, तब जब राष्ट्रपति को संविधान के उल्लंघन के लिए महाभियोग द्वारा पद से हटाया जाता है। प्रश्न6. राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की क्या प्रक्रिया है? उत्तर . संविधान के अनुच्छेद 61 के अनुसार, जब संविधान के अतिक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो, तब संसद का कोई सदन आरोप लगाएगा। ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि- (क) ऐसा आरोप लगाने की प्रस्थापना किसी ऐसे संकल्प में अंतर्विष्ट नहीं है, जो कम से कम चौदह दिन की ऐसी लिखित सूचना के दिए जाने के पश्चात प्रस्तावित किया गया है जिस पर उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का आशय प्रकट किया है; और (ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया है। प्रश्न 7. क्या राष्ट्रपति दूसरी अवधि के लिए निर्वाचन का पात्र है? उत्तर . हां। संविधान के अनुच्छेद 57 के अनुसार राष्ट्रपति उस पद के लिए पुनर्निर्वाचन का पात्र होता है। प्रश्न 8. राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन के लिए क्या अर्हताएं हैं? उत्तर . संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक है, पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और लोक सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने के लिए अर्हित है। कोई व्यक्ति , जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, वह निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा। प्रश्न 9. क्या संसद या राज्यं विधान-मंडल का सदस्य राष्ट्रपति बन सकता है? उत्तर . राष्ट्रपति न तो दोनों में से किसी भी सदन का और न ही किसी राज्य की विधान मंडल के एक सदन का सदस्यट होगा और यदि ऐसा कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित होता है तो यह माना जाएगा कि उन्हों ने उस तारीख को उस सदन में अपना स्था्न रिक्त कर दिया है जब वे राष्ट्रपति के रूप में पद ग्रहण करते हैं। प्रश्न 10. भारत के उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन कौन करता है? उत्तर . उप-राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के सदस्यों् से बने निर्वाचकण के सदस्यों द्वारा निर्वाचित ‍होते हैं। प्रश्न 11. उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन की क्या रीति है? उत्तर . उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा। प्रश्न 12 . उप-राष्ट्रपति के पद की क्या पदावधि है? उत्तर . उप-राष्ट्रपति उस तारीख से पांच वर्षों की पदावधि के लिए पद धारण करेंगे जब वे अपने पद का कार्यभार ग्रहण करेंगे। प्रश्न 13. क्या कोई ऐसी परिस्तिथि होगी जिसमें उप-राष्ट्रपति पांच वर्ष की पदावधि से पहले पद त्या्ग सकते हैं? उत्तर . हां। ऐसी दो परिस्तिथियाँ होंगी। पहली, तब जब उप-राष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्यागते हैं और दूसरी तब, जब उन्हें पद से हटाया जाए। प्रश्न14 . उप-राष्ट्रपति को हटाए जाने की क्या प्रक्रिया है? उत्तर . उप-राष्ट्रपति, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा जिसे राज्य सभा के सभी सदस्यों के बहुमत ने पारित किया है और जिससे लोक सभा सहमत है। ऐसा कोई संकल्प तब तक नहीं प्रस्तावित किया जाएगा जब तक कि उस संकल्पा को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो। प्रश्न 15 . उप-राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन के लिए क्या अर्हताएं हैं? उत्तर . संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार कोई व्यक्ति उप-राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक है, पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और राज्य सभा का सदस्य् निर्वाचित होने के लिए अर्हित है कोई व्यक्ति , जो उक्त् सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्यै प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, उप-राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा। प्रश्न16. क्या, राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन को चुनौती देने के लिए कोई उपबंध है? उत्तर . हां। संविधान के अनुच्छे्द 71 के अनुसार राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न या संक्तन सभी शंकाओं और विवादों की जांच और विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपतीय एवं उप-राष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 की धारा 14 के अनुसार उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक निर्वाचन याचिका दायर की जा सकती है। प्रश्न 17. राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है? उत्तर . 250 राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है। भारत के संविधान के अनुच्छेकद 80 में यह उपबंध किया गया है कि 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाने होते हैं और राज्यों से 238 से अधिक प्रतिनिधि एकल संक्रमणीय मत के द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्धति के अनुसार राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा निर्वाचित किए जाने होते हैं। प्रश्न 18. क्या वे सभी निर्वाचित होते हैं? उत्तर . नहीं। वे सभी निर्वाचित नहीं होते हैं। जैसाकि ऊपर उल्लेीख किया गया है 12 नामित होते हैं और 238 निर्वाचित किए जाने होते हैं। प्रश्न 18क. राज्य सभा की वर्तमान सदस्यं संख्या क्या है? उत्तर . 245 सदस्य 12 नामित होते हैं और 233 निर्वाचित होते हैं। प्रश्न 19. राज्य सभा का कितना कार्यकाल होता है? उत्तर . राज्य सभा एक स्थायी सदन है और यह भारत के संविधान के अनुच्छे‍द 83(1) के अनुसार विघटन के अधीन नहीं है। लेकिन, यथा-संभव इसके लगभग एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त होंगे और उतनी ही संख्या में उन्हें प्रतिस्थादपित करने के लिए सदस्य चुने जाते हैं। प्रश्न 20. राज्य सभा के सदस्यों को कौन निर्वाचित करता है? उत्तर . राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य । भारत के संविधान के अनुच्छेकद 80(4) में इस बात की व्यिवस्था की गई है कि राज्यभ सभा के सदस्य एकल संक्रमणीय मत के जरिए आनुपातिक प्रतिनिधित्वय की पद्धति के माध्यम से राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा निर्वाचित किए जाएंगे। प्रश्न 21. राज्य सभा के सदस्यों को कौन नामित करता है? उत्तर . भारत के राष्ट्रपति। भारत के राष्ट्रपति राज्य सभा के 12 सदस्यों को नामित करते हैं जैसाकि पूर्व में उल्लेेख किया गया है। प्रश्न 22. क्या नाम-निर्देशन के लिए कोई विशेष योग्यता होती है? उत्तर . हां। भारत के संविधान के अनुच्छेयद 80(3) में यह उपबंध किया गया है कि राष्ट्रपति द्वारा राज्यं सभा में नामित किए जाने वाले सदस्यों के पास साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों में विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव होना चाहिए। अनुच्छेेद 84(ख) में विनिर्धारित किया गया है कि ऐसे व्यक्ति की आयु 30(तीस) वर्ष से कम नहीं होगी। प्रश्न 23 . लोक सभा का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है? उत्तर . सामान्य कार्यकाल : 5 वर्ष। संविधान का अनुच्छेक 83(2) यह अनुबंध करता है कि लोक सभा की अपनी पहली बैठक के लिए निर्धारित तारीख से 5 वर्षों की सामान्य कार्यावधि होगी और इससे आगे नहीं। तथापि, राष्ट्रंपति चाहें तो उससे पहले भी सदन का विघटन कर सकते हैं। प्रश्न 24. लोक सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या क्या हो सकती है? उत्तर . 550 लोक सभा के निर्वाचित सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 है। संविधान का अनुच्छेद 81 यह उपबंधित करता है कि राज्यों से अधिक से अधिक 530 सदस्य और संघ राज्य क्षेत्रों से अधिक से अधिक 20 सदस्य निर्वाचित किए जाएंगे। संविधान का अनुच्छेंद 331 यह उपबंधित करता है कि भारत का राष्ट्रपति एंग्लो् इंडियन समुदाय से अधिक से अधिक 2 सदस्यों को नामित कर सकता है, यदि उसकी राय में उस सदन में उस समुदाय का भली प्रकार से प्रतिनिधित्व नहीं किया गया है। प्रश्न 25. लोक सभा के सदस्यों का निर्वाचन किस प्रकार किया जाता है? उत्तर . लोक प्रतिनिधित्वन अधिनियम, 1951 की धारा 14 के अधीन, अधिसूचना के माध्यम से भारत का राष्ट्रपति निर्वाचन क्षेत्रों से यह अपेक्षा करता है कि वे लोक सभा में अपने सदस्यों का चुनाव करें। इसके पश्चात संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के निर्वाचक सीधे ही लोक सभा सदस्योंं का चुनाव करेंगे। भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार लोकसभा के निर्वाचन व्य‍स्क मताधिकार के आधार पर होंगे। प्रश्न 26. संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के निर्वाचकों द्वारा कितने सदस्य चुने जाते हैं? उत्तर . एक। प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र केवल एक सदस्य का चुनाव करेगा। प्रश्न 27. क्या प्रारंभ से ही यही स्थिति थी? उत्तर . नहीं। वर्ष 1962 से पहले, एकल सदस्यीेय और बहु-सदस्यीयय निर्वाचन क्षेत्र हुआ करते थे। ये बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र एक से अधिक सदस्य चुना करते थे। बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों को वर्ष 1962 में समाप्त कर िदया था। प्रश्न 28 . भारत में पहले साधारण निर्वाचन किस वर्ष में हुए? उत्तर . वर्ष 1951-52 में भारत में पहले साधारण निर्वाचन वर्ष 1951-52 के दौरान हुए थे। प्रश्न29. उस समय लोक सभा की कुल संख्या क्या थी? उत्तर . उस समय लोक सभा की कुल संख्या 489 थी।
  6. प्रश्न 1. कौन-सा प्राधिकरण भारत के राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचन आयोजित करता है? उत्तर : भारत निर्वाचन आयोग भारत के संविधान के अनुच्छेकद 324(1) के अन्तर्गत, भारत निर्वाचन आयोग के पास अन्यों के साथ-साथ भारत के राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन आयोजित करने के संचालन, निदेशन और नियन्त्रण की शक्ति निहित है। विस्तृत उपबन्ध राष्ट्रपतीय और उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 व उसके अधीन बनाए गए नियमों के अन्त र्गत किए गए हैं। प्रश्न 2. कौन-सा प्राधिकरण संसद के निर्वाचन आयोजित करता है? उत्तर : भारत निर्वाचन आयोग इसी अनुच्छेद 324 में, संसद के दोनों सदनों के निर्वाचनों के संचालन, निदेशन और नियन्त्रण की शक्तियां आयोग के पास निहित हैं। विस्तृत उपबन्ध लोक प्रतिनिधित्व‍ अधिनियम, 1951 तथा उसके अधीन बनाए गए नियमों के अन्तंर्गत किए गए हैं। प्रश्न 3. कौन-सा प्राधिकरण राज्य् विधान सभा निर्वाचन-क्षेत्रों और विधान परिषदों के निर्वाचन आयोजित करता है? उत्तर : भारत निर्वाचन आयोग अनुच्छेऔद 324(1) में, आयोग के पास राज्य विधान मंडल के दोनों सदनों के निर्वाचनों के संचालन, निदेशन और नियन्त्रनण की शक्तियां भी निहित हैं। विस्तृत प्रावधान लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 व उसके अधीन बनाए गए नियमों के अन्तर्गत किए गए हैं। प्रश्न 4. कौन-सा प्राधिकरण निगमों, नगरपालिकाओं व अन्य स्था्नीय निकायों के निर्वाचन आयोजित करता है? उत्तर : राज्य निर्वाचन आयोग (एस ई सी) प्रत्येिक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के लिए संविधान (73वां और 74वां) संशोधन अधिनियम, 1992 के अधीन गठित राज्य निर्वाचन आयोग के पास निगमों, नगरपालिकाओं, जिला परिषदों, जिला पंचायतों, पंचायत समितियों, ग्राम पंचायतों व अन्यल स्थानीय निकायों के निर्वाचन आयोजित करने की शक्तियां निहित हैं। वे भारत निर्वाचन आयोग के नियन्त्र ण से मुक्त हैं। प्रश्न 5. निर्वाचन आयोग की वर्तमान संरचना क्याा है? उत्तर : तीन सदस्य निकाय इस समय, भारत निर्वाचन आयोग तीन सदस्यै निकाय है जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्ता व दो निर्वाचन आयुक्त हैं। प्रश्न 6. क्या निर्वाचन आयोग प्रारम्भ से बहु-सदस्य निकाय रहा है? उत्तर : नहीं। यह प्रारम्भ से बहु-सदस्य निकाय नहीं था। जब 1950 में इसकी स्थापना हुई तो यह एक सदस्य‍ निकाय था और 15 अक्तूबर, 1989 तक इसमें केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त था, 16 अक्तूबर, 1989 से 01 जनवरी, 1990 तक यह तीन सदस्यय निकाय बना जिसमें आर.वी.एस. पेरी शास्त्री (मुख्य निर्वाचन आयुक्त) और एस.एस. धनोआ और वी.एस. सेगल निर्वाचन आयुक्तू थे। 02 जनवरी, 1990 से 30 सितम्बर, 1993 तक, यह एक सदस्य आयोग था और पुन: 01 अक्तूबर, 1993 से यह तीन सदस्य् आयोग बना। प्रश्न 7. वेतन और भत्तों इत्यादि के सम्बन्ध‍ में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की क्या हैसियत है? उत्तर : उच्च्तम न्यातयालय के न्याेयाधीशों के समतुल्य।. मुख्यत निर्वाचन आयुक्तल और दोनों निर्वाचन आयुक्तों को भारत के उच्चातम न्याधयालय के न्यायाधीशों के सममूल्य‍ पर वेतन एवं भत्ते मिलते हैं जैसा कि मुख्य् निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्त (‍सेवा की शर्तें) नियम, 1992 में उपबंधित किया गया है। प्रश्न 8. मुख्य निर्वाचन आयुक्त की कार्यालयावधि क्या है? क्या यह निर्वाचन आयुक्तों से भिन्न होती है? उत्तर : मुख्य निर्वाचन आयुक्तय या निर्वाचन आयुक्त अपना कार्यभार ग्रहण करने की तारीख, से 6 वर्ष तक की अवधि के लिए पद धारण करेंगे। तथापि, जहां मुख्य निर्वाचन आयुक्त या निर्वाचन आयुक्तअ उक्तप छह वर्ष की अवधि के समापन से पहले पैंसठ वर्ष की आयु के हो जाते हैं, वह उसी तिथि को जब वे पैंसठ वर्ष की आयु के होते हैं, को अपना पद रिक्त कर देंगे। प्रश्न 9. जब आयुक्त एक बहु-सदस्यीदय आयोग बन जाते हैं, तो निर्णय किस प्रकार लिए जाते हैं, बहुमत द्वारा या सहमति द्वारा? उत्तर : मुख्य निर्वाचन आयुक्त या अन्य आयुक्त (सेवा की शर्तें) संशोधन अधिनियम, 1993 की धारा 10 को नीचे उद्धृत किया गया है:- निर्वाचन आयोग सर्वसम्मणत निर्णय द्वारा अपने कार्यों के निष्पादन के लिए प्रक्रियाओं का विनियमन करने के साथ-साथ अपने कार्यों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अपने निर्वाचन आयुक्तों के बीच आबंटित करता है। उप-धारा (i) में यथा उपबंधित निर्वाचन आयोग के सभी कार्य, यथासंभव रूप से, सर्वसम्मति से किए जाएंगे। उप-धारा (ii) के उपबंधों के अध्यवधीन, यदि मुख्यु निर्वाचन आयुक्त् और अन्ये निर्वाचन आयुक्त किसी मामले पर एकमत नहीं हैं तो ऐसे मामलों पर बहुमत की राय के अनुसार निर्णय लिया जाएगा। प्रश्न 10. मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर : राष्ट्रपति। भारत के संविधान के अनुच्छेयद 324(2) के अधीन, भारत के राष्ट्रपति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तोंे को नियुक्त करने की शक्तियां दी गई है। प्रश्न 11. निर्वाचन आयुक्तों की संख्या कौन निर्धारित करता है? (मुख्य निर्वाचन आयुक्त के अलावा) उत्तर : राष्ट्रपति। अनुच्छेद 324(2) में, भारत के राष्ट्रपति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त के अलावा निर्वाचन आयुक्तों की संख्या समय-समय पर निर्धारित करने के लिए भी सशक्त बनाता है। प्रश्न 12. राज्य में निर्वाचन कार्य का पर्यवेक्षण कौन करता है? उत्तर :मुख्य निर्वाचन अधिकारी(सीईओ) लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 20 के साथ पठित, लोक प्रतिनिधित्वक अधिनियम, 1950 की धारा 13क के अनुसार, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के मुख्यि निर्वाचन अधिकारी, राज्य/संघ राज्य् क्षेत्र में निर्वाचन कार्य का पर्यवेक्षण करने के लिए प्राधिकृत हैं किंतु यह निर्वाचन आयोग के समग्र अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण के अध्य धीन होगा। प्रश्न 13. मुख्य निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर : भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) भारत निर्वाचन आयोग किसी राज्य/संघ शासित क्षेत्र की सरकार के अधिकारी को मुख्यि निर्वाचन अधिकारी के रूप में नामित या पदाभिहीत करने के लिए उस राज्य सरकार/संघ शासित क्षेत्र के प्रशासन से परामर्श के पश्चा त ही ऐसा करेंगे। प्रश्न 14. जिले में निर्वाचन कार्य का पर्यवेक्षण कौन करता है? उत्तर : जिला निर्वाचन अधिकारी (डीईओ) लोक प्रतिनिधित्वि अधिनियम, 1950 की धारा 13क के अनुसार जिला निर्वाचन अधिकारी मुख्य् निर्वाचन अधिकारी के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण की शर्त के अधीन जिले में निर्वाचन कार्य का पर्यवेक्षण करते हैं। प्रश्न 15. जिला निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर :भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) भारत निर्वाचन आयोग, राज्य सरकार के परामर्श से राज्य सरकार के एक अधिकारी को जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में नामित या पदनामित करता है। प्रश्न 16. किसी भी संसदीय या विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र में निर्वाचनों के संचालन के लिए कौन जिम्मेदार होता है? उत्तर : रिटर्निंग अधिकारी (आरओ) लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 21 के अनुसार एक संसदीय या विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग अधिकारी संबंधित संसदीय या विधान सभा निर्वाचन-क्षेत्र में निर्वाचनों के संचालन के लिए उतरदायी होते हैं। प्रश्न 17. रिटर्निंग अधिकारी को कौन नियुक्त करता है? उत्तर :भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) भारत निर्वाचन आयोग प्रत्येक विधान सभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लिए राज्य सरकार/संघ राज्य–क्षेत्र प्रशासन के परामर्श से सरकार या स्थानीय निकाय के एक अधिकारी को रिटर्निंग अधिकारी के रूप में नियुक्ते या पदनामित करता है। इसके अतिरिक्त, भारत निर्वाचन आयोग रिटर्निंग अधिकारी के निर्वाचनों के संचालन के संबंध में उनके कार्यों के निष्पादन में मदद करने के लिए प्रत्येक विधान सभा और संसदीय निर्वाचन-क्षेत्रों के लिए एक या अधिक सहायक रिटर्निंग अधिकारियों की नियुक्ति भी करता है। प्रश्न 18. संसदीय या विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचक नामावलियां तैयार करने के लिए कौन उत्तरदायी है? उत्तर : निर्वाचक रजिस्ट्रीणकरण अधिकारी (ईआरओ) संसदीय/विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचक नामावलियां तैयार करने के लिए निर्वाचक रजिस्ट्री करण अधिकारी उत्तरदायी होते हैं। प्रश्न 19. मतदान केन्द्र् पर मतदान का कौन संचालन करता है? उत्तर :पीठासीन अधिकारी। पीठासीन अधिकारी मतदान अधिकारियों की सहायता से मतदान केन्द्र पर मतदान का संचालन करते हैं। प्रश्न 20. निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर : लोक प्रतिनिधित्वक अधिनियम, 1950 की धारा 13ख के अंतर्गत भारत निर्वाचन आयोग, राज्य/संघ राज्य्-क्षेत्र सरकार के परामर्श से सरकार या स्थानीय निकायों के एक अधिकारी को निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के रूप में नियुक्ते करता है। इसके अतिरिक्तं, भारत निर्वाचन आयोग निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी की निर्वाचक नामावलियों की तैयारी/पुनरीक्षण के मामले में उनके कार्यों के निष्पािदन में सहायता पहुंचाने के लिए एक या अधिक सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों की नियुक्ति करता है। प्रश्न 21. पीठासीन अधिकारियों और मतदान अधिकारियों की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर : जिला निर्वाचन अधिकारी (डीईओ) लोक प्रतिनिधित्वि अधिनियम, 1951 की धारा 26 के अंतर्गत जिला निर्वाचन अधिकारी पीठासीन अधिकारियों और मतदान अधिकारियों को नियुक्ती करते हैं। संघ राज्य6-क्षेत्रों के मामले में, ऐसी नियुक्तियां रिटर्निंग अधिकारियों द्वारा की जाती हैं। प्रश्न 22.प्रेक्षकों की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर : भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 20ख के अंतर्गत भारत निर्वाचन आयोग संसदीय और विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए सरकार के अधिकारियों को प्रेक्षकों (सामान्य प्रेक्षकों और निर्वाचन व्यय प्रेक्षकों) के रूप में नियुक्त करता है। वे ऐसे कार्य निष्पादित करते हैं जो उन्हें आयोग द्वारा सौंपे जाते हैं। पूर्व में, प्रेक्षकों की नियुक्ति आयोग की परिपूर्ण शक्तियों के अंतर्गत की जाती है। परन्तु, वर्ष 1996 में लोक प्रतिनिधित्वय अधिनियम, 1951 में किए गए संशोधन के साथ ये अब सांविधिक नियुक्तियां हैं। वे सीधे आयोग को रिपोर्ट करते हैं।
  7. 1) राज्‍य सभा के सदस्‍यों की अधिकतम संख्‍या कितनी हो सकती हैं? उत्‍तर : 250 राज्‍य सभा के सदस्‍यों की अधिकतम संख्‍या 250 हो सकती है। भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 80 में उपबंध है कि भारत के राष्‍ट्रपति द्वारा 12 सदस्‍य नामित किए जाते हैं और एकल संक्रणीय मत के माध्‍यम से अनुपातिक प्रतिनिधित्‍व प्रणाली के अनुसार राज्‍य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्‍यों द्वारा राज्‍यों से अधिकतम 238 प्रतिनिधि निर्वाचित करने होते हैं (संविधान का अनुच्‍छेद 80)। 2) राज्‍य सभा के सदस्‍यों की मौजूदा संख्‍या कितनी है? उत्‍तर : 245 सदस्‍य 12 नामित हैं और 233 सदस्‍य निर्वाचित हैं। 3) राज्‍य सभा का कार्यकाल कितना होता है? उत्‍तर: राज्‍य सभा एक स्‍थायी सदन है और भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 83(1) के अनुसार इसे भंग नहीं किया जा सकता ! किन्‍तु, जहां तक संभव होता है इसके एक तिहाई सदस्‍य प्रत्‍येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्‍त हो जाते हैं और उन्‍हें प्रतिस्‍थापित करने के लिए उतनी ही संख्‍या में सदस्‍यों को चुना जाता है। 4) राज्‍य सभा के सदस्‍यों को कौन निर्वाचित करता है? उत्‍तर : राज्‍य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्‍य उन्‍हें निर्वाचित करते हैं। ‘राज्‍य’ शब्‍द में पुडुचेरी और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली भी शामिल है। भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 80(4) में उपबंध हैं कि एकल संक्रमणीय मत के माध्‍यम से अनुपातिक प्रतिनिधित्‍व प्रणाली के द्वारा राज्‍य विधान सभाओं के निर्वाचति सदस्‍यों द्वारा राज्‍य सभा के सदस्‍यों को निर्वाचित किया जाएगा। 5) राज्‍य सभा के सदस्‍यों को कौन नामित करता है? उत्‍तर : भारत के राष्‍ट्रपति भारत के राष्‍ट्रपति राज्‍य सभा के लिए 12 सदस्‍यों को नामित करते हैं जैसा पहले उल्‍लेख किया गया है। 6) क्‍या नामित सदस्‍यों के लिए कोई विशेष अर्हता होती है? उत्‍तर : हाँ भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 80(3) में उपबंध है कि राज्‍य सभा में राष्‍ट्रपति द्वारा नामित किए जाने वाले सदस्‍यों को साहित्‍य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों का विशेष ज्ञान अथवा व्‍यावहारिक अनुभव होना चाहिए। अनुच्‍छेद 84(ख) उपबंधित करता है कि वह व्‍यक्ति 30(तीस) वर्ष से कम आयु का नहीं होगा। 7) राज्‍य सभा के निर्वाचन में नाम निर्देशन करने के लिए कितने प्रस्‍तावकों का समर्थन आवश्‍यक होता है? उत्‍तर : मान्‍यताप्राप्‍त दलों द्वारा खड़े किए गए अभ्‍यर्थियों के मामले में राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन के लिए अभ्‍यर्थी के प्रत्‍येक नाम निर्देशन पर संबंधित विधान सभा के कुल निर्वाचित सदस्‍यों के कम से कम दस प्रतिशत अथवा दस सदस्‍यों, जो भी कम हो, का प्रस्‍तावकों के रूप में समर्थन आवश्‍यक होगा। अन्‍य अभ्‍यर्थियों के मामले में, विधान सभा के दस निर्वाचित सदस्‍यों का समर्थन चाहिए। 8.) एक अभ्‍यर्थी नाम निर्देशन कागजात के कितने सेट दायर कर सकता है? उत्‍तर : चार लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 39 की उप धारा (2)छ के साथ पठित, धारा 33 की उप-धारा (6) के अंतर्गत किसी भी एक अभ्‍यर्थी के द्वारा अथवा उसकी ओर से अधिकतम केवल चार ना‍म निर्देशन संबंधी कागजात प्रस्‍तुत अथवा उसी निर्वाचन क्षेत्र में स्‍वीकार किए जा सकते हैं। 9) रिटर्निंग अधिकारी को नाम निर्देशन संबंधी कागजात कौन प्रस्‍तुत कर सकता है? उत्‍तर : नाम निर्देशन संबंधी कागजात या तो स्‍वयं अभ्‍यर्थी द्वारा अथवा उसके प्रस्‍तावकों में से किसी एक के द्वारा जमा करवाने होते हैं। 10) राज्‍य सभा का निर्वाचन लड़ने के लिए अभ्‍यर्थी को कितनी सुरक्षा राशि जमा करानी होती है? उत्‍तर : राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में प्रत्‍येक अभ्‍यर्थी को लोक प्रतिनिधित्‍व (संशोधन) अधिनियम, 2009 (1 फरवरी 2010 से लागू हुआ) के द्वारा यथा संशोधित 10,000/- रू. (लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951 की धारा 39(2) के साथ पठित धारा 34) जमा कराना अनिवार्य होता है। यदि अभ्‍यर्थी अनुसूचित जाति‍ अथवा अनुसूचित जनजाति का है तो उसे केवल 5000/- रू. जमा कराने होंगे। 11) क्‍या विधान सभा/संघ राज्‍य क्षेत्र का निर्वाचित सदस्‍य विधान सभा में अपना पद ग्रहण करने से पहले और संविधान के अंतर्गत विधान सभा के सदस्‍य के रूप में अपेक्षित शपथ एवं प्रतिज्ञान लेने से पहले राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में एक निर्वाचक के रूप में भाग लेने हेतु पात्र है? क्‍या ऐसे सदस्‍य नाम निर्देशन हेतु प्रस्‍तावक हो सकते हैं? उत्‍तर : हाँ। यह प्रश्‍न पशुपति नाथ सुकुल बनाम नेमचंद जैन (एआईआर 1984 एससी 399) के मामले में उत्‍पन्‍न हुआ था। सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने निर्णय दिया कि लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951 की धारा 73 के अंतर्गत निर्वाचन आयोग द्वारा इसकी अधिसूचना के द्वारा जैसे ही विधान सभा का गठन किया गया, विधान सभा के नवनिर्वाचित सदस्‍य उस सदन (विधान सभा) के सदस्‍य बन गए, और ऐसे सदस्‍य विधान सभा में अपना पदग्रहण करने से पहले ही राज्‍य सभा के निर्वाचन सहित सभी गैर-विधायी गतिविधियों में भाग ले सकते थे। उच्‍चतम न्‍यायालय ने अपने दिनांक 6 जनवरी, 1997 के आदेश के द्वारा इस विचार की पुन: पुष्टि भी की थी। [मधुकर जेटली बनाम भारत संघ एवं अन्‍य – 1997 (II) एससीसी III] ऐसे सदस्‍य अभ्‍यर्थियों के नाम निर्देशन हेतु प्रस्‍तावक भी बन सकते हैं। 12) क्‍या राज्‍य सभा के निर्वाचनों में खुले मतदान पर दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता संबंधी संविधान की दसवीं अनुसूची के उपबंध लागू होते हैं? उत्‍तर : नहीं सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने कुलदीप नायर बनाम भारत संघ और अन्‍य (एआईआर 2006 एससी 3127) के मामले में अपने दिनांक 22 अगस्‍त, 2006 के निर्णय में कहा कि ‘’यह दावा तर्कसंगत नहीं है कि खुले मतदान से राज्‍य सभा के निर्वाचन में मतदाता का अभिव्‍यक्ति का अधिकार प्रभावित होता है, क्‍योंकि एक विशिष्‍ट पद्धति में मतदान करने से निर्वाचित विधायक सदन की सदस्‍यता से किसी निरर्हता का सामना नहीं करेगा। ज्‍यादा से ज्‍यादा उसे उस राजनैतिक दल की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है जिससे वह संबंधित है।‘’ 13) क्‍या किसी राज्‍य विधान सभा का ऐसा निर्वाचित सदस्‍य राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में मतदान कर सकता है, जिसका किसी निर्वाचन याचिका में उच्‍च न्‍यायालय द्वारा निर्वाचन रद्द कर दिया गया हो, लेकिन उसकी अपील के लम्बित होने की अवधि में उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा उसके पक्ष में सशर्त स्‍थगन प्रदान किया हो, जिसमें संबंधित सदस्‍य को विधान सभा के उपस्थिति रजिस्‍टर में हस्‍ताक्षर करने की अनुमति दी गई हो किन्‍तु, सदन की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति नहीं दी हो? उत्‍तर : नहीं उच्‍चतम न्‍यायालय ने अपने दिनांक 27 अक्‍टूबर, 1967 (सत्‍यनारायण मित्रा बनाम बिरेश्‍वर घोष 1967 की अपील सं.1408 (एनसीई)) के आदेश में स्‍पष्‍ट किया कि ऐसे संबंधित सदस्‍य को राज्‍य सभा के निर्वाचन में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके पश्‍चात एक नियम के रूप में, किसी भी राज्‍य की विधान सभा में ऐसे सदस्‍य को राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान सभा परिषद में किसी भी निर्वाचन में किसी अभ्‍यर्थी के नाम को प्रस्‍तावित करने अथवा मतदान करने की अनुमति नहीं दी गई है। 14) क्‍या राज्‍य विधान सभा का ऐसा निर्वाचित सदस्‍य राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में मतदान कर सकता है जिसका निर्वाचन किसी निर्वाचन याचिका पर उच्‍च न्‍यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया हो, किन्‍तु उच्‍चतम न्‍यायालय ने उच्‍च न्‍यायालय के आदेश पर एक संपूर्ण स्‍थगन आदेश पारित कर दिया हो? उत्‍तर : हां। ऐसे मामले में, उच्‍च न्‍यायालय के आदेश को लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 116 आ [3] के अंतर्गत कभी भी प्रभावी नहीं होना माना जाएगा, और संबंधित सदस्‍य बिना किसी बाधा के राज्‍य सभा अथवा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचन में भाग लेने हेतु उसके अधिकार सहित विधान सभा के सदस्‍य के सभी अधिकारों और विशेषाधिकारों का प्रयोग करता रहेगा। 15) यदि कोई द्विवार्षिक निर्वाचन नियत समय पर संबंधित राज्‍य विधान सभा के न होने के कारण निश्चित समय पर नहीं होता है और परिणामी रिक्तियां लंबे समय तक नहीं भरी जाती हैं और इस दीर्घ अवधि के दौरान अन्‍य नियमित रिक्तियां भी उत्‍पन्‍न हो जाती हैं, तो क्‍या इस प्रकार से उत्‍पन्‍न रिक्तियों को एक सामान्‍य निर्वाचन हेतु सम्मिलित किया जा सकता है अथवा प्रत्‍येक अलग समय (श्रेणियों) पर उत्‍पन्‍न होने वाली रिक्तियों को अलग निर्वाचन द्वारा भरा जाना होता है, चाहे ऐसे निर्वाचनों के लिए संबंधित विधान सभा के गठन के संबंध में एक सामान्‍य(कॉमन) समय-सारणी अपनाई गई हो? उत्‍तर : भिन्‍न-भिन्‍न वर्गों/ समय-अवधि(साइकल)[परिषदों के प्रारंभिक गठन के समय निर्धारित की गई] में उत्‍पन्‍न नियमित रिक्तियों को सम्मिलित नहीं किया जा सकता और अलग अलग अवसरों पर उत्‍पन्‍न रिक्तियों को अलग निर्वाचनों द्वारा भरा जाना होता है, चाहे ऐसे निर्वाचनों के लिए संबंधित विधान सभा के गठन के संबंध में एक सामान्‍य(कॉमन) समय-सारणी अपनाई गई हो। [दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय के समक्ष सुरिन्‍द्र पाल रातावाल बनाम शमीम अहमद एआईआर 1985 डीईएल 22 एंड ए.के.वालिया बनाम भारत संघ एवं अन्‍य, 1994 की सिविल रिट सं. 132] 16) क्‍या उस निर्वाचन में नाम निर्देशन संबंधी कागजातों की संवीक्षा के दिन शपथ ली या प्रतिज्ञान किया जा सकता है और उन पर हस्‍ताक्षर किए जा सकते हैं ? उत्‍तर : नहीं, उस निर्वाचन में नाम निर्देशन संबंधी कागजातों की संवीक्षा के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा नियत तिथि से पहले शपथ लेनी या प्रतिज्ञान किया जाना चाहिए और उन पर हस्‍ताक्षर नहीं किए जाने चाहिए ! उच्‍चतम न्‍यायालय के पशुपतिनाथ सिंह बनाम हरिहर प्रसाद सिंह (ए.आईआर. 1968 एस.सी. 1064) और कादर खान हुसैन खान एवं अन्‍य बनाम निजलिंगप्‍पा [ (1970(1)एस.सी.ए.-548] के मामले में दिए गए निर्णयों से स्थिति स्‍पष्‍ट हो चुकी है और वास्‍तव में शपथ लेने अथवा प्रतिज्ञान करने और हस्‍ताक्षर करने के संबंध में सभी संदेह दूर हो चुके हैं। इन निर्णयों के अनुसार अभ्‍यर्थी के नाम निर्देशन संबंधी कागजात प्रस्‍तुत होने के पश्‍चात ही उसके द्वारा शपथ ली अथवा प्रतिज्ञान किया जा सकता है और उन पर हस्‍ताक्षर किए जा सकते हैं तथा संवीक्षा की तिथि को न तो ऐसी शपथ ली जा सकती है न ही प्रतिज्ञान किया जा सकता है। यह कार्य संवीक्षा की नियत तिथि से पहले किया जाना चाहिए। 17) क्‍या एक ही प्रस्‍तावक एक से अधिक अभ्‍यर्थियों के नाम निर्देशन का प्रस्‍ताव रख सकता है ? उत्‍तर : हाँ ! विधि के अंतर्गत एक निर्वाचक द्वारा एक से अधिक अभ्‍यर्थियों के नाम निर्देशन करने पर कोई रोक नहीं है। अत:, एक अभ्‍यर्थी के नाम निर्देशन हेतु प्रस्‍तावक के रूप में समर्थन करने वाला कोई निर्वाचक एक या एक से अधिक अभ्‍यर्थियों के नाम निर्देशन का भी समर्थन कर सकता है (अमोलक चंद बनाम रघुवीर सिंह एआईआर 1968 एससी 1203). यहां तक कि एक अभ्‍यर्थी स्‍वयं उसी निर्वाचन के लिए किसी अन्‍य अभ्‍य‍र्थी के नाम निर्देशन का भी प्रस्‍तावक हो सकता है। 18) अभ्‍यर्थी के नाम निर्देशन संबंधी दस्‍तावेज कौन प्रस्‍तुत कर सकता है? उत्‍तर : अभ्‍यर्थी द्वारा स्‍वयं अथवा उसके किसी भी प्रस्‍तावक द्वारा नाम निर्देशन संबंधी कागजात रिटर्निंग अधिकारी अथवा प्रधिकृत सहायक रिटर्निंग अधिकारी को प्रस्‍तुत किए जाएंगे [1951 के अधिनियम की धारा 39(2) के साथ पठित धारा 33(1)]। ये किसी अन्‍य व्‍यक्ति द्वारा प्रस्‍तुत नहीं किए जा सकते हैं, चाहे उन्‍हें अभ्‍यर्थी अथवा उसके प्रस्‍तावक द्वारा लिखित में प्राधिकृत किया जाए। 19) क्‍या नाम निर्देशन संबंधी दस्‍तावेज डाक द्वारा अथवा फैक्‍स या ई-मेल जैसे संचार के अन्‍य माध्‍यमों से भेजे जा सकते हैं ? उत्‍तर : नहीं ! नाम निर्देशन डाक अथवा फैक्‍स या ई-मेल जैसे संचार के अन्‍य माध्‍यमों से नहीं भेजा जा सकता है [हरी विष्‍णु कामत बनाम गोपाल स्‍वरूप पाठक 48 ईएलआर1 देखें] 20) क्‍या अभ्‍यर्थिता वापिस लेने के नोटिस को रद्द किया जा सकता हैं ? उत्‍तर : नहीं ! अभ्‍यर्थी द्वारा एक बार विहित पद्धति में अभ्‍यर्थिता वापिस लेने का नोटिस देने के बाद उसके पास इस नोटिस को वापिस लेने अथवा उसे रद्द करने का कोई विकल्‍प अथवा अधिकार नहीं होता है [लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951 की धारा 39(2) के साथ पठित धारा 37(2)]। 21) अभ्‍यर्थी को उसके नाम निर्देशन संबंधी कागजातों के साथ कितने शपथ पत्र दायर करने होते हैं ? उत्‍तर : दो शपथ पत्र दायर करने होते हैं, एक फार्म 26 में और एक अतिरिक्‍त शपथ-पत्र सरकारी आवास की देय राशि के संबंध में आयोग के दिनांक 03.02.2016 के आदेश सं. 509/11/2004-जेएस.I के तहत इसके द्वारा विहित फार्म में ! 22) क्‍या शपथ-पत्रों, (फार्म-26) के किसी कॉलम को खाली छोड़े जाने पर भी नाम निर्देशन संबंधी कागजात वैध होता है ? उत्‍तर : माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय ने 2008 की रिट याचिका (सि) सं. 121 (रिसरजेंस इंडिया बनाम भारत निर्वाचन आयोग एवं अन्‍य) में अपने दिनांक 13/09/013 के निर्णय में यह अभिनिर्धारित किया है कि अभ्‍यर्थियों द्वारा अपने नाम निर्देशन संबंधी कागजातों के साथ दायर किए गए शपथ-पत्रों में अभ्‍यर्थियों को इसके समस्‍त कॉलम भरने होंगे और किसी भी कॉलम को खाली नहीं छोड़ा जा सकता है। इसीलिए, शपथ-पत्र को दायर करते समय, रिटर्निंग अधिकारी द्वारा यह जांच की जानी चाहिए कि क्‍या नाम निर्देशन संबंधी कागजातों के साथ दायर शपथ पत्र के सभी कॉलम भरे गए हैं या नहीं। यदि नहीं, तो रिटर्निंग अधिकारी अभ्‍यर्थी को नोटिस देगा कि वह एक नया शपथ-पत्र जमा कराए जिसमें सभी कॉलम विधिवत भरे हों। माननीय न्‍यायालय ने निर्णय दिया है कि यदि किसी मद के संबंध में कोई सूचना नहीं है तो उस कॉलम में उपयुक्‍त टिप्‍पणी जैसे ‘शून्‍य’अथवा ‘लागू नहीं’ इत्‍यादि, जैसा लागू हो, लिखा जाए। अभ्‍यर्थियों को कोई भी कॉलम खाली नहीं छोड़ना चाहिए। यदि कोई अभ्‍यर्थी रिटर्निंग अधिकारी के नोटिस के पश्‍चात भी रिक्‍त कॉलमों को भरने में असफल रहता है तो नाम निर्देशन संबंधी कागजातों की संवीक्षा करते समय रिटर्निंग अधिकारी द्वारा रद्द किया जा सकता है। 23) क्‍या किसी अभ्‍यर्थी के नाम निर्देशन पेपर को निरस्‍त किया जा सकता है यदि उसमें दी गई सूचना गलत है ? उत्‍तर : नहीं ! किसी नाम निर्देशन फार्म मे गलत सूचना देना उस नाम निर्देशन को निरस्‍त करने का मानदंड नहीं है। रिटर्निंग अधिकारी लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम 1951की धारा 36 में निहित प्रावधानों के अनुसार ही नाम निर्देशन कागजों को रद्द कर सकता है। 24) गलत शपथ-पत्र दायर करने की स्थिति में अभ्‍यर्थी पर क्‍या दंड लगाया जाता है ? उत्‍तर : यदि कोई अभ्‍यर्थी प्रपत्र 26 में शपथ-पत्र में कोई मिथ्‍या घोषणा करता है अथवा कोई सूचना छिपाता है तो वह लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 26 के अंतर्गत अधिकतम छह माह के कारावास अथवा जुर्माने अथवा दोनों दंड का भागी है। ऐसे मामले में आयोग के दिनांक 26.04.2014 के अनुदेश के अनुसार, शिकायतकर्ता लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 125ए के अंतर्गत कार्रवाई हेतु सीधे उपयुक्‍त विधि न्‍यायालय जा सकता है। 25) नाम निर्देशन कागजों के संबंध में दायर किए जाने हेतु अपेक्षित विभिन्‍न दस्‍तावेजों को प्रस्‍तुत करने की अंतिम (आउटर) समय सीमा क्‍या है ? उत्‍तर : (क) फार्म 26 में शपथ-पत्र, अतिरिक्‍त शपथ-पत्र और फार्म एए और बीबी नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि को अधिकतम अपराह्न 3.00 बजे तक दायर करने होते हैं। यदि अभ्‍यर्थी ने मूल शपथ-पत्र में कोई कॉलम खाली छोड़ दिया है और रिटर्निंग अधिकारी ने उसे नया और पूरा शपथ-पत्र दायर करने का नोटिस दिया है तो संशोधित शपथ-पत्र नाम निर्देशन की संवीक्षा हेतु नियत समय तक दायर किया जा सकता है। (ख) नाम निर्देशन दायर करने के बाद और संवीक्षा हेतु नियत तिथि से पहले शपथ ग्रहण करनी होती है। (ग) निर्वाचक नामावली का सत्‍यापित उद्धरण संवीक्षा के समय तक प्रस्‍तुत किया जा सकता है। 26) क्‍या फार्म ए ए और फार्म बी बी को फैक्‍स से भेजा जा सकता है अथवा इनकी फोटोकापियां प्रस्‍तुत की जा सकती हैं ? उत्‍तर : नहीं । 27) क्‍या फार्म ए ए और बी बी को नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि को अपराह्न 3.00 बजे के बाद जमा कराया जा सकता है उत्‍तर : नहीं । 28) खुली मतदान पद्धति कैसे संचालित की जाती है ? उत्‍तर : खुली मतदान पद्धति केवल राज्‍य सभा के निर्वाचन में ही अपनाई जाती है। प्रत्‍येक राजनैतिक दल, जिसके विधायकों के रूप में सदस्‍य हैं, यह पता लगाने के लिए अपना एक प्राधिकृत एजेंट नियुक्‍त कर सकते हैं कि उसके सदस्‍यों (विधायकों) ने किसको मत डाला है। प्राधिकृत एजेंट रिटर्निंग अधिकारी द्वारा मतदान केन्‍द्रों के भीतर उपलब्‍ध कराई गई सीटों पर बैठेगें। उन विधायकों, जो राजनैतिक दलों के सदस्‍य हैं, को अपने मतपत्र पर निशान लगाने के बाद और मत पेटी में डालने से पहले अपने-अपने दल के प्राधिकृत एजेंट को चिह्नित पत्र दिखाना आवश्‍यक होता है। 29) क्‍या किसी दल का प्राधिकृत एजेंट राज्‍य सभा के निर्वाचनों में अपने दल के साथ-साथ किसी अन्‍य दल का प्राधिकृत एजेंट भी हो सकता है ? उत्‍तर : नहीं । निर्वाचन संचालन नियमावली 1961 के नियम 39एए की मूल भावना यह है कि किसी भी राजनैतिक दल के विधायक अपने मत पत्र (अपना मत डालने के बाद) केवल अपनी पार्टी के प्राधिकृत एजेंट को ही दिखाएंगे न कि अन्‍य दलों के प्राधिकृत एजेंटों को। अत:, एक ही एजेंट को एक से अधिक दल के प्राधिकृत एजेंट के रूप में नियुक्‍त नहीं किया जा सकता है। 30) यदि किसी राजनैतिक दल का निर्वाचक अपने दल के प्राधिकृत एजेंट को अपना चिह्नित मतपत्र दिखाने से मना करता है/नहीं दिखाता है अथवा किसी अन्‍य राजनैतिक दल के प्राधिकृत एजेंट को अपना चिह्नित मतपत्र दिखाता है तो पीठासीन अधिकारी/रिटर्निंग अधिकारी से राज्‍य सभा के निर्वाचन में कौन सी कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है? उत्‍तर : ऐसी स्थिति में पीठासीन अधिकारी अथवा पीठासीन अधिकारी के निदेश के अंतगर्त मतदान अधिकारी उस निर्वाचक को जारी किया गया मतपत्र वापिस ले लेगा और उस मतपत्र के पिछले भाग पर ‘’रद्द - मतदान पद्धति का उल्‍लंघन’’ लिखने के बाद उसे एक अलग लिफाफे में रख देगा। ऐसे मामले में, निर्वाचन संचालन नियमावली, 1961के नियम 39ए के उप-नियम (6) से (8) के उपबंध लागू होंगे। यदि ऐसे मतपत्र को वापिस लेने से पहले ही निर्वाचक उसे मत पेटी में डाल देता है तो ऐसे मतपत्रों की गणना के समय, रिटर्निंग अधिकारी को सर्वप्रथम उस मतपत्र को अलग कर देना चाहिए और उस मतपत्र की गणना नहीं की जाएगी। 31) क्‍या निर्दलीय विधायक अपना चिह्नित मतपत्र किसी अन्‍य दल के प्राधिकृत एजेंट को दिखा सकता है ? उत्‍तर : नहीं । निर्दलीय विधायक के लिए यह अपेक्षित है कि वह अपना चिह्नित मतपत्र किसी एजेंट को दिखाए बिना मतपेटी में उाले। 32) क्‍या किसी विधायक अथवा मंत्री को राज्‍य सभा और विधायकों द्वारा राज्‍य विधान परिषदों के निर्वाचन में दल के प्राधिकृत एजेंट के रूप में नियुक्‍त किया जा सकता है ? उत्‍तर : आयोग की ओर से राज्‍य सभा और विधायकों द्वारा राज्‍य विधान परिषद के निर्वाचनों में ऐसी कोई रोक नहीं है। 33) लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 152 के अंतर्गत रखी जाने वाली निर्वाचकों की सूची को क्‍या राज्‍य परिषदों के निर्वाचन की अधिसूचना की तिथि के पश्‍चात अथवा नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम ति‍थि के बाद भी राज्‍य विधान सभा के नव निर्वाचित सदस्‍य का नाम शामिल करने के लिए आशोधित किया जा सकता है ? उत्‍तर : यदि किसी विधान सभा के ऐसे उप-निर्वाचन में कोई सदस्‍य निर्वाचित होता है, जिसका परिणाम राज्‍य सभा के निर्वाचन की अधिसूचना की तिथि के पश्‍चात् अथवा नाम निर्देशन दायर करने की अंतिम तिथि के बाद घोषित किया गया हो, तो नवनिर्वाचति विधायक के नाम को लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 152 के अंतर्गत रखी जा रही सदस्‍यों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्‍त, वह त‍ब राज्‍य-सभा के निर्वाचन में मतदान का पात्र होगा, यदि मतदान उसके विधायक के रूप में निर्वाचित होने की तिथि के बाद होता है। यह निदेश विधायकों द्वारा विधान परिषदों के निर्वाचनों के मामले में भी लागू होता है। 34) क्‍या ऐसा व्‍यक्ति किसी निर्वाचन में मतदान कर सकता है जो कारागार में बंद है, चाहे उसे कारावास का दंड दिया गया हो, अथवा उसका मामला सुनवाई के अधीन हो अथवा वह पुलिस की कानूनी हिरासत में हो? उत्‍तर : नहीं। लोक प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के प्रावधानों में उपबंधित है कि कोई भी व्‍यक्ति किसी निर्वाचन में मतदान नहीं करेगा यदि वह कारावास में बंद है बेशक निर्वासन के दंडादेश के अधीन हो या अन्‍यथा पुलिस की विधिपूर्ण अभिरक्षा में है।
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    FAQs on Criminal Antecedents, if any, of a candidate and its publicity in pursuance of Hon’ble Supreme Court Judgement dated 25/09/2018 in (C) No. 536 of 2011 regarding.
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    Frequently asked Questions -Delimitation
  10. Q1. Who is an overseas (NRI) elector? Can an NRI settled in foreign land become an elector of electoral roll in India? Ans.- An overseas elector is a person who is a citizen of India and who has not acquired citizenship of any other country and is otherwise eligible to be registered as a voter and who is absenting from his place of ordinary residence in India owing to his employment, education or otherwise is eligible to be registered as a voter in the constituency in which his place of residence in India as mentioned in his passport is located. According to the provisions of Section 20A of the Representation of People Act, 1950, an NRI settled in foreign land can become an elector in electoral roll in India. Q2. Who is eligible to be registered as a voter? Ans.- Every Indian citizen who has attained the age of 18 years on the qualifying date i.e. first day of January of the year of revision of electoral roll, unless otherwise disqualified, is eligible to be registered as a voter in the roll of the part/polling area of the constituency where he is ordinarily resident. Q3. What is the relevant date for determining the age of 18 years? Can I get myself registered as a voter on the day when I have completed 18 years of age? Ans.- According to Section 14 (b) of the Representation of People Act, 1950 the relevant date (qualifying date) for determining the age of an applicant is the first day of January of the year in which the electoral roll is finally published. For example, if you have completed or are completing 18 years of age on any date from and after 2nd January 2013 but upto to 1st January 2014, you will be eligible for registration as a voter in the elector roll going to be finally published in January, 2014. Q4. Can a non-citizen of India become a voter in the electoral rolls in India? Ans.- No. A person who is not a citizen of India is not eligible for registration as a voter in the electoral rolls in India. Even those who have ceased to be citizens of India on acquiring the citizenship of another country are not eligible to be enrolled in the electoral rolls in India. Q5. How can an overseas Indian (NRI) get registered / enrolled in the electoral roll? Ans.- He/she has to file an application for the purpose in prescribed Form 6A before the Electoral Registration Officer / Assistant Electoral Registration Officer of the constituency within which the place of ordinary residence of the applicant in India as given in his/her passport falls. The application accompanied by duly self attested copy of the relevant documents can be filed in person before the concerned Electoral Registration Officer / Assistant Electoral Registration Officer or sent by post addressed to him or can be filed online on website of Chief Electoral Officer of the concerned state or website of Election Commission of India. While filing Form 6A on line, the copy of the passport and copies of other necessary documents like visa should also be uploaded. Q6. What does a ‘passport’ mean in above question? Ans.-‘Passport’ means a passport issued by the Indian Government, in which visa endorsement has been made. It doesn’t mean necessarily the current passport, since in many cases the current passport may not contain details of the address in India, mentioned in the original passport but may contain the address in foreign land. Q7. From where Form 6A can be obtained ? Ans.- It can be downloaded from the website of Chief Electoral Officer of the concerned state or website of Election Commission of India. Form 6A is also available free of cost in Indian Missions in foreign countries. Besides, Booth Level Officers in every polling station area in India have been asked to distribute blank Form 6A to families of overseas Indians in India to send the same to persons living abroad. Q8. What documents are required to be enclosed with Form 6A? Ans.- One recent passport size coloured photograph, duly affixed in Form 6A, photo- copies of the relevant pages of the passport containing photograph, his address in India and all other particulars of the applicant and also the page of passport containing the valid visa endorsement. Q9. What other formalities are required to be fulfilled at the time of filing claim application? Ans.- If the application is sent by post, the photo-copy of each of the documents referred to in the answer to Question No. 8 above, should be duly self attested. If the application is submitted in person before the Electoral Registration Officer / Assistant Electoral Registration Officer, the original passport should be produced for verification. Q10. Who is competent to verify claim applications and objections? Ans.- The Electoral Registration Officer / Assistant Electoral Registration Officer of the concerned constituency. Q11. From where the postal address of the Electoral Registration Officers can be obtained ? Ans.- Postal addresses of all Electoral Registration Officers are available on the website of Election Commission of India / Chief Electoral Officers of respective State / Union Territory (link to which has been provided on the Election Commission of India website). They can also be obtained from Indian Missions in Foreign countries. Q12. If I apply on line, whether I need to send by post to the Electoral Registration Officers address, signed copy of the Form 6A along with required documents. Ans.- Yes, it is necessary to send signed copy of Form 6A and self attested copies of requisite documents mentioned in answer to Question No. 8 above. Q13. Where will be the notice of hearing sent by Electoral Registration Officer? Ans.- The Electoral Registration Officer will send notice at the address of applicant in the country of his current residence, as informed by him and it will be considered as due service of notice to the applicant. Q14. Is personal appearance of applicant or hearing parties necessary? If yes, how will the hearing be conducted? Ans.- Personal appearance or hearing is not necessary in each case. On receipt of Form 6A, the Electoral Registration Officer shall display a copy of the said Form on his notice board inviting objections, if any, within 7 days time. The Electoral Registration Officer may also ask the concerned Booth Level Officer to verify with the family members / relatives or the neighbours, if any, the information provided by the applicant. If Form 6A is complete in all respects and copies of all relevant documents enclosed and no person has objected within 7 days stipulated time, the Electoral Registration Officer can order inclusion of name in the electoral roll. In case there is an objection to the claim in Form 6A for inclusion of name, the Electoral Registration Officer shall designate and authorize an officer from the Indian Mission at that particular country to which the applicant belongs, to hear the applicant for the objection raised. If the objector is also available there then both the parties are heard. Such designated officer of the Indian mission will send a report to the Electoral Registration Officer to enable him to take decision in the case. In no case, the personal appearance of the applicant/objector living abroad shall be required by the ERO in India. Q15. Where can be the list of claims and objections seen? Ans.- It can be seen on the website of the Chief Electoral Officer of the State concerned. It can also be seen on the notice board at the office of the Electoral Registration Officer. Q16. What is the procedure of verification of self attested documents submitted by an overseas Indian (NRI) alongwith his application in Form 6A ? Ans.- As soon as Electoral Registration Officer receives Form 6A alongwith copies of self attested documents, he will send Booth Level Officer of the concerned polling area for field verification. Booth Level Officer will visit the home address mentioned in the passport of the applicant. He will enquire from the relations of the applicant, if any, to verify the self attested copies of documents and give a declaration to the effect. In those cases where no relative is available or no relative is willing to give declaration for verification of documents, or Electoral Registration Officer is not satisfied with verification of documents by the relatives, the documents will be sent for verification to the concerned Indian Mission in the country where the applicant resides. The officer in Indian Mission authorized to verify the claims application will take further necessary action as mentioned in answer to Question No. 14 above. Q17. How will an overseas Indian (NRI) know that his/her name is included in the electoral roll? Ans.- The decision of the Electoral Registration Officer will be communicated to the applicant by post on his address in the foreign country given by him in Form 6A and also by SMS on the mobile number given by him in Form 6A. Electoral rolls are also available on the website of the Chief Electoral Officer of the State concerned and can be seen by anybody. Q18. Where the entries pertaining to overseas (NRI) elector find place in the electoral roll? Ans.- Name of overseas elector is included in a separate section for “Overseas Electors” which is the last section of the roll of that particular part / polling station area of the constituency in which his place of residence in India as mentioned in his passport is located. Q19. How can corrections be made if there are some mistakes in the entries in the electoral roll pertaining to overseas (NRI) electors? Ans.- For correction of mistakes in electoral rolls, an application in Form-8 is to be submitted to the Electoral Registration Officer concerned. Q20. Who can object to the inclusion of names in electoral rolls? Ans.- Any person who is a voter in the concerned constituency may object to the inclusion of names in electoral roll on the ground that the person whose names is included or is proposed to be included is not eligible to be registered as a voter in that constituency. An objection can be made in Form 7 to the concerned Electoral Registration Officer / Assistant Electoral Registration Officer along with the relevant proof. Q21. Whether Electoral Registration Officer is to be informed of the change in current residential address of the overseas (NRI) electors in the country of his/her residence? Ans.- Yes. It is the responsibility of the overseas elector to keep the Electoral Registration Officer informed of the change in residential address in the country of his/her residence. Q22. Whether Electoral Registration Officer is to be informed when the overseas (NRI) elector returns to India and becomes ordinarily resident in India? Ans.- Yes. An overseas elector must do so. In such a case, the person can then be registered as a general elector at the place where he is ordinarily resident in India. Q23. How can an overseas (NRI) elector whose name is enrolled in the electoral roll exercise his/her franchise? Ans.- After enrolment, an overseas (NRI) elector will be able to cast his vote in an election in the Constituency, in person, at the polling station provided for the part where he is registered as an overseas (NRI) elector. Q 24. Is an overseas (NRI) elector issued an EPIC ? Ans. – An overseas (NRI) elector is not issued an EPIC as he is allowed to cast his vote in an election in the constituency, in person at the polling station on production of his original passport. Q25. Whether the overseas (NRI) elector should surrender EPIC, if already issued to him, in India ? Ans.- Yes, the overseas elector should surrender EPIC, if already issued to him, in India, alongwith submission of Form 6 A. Q 26. When can one get registered in electoral roll? Is enrollment is on throughout the year ? Ans.- The Election Commission normally orders revision of existing electoral roll every year, sometime in the months of September to October and such revised rolls are finally published in first week of January of the coming year. One can submit claim application (Form 6A) during period for lodging claims and objections to Electoral Registration Officer / Assistant Electoral Registration Officer or Designated Officer. Even after final publication, the rolls are updated continuously and one can get registered anytime during the continuous updation by filing a claim application to Electoral Registration Officer / Assistant Electoral Registration Officer. Q.27 Can one be enrolled at more than one place? Ans.- No. A person cannot be enrolled as a voter at more than one place in view of the provisions contained under Sections 17 and 18 of Representation of People Act, 1950. Likewise, no person can be enrolled as an elector more than once in any electoral roll. Any person while applying for fresh enrolment, makes a statement or declaration whether his / her name is already included in the electoral roll of any other constituency, and if such statement/declaration is false and which the applicant either knows or believes to be false or does not believe to be true, he is liable to be punished under section 31 of the Representation of the People Act, 1950. Q.28 If I have a complaint against the order of Electoral Registration Officer, to whom I should make an appeal. Ans.- During the period of revision, you can file an appeal to the District Election Officer. In the case of application during the process of continuous updation, such appeal against any order of Electoral Registration Officer will lie before the District Magistrate / Additional District Magistrate / Executive Magistrate / District Collector of the District concerned. A further appeal against the order of Appellate Authority will lie before the Chief Electoral Officer of the State. Q. 29 Whether there is any minimum period for which one should be out of country so as to apply for registration as overseas elector? Ans.- No such period is prescribed.
  11. Ques. 1. Can a proposer of any candidate be also a candidate for the same constituency? Ans. Yes, as per law there is no bar. Ques. 2. If information given by a candidate in affidavit is wrong, can RO reject the nomination of the candidate? Especially, if other candidates raise objection and give proof that information in affidavit is wrong. Ans. No, the nomination of a candidate cannot be rejected for suppressing or giving false information in the affidavit. The copies of the nomination papers filed by each candidate along with copy of the affidavit accompanying the nomination should be displayed on the notice board in the office of RO on the day the nomination is filed. If anyone furnishes any information contradicting the statements in the nomination form or affidavits by means of a duly sworn affidavit, copies of such affidavits should also be displayed on the notice board. If the RO is satisfied that the information given by the candidate in the affidavit is wrong he is required to file a formal complaint before the appropriate Court under section 125A of the R.P. Act, 1951 and Section 177 of IPC (read with section 200 CrPC). Ques. 3. If a complaint is received that a person who has filed nomination is of unsound mind, what course of action will be taken by RO? Ans. The complainant has to prove by producing a declaration by the competent court under the Lunacy Act to the affect that the person concerned is of unsound mind. Disqualification is attracted only when there is a declaration by competent court. Ques. 4. What if 5 or more than 5 persons, who are proposers, happen to be illiterate & their thumb impressions are to be attested, can we allow more than 5 persons in the RO room in that case? Ans. Thumb impressions on the nomination paper has to be attested for which thumb impressions have to be put before the RO or before an Administrative Officer not below the rank of SDO. To enable the proposers to put their thumb impressions before RO, they shall be called by the RO in batches of four for putting the thumb impression in his presence. Ques. 5. Should the affidavits in Form 26, be in both English & Gujarati or in any one language? Ans. It has to be given either in English or in one local language of the state which is the official language and in case of Gujarat it can be in Gujarati. Ques. 6. If the affidavit of a candidate is objected to, and RO feels that it has some substance, does the RO himself initiate proceedings under RP Act or IPC or should objector do it? Ans. Yes, the RO has to initiate proceeding under the relevant statutory provisions. (Pl. see Ans. To Q. No. 2) Ques. 7. For an independent candidate 10 proposers are required to sign the nomination paper before RO. If during scrutiny one proposer says it was not signed by him, what will RO do? Ans. The RO shall ask the person concerned to submit an affidavit to this affect. If affidavit is submitted then RO shall make a summary inquiry to satisfy himself as to the authenticity of the signature of the proposer. The candidate shall be given adequatae opportunity to present his case. In case it is proved that the signature was forged, the nomination of the candidate will be rejected since the nomination with 9 proposers cannot be accepted as a valid nomination paper as per law in the case of candidates sponsored by registered unrecognized party and independent candidates. Ques. 8. Whether nomination papers of a candidate who was physically present just a minute before 3:00 PM on the last day of nomination, but without documents will be received or not? Ans. Nomination paper if available with the candidate has to be received but no other document shall be permitted to be brought into his office after 3.00 PM. In the check list, the fact of not having submitted the relevant documents will be entered. Question of rejection of nomination paper will be decided at he time of scrutiny. Ques. 9. What is the time limit for filing Form 6, to include name in electoral rolls in case applicant wants to be candidate also. Ans. Minimum 10 (Ten) days before the last date of making the nomination for an election. However, Form-6 filed thereafter upto the last date for filing nomination shall be received by the ERO but orders can be passed on each such Form only after completion of the election. Under the law, no order for inclusion of name in electoral roll can be made after the last date for making nomination. There are Court ruling clarifying that the cut-off time for passing orders in this regard would be 3.00 PM on the last day of filing of nomination. There are other statutory requirement of displaying the applications on the notice board by the ERO for 7 days, etc. before the ERO can pass orders on the claim application. Ques. 10. What document should be taken as proof of citizenship? Ans. There is no specific document to prove the citizenship. For contesting elections from a state Legislative Assembly Constituency, the intending candidate should be enrolled in the electoral roll of any assembly constituency in that state. The presumption in normal course would be that such person is a citizen. In case somebody challenges the citizenship of a candidate, the onus is on the objector to produce sufficient proof before the RO in this regard. If this onus is discharged by the objector, the RO should prima-facie give an opportunity to the intending candidate to rebut the complaint. Generally, MHA issues such certificate of canceling citizenship. Ques. 11. If illiterate proposer himself denies about his thumb impression, how RO can decide on thumb impression validity? Should he call finger print expert? Ans. The illiterate person proposing a candidate has to put his thumb impression before the RO or an Administrative Officer not below the rank of SDO. Therefore, the question of denial would not arise. In case the proposer denies, the RO has to satisfy himself by making summary inquiry. [Please see answer to question No. 7]. Ques. 12. If major portion of affidavit is not filled at all, is it ground for rejection? Ans. Yes, it will be a ground for rejection as it will be a defect of substantial nature. Under the Commission€s instructions, the RO should depute a person who shall get filled all the details in the affidavit from the candidate. In case there is no information to be furnished by the candidate in any of the columns the candidate has to write “NIL or Not Applicable”, as the case may be. Ques. 13. If during scrutiny, a proposer says on affidavit that he has not signed on nomination papers, then what will RO do? Ans. The RO has to satisfy himself about the signature of the proposers. In case he is satisfied after summary enquiry that the signature is not of the proposer as claimed by him then the nomination paper shall be rejected for want of required number of proposers and the person who filed the nomination paper with forged signature/thumb impression will have to be prosecuted under the law. However, the candidate concerned should be given adequate opportunity to present his case. If necessary, scrutiny proceedings in that candidates€ case can be adjourned. Ques. 14. Is oath required every time? With every nomination filed at different intervals of time by same candidate? Ans. No. The oath is required to be taken and subscribed only once for an election. Even if a candidate is contesting from two constituencies, one oath is sufficient. It should be noted that oath can be taken only after the nomination paper is filed. It would be for the candidate to produce before the RO, the certificate of taking of oath as per the requirement of law. Ques. 15. What if independent candidate submits nomination paper with more than 10 proposers? Will it be valid? Ans. Yes, minimum 10 proposers are required for independent candidate under the law. Excess is not a problem. Ques. 16 Regarding signature of a proposer, if in the summary inquiry, the RO finds that the signature is false, can the nomination be rejected? Ans. Yes, in case, the RO finds on summary inquiry that the signature is false and the number of proposers then falls less than the required number, then that nomination paper will be rejected by the RO.[Please see answer to question Nos. 7 and 12] Ques. 17. Can the nomination papers be Photocopied & allowed to be examined by other candidate? Or only original papers are to be given for examination? Ans. Copies of nomination filed by each candidate along with the affidavit accompanying the nomination should be displayed on the notice board in the office of RO on the same day of filing nomination. At the time of scrutiny, the other candidate may be given opportunity to examine the original nomination papers without being allowed to physically handling the paper. Ques. 18. If in case of an overseas elector, the nomination paper is delivered on the last date of nomination, then he takes an Oath before a consular representative and if he or the consular representative faxes or sends a scanned copy of that form of Oath or a written communication to the RO, can it be allowed? Or the RO should insist for an original document? Ans. Yes, fax/scanned copy can be relied upon if the original is not received before the scrutiny of nomination. The consular representative should, however, send the original of the oath or affirmation made and sighed by the candidate to the RO subsequently. Ques. 19. Can a candidate withdraw nomination immediately after scrutiny or has to wait till list of validly nominated candidates is prepared in Form-4? Ans. He should wait till the RO prepares the list of validly nominated candidates in Form-4. Ques. 20. If a proposer is in all the four nominations, can he submit all the four nominations? Ans. Yes, the proposer can submit all the four nominations in case he has proposed in all the four nominations. Ques. 21. If a candidate has been issued SC/ST certificate from other state as she has been after marriage residing in other state & contesting election there, how RO should proceed further? Ans. A person shall not be qualified to be chosen to fill a seat in the Legislative Assembly of a State unless in the case of a seat reserved for the Scheduled Castes or for the Schedule Tribes of that State, he should belong to any of those castes or of those tribes, as the case may be, in that state, and is an elector for any Assembly constituency in that State. In such cases, there should be a SC certificate issued by the competent authority of the State in which the person is contesting election. Ques. 22. How many persons are allowed to enter the RO€s room when the nomination papers are being filed by independent/ unregistered party candidate? Is it 4+1 only? Also in case of illiterate proposers please? Ans. Only 4 persons can enter the office of RO other than the candidate. Since, illiterate person has to put a thumb impression before the RO or an Administrative Officer not below the rank of SDO, all illiterate proposers who have not already appended their thumb impression before any other authorized officer, shall be called by the RO in batches of four, for putting the thumb impression in front of him. Ques. 23. Suppose, a candidate filing nomination papers is not a voter of that particular Assembly Constituency, then he will produce a certified extract from the electoral rolls. But as continuous revision is going on, which should be the latest date of that certificate? Ans. There is no last date. The certified extract should be in respect of the electoral rolls in force. Such extract can be filed till the time of scrutiny of nomination. Ques. 24. If an independent candidate€s nomination form has 12 proposers and proposer no. 3 and 4 is not valid. Total 10 are valid out of the 12. Is that acceptable? Ans. Yes, only 10 proposers as required for candidates of registered unrecognized parties and independents would still be left. Ques. 25. In the affidavit is a candidate needed to file all the particulars of only government dues or also dues of local self government like Municipality, Panchayat etc. and also dues pending for government contracts? Ans. Details of dues to Departments dealing with the Government accommodation, supply of water and electricity, telephone/mobiles, transport (including aircraft and helicopters), income/wealth/service tax, municipality property tax will have to be shown in reppective columns provided in Item (8)(ii) of Form-26. Any other Government dues will have to be shown in the last row of Item (8)(i). Ques. 26. As mentioned in point no. 5 (II) of Form-26 the cases pending against a candidate in which cognizance has been taken by the court is required to be given. Please qualify the word COGNIZANCE? Ans. Please see the provisions of Section 190 of CrPC. Ques. 27. Whether 1st Class Magistrate & Executive Magistrate are the same. Kindly elaborate with legal provisions. Ans. It varies from State to State. Generally, Executive Magistrates cannot be equated with 1st Class Magistrate. Ques. 28. Whether the mentally retarded person or unsound mind person are to be treated as same or there is legally some difference? Kindly elaborate. Ans. For contesting election, only if a person has been declared by the competent court as of unsound mind under the Lunacy Act, he/she cannot contest any election. Ques. 29. Whether the nomination paper filed by a candidate not signed at the time of submission or filing of nomination papers can be signed thereafter before scrutiny of nomination papers or not? Ans. At the time of scrutiny, if any nomination paper of a candidate is found without the signature of the candidate, the RO should reject the nomination as it is a defect of substantial nature. Signature cannot be affixed subsequently. Ques. 30. In case of reserved constituency, the SC/ST certificate if objected to on the ground that the caste/ tribe do not figure in the list of the Constitution (Scheduled Castes) and (Scheduled Tribes), Order 1950, even though the certificate is proved to be issued by a competent authority, then what happens? Ans. A person shall not be qualified to be chosen to fill a seat in the Legislative Assembly of a State unless in the case of a seat reserved for the Scheduled Castes or for the Schedule Tribes of that State, he should belong to any of those castes or of those tribes of that state, as the case may be, and is an elector of any Assembly constituency in that State. If the Caste/Tribe to which the candidate belongs is not one of the Castes/Tribes in the list of Scheduled Castes/Tribes for the State, then the candidate cannot treated as qualified to contest from that reserved seat. Ques. 31. Does “Magistrate 1st Class” before whom the affidavit on Form 26 is to be sworn include “Executive Magistrate”? Ans. Affidavit should be sworn before only the magistrate of 1st class, notary public and commissioner of oath appointed by the High Court of the state concerned. Executive Magistrates cannot be treated as 1st Class Magistrates for this purpose, unless they are also specified as 1st Class Magistrate in any State. Ques. 32. Is a candidate, in contractual obligation with any Gram/ Taluka/ District Panchayat or any other local body like municipality disqualified under section 9A of the R. P. Act, 1951? Ans. No, only subsisting contract supply of goods or execution of works with the government of the State concerned and not with the local authority will attract disqualification under Section 9A of the R. P. Act, 1951, for election to the Legislative Assembly of that State. For Parliament election, such contract with the Central government alone will attract disqualification. Ques. 33. If the candidate of one political party remarks adversely against another party candidate in news/news papers. Can this be considered as “Paid News”? Ans. There are various aspects that need to be looked into before calling a news item a suspected case of “Paid News”, like bias, undue favour, reads more like propaganda than news item, consistently one- sided, factually incorrect and in favour of a particular candidate in continuous opposition to another candidate etc. The MCMC has to apply its mind collectively to decide on each such cases based on samples & evidences. One news report of a criticism of a political adversary need not constitute “Paid News”.
  12. Q.1 Who is a service voter ? Ans. Service voter is a voter having service qualification. According to the provisions of sub – section (8) of Section 20 of Representation of People Act, 1950, service qualification means – (a) Being a member of the armed Forces of the Union ; or (b) Being a member of a force to which provisions of the Army Act, 1950 (46 of 1950), have been made applicable whether with or without modification ; (c) Being a member of an Armed Police Force of a State, and serving outside that state; or (d) Being a person who is employed under the Government of India, in a post outside India. Q. 2 What is the relevant date for revision of electoral roll ? Ans. The relevant date for revision of electoral roll is 1st January of the year in which the roll is finally published. Q. 3 How is a service voter different from an ordinary elector? Ans. While an ordinary elector is registered in the electoral roll of the constituency in which his place of ordinary residence is located, person having service qualification can get enrolled as ‘service voter’ at his native place even though he actually may be residing at a different place (of posting). He has, however, an option to get himself enrolled as general elector at the place of his posting where he factually, at the point of time, is residing ordinarily with his family for a sufficient span of time. Q.4 What are the application Forms in which various categories of service voters have to apply for enrollment as elector ? Ans. Following are the application Forms in which various categories of service voters are to make application for enrollment as service voter : - Members of Armed Forces – Form 2 Members of Armed Police Force of a State, serving outside that State – Form 2 A Persons employed under Government of India on post outside India – Form 3 However, if a service personnel has opted to get himself enrolled as general elector at place of his posting, where he is actually residing, he will have to apply in Form 6 like other general electors. Q.5 Are members of all Armed Forces / Para Military Forces eligible to be enrolled as service voters? Ans. As per the existing arrangements, members of Indian Army, Navy and Air Force and personnel of General Reserve Engineer Force (Border Road Organization), Border Security Force, Indo Tibetan Border Police, Assam Rifles, National Security Guards, Central Reserve Police Force, Central Industrial Security Force and Sashastra Seema Bal are eligible to be registered as service voters. Q.6 From where Form 2 / 2 A / 3 can be obtained? Ans. It can be downloaded from the website of Election Commission of India. Q.7 What is the process of enrollment of a service personnel as a service voter ? Ans. Election Commission orders revision / updation of rolls for service voters twice in a year. The Commission sends a communication to Ministry of Defence, Ministry of Home Affairs and Ministry of External Affairs intimating them of the commencement of revision programme. As soon as the programme is announced, persons having service qualification can fill up the application in statutory Form 2 / 2A / 3, in duplicate, and handover to the officer in-charge of record office or the nodal authority in Ministry of External Affairs (in case of persons employed under Government of India on a post outside India). The person applying in Form 2 / 2A has also to submit a declaration in a prescribed format to the effect that he did not get enrolled as general elector in any constituency. The declaration need not be in duplicate. The officer in-charge / nodal authority will check the Form and declaration and ensure that the Form is complete in all respects and particulars filled by the applicant therein are correct. The officer in-charge, will then, sign the verification certificate provided in the Form itself and forward the same to the Chief Electoral Officer of the State concerned. The Chief Electoral Officer sends the Form to respective District Election Officer who will then send it to the Electoral Registration Officer of the constituency. The Electoral Registration Officer will process the Form. Q.8 Is wife or son/daughter of a service voter also enrolled as a service voter ? Ans. The wife of a service voter shall, if she is ordinarily residing with him, be also deemed to be a service voter in the constituency specified by that person. The service voter has to make a statement to the effect in the relevant Form 2/2A/3 that his wife ordinarily resides with him. The wife will be enrolled as a service voter on the basis of declaration made by her husband in the application form itself submitted by him and no separate declaration / application is required to be made by the wife. A son / daughter / relative / servant etc. residing ordinarily with a service voter cannot be enrolled as service voter. Q.9 Is facility of enrollment as a service voter available to the husband of a female service voter ? Ans. Under the existing law, this facility is available only to the wife of a male service voter and is not available to the husband of a female service voter. Q.10 Can one be enrolled simultaneously as a service voter at his native place as well as a general voter at the place of posting ? Ans. No. A person, at a particular time, cannot be enrolled as a voter at more than one place in view of the provisions contained under Sections 17 and 18 of Representation of People Act, 1950. Likewise, no person can be enrolled as an elector more than once in any electoral roll. As explained above, a service voter has option either to get himself registered as service voter at his native place or as general elector at the place of posting. When a person applies for registration as a service voter in Form 2 / 2A, he has to submit a declaration in a prescribed format to the effect that he did not get enrolled as ordinary general elector in any constituency. Q.11 Who is a Classified Service Voter? Ans. Service voter belonging to Armed Forces or forces to which provisions of Army Act, 1950 are applicable, has 0ption of either voting through postal ballot or through a proxy voter duly appointed by him. A service voter who opts for voting through a proxy is called Classified Service Voter (CSV). Q.12 Who is a ‘ proxy ’ ? Ans. A service voter may appoint (by applying to Returning Officer in Form 13 F of Conduct of Elections Rules, 1961 – Form available at the website of Election Commission) any person as his / her proxy to give vote on his / her behalf and in his / her name at the polling station. The proxy shall have to be ordinary resident of that constituency. He need not be a registered voter but he / she must not be disqualified to be registered as a voter. Q.13 What is the procedure of appointment of a ‘proxy’ ? Ans. A ‘proxy’ can be appointed in the following two ways :- If a service voter is at the place of his posting, he has to put his signature in Form 13F before the Commanding Officer of the Unit and then to send the Form to his proxy for affixing his / her signature before a Notary / First Class Magistrate. Thereafter, the proxy can submit the Form to the Returning Officer concerned. If a service voter is at his native place, both he and his proxy can sign Form 13 F before a Notary / First Class Magistrate and then send to the Returning Officer concerned. Q. 14 For what period a proxy remains valid? Ans. The provision for voting through proxy is valid till the person making the appointment is a service voter. Once appointed, the proxy will continue until his appointment is revoked by the service voter. The facility of proxy voter can be revoked and the proxy can be changed at any time or for any number of times by the Classified Service Voter. Thus a Classified Service Voter can revoke and opt back for postal ballot route or even substitute the proxy by intimating the Returning Officer in Form 13 G of Conduct of Elections Rules, 1961 (Form available at the website of Election Commission). Revocation will become effective from the date it is received by the Returning Officer. Q.15 When should the application for appointment of a proxy be made? Ans. Application for appointment of a proxy should be received by the Returning Officer before the last date of filing of nomination papers. An application for appointment of a proxy received after the last date of filing nomination papers cannot be considered for the election in progress, though it will be valid for subsequent elections unless revoked / changed. Q.16 How does a ‘proxy’ record the vote on behalf of the service voter at the polling station ? Ans. The proxy can record the vote on behalf of the service voter at the polling station to which service voter is assigned, in the same manner as any other elector assigned to that polling station. The proxy will be entitled to vote on behalf of the service voter, in addition to the vote that he / she may cast in his / her own name if he/she is a registered elector in the constituency, at the polling station to which he / she has been normally assigned. Q .17 Can a Classified Service Voter be issued postal ballots by the Returning Officer ? Ans. A Classified Service Voter cannot be issued postal ballots but the appointed proxy shall physically come and vote at the polling station which covers the classified voter’s home address. Q. 18 What is the structure of list of service voters in the electoral roll ? Ans. While the list of classified service voter shall be maintained polling station wise, the list of other service voters is prepared separately for a constituency as a whole and all service voters registered therein shall be arranged at the end of electoral roll of a constituency as a separate last part. All service voters belonging to a constituency shall be listed together, irrespective of the place of residence, in this last part. These service voters do not have any specified polling station. The last part meant for service voters has three subparts – ‘A’ (For Armed Forces), ‘B’ (Armed Police Force of States serving outside the respective State) and ‘C’ (For persons employed under Government of India against a post outside India). Q.19 How many times the last part of electoral roll for service voters is updated in a year? Ans. The last part of electoral roll / list of service voters is updated twice and 2 supplements are brought out in a year. Q.20 In which language the last part of rolls is prepared for service voters ? Ans. The last part containing the list of service voter is prepared in English only. Q.21 Is a service voter issued Elector Photo Identity Card (EPIC) like ordinary electors? Ans. A service voter is not issued Elector Photo Identity Card (EPIC). Elector Photo Identity Card (EPIC) is a document of identity which an elector has to show at the polling station at the time of casting his vote. As service voters are issued postal ballots or votes through his ‘proxy’, they are not required to visit the polling stations personally and therefore Elector Photo Identity Cards (EPICs) is not issued to them. Q.22 Is a service voter required to apply for issue of a postal ballot paper? Ans. No; the Returning Officer will himself send a postal ballot paper to him through his record office (or direct or through the Ministry of External Affairs in the case of a service voter serving outside India).

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